चैप्टर 30 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 30 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 30 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

Chapter 30 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

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“आमना! अब उठ जाओ यार। इतनी देर सोती रहोगी।” गुल की आवाज ने उसे बेदार (जगा) कर दिया। वह थके-थके अंदाज में उठ कर बैठ गई। गुल आईना हाथ में लिए हुई थे, जिससे होंठों पर लिपस्टिक लगा रही थी। वह बेख़याली में उसका चेहरा देखती। रोज इस वक्त इसी तरह सज-धज कर बाहर आती जाती थी। उसके बकौल वह अपने मंगेतर के साथ घूमने फिरने जाती थी। मगर उसका मंगेतर हर तीसरे चौथे दिन बदल जाता था। सारा को उसके मंगेतर पर ऐतराज था, ना मंगेतर के बदलने पर।

“बस मैं अब जा रही हूँ। तुम दरवाजा अंदर से बंद कर लेना। अज़रा आज देर से आएगी। वह मुझे सुबह बता कर गई थी।” गुल ने बाहर निकलते हुए उसे बताया था। उसने उसका दरवाजा बंद कर दिया।

रोज़ा इफ्तार होने में अभी थोड़ा ही वक्त रह गया था। वह किचन में आ गई। वहाँ कुछ भी पका हुआ नहीं था। पिछली रात के पकाये हुए कुछ दाल चावल अभी भी पड़े हुए थे। वह जानती थी कि अज़रा और गुल दोनों बाहर से खाना खाकर आयेंगे और शायद अपने लिए कुछ साथ ले भी आयें। चावलों को गर्म करने के बाद एक गिलास पर पानी और चावल लेकर वह कमरे में आ गई। दोनों चीजों को उसने फर्श पर रख दिया और ख़ुद दोबारा अपने बिस्तर पर बैठ गई।

वह रोज दिन में सोती नहीं थी, मगर आज ख़ास बात थी। आज एक बार फिर वह उसके हत्थे चढ़ते-चढ़ते बची थी। डेढ़ माह में यह तीसरा मौका था, जब सारा का उससे सामना होते-होते रह गया था।

पहली दफ़ा उसका हैदर से टकराव तब होते-होते रह गया था, जब कुछ दिन अपने दोस्त के पास रहने के बाद उसने उसके जरिये एक हॉस्टल में कमरे किराये पर लिया था। उसे हॉस्टल में आये तीसरा दिन था, जब वह किसी काम से बाहर गई थी और वापसी पर उसने बहुत दूर से ही उसकी सिल्वर ब्रेक कार हॉस्टल के बाहर देख ली थी। वह बहुत मोहताज के होकर कुछ आगे बढ़ी। नंबर प्लेट को पहचान गई। कार में कोई नहीं था। यकीनन वो के अंदर होगा। कार से कुछ आगे पुलिस की एक वैन ही खड़ी थी। वह उल्टे कदमों अपने दोस्त के पास वापस गई।

“सारा! तुमने मुझे धोखा दिया। तुम्हारे अंकल और खाला तुम्हारी शादी किसी बूढ़े के साथ नहीं कर रहे। मैं हैदर से मिल चुकी हूँ। उसने मुझे निकाहनामा भी दिखाया है और तुम्हारे कारनामे के बारे में भी बताया है। फिर उसके बाद मेरे पास इसके सिवा कोई और चारा नहीं था कि मैं उसको तुम्हारा ठिकाना ना देती।” उसकी दोस्त अमीरा ने उसकी शिकायत पर कहा। वह फैक्ट्री में उसके साथ काम करती थी और सारा शादी वाले दिन सीधी उसके पास गई थी। सारा के पास अब खोने को कुछ नहीं रहा। वह उसके पास से चली आई।

