चैप्टर 23 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 23 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 23 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

Chapter 23 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

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“हैदर से शादी!” वह आफ़रीन अब्बास की बात पर शॉक्ड रह गई थी।

“हाँ, वह तुमसे शादी करना चाहता है।” आफ़रीन अब्बास ने अपनी बात दोहराई। उसे अभी भी यकीन नहीं आ रहा था कि उसने ठीक सुना था।

“अंकल! मुझसे क्यों?” उसने अपनी हैरत पर काबू करके कहा।

“तुमसे क्यों नहीं?” उन्होंने जवाब में सवाल किया।

“अंकल! मेरा और उसका कोई जोड़ नहीं है। यह रिश्ता मुनासिब नहीं है।” उसने दियानत-दारी (ईमानदारी, सच्चाई) से अपनी राय दी।

“उसमें क्या कमी है?” उन्होंने बेचैनी से पूछा।

“उसने कोई कमी नहीं है। मुझे बहुत सी कमियाँ है।”

“सारा! तुम में कोई कमी नहीं है। तुम ख़ूबसूरत हो, तालीम-याफ्ता (पढ़ी-लिखी) हो, समझदार हो। किसी भी मर्द को उससे बढ़कर और क्या चाहिए।” उन्होंने उसे क़ायल करने की कोशिश की।

“लेकिन वह उन चीजों में मुझसे बेहतर है और मैंने उसके बारे में कभी इस अंदाज से नहीं सोचा।”

“तो अब सोच लो।”

सारा की समझ में कुछ नहीं आया। यह प्रपोजल अचानक उसके सामने आ गया था और वह कुछ सोच ही नहीं पा रही थी। आफ़रीन उठ कर चले गये। रात के खाने पर वह बेहद नर्वस थी। हैदर मामूल (आशान्वित) की तरह बाप से बातें करते हुए खाना खा रहा था, लेकिन उसका दिल खाने से बुरी तरह उचाट हो गया था। तीन माह में पहली बार वह उस पर नज़र डालने से गुरेज़ थी। आफ़रीन अब्बास जब खाने की मेज से उठ गएये, तो उसने सारा को मुख़ातिब किया।

“सारा! अगर माइंड ना करें, तो कल शाम मैं आपको डिनर पर ले जाना चाहता हूँ। मुझे आपसे कुछ बातें करनी है।”

वह कोई जवाब दिए बगैर सर झुकये नर्वस सी बैठी रही। वह कुछ देर उसके जवाब का मुंतज़िर (प्रतीक्षार्थी) रहा।

“आप पाँच बजे तैयार रहियेगा।” उसने ख़ुद ही कहा और ऑफिस चला गया।

अगली शाम पाँच बजे मुलाज़िम में उसके दरवाजे पर दस्तक दी, “हैदर साहब आपको बुला रहे हैं।” उसने सारा को इत्तला दी।

“मैं अभी आती हूँ।“ उसने शूज़ पहनते हुए कहा। शूज़ पहनने के बाद वह लॉन में आ गई है। हैदर सोफे पर बैठा था। उसे देख कर खड़ा हो गया।

“चलें?” उसने पूछा।

“आपने अंकल को बता दिया?”

वो उसके सवाल पर मुस्कुराया, “आपका क्या ख़याल है कि मैं पापा की इज़ाज़त के बगैर आपको कहीं ले जा सकता हूँ? आप परेशान ना हो। मैंने उससे उनसे इज़ाज़त लेकर ही आपको डिनर की दावत भी दी थी।” वो पोर्च की तरफ बढ़ गया।

“मेरे बारे में आप ज्यादा नहीं जानती होंगी, इसलिए बेहतर है मैं अपने बारे में आपको कुछ बुनियादी मालूमात दे दूं।” गाड़ी ड्राइव करते हुए उसने बात शुरू की।

