चैप्टर 8 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 8 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 8 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel 

Chapter 8 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel 

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दूसरे दिन एक मुलाजिम से पूछ कर वह स्टडी में आई. स्टडी में वाकई किताबों का एक बड़ा जखीरा मौजूद था। उसने पंजाबी उर्दू इंग्लिश और फ्रेंच चारों ज़बानों में किताबें मौजूद थी। वो कुछ देर तक मुख्तलिफ़ (अलग-अलग) किताबें निकाल कर देखती रही। फिर एक किताब निकाल कर बैठ गई।

दोपहर तक वहीं स्टडी में रही, फिर उसने ड्राइंग रूम में आकर लंच किया। आफ़रीन उसे बता चुके थे कि वह लंच ऑफिस में ही करते हैं और हैदर भी लंच करने घर नहीं आता था। लंच करने के बाद वो एक बार फिर स्टडी में आ गई। इस बार वो अपने कमरे से अपनी डायरी उठा लाई थी। स्टडी टेबल पर बैठकर उसने वो कलम उठा लिया, जिसने स्टडी में आते ही उसकी तवज़्ज़ो (ध्यान) अपनी जानिब (तरफ़) मज़बूल करवा ली थी। वह स्याह रंग का एक फाउंटेन पेन था, जिसकी निब में छोटे-छोटे स्टोंन्स लगे हुए थे। सोने से बनी हुई निब भी उसे पुर-कशिश (आकर्षक) लग रही थी।

कलम हाथ में लेकर उसने एक शायरी की किताब से कुछ अश’आर (शेर) अपनी डायरी में उतारना शुरू कर दिये। कलम इतनी ख़ूबसूरत नफ़ासत (सफ़ाई. सुंदरता) और रवानी (तेजी) से लिख रहा था कि वह ना चाहते हुए भी बहुत देर तक उससे लिखती रही। उसकी तवज़्ज़ो तब हटी, जब कोई एक झटके से दरवाजा खोलकर अंदर आया। सारा ने बे-इख्तियार (स्वत:) देखा। आने वाला हैदर था।

वो ख़ुद भी खिलाफ़-तवक्को (आशा के विपरीत) उसे यहाँ देखकर हैरान हुआ। चंद लम्हे वो यूं ही दरवाजे का हैंडल पकड़े खड़ा रहा। फिर वह दरवाजा बंद करके तेजी से उसकी तरफ़ आया। उसके बिल्कुल करीब आकर वो झुका और बारी-बारी से उसने स्टडी टेबल के दराज़ खोलने शुरू कर दिये। सारा का साँस हलक में अटक चुका था। वह बिल्कुल बे-हिस (चेतना-शून्य) और बे-हरकत थी। हैदर ने एक दराज़ में से कुछ पेपर्स निकाले, फिर उसे स्टडी टेबल के एक कोने में रखते हुए कुछ किताबें उठा ली।

उसने सीधा होने के बाद सारा के हाथ में पकड़े हुए कलम की तरफ इशारा किया और हाथ आगे बढ़ा दिया।

सारा ने बे-इख्तियार (स्वत:) पेन की तरफ़ देखा और फिर उसे हैदर के हाथ में पकड़ने के बजाय टेबल पर पड़ी हुई उस डिबिया में रख दिया, जिसमें से उसे निकाला था। हैदर ने उसकी इस हरक़त पर कुछ अजीब से तासुरात (भाव) से उसे देखा और टेबल पर पड़ी हुई वह डिबिया उठाकर स्टडी से बाहर चला गया। सारा की जान में जान आ गई।

‘और अगर यह कोई बदतमीजी करता, तो मैं क्या करती?’ वो बेहद फ़िक्रमंद थी।

पिछले तीन दिन से हैदर के रवैया ने उसे परेशान किया था। वह सारा दिन तो घर से बाहर होता था और रात को खाने के बाद ऊपर चला जाता। जितनी देर वह उसके सामने होता, वह उसे नज़रअंदाज़ किये रखता और सारा को यह बात पसंद थी, लेकिन उस वक्त वह परेशान हो रही थी।

क्या अम्मी को पता था कि वह जहाँ मुझे भेज रही है, वहाँ आफ़रीन अब्बास का बेटा भी होगा और वहाँ कोई दूसरी औरत नहीं होगी और घर का मुलाज़िम मुझे उसके साथ अकेला देखकर कुछ भी समझ सकता है। मैं दोबारा कभी भी स्टडी में नहीं बैठूंगी, उसने एकदम ख़ुद ही फैसला कर लिया।

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