फिर दोबारा वह हॉस्टल नहीं गई। उसका बैग उसके पास था, जिसमें उसकी सारी रकम मौजूद थी। हॉस्टल में पड़े हुए थोड़े से सामान की उसे परवाह नहीं थी। उसने किसी दूसरे हॉस्टल में कमरा ढूंढने के बजाय एक प्रॉपर्टी डीलर के जरिये  एक छोटे से इलाके में एक फ्लैट छः सौ रुपये महीना किरये पर ले लिया। फ्लैट में पहले ही दो लड़कियाँ रहती थी और फ्लैट सिर्फ एक कमरे, छोटे से किचन और उसी साइज के बाथरूम का था और उसकी हालत काफी खराब थी, मगर सारा को उसकी परवाह नहीं थी। उसके लिए सबसे अहम बात यह थी कि वह अपने सर पर छत हासिल करने में कामयाब हो गई थी।

दूसरी बात हैदर से तब उसका सामना होते-होते रह गया था, जब उसने काम की तलाश शुरू की थी। उसके पास उसके एजुकेशनल मार्कशीट और सर्टिफिकेट नहीं थे और उनकी बगैर कोई ढंग की जॉब हासिल नहीं कर सकती थी। तभी उसे ख़याल आया था कि जिस एकेडमी के जरिये उसने पहले ट्यूशन हासिल की थी वहाँ उसने अपने डॉक्यूमेंट की कॉपी जमा करवाई थी और उस एकेडमी के जरिये एक बार फिर से ट्यूशन हासिल कर सकती थी।

वह एक रोज वहाँ गई थी। एकेडमी के मालिक का रवैया कुछ अजीब सा था। उसने उसे बैठने को कहा और फिर किसी जरूरी काम से अंदर चला गया। कुछ देर बाद वो वापस आया और कहा कि किसी बच्चे के वाली थोड़ी देर में आने वाले हैं और उनके बच्चे को ट्यूशन की जरूरत है। इसलिए सारा वहाँ बैठकर कुछ देर इंतजार करें। वह बस आधा घंटा में पहुंच जायेंगे। उसने दस मिनट वहाँ बैठ कर इंतजार किया और फिर एकदम उसकी सिक्स सेंस उसे किसी खतरे से खबरदार करने लगी। उसने उस एकेडमी के मालिक से पानी मांगा। वह पानी लेने अंदर गया और वो पीछे वाला दरवाजा खोलकर बाहर आ गई।

तेज कदमों से चलते हुए उसने सड़क पार कर ली और फिर जैसे ही वह कॉर्नर पर मुड़ी सिल्वर ग्रे रंग की वही जानी-पहचानी कार उसके करीब से गुजर गई। खौफ़ की एक लहर उसके पूरे वजूद में दौड़ गई।

‘अगर चंद मिनट और मैं वहाँ रूकती तो यह शख्स मेरे सामने होता!’ उसने बे-इख़्तियार सोचा। उसके बाद सिर्फ उस एकेडमी नहीं गई बल्कि किसी एकेडमी नहीं गई।उसने अपने डॉक्यूमेंट दोबारा हासिल करने का फैसला किया क्योंकि सिर्फ उनके जरिये ही वह किसी फैक्ट्री में कोई माकूल जॉब हासिल कर सकती थी। कल वह अपना मैट्रिक का सर्टिफिकेट दोबारा बनवाने के लिए स्कूल गई और क्लर्क ने उसे दूसरे दिन आने के लिए कहा था और आज जब वह अपने स्कूल गई थी, तो इस स्कूल के गेट पर 3तीस-चालीस फीट के फासले पर खड़ी उसकी काली कार ने एक बार फिर उसे दहला दिया था।

‘ए खुदा! यह शख्स क्यों सांप की तरह मेरे पीछे लगा हुआ है?” उसने बे-इख्तियार सोचा और गुमसुम सी वहाँ से वापस आ गई। उसने रास्ते में ही अपने डॉक्यूमेंट को फिर से पाने का इरादा भी तर्क कर दिया था और पूरा रास्ता यही सोचती रही कि अब वह क्या करें। घर आकर को बिस्तर में घुसकर सो गई थी और उठने के बाद वह खाली ज़हनी (empty mind) की हालत में बैठी हुई थी।

