July 2022

चैप्टर 35 रंगभूमि मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास | Chapter 35 Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand

Chapter 35 Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand Prev | Next | All Chapters विनयसिंह आबादी में दाखिल हुए, तो सबेरा हो गया था। थोड़ी दूर चले थे कि एक बुढ़िया लाठी टेकती सामने से आती हुई दिखाई दी। इन्हें देखकर बोली-बेटा, गरीब हूँ। बन पडे, तो कुछ दे दो। धरम होगा। नायकराम-सवेरे राम-नाम नहीं लेती, […]

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चैप्टर 34 रंगभूमि मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास | Chapter 34 Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand

Chapter 34 Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand Prev | Next | All Chapters प्रभु सेवक ने घर आते ही मकान का जिक्र छेड़ दिया। जान सेवक यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए कि अब इसने कारखाने की ओर धयान देना शुरू किया। बोले-हाँ, मकानों का बनना बहुत जरूरी है। इंजीनियर से कहो, एक नक्शा बनाएँ। मैं

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होली का उपहार मुंशी प्रेमचंद की कहानी | Holi Ka Uphaar Munshi Premchand Ki Kahani

होली का उपहार मुंशी प्रेमचंद की कहानी (Holi Ka Uphaar Munshi Premchand Ki Kahani) Holi Ka Uphaar Story By Munshi Premchand  Holi Ka Uphaar Munshi Premchand (1) मैकूलाल अमरकांत के घर शतरंज खेलने आये, तो देखा, वह कहीं बाहर जाने की तैयारी कर रहे हैं। पूछा – “कहीं बाहर की तैयारी कर रहे हो क्या

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चैप्टर 33 रंगभूमि मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास | Chapter 33 Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand

Chapter 33 Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand Prev | Next | All Chapters फैक्टरी करीब-करीब तैयार हो गई थी। अब मशीनें गड़ने लगीं। पहले तो मजदूर-मिस्त्री आदि प्राय: मिल के बरामदों ही में रहते थे, वहीं पेड़ों के नीचे खाना पकाते और सोते; लेकिन जब उनकी संख्या बहुत बढ़ गई, तो मुहल्ले में मकान ले-लेकर

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चैप्टर 32 रंगभूमि मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास | Chapter 32 Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand

Chapter 32 Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand Prev | Next | All Chapters सूरदास के मुकदमे का फैसला सुनने के बाद इंद्रदत्ता चले, तो रास्ते में प्रभु सेवक से मुलाकात हो गई। बातें होने लगी। इंद्रदत्ता-तुम्हारा क्या विचार है, सूरदास निर्दोष है या नहीं? प्रभु सेवक-सर्वथा निर्दोष। मैं तो आज उसकी साधुता पर कायल हो

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चैप्टर 31 रंगभूमि मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास | Chapter 31 Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand

Chapter 31 Rangbhoomi Novel By Munshi Premchand Prev | Next | All Chapters भैरों के घर से लौटकर सूरदास अपनी झोंपड़ी में आकर सोचने लगा, क्या करूँ कि सहसा दयागिरि आ गए और बोले-सूरदास, आज तो लोग तुम्हारे ऊपर बहुत गरम हो रहे हैं, इसे घमंड हो गया है। तुम इस माया-जाल में क्यों पड़े

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