चैप्टर 10 गुनाहों का देवता : धर्मवीर भारती का उपन्यास | Chapter 10 Gunahon Ka Devta Novel By Dharmveer Bharti Read Online

Chapter 10 Gunahon Ka Devta Novel By Dharmveer Bharti

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जब चंदर पम्मी के बंगले पर पहुँचा, तो शाम होने में देर नहीं थी। लेकिन अभी फर्स्ट शो शुरू होने में देरी थी। पम्मी गुलाबों के बीच में टहल रही थी और बर्टी एक अच्छा-सा सूट पहने लॉन पर बैठा था और घुटनों पर ठुड्डी रखे कुछ सोच-विचार में पड़ा था। बर्टी के चेहरे पर का पीलापन भी कुछ कम था। वह देखने से इतना भयंकर नहीं मालूम पड़ता था। लेकिन उसकी आँखों का पागलपन अभी वैसा ही था और खूबसूरत सूट पहनने पर भी उसका हाल यह था कि एक कालर अंदर था और एक बाहर।

पम्मी ने चंदर को आते देखा तो खिल गयी।

”हल्लो, कपूर! क्या हाल है। पता नहीं क्यों आज सुबह से मेरा मन कह रहा था कि आज मेरे मित्र जरूर आयेंगे। और शाम के वक्त तुम तो इतने अच्छे लगते हो, जैसे वह जगमग सितारा, जिसे देखकर कीट्स ने अपनी आखिरी सानेट लिखी थी।”

पम्मी ने एक गुलाब तोड़ा और चंदर के कोट के बटन होल में लगा दिया। चंदर ने बड़े भय से बर्टी की ओर देखा कि कहीं गुलाब को तोड़े जाने पर वह फिर चंदर की गर्दन पर सवार न हो जाए। लेकिन बर्टी कुछ बोला नहीं। बर्टी ने सिर्फ हाथ उठाकर अभिवादन किया और फिर बैठकर सोचने लगा।

पम्मी ने कहा, ”आओ, अंदर चलें।” और चंदर और पम्मी दोनों ड्राइंग रूम में बैठ गये।

चंदर ने कहा, ”मैं तो डर रहा था कि तुमने गुलाब तोडक़र मुझे दिया, तो कहीं बर्टी नाराज न हो जाए, लेकिन वह कुछ बोला नहीं।”

पम्मी मुस्कुरायी, ”हाँ, अब वह कुछ कहता नहीं और पता नहीं क्यों गुलाबों से उसकी तबीयत भी इधर हट गयी। अब वह उतनी परवाह भी नहीं करता।”

”क्यों?” चंदर ने ताज्जुब से पूछा।

”पता नहीं क्यों। मेरी तो समझ में यह आता है कि उसका जितना विश्वास अपनी पत्नी पर था, वह इधर धीरे-धीरे हट गया और इधर वह यह विश्वास करने लगा है कि सचमुच वह सार्जेंट को प्यार करती थी। इसलिए उसने फूलों को प्यार करना छोड़ दिया।”

”अच्छा! लेकिन यह हुआ कैसे? उसने तो अपने मन में इतना गहरा विश्वास जमा रखा था कि मैं समझता था कि मरते दम तक उसका पागलपन न छूटेगा।” चंदर ने कहा।