उस रात उसने सब कुछ सुना था। अच्छा यह भूल गई थी कि सारा सबा के कमरे में है और सबा के कमरे की खिड़की इसी बरामदे में खुलती थी जहाँ वह बैठी थी। उसने कपड़े बदलने के लिए सबको कमरे से बाहर निकाल कर दरवाजा बंद किया था और तभी उसने अक्सा और अज़ीम की बातों की आवाज सुनी थी। वह खिड़की के पास आ गई और फिर हर राज गया था। उसकी माँ ने क्या किया था, उनके साथ क्या हुआ था और उन्होंने क्यों इस तरह अपनी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी थी, सब कुछ इसके लिए राज नहीं रहा था।

वो एक स्टेचू की तरह साकित रह गई। उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? रोए, चीखे, चिल्लाई, वहाँ से भाग जाए, क्या करें? फिर उसी का जिसने दरवाजा बजाना शुरू कर दिया था और वह जैसे होश में आ गई थी। उसने दरवाजा खोल दिया। फिर मेहंदी की रस्म के लिए उसे बाहर सहन में ले जाकर फूलों से सजी हुई चौकी पर बिठा दिया गया था।फिर बारी बारी खानदान की मुख्तलिफ औरतों ने उसके सिर में तेल लगाना और उसके हाथ में मेहंदी रखना शुरू कर दिया।

उसने एकदम रोना शुरू कर दिया। हर बार जब किसी का हाथ के सिर पर तेल लगाता तो उसे ऐसा लगता जैसे किसी ने उसे जूते मारा हो और उसी तरह से सहन के बीचों बीच जिस तरह चौबीस-पच्चीस साल पहले उसकी माँ को मारा गया था। उसका दिल चाह रहा था वह दहाड़े मार-मार कर रोये। सब यही समझ रहे थे कि वह उसी तरह रो रही है जैसे सब लड़कियाँ शादी पर होती है। उसे उन सब के चेहरे भयानक लग रहे थे। चंद घंटे पहले तक वह उससे अ’आज़िम (महान) लग रहे थे, जिन्होंने सब कुछ भूल कर उसे अपनाया था और अब वह उन सब से दूर भाग जाना चाहती थी, उसी तरह जैसे उसकी माँ। उसकी गोद नोटों से भरी जा रही थी और उसने अपना वजूद किसी मजार पर रखे हुए उस हडिये के डब्बे की तरह लग रहा था जिसमें लोग खुद को बचाने की मिन्नत पूरा होने पर या अपनी जिंदगी में कामयाबी के लिए कुछ ना कुछ डाल कर जाते हैं। हां वह सब ठीक यही कर रहे थे। सबा से की जाने वाली ज्यादती के कुफ्फारे (परलोक सुधारना)  के लिए उसकी बेटी पर रुपये निछावर कर रहे थे। वह रोते-रोते चुप हो गई थी। एक आग ने उसकी वजूद को जलाना शुरू कर दिया था। उसे क्या करना था, उसने सोच लिया था और फिर उसने वही किया जो उसने सोचा था।वह उस इमारत में गई थी और फिर उसके पिछले गेट से निकल कर सीधा अपने दोस्त के पास फैक्ट्री में गई थी। वहाँ उसने रो-रोकर उसे बताया था कि किस तरह खाला और अंकल एक बूढ़े शख्स के साथ जबरदस्ती उसकी शादी करना चाहते हैं और वह घर से भाग आई है। अमीरा और उसके घर वाले भी उसी इमारत में रहते थे जहाँ वह अपनी माँ के साथ रहती थी।

उन्होंने उसे घर में पनाह दे दी थी। दूसरे दिन उस इमारत में पुलिस आई थी और उसने सारा के बारे में पूछताछ की थी। सारा का पुराना फ्लैट अब किसी और रिहाइश के पास था और पुलिस से उस इमारत में ही नहीं गई थी बल्कि उस फैक्ट्री में भी पहुँच गई थी जहाँवह काम करती रही थी।