“यह तो आपके इल्म में होगा कि मेरी माँ फ्रेंच थी। मेरी पैदाइश भी वहीं हुई थी। बारह साल तक मैं वही रहा। फिर पापा ने पाकिस्तान में पोस्टिंग करवा ली, तो हम लोग यहाँ आ गये। मैंने  ‘ए’ लेवल यहाँ से किया, उसके बाद मैं लंदन चला गया। वहाँ मैंने बिजनेस मैनेजमेंट में तालीम हासिल की। कुछ अरसा इंटर्नशिप के तहत एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता रहा। फिर पाकिस्तान आकर  सिटीबैंक ज्वाइन कर लिया। पाकिस्तान आए मुझे सिर्फ छः माह हुए हैं यानी आपके आने से तकरीबन तीन माह पहले मैं वापस आया था। मेरी मम्मी सिर्फ नाम की फ्रेंच थीं। पापा के शादी के बाद और इस्लाम कबूल कर लेने की वजह से उन्होंने ईस्टर्न तौर-तरीके अपना लिए थे। असल में मेरी मम्मी का ताल्लुक जिस खानदान से था, वह काफी कंजरवेटिव था। इस वजह से भी मम्मी को पाकिस्तानी माहौल में एडजस्ट करने में कोई प्रॉब्लम नहीं हुई। मैंने जब से होश संभाला, उन्हें कभी मग़रिबी (विदेशी) लिबास में नहीं देखा। वो या तो सलवार कमीज पहनती थी या फिर साड़ी। मैं आपको यह सब इसलिए बता रहा हूँ, जिससे आपको यह मालूम हो जाए कि मैं सिर्फ शक्ल-वा-सूरत से यूरोपियन लगता हूँ, वरना मैं सोच के लिहाज़ से बिल्कुल ईस्टर्न हूँ। बाहर रहने के बावजूद चीजों के बारे में मैं लिबरल नहीं हूँ। मेरी अपने वैल्यू है और मैं उनको तस्लीम (मानता) करता हूँ। मैं बहुत सोशल भी नहीं हूँ। मेरी कंपनी बहुत महदूद (कम) है। आप कह सकती है कि मैं सोसाइटी में मूव करने के ए’तिबार (साख, धाक) से ख़ासा रिजर्व हूँ। को-एजुकेशन में पढ़ने के बावजूद मुझे लड़कियों की कंपनी कुछ ज्यादा पसंद नहीं है, ना ही कभी मेरी किसी लड़की से ज्यादा दोस्ती रही है। मेरी वाहिद दिलचस्पी बैंकिंग है, बल्कि आप कह सकती हैं यह मेरा वाहिद शौक है। हाँ स्पोर्ट्स को भी मैं शौकीन हूँ, ना सिर्फ खेलने बल्कि देखने का भी। आपके बारे में कुछ अरसा पहले तक मेरी कोई ऑपिनियन नहीं थी। मेरे लिए आप बस एक मेहमान थी और मैंने आपके बारे में कभी भी उससे ज्यादा नहीं सोचा। मैं ऐसा सोचना कभी पसंद नहीं करता, क्योंकि आप एक लड़की थी। मेरे घर में थी और मुझ पर यह फ़र्ज़ था कि मैं आपकी इज़्ज़त करूं। आपको अपने घर में हिफाज़त से रखूं। फिर उसके बाद पापा से आपकी गुफ्तगू से आपकी खयालात पता चले। मेरे दिल में आपकी इज्ज़त कुछ और बढ़ गई। चंद दिन पहले पापा ने मुझसे आप के प्रपोजल के हवाले से बात की। मैंने उस पर गौर किया और मुझे लगा कि आप एक बहुत अच्छी बीवी साबित हो सकती है, इसलिए मैंने पापा से कहा कि मुझे आपसे शादी पर कोई एतराज नहीं। पापा ने उस इसलिए में आपसे बात की। आपने फौरी (तुरंत) तौर पर कोई जवाब नहीं दिया। मैंने यह समझा कि आपको किसी भी फैसले से पहले अपने बारे में सब कुछ बता दूं, जिससे कि आपको फैसला करने में आसानी होगी। मुझे आपके बारे में तकरीबन सब कुछ पता है। कम से कम अंदाज़ा ज़रूर है। यह भी पता है कि आप उम्र में मुझसे कुछ माह बड़ी हैं। मुझे आपकी किसी बात या माज़ी के हवाले पर कोई एतराज़ नहीं है। आप जानती हैं पापा आपकी अम्मी को पसंद करते थे। उन दोनों की शादी ही नहीं हो पाई। अब उनकी भी यह ख्वाहिश है कि आपकी शादी मुझसे हो जाये। वह आपसे बहुत मोहब्बत करते हैं और चाहते हैं कि आप इसी घर में रहे। लेकिन आपको कुछ ऐतराज़ था, जो बड़ी हद तक ठीक है। इस प्रपोजल को कबूल करने के बाद कम से कम आप यह नहीं कह सकेंगी कि आपको मेरे घर में रहने का कोई हक नहीं है। मैं बहुत ज्यादा अमीर नहीं हूँ। अभी मैंने अपना करियर शुरू किया है। लेकिन मेरा ख़याल है कि मेरे पास कितने रुपए ज़रूर है कि मैं आसानी से आपको सपोर्ट कर सकता हूँ। हाँ, कुछ अर्से के बाद अपने को एस्टेब्लिश कर लूंगा, एक अच्छी शौहर की तरह कोशिश करूंगा कि आपको सब कुछ दे सकूं। मैं ख़ुद अभी पापा के घर में रहता हूँ। गाड़ी भी उन्होंने खरीद कर दी है। इस लिहाज़ से माली तौर पर मेरी हालत भी आप जैसी ही है। अगर आप मेरा प्रपोजल कबूल कर लेती हैं, तो फिलहाल हमारी इंगेजमेंट हो जायेगी। फिर चंद साल बाद मैं आपसे शादी कर लूंगा। उस वक़्त कम से कम मेरे पास अपनी गाड़ी होगी।”