”नहीं, बात यह हुई कि तुम्हारे जाने के दो-तीन दिन बाद मैंने एक दिन सोचा कि मान लिया जाए, अगर मेरे और बर्टी के विचारों में मतभेद है, तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं उसके गुलाब चुराकर उसे मानसिक पीड़ा पहुँचाऊं और उसका पागलपन और बढ़ाऊं। बुद्धि और तर्क के अलावा भावना और सहानुभूति का भी एक महत्व मुझे लगा और मैंने फूल चुराना छोड़ दिया। दो-तीन दिन वह बेहद खुश रहा, बेहद खुश और मुझे भी बड़ा संतोष हुआ कि लो अब बर्टी शायद ठीक हो जाये। लेकिन तीसरे दिन सहसा उसने अपना खुरपा फेंक दिया, कई गुलाब के पौधे उखाड़कर फेंक दिये और मुझसे बोला, ”अब तो कोई फूल भी नहीं चुराता, अब भी वह इन फूलों में नहीं मिलती। वह जरूर सार्जेंट के साथ जाती है। वह मुझे प्यार नहीं करती, हर्गिज़ नहीं करती, और वह रोने लगा।” बस उसी दिन से वह गुलाबों के पास नहीं जाता और आजकल बहुत अच्छे-अच्छे सूट पहनकर घूमता है और कहता है-क्या मैं सार्जेंट से कम सुंदर हूँ! और इधर वह बिल्कुल पागल हो गया है। पता नहीं किससे अपने-आप लड़ता रहता है।”

चंदर ने ताज्जुब से सिर हिलाया।

”हाँ, मुझे बड़ा दु:ख हुआ!” पम्मी बोली, ”मैंने तो, हमदर्दी की कि फूल चुराने बंदकर दिये और उसका नतीजा यह हुआ। पता नहीं क्यों कपूर, मुझे लगता है कि हमदर्दी करना इस दुनिया में सबसे बड़ा पाप है। आदमी से हमदर्दी कभी नहीं करनी चाहिए।”

चंदर ने सहसा अपनी घड़ी देखी।

”क्यों, अभी तुम नहीं जा सकते। बैठो और बातें सुनो, इसलिए मैंने तुम्हें दोस्त बनाया है। आज दो-तीन साल हो गये, मैंने किसी से बातें ही नहीं की हैं और तुमसे इसलिए मैने मित्रता की है कि बातें करूंगी।”

चंदर हँसा, ”आपने मेरा अच्छा उपयोग ढूंढ निकाला।”

”नहीं, उपयोग नहीं, कपूर! तुम मुझे गलत न समझना। जिंदगी ने मुझे इतनी बातें बतायी हैं और यह किताबें जो मैं इधर पढ़ने लगी हूँ, इन्होंने मुझे इतनी बातें बतायी हैं कि मैं चाहती हूँ कि उन पर बातचीत करके अपने मन का बोझ हल्का कर लूं। और तुम्हें बैठकर सुननी होंगी सभी बातें!”

”हाँ, मैं तैयार हूँ लेकिन किताबें पढ़नी कब से शुरू कर दीं तुमने?” चंदर ने ताज्जुब से पूछा।

”अभी उस दिन मैं डॉ. शुक्ला के यहाँ गयी। उनकी लड़की से मालूम हुआ कि तुम्हें कविता पसंद है। मैंने सोचा, उसी पर बातें करूं और मैंने कवितायें पढ़नी शुरू कर दीं।”

”अच्छा, तो देखता हूँ कि दो-तीन हफ्ते में भाई और बहन दोनों में कुछ परिवर्तन आ गये।”

पम्मी कुछ बोली नहीं, हँस दी।

”मैं सोचता हूँ पम्मी कि आज सिनेमा देखने जाऊं। कार है साथ में, अभी पंद्रह मिनट बाकी है। चाहो तो चलो।”

‘सिनेमा! आज चार साल से मैं कहीं नहीं गयी हूँ। सिनेमा, हौजी, बाल डांस-सभी जगह जाना बंदकर दिया है मैंने। मेरा दम घुटेगा हॉल के अंदर, लेकिन चलो देखें, अभी भी कितने ही लोग वैसे ही खुशी से सिनेमा देखते होंगे।” एक गहरी साँस लेकर पम्मी बोली, ”बर्टी को ले चलोगे?”

