चैप्टर 13 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 13 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 13 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

Chapter 13 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

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हर रोज वो अखबार लेकर बैठ जाती और एक-एक इश्तहार पढ़ डालती। हर वह मुलाज़मत (नौकरी), जो उसे ज़रा भी मुनासिब लगती, वो वहाँ अप्लाई कर डालती। पहली बार उसे एहसास हुआ था, इस ग्रेजुएशन की अमली ज़िन्दगी में कोई अहमियत नहीं है। अब हर जगह कम से कम मास्टर्स वाले बंदे की ज़रूरत होती है। पर अगर किसी ग्रेजुएशन मतलूबा (से सबंधित) क्वालिफिकेशन होती, तो साथ फ्रेश ग्रेजुएट भी लिखा होता और सारा को ग्रेजुएशन किये चार साल हो चुके थे। अलबत्ता उसे यह इत्मीनान ज़रूर था कि वह किसी जॉब के लिए सिर्फ ग्रेजुएट ना होने की वजह से अप्लाई ना करने के मसले से दो-चार नहीं थी।

उसने अभी आफ़रीन अब्बास को जॉब की तलाश के बारे में नहीं बताया था। उसका ख़याल था कि जॉब मिलने के बाद वह उन्हें बता देगी। उसे डर था कि अगर उसने पहले उन्हें अपनी जॉब के बारे में बताया, तो वह शायद उसे जॉब ढूंढने की इज़ाज़त ना दें। आहिस्ता-आहिस्ता इंटरव्यू कॉल मिलने लगी और उसने घर से बाहर जाना शुरु कर दिया। आफ़रीन अब्बास को अभी भी उसने नहीं बताया था कि वह इंटरव्यू के लिए मुख्तलिफ़ जगहों पर जा रही है। बाज़ दफ़ा आफ़रीन अब्बास सारा की गैर-मौजूदगी में घर फोन करते, तो मुलाज़िम उनसे कह देता कि सारा अपने किसी दोस्त के यहाँ गई है। सारा मुलाज़िम से यही कह कर जाती थी और फिर जब वह सारा से पूछते, तो वह उन्हें मुतमइन (संतुष्ट) कर देती।

आफ़रीन अब्बास को भी यह सोचकर तसल्ली हो जाती कि वह रफ़्ता–बा-रफ़्ता (धीरे-धीरे) नॉर्मल ज़िन्दगी की तरफ आ रही है और अपने लिए मशरूफ़ियत ढूंढ रही है। सारा को घर से बाहर निकलकर पहली दफ़ा यह एहसास हो रहा था कि शहर कितना बड़ा है और जॉब का हुसूल (पाना) कितना मुश्किल है। उससे पहले उसे अम्मी की वजह से बड़ी आसानी से एक फैक्ट्री में जॉब मिल गई थी और चंद और जगह अप्लाई करने पर उसे जॉब नहीं मिली थी, वो उसने ज्यादा तरद्दुद (कोशिश) नहीं किया था और फैक्ट्री की जॉब को ही गनीमत समझ लिया था। मगर इस बार वो एक बेहतर जॉब की तलाश में थी, जो उसके अख्राजत (खर्च) पूरा कर सकती।

सारा दिन पैदल दफ्तरों के चक्कर काटते-काटते वो आहिस्ता-आहिस्ता दिल-बर्दाश्ता हो रही थी। उसे यूं लगने लगा था कि जैसी पूरी दुनिया में उसके लिए एक भी जॉब नहीं है।

उस रोज रात के खाने पर हस्ब-ए-मा’मूल (हमेशा की तरह) हैदर और आफ़रीन फ्रेंच में बातें कर रहे थे और वह बड़ी ही बेदिली से खाना खाते हुए उनकी बातें सुन रही थी। ख़िलाफ़-ए-मा’मूल (असामान्य रूप से) जब हैदर देर तक बैठा रहा। सबसे पहले टेबल से आफ़रीन उठकर गए। सारा भी खाना खा चुकी थी और आफ़रीन अब्बास के उठने के चार मिनट बाद जब उसने उठना चाहा, तो हैदर ने उसे रोक लिया।

“एक मिनट सारा! आप बैठें। मुझे आपसे एक बात कहनी है।”

हैदर ने स्वीट डिश खाते हुए उससे कहा था। वह कुछ हैरान सी दोबारा अपनी कुर्सी पर बैठ गई।

“आज मैंने आपको फैक्ट्री एरिया में देखा था। पूछ सकता हूँ, आप वहाँ किसलिए गई थीं?” पानी का ग्लास हाथ में लिए उस पर नज़रें जमाये उसने पूछा था। सारा के लिए उसका सवाल खिलाफ-ए-तवक्को (आशा के विपरीत) था। वह चंद लम्हे चुप रही और फिर उसने फैसला कर लिया।

“मैं फैक्ट्री एरिया नहीं गई ।” उसने बड़े इत्मीनान से झूठ बोला।

हैदर उसे हैरानी से देखता रह गया। शायद उसे सारा से उस सफेद झूठ की तवक्को नहीं थी।

“लेकिन आप आज घर पर नहीं थी। मैंने मुलाज़िम से पूछ लिया है।”

“हाँ मैं घर पर नहीं थी। मैं अपनी एक दोस्त के पास गई हुई थी, लेकिन मैं फैक्ट्री एरिया में नहीं गई।”