अमीरा के घर वालों ने उसके बारे में डर के मारे पास पड़ोस में भी किसी को नहीं बताया था। तीसरे दिन अब मेरा अखबार में आई थी, जिसमें उसकी गुमशुदगी की खबर के साथ इसी इंगेजमेंट पर खींचे जाने वाली एक तस्वीर और एक बड़े इनाम की ऑफर थी। वह बेहद खौफजदा हो गई थी। उसकी तस्वीर एक हफ्ते तक रोजाना अखबार में पब्लिश होती रही और उसे अंदाजा हो गया था कि उसे ढूंढने के लिए कितनी ज्यादा कोशिश की जा रही है।

सारा जानती थी कि अमीरा बहुत दिनों तक उसे अपने घर में नहीं रख सकती थी। उसके पास वह सारी रकम मौजूद थी, जो मेहंदी पर उसे दी गई थी और इसलिए उसने अमीरा से अपने लिए किसी और जगह बंदोबस्त करने के लिए कह दिया था। उसे यह हादसा था कि वह लोग कहें उसे ढूंढते हुए अमीरा के घर तक ना पहुंच जाए और बाद में उसका हादसा सच साबित हुआ।

अखबार में बारिश होने वाली तस्वीर में उसका चेहरा मेकअप से बिल्कुल भरा हुआ था और यह उसके हक में अच्छा साबित हुआ था।गुल और अजरा को उसने अपना नाम आमना बताया था। गुल और अज़रा कौन थी ? वहाँ क्यों रहती थी? उसे कुछ पता था ना जानने की कोशिश की थी। उसे सिर्फ यह पता था कि वह दोनों किसी फैक्ट्री में काम करती है। क्या करती है, वो यह नहीं जानती थी।

उन दोनों ने सारा से उसके बारे में मालूमात करने की कोशिश की थी, खासतौर पर उसकी कलाइयों तक मेहंदी से भरे हाथों ने उन्हें कई किस्म के सुबहात में डाला था और हर बार जब वह उससे कुछ पूछने की कोशिश करती, तो वह रोना शुरू कर देती। तंग आकर उन्होंने उससे कुछ पूछना छोड़ दिया।

कई दिनों तक ऐसा ही होता रहा। सारा को खुद पता नहीं चलता था कि किस बात पर उसका दिल भर आता और हो रोना शुरू कर देती थी। फिर कई घंटे होती रहती । इज्जत और खुद्दारी की खातिर लग्जरीज को ठोकर मारना कितना मुश्किल काम है यह उसे अब मालूम हुआ था। वह सिर्फ चार माह लग्जरी में रही थी और उसके लिए अब पहले की तरह ठोकरें खाते हुए जिंदगी गुजारना मुश्किल हो रहा था।

‘अभी तो पैदाइश से जवानी तक लग्जरी में रही थी फिर उन्होंने कैसे सब कुछ छोड़ दिया।’ वह सोचती और आँसू बहाती जाती।

गुल ने एक दिन उससे पूछा, “तुम इतने खामोश क्यों रहती हो?”

वो उसका चेहरा देखकर रह गई थी। उसे याद आया था उसने भी कई दफा अम्मी से यही सवाल किया था। वह हर बार खामोशी से उसे देखती रहती थी, जवाब नहीं देती थी। लोग खामोश क्यों हो जाते हैं अब उसकी समझ में आ गया। क्यों दिल चाहता है कि अपनों की नजरों से अपने वजूद को छुपा लिया जाए। दोबारा उनके सामने ना आया जाये, ना उनसे कभी बात की जाये, यह भी उसकी नज़र में राज नहीं रहा था।

चार साल उसने सिर्फ माँ के मसले को हल करने के लिए फ्रेंच पढ़ी थी, मगर वह उन्हें बूझने, उन्हें समझने में नाकाम रही थी। किताबें पढ़ने और जुबान सीखने से लोगों के इसरार समझ में नहीं आते और अब उसकी माँ की तरह रहते डेढ़ माह हुआ था और वह उनके साथ के हर राज़ को जानने लगी थी।

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