”हाँ, हाँ! तो चलो उठो, फिर देर हो जाएगी!” चंदर ने घड़ी देखते हुए कहा।

पम्मी फौरन अअंदर के कमरे में गयी और एक जार्जेट का हल्का भूरा गाउन पहनकर आयी। इस रंग से वह जैसे निखर आयी। चंदर ने उसकी ओर देखा, तो वह लजा गयी और बोली, ”इस तरह से मत देखो। मैं जानती हूँ यह मेरा सबसे अच्छा गाउन है। इसमें कुछ अच्छी लगती होऊंगी। चलो!” और आकर उसने बेतकल्लुफी से उसके कंधे पर हाथ रख दिया।

दोनों बाहर आये, तो बर्टी लॉन पर घूम रहा था। उसके पैर लड़ख़ड़ा रहे थे। लेकिन वह बड़ी शान से सीना ताने था।

”बर्टी, आज मिस्टर कपूर मुझे सिनेमा दिखलाने जा रहे हैं। तुम भी चलोगे?”

”हूँ!” बर्टी ने सिर हिलाकर जोर से कहा, ”सिनेमा जाऊंगा? कभी नहीं। भूलकर भी नहीं। तुमने मुझे क्या समझा है? मैं सिनेमा जाऊंगा?” धीरे-धीरे उसका स्वर मंदपड़ गया…”अगर सिनेमा में वह सार्जेंट के साथ मिल गयी तो! तो मैं उसका गला घोंट दूंगा।” अपने गले को दबाते हुए बर्टी बोला और इतनी जोर से दबा दिया अपना गला कि आँखें लाल हो गयीं और खांसने लगा। खांसी बंद हुई तो बोला, ”वह मुझे प्यार नहीं करती। वह सार्जेंट को प्यार करती है। वह उसी के साथ घूमती है। अगर वह मिल जायेगी, सिनेमा में तो उसकी हत्या कर डालूंगा, तो पुलिस आएगी और खेल खत्म हो जाएगा। तुम जानते हो मि. कपूर, मैं उससे कितना नफरत करता हूँ…और…और लेकिन नहीं, कौन जानता है मैं नफरत करता होऊं और वह मुझे…कुछ समझ में नहीं आता, मैं पागल हूँ, ओफ।” और वह सिर थामकर बैठ गया।

पम्मी ने चंदर का हाथ पकडक़र कहा, ”चलो, यहाँ रहने से उसका दिमाग और खराब होगा। आओ!”

दोनों जाकर कार में बैठे। चंदर खुद ही ड्राइव कर रहा था। पम्मी बोली, ”बहुत दिन से मैंने कार नहीं ड्राइव की है। लाओ, आज ड्राइव करूं।”

पम्मी ने स्टीयरिंग अपने हाथ में ले ली। चंदर इधर बैठ गया।

थोड़ी देर में कार रीजेंट के सामने जा पहुँची। चित्र था-‘सेलामी, ह्वेयर शी डांस्ड’ (‘सेलामी, जहाँ वह नाची थी’)। चंदर ने टिकट लिया और दोनों ऊपर बैठ गये। अभी न्यूज रील चल रही थी। सहसा पम्मी ने कहा, ”कपूर, सेलामी की कहानी मालूम है?”

”न! क्या यह कोई उपन्यास है!” चंदर ने पूछा।

”नहीं, यह बाइबिल की एक कहानी है। असल में एक राजा था हैराद। उसने अपने भाई को मारकर उसकी पत्नी से अपनी शादी कर ली। उसकी भतीजी थी सेलामी, जो बहुत सुंदर थी और बहुत अच्छा नाचती थी। हैराद उस पर मुग्ध हो गया। लेकिन सेलामी एक पैगम्बर पर मुग्ध थी। पैगम्बर ने सेलामी के प्रणय को ठुकरा दिया। एक बार हैराद ने सेलामी से कहा कि यदि तुम नाचो, तो मैं तुम्हें कुछ दे सकता हूँ। सेलामी नाची और पुरस्कार में उसने अपना अपमान करने वाले पैगम्बर का सिर मांगा! हैराद वचनबद्ध था। उसने पैगम्बर का सिर तो दे दिया, लेकिन बाद में इस भय से कि कहीं राज्य पर कोई आपत्ति न आये, उसने सेलामी को भी मरवा डाला।”

