Chapter 9 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel
Table of Contents
Chapter 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31
Prev Part | Next Part | All Chapters
सबा! बाज़ दफ़ा तुम मुझे बहुत एंबैरेस कर देती हो।” उस रोज आफ़रीन का मूड खासा खराब था।
“आज फिर यूनिवर्सिटी आ गए हो?” सबा ने उसकी बात नज़रअंदाज़ करती हुए पूछा।
“तुम्हें अच्छा नहीं लगा?”
“मैंने ऐसा कब कहा।”
“अम्मी ने कल मुझे पूछा था कि मैं यूनिवर्सिटी तुमसे मिलने गया हूँ। मैंने कह दिया नहीं। उन्होंने मेरी बात की तस्दीक (पुष्टि) के लिए तुमसे पूछा और तुमने साफ़ कह दिया कि हाँ, मैं यूनिवर्सिटी आया था।”
“आफ़रीन! इसमें छुपाने वाली कौन सी बात थी?” सबा के लहज़े में इत्मीनान बरकरार था।
“बात सच और झूठ की नहीं है। तुम्हें पता है मम्मी को मेरा तुमसे मिलना पसंद नहीं है। उन्हें यह भी अच्छा नहीं लगता कि मैं तुम्हारे घर आना जाना रखता हूँ, क्योंकि यह खानदानी रिवायत (परंपरा) के खिलाफ़ है। मैं सिर्फ़ उनके ज़ज्बात का एहतिराम (इज्ज़त) करते हुए तुम्हारे घर नहीं आता। यूनिवर्सिटी आ जाता हूँ, लेकिन तुमने इस बात की बिल्कुल परवाह नहीं की। अब अम्मी को कितना बुरा लगेगा और वह मुझसे कितनी नाराज़ होंगी।”
“आफ़रीन! मैं तुमसे चोरी-छुपे नहीं मिलती हूँ और वह भी इसलिए कि तुम मेरे शौहर हो। अगर मंगेतर होते, तो मैं कभी ना मिलती। ना यूनिवर्सिटी में, ना घर पर। जो चीज़ गलत है ही नहीं, मैं उसे गलत तरीके से क्यों करूं? अगर अपनी अम्मी को सच बता देती हूँ, तो तुम्हारी अम्मी से गलत-बयानी क्यों करूं, फिर भी अगर मेरी वजह से तुम्हें कोई तकलीफ़ पहुँची है, तो मैं उसके लिए माजरा-ख्वाह (माफ़ी का तलब-दार) हूँ।”
“खैर, मैंने एक्सक्यूज करने को तो नहीं कहा। बहरहाल मैं तुम्हें यह बताने आया था कि मैं कल इस्लामाबाद जा रहा हूँ।” आफ़रीन में मौजू (विषय) बदल दिया था।
“कितने दिनों के लिए जा रहे हो?”
“अभी एक हफ्ते के लिए जा रहा हूँ, लेकिन हो सकता है दस दिन और लग जायें। तुम यह बताओ तुम्हारे लिए क्या लाऊं?” आफ़रीन ने उससे पूछा।
“आफ़रीन तुम जानते हो, मैं चीजों की फ़रमाइश नहीं किया करती।” सबा ने बड़ी रौशन-आयत (रोशन दलील) से जवाब दिया।
“फिर भी यार! कुछ तो फ़रमाइश कर दिया करो। मुझे अच्छा लगेगा।”
“पहले भी अपनी मर्ज़ी से गिफ्ट लाते थे। अभी भी, जो दिल चाहे ले आना।”
“सबा! मेरा दिल चाहता है, कभी तुम मुझसे कोई फ़रमाइश करो। फिर देखो, मैं उसे कैसे पूरा करता हूँ।”
वह उसकी बात पर खिलखिला कर हँस पड़ी, “चलो कभी मांग लूंगी, तुमसे कुछ। देखूंगी, मेरी फ़रमाइश पूरी करते हो या नहीं।”
“एनी टाइम” आफ़रीन ने ख़ुशदिली से सिर हिलाया।
“यह जो इंसान होता है, बाज़ दफ़ा यह बिना मांगे तो कुछ भी दे देता है, लेकिन मांगने पर कुछ भी नहीं देता।”
“तुम्हारा इशारा मेरी तरफ़ है?” वह कुछ देर उसका चेहरा देखता रहा, “मुझे ऐसा लगता है, जैसे तुम्हें मुझ पर एतबार नहीं है।”
“आफ़रीन! क्या इंसान एतबार के काबिल है?”
“सबा! मैं अपनी बात कर रहा हूँ।” वह उसकी बात पर कुछ झुंझला गया।
“आफ़रीन! यह ज़रूरी नहीं कि जिससे मोहब्बत की जाये, उस पर ऐतबार भी किया जाए, जैसे यह ज़रूरी नहीं कि जिस पर एतबार किया जाये, उससे मोहब्बत भी की जाये।”
वह उसकी बात के जवाब में खामोश बैठा रहा।
“नाराज़ हो गए हो?” सबा ने उसे खामोश देखकर पूछा।
“नहीं! नाराज़ किस बात पर होना है। तुमने कोई इतनी काबिल-ए-एतराज बात तो नहीं कहीं।”
“फिर भी तुम्हें बुरा लगा है ना?” सब दिल-चोरी करने की कोशिश में थी।
“बुरा लगा है, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। तुम परेशान मत हो। मेरे ख़याल है, अब मुझे चलना चाहिए।” आफ़रीन ने घड़ी देखी थी।
“लेकिन जाने से पहले एक बात हमेशा याद रखना कि मुझे तुम्हारी बहुत परवाह है, कल भी थी और हमेशा रहेगी।”
वह एक हल्की सी मुस्कुराहट के साथ उसे जाते देखती रही।
Prev Part | Next Part | All Chapters
Chapter 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31
Complete Novel : Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi
Complete Novel : Chandrakanta By Devki Nandan Khatri
Complete Novel : Nirmala By Munshi Premchand