सारा को ख़ुद हैरत हो रही थी कि वह कितने इत्मीनान से झूठ बोल रही है।

“हो सकता है, मुझे कोई ग़लतफहमी हुई हो, बहरहाल आई एम सॉरी।”

हैदर ने जिस तरह यह जुमला अदा किया था, उससे साफ ज़ाहिर होता था कि उसे सारा की बात पर यकीन नहीं आया और वह सिर्फ़ मुरव्व्तन (सद्भाव वश) एक्सक्यूज कर गया था।

सारा उठकर अपने कमरे में आ गई। उसे हैदर की यह तफ्तीश अच्छी नहीं लगी थी और ना ही वह उससे परेशान हुई थी। हाँ, चंद दिन एहतियातन बाहर नहीं गई। घर पर ही रही, लेकिन चंद दिन गुज़र जाने के बाद एक बार फिर उसने जॉब के लिए दौड़-धूप शुरू कर दी थी।

उस दिन भी दो जगह इंटरव्यू देने के बाद तीसरी जगह जाने के लिए वह बस स्टॉप पर खड़ी थी, जब अचानक एक गाड़ी उसके पास आकर रुक गई।

“आयें, आपको जहाँ जाना है, मैं छोड़ देता हूँ।” एक मनूश (जानी पहचानी) आवाज उसके कानों से टकराई थी।

“या अल्लाह! क्या ज़रूरी था कि इससे मेरा सामना इस आखिरी इंटरव्यू से पहले होता।“ सारा ने भी बे-इख्तियार दिल में कहा था। बुझे दिल से वह गाड़ी के पिछले दरवाजे की तरफ़ बैठ गई।

“सारा! मैं आपका ड्राइवर नहीं हूँ। आप आगे आकर बैठें।” उसने फ्रंट डोर खोल दिया था। वह कोई ऐतराज़ किये बगैर आगे बैठ गई थी।

“कहाँ जाना है आपको?” हैदर ने गाड़ी बढ़ाते हुए पूछा था।

“मुझे घर जाना है।” उसने झूठ बोला था। हैदर ने एक नज़र उसके चेहरे पर डाली थी।

“अगर कहीं और जाना है, तो मैं वहाँ भी छोड़ सकता हूँ।”

“नहीं मुझे घर ही जाना है।”

चंद लम्हे गाड़ी में खामोशी रही।

“आप सारा दिन कहाँ फिरती रहती हैं? रोजाना किसी दोस्त के घर तो नहीं जाया जा सकता।”

हैदर ने उसे देखे बगैर उससे पूछा था। सारा ने एकदम सच बोलने का फैसला कर लिया।

“मैं जॉब की तलाश कर रही हूँ।”

उसे लगा हैदर पहले ही उसी जवाब की तवक्को कर रहा था, “और उसी लिए उस दिन फैक्ट्री एरिया में गई…”

सारा ने उसकी बात काटना ज़रूरी समझा।

“नहीं. मैं उस दिन वहाँ नहीं गई थी।”

‘सारा आप वहाँ गई थी। मुझे कोई ग़लतफ़हमी नहीं हुई थी। मैंने आपको जिस फैक्ट्री से निकलते देखा था, आपके इंकार के बाद वहाँ फोन करके आपके बारे में पूछ लिया था। अगर उस दिन मेरे साथ मेरा दोस्त ना होता, तो मैं गाड़ी रोक कर आपको पिक कर लेता, फिर कम से कम आप उसे मेरी ग़लतफ़हमी करार न देती।“

सारा को उसका लहजा कद्र-ए-तल्ख लगा। वह कुछ बोल नहीं पाई।

“क्वालिफिकेशन क्या है आपकी?” कुछ देर बाद उसने पूछा था।

“ग्रेजुएशन”

“सब्जेक्ट कौन से थे आपके?”

“इकोनॉमिक्स और…. उर्दू।” वो फ्रेंच कहते-कहते रुक गई और फिर उसने फ्रेंच के बजाय उर्दू कह दिया।

“पापा को पता है कि आप जॉब ढूंढ रही हैं?” उसने कुछ लम्हे खामोश रहने के बाद एक बार फिर पूछा था।

“मैं उन्हें बाद में बता दूंगी।”

इस बार हैदर ने गर्दन घुमा कर उसे देखा। सारा को उसके चेहरे पर कुछ ख़फ़गी (तैश) नज़र आई।

“देखे सारा! आप हमारे घर रहती हैं और हमारी जिम्मेदारी हैं। जो आप कर रही हैं और जो आप करना चाहती हैं, पापा को उसके बारे में पता होना चाहिए। बाद में अगर कोई प्रॉब्लम हुआ, तो सारा इल्जाम पापा पर आयेगा, क्योंकि आफ्टर ऑल उन्होंने ही आपको घर में रखा है। मुझे दूसरों के जाति मामलात में दखलअंदाजी करने का कोई शौक नहीं है, लेकिन आइंदा आप जॉब के लिए घर से बाहर जायें, तो पापा को इस बात का पता होना चाहिए और अगर ऐसा ना हुआ, तो मैं पापा को बता दूंगा। मुझे उम्मीद है आप मेरी बातों पर संजीदगी से गौर करेंगी।“

वह जितनी अच्छी फ्रेंच बोलता था, उससे ज्यादा अच्छी उर्दू में बात करता था। मगर इस वक्त वो सारा को जहर लग रहा था। वह उसे गेट पर उतार कर चला गया था। वह थके-थके कदमों से अंदर चली आई।

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