चंदर को यह कहानी बहुत अच्छी लगी। तब तो चित्र बहुत ही अच्छा होगा, उसने सोचा। सुधा की परीक्षा है वरना सुधा को भी दिखला देता। लेकिन क्या नैतिकता है इन पाश्चात्य देशों की कि अपनी भतीजी पर ही हैराद मुग्ध हो गया। उसने कहा पम्मी से-

”लेकिन हैराद अपनी भतीजी पर ही मुग्ध हो गया?

”तो क्या हुआ! यह तो सेक्स है मि. कपूर। सेक्स कितनी भयंकर शक्तिशाली भावना है, यह भी शायद तुम नहीं समझते। अभी तुम्हारी आँखों में बड़ा भोलापन है। तुम रूप की आग के संसार से दूर मालूम पड़ते हो, लेकिन शायद दो-एक साल बाद तुम भी जानोगे कि यह कितनी भयंकर चीज है। आदमी के सामने वक्त-बेवक्त, नाता-रिश्ता, मर्यादा-अमर्यादा कुछ भी नहीं रह जाता। वह अपनी भतीजी पर मोहित हुआ, तो क्या? मैंने तो तुम्हारे यहाँ एक पौराणिक कहानी पढ़ी थी कि महादेव अपनी लड़की सरस्वती पर मुग्ध हो गये।”

”महादेव नहीं, ब्रह्मा।” चंदर बोला।

”हाँ, हाँ, ब्रह्माï। मैं भूल गयी थी। तो यह तो सेक्स है। आदमी को कहाँ ले जाता है, यह अंदाज़ भी नहीं किया जा सकता। तुम तो अभी बच्चों की तरह भोले हो और ईश्वर न करे तुम कभी इस प्याले का शरबत चखो। मैं भी तो तुम्हारी इसी पवित्रता को प्यार करती हूँ।” पम्मी ने चंदर की ओर देखकर कहा, ”तुम जानते हो, मैंने तलाक क्यों दिया? मेरा पति मुझे बहुत चाहता था लेकिन मैं विवाहित जीवन के वासनात्मक पहलू से घबरा उठी! मुझे लगने लगा, मैं आदमी नहीं हूँ बस मांस का लोथड़ा हूँ, जिसे मेरा पति जब चाहे मसल दे, जब चाहे…ऊब गयी थी! एक गहरी नफरत थी मेरे मन में। तुम आये, तो तुम बड़े पवित्र लगे। तुमने आते ही प्रणय-याचना नहीं की। तुम्हारी आँखों में भूख नहीं थी। हमदर्दी थी, स्नेह था, कोमलता थी, निश्छलता थी। मुझे तुम काफी अच्छे लगे। तुमने मुझे अपनी पवित्रता देकर जिला दिया…।”

चंदर को एक अजब-सा गौरव अनुभव हुआ और पम्मी के प्रति एक बहुत ऊँची आदर-भावना। उसने पवित्रता देकर जिला दिया। सहसा चंदर के मन में आया-लेकिन यह उसके व्यक्तित्व की पवित्रता किसकी दी हुई है। सुधा की ही न! उसी ने तो उसे सिखाया है कि पुरुष और नारी में कितने ऊँचे संबंध रह सकते हैं।