उसके चेहरे पर नज़र डाले बगैर धीमे लहज़े में सारा को अपने बारे में सब कुछ बताता गया। सारा को उससे एक अजीब सी मानूसिय्यत (मनुष्यता) का एहसास हुआ। वह चंद घंटे पहले एक पेडेस्टल पर बैठा नज़र आता था और अब वह एकदम जैसे जमीन पर उतर आया था। उसने उसके बालों में कहीं-कहीं नज़र आने वाली कॉफ़ी कर्ल्ड बालों के पैचेस को एक बार फिर से वैसे ही देखा, जैसे वह अक्सर देखा करती थी। उसके बालों की तरह उसकी शख्सियत भी अजीब थी।

“अगर मैं आपसे कहूं कि क्या आप मुझसे शादी करेंगी, तो आप क्या कहेंगी?”

सारा ने गर्दन घुमा कर उसके चेहरे को देखा। वह बेहद पुरसुकून नज़र आ रहा था।

“हाँ!” वह समझ नहीं पाई, उसकी जुबान से ये लफ्ज़ कैसे फिसल पड़ा था।

हैदर के चेहरे पर एक खूबसूरत मुस्कुराहट आई, “थैंक यू!” उसने कहा। फिर उसे साथ एक रेस्टोरेंट में ले गया। सारा नहीं जानती, उसकी बातों में क्या जादू था, क्या खास बात थी, मगर उससे उससे कोई घबराहट, कोई झिझक महसूस नहीं हुई थी। वह उससे मुख्तलिफ टॉपिक्स पर इस तरह बातें करता रहा, जैसे वह अक्सर बाहर ले जाता रहा हो, अक्सर गुफ्तगू करता रहा हो। उसके अंदाज़ में वह बेतकल्लुफ़ी थी, जो अपने बाप से बात करते वक्त होती थी। वह शाम सारा की ज़िन्दगी की बेहतरीन शाम थी। उस रात सोने से पहले जो वाहिद (एकमात्र) तस्वीर उसके जेहन में था, वह हैदर का था।

तीसरे रोज शाम को एक सिंपल से फंक्शन में आफ़रीन अब्बास से उन दोनों की मंगनी कर दी। मंगनी में सिर्फ आफ़रीन की बहनें और खानदान के चंद बुजुर्ग शरीक़ हुए थे। सारा चाहती थी कि मांगनी अक्सा खाला के पाकिस्तान आने के बाद हो, मगर आफ़रीन का इसरार (ज़िद) था कि यह कदम जल्द से जल्द हो जाना चाहिए और अक्सा ने भी अपने आने की तारीक नहीं बताई थी। इसलिए बेहतर था, यह छोटी सी रस्म उनकी गैर-मौजूदगी में ही सर-अंजाम पा जाये। सारा ना चाहते हुए भी उनकी बात मान गई। आफ़रीन ने उसे फोन पर अक्सा को यह बात बताने से मना कर दिया था क्योंकि उनका ख़याल था कि वह इस बात पर हर्ट होंगी कि उनकी मर्ज़ी पूछे बगैर सारा की मंगनी कर दी गई है और उनकी आमद का इंतज़ार भी नहीं किया गया।

“जब वह यहाँ आ जाएंगी, तो मैं ख़ुद उनसे समझा लूंगा। लेकिन फिलहाल तुम उससे इस महीने का ज़िक्र ना करना!”

आफ़रीन ने सारा को हिदायत दी। सारा ने उनकी बात बा-ख़ुशी मान ली थी। मंगनी के तीन-चार दिन के बाद अक्सा ने उसे अपने आने की इतल्ला दी। वह तीन  दिन बाद पाकिस्तान आ रही थी।

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