”क्या सोच रहे हो?” पम्मी ने अपना हाथ कपूर की गोद में रख दिया।

कपूर सिहर गया, लेकिन शिष्टाचारवश उसने अपना हाथ पम्मी के कंधेपर रख दिया। पम्मी ने दो क्षण के बाद अपना हाथ हटा लिया और बोली, ”कपूर, मैं सोच रही हूँ, अगर यह विवाह संस्था हट जाए, तो कितना अच्छा हो। पुरुष और नारी में मित्रता हो। बौद्धिक मित्रता और दिल की हमदर्दी। यह नहीं कि आदमी औरत को वासना की प्यास बुझाने का प्याला समझे और औरत आदमी को अपना मालिक। असल में बंधने के बाद ही, पता नहीं क्यों संबंधों में विकृति आ जाती है। मैं तो देखती हूँ कि प्रणय विवाह भी होते हैं, तो वह असफल हो जाते हैं, क्योंकि विवाह के पहले आदमी औरत को ऊँची निगाह से देखता है, हमदर्दी और प्यार की चीज समझता है और विवाह के बाद सिर्फ वासना की। मैं तो प्रेम में भी विवाह-पक्ष में नहीं हूँ और प्रेम में भी वासना का विरोध करती हूँ।”

”लेकिन हर लड़की ऐसी थोड़े ही होती है!” चंदर बोला, ”तुम्हें वासना से नफरत हो, लेकिन हर एक को तो नहीं।”

”हर एक को होती है। लड़कियाँ बस वासना की झलक, एक हल्की सिहरन, एक गुदगुदी पसंद करती हैं। बस, उसी के पीछे उन पर चाहे, जो दोष लगाया जाये, लेकिन अधिकतर लड़कियाँ कम वासनाप्रिय होती हैं, लड़के ज्यादा।”

चित्र शुरू हो गया। वह चुप हो गयी। लेकिन थोड़ी ही देर में मालूम हुआ कि चित्र भ्रमात्मक था। वह बाइबिल की सेलामी की कहानी नहीं थी। वह एक अमेरिकन नर्तकी और कुछ डाकुओं की कहानी थी। पम्मी ऊब गयी। अब जब डाकू पकडक़र सेलामी को एक जंगल में ले गये, तो इंटरवल हो गया और पम्मी ने कहा, ”अब चलो, आधे ही चित्र से तबीयत ऊब गयी।”

दोनों उठ खड़े हुए और नीचे आये।

”कपूर, अबकी बार तुम ड्राइव करो!” पम्मी बोली।

”नहीं, तुम्हीं ड्राइव करो” कपूर बोला।

”कहाँ चलें,” पम्मी ने स्टार्ट करते हुए कहा।

”जहाँ चाहो।” कपूर ने विचारों में डूबे हुए कहा।

पम्मी ने गाड़ी खूब तेज चला दी। सड़कें साफ थीं। पम्मी का कालर फहराने लगा और उड़कर चंदर के गालों पर थपकियाँ लगाने लगा। चंदर दूर खिसक गया। पम्मी ने चंदर की ओर देखा और बजाय कालर ठीक करने के, गले का एक बटन और खोल दिया और चंदर को पास खींच लिया। चंदर चुपचाप बैठ गया। पम्मी ने एक हाथ स्टीयरिंग पर रखा और एक हाथ से चंदर का हाथ पकड़े रही, जैसे वह चंदर को दूर नहीं जाने देगी। चंदर के बदन में एक हल्की सिहरन नाच रही थी। क्यों? शायद इसलिए कि हवा ठंडी थी या शायद इसलिए कि…उसने पम्मी का हाथ अपने हाथ से हटाने की कोशिश की। पम्मी ने हाथ खींच लिया और कार के अंदरर की बिजली जला दी।

कपूर चुपचाप ठाकुर साहब के बारे में सोचता रहा। कार चलती रही। जब चंदर का ध्यान टूटा, तो उसने देखा कार मैकफर्सन लेक के पास रुकी है।

दोनों उतरे। बीच में सड़क थी, इधर नीचे उतरकर झील और उधर गंगा बह रही थी। आठ बजा होगा। रात हो गयी थी, चारों तरफ सन्नाटा था। बस सितारों की हल्की रोशनी थी। मैकफर्सन झील काफी सूख गयी थी। किनारे-किनारे मछली मारने के मचान बने थे।

”इधर आओ!” पम्मी बोली। और दोनों नीचे उतरकर मचान पर जा बैठे। पानी का धरातल शांत था। सिर्फ कहीं-कहीं मछलियों के उछलने या साँस लेने से पानी हिल जाता था। पास ही के नीवाँ गाँव में किसी के यहाँ शायद शादी थी, जो शहनाई का हल्का स्वर हवाओं की तरंगों पर हिलता-डुलता हुआ आ रहा था। दोनों चुपचाप थे। थोड़ी देर बाद पम्मी ने कहा, ”कपूर, चुपचाप रहो, कुछ बात मत करना। उधर देखो पानी में। सितारों का प्रतिबिम्ब देख रहे हो। चुप्पे से सुनो, ये सितारे क्या बातें कर रहे हैं।”

पम्मी सितारों की ओर देखने लगी। कपूर चुपचाप पम्मी की ओर देखता रहा। थोड़ी देर बाद सहसा पम्मी एक बाँस से टिककर बैठ गयी। उसके गले के दो बटन खुले हुए थे। और उसमें से रूप की चाँदनी फटी पड़ती थी। पम्मी आँखें बंद किये बैठी थी। चंदर ने उसकी ओर देखा और फिर जाने क्यों उससे देखा नहीं गया। वह सितारों की ओर देखने लगा। पम्मी के कालर के बीच से सितारे टूट-टूटकर बरस रहे थे।

सहसा पम्मी ने आँखें खोल दीं और चंदर का कंधा पकड़कर बोली, ”कितना अच्छा हो, अगर आदमी हमेशा संबंधों में एक दूरी रखे। सेक्स न आने दे। ये सितारे हैं, देखो कितने नजदीक हैं। करोड़ों बरस से साथ हैं, लेकिन कभी भी एक दूसरे को छूते तक नहीं, तभी तो संग निभ जाता है।” सहसा उसकी आवाज में जाने क्या छलक आया कि चंदर जैसे मदहोश हो गया।

वह बोली – ”बस ऐसा हो कि आदमी अपने प्रेमास्पद को निकटतम लाकर छोड़ दे, उसको बांधे न। कुछ ऐसा हो कि होठों के पास खींचकर छोड़ दे।” और पम्मी ने चंदर का माथा होठों तक लाकर छोड़ दिया। उसकी गरम-गरम साँसें चंदर की पलकों पर बरस गयीं…” कुछ ऐसा हो कि आदमी उसे अपने हृदय तक खींचकर फिर हटा दे।” और चंदर को पम्मी ने अपनी बांहों में घेरकर अपने वक्ष तक खींचकर छोड़ दिया। वक्ष की गरमाई चंदर के रोम-रोम में सुलग उठी, वह बेचैन हो उठा। उसके मन में आया कि वह अभी यहाँ से चला जाये। जाने कैसा लग रहा था उसे। सहसा पम्मी बोली, ”लेकिन नहीं, हम लोग मित्र हैं और कपूर, तुम बहुत पवित्र हो, निष्कलंक हो और तुम पवित्र रहोगे। मैं जितनी दूरी, जितना अंतर, जितनी पवित्रता पसंद करती हूँ, वह तुममें है और हम लोगों में हमेशा निभेगी, जैसे इन सितारों में हमेशा निभती आयी है।”

चंदर चुपचाप सोचने लगा, ”वह पवित्र है। एकाएक उसका मन जैसे ऊबने लगा। जैसे एक विहग शिशु घबराकर अपने नीड़ के लिए तड़प उठता है, वैसे ही वह इस वक्त तड़प उठा सुधा के पास जाने के लिए। क्यों? पता नहीं क्यों? यहाँ कुछ है, जो उसे जकड़ लेना चाहता है। वह क्या करे?

पम्मी उठी, वह भी उठा। बांस का मचान हिला। लहरों में हरकत हुई। करोड़ों साल से अलग और पवित्र सितारे हिले, आपसे में टकराये और चूर-चूर होकर बिखर गये।

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