चैप्टर 20 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 20 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 20 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

Chapter 20 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

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आदिल उस रात के बाद दोबारा लौटकर नहीं आया। उसके माँ-बाप ने हर जगह उसे ढूंढने की कोशिश की, मगर उसका कोई पता नहीं चला। सरमद की शादी बड़ी सादगी और अफसरदगी के माहौल में हुई। सरमद की शादी के दूसरे दिन ताया ने सबा की अम्मी को एक जगह रिश्ता तय कराने के बारे में बताया । उसकी अम्मी ने कोई एतराज नहीं किया।

“उषा की उम्र चालीस-पचास के लगभग है और उसकी पहली बीवी चंद माह पहले फौत (मौत, मृत्यु) हुई है। उसके छः बच्चे हैं। एक फैक्ट्री में मजदूरी करता है। मैं जानता हूँ यह कोई अच्छा रिश्ता नहीं है, मगर जो कुछ तुम्हारी बेटी कर चुकी है, अब वह किसी अच्छे घराने में ब्याहे जाने के काबिल नहीं भी नहीं। मैं उस शख्स को सबा के बारे में सब कुछ बता दिया है। तुम जानती हो, मुझे किसी को धोखे में रखना नहीं आता। वह शक्स तुम्हारी बेटी को फिर भी कबूल करने को तैयार है। तुम दुआ करो कि तुम्हारी बेटी उस घर में बस जाये।” ताया अब्बा ने सबा की अम्मी से कहा। वह मुँह पर दुपट्टा रखकर रोने लगी थी।

तीसरे रोज शाम को ताया अपने साथ उस शख्स और काज़ी और गवाहों को लाये। सबा न चीखी, न चिल्लाई, न मुज़ाहमत (विरोध) की। तूफान गुज़र जाने के बाद वाली ख़ामोशी और सुकून के साथ उसने निकाहनामा पर दस्तखत कर दिये। फिर उसी ख़ामोशी के साथ उसने वह लिबास पहन लिया, जो अम्मी उसके कमरे में छोड़ गई थी।

अम्मी ने उससे कहा था, “तुम आज आखिरी दिन इस घर में हो, यहाँ से जो कुछ लेना चाहती हो ले लो। दोबारा कभी तुम्हें यहाँ नहीं आना है। तुम हमारे लिए मर गई और हम तुम्हारे लिए मर गए हैं।”

“मैं आज वाकई मर गई हूँ और मरने वाले अपने साथ कुछ लेकर नहीं जाया करते हैं। उनकी चीजें खैरात कर दी जाती हैं। आप भी मेरा सब कुछ अल्लाह के नाम पर खैरात कर दीजिए, जैसे आपने मुझे किया है।”

उसने उसी सुकून से अपनी माँ से कहा और फिर वाकई वह कुछ लेकर नहीं गई, सिवाय उन कपड़ों के जो उसके जिस्म पर थे। वह अपने कमरे की हर चीज उसी तरह खुली छोड़ गई थी, जैसे वह पहले पड़ी हुई थी।

आफ़रीन को उसकी शादी की खबर हो गई थी, मगर उसने कुछ नहीं कहा था। कहने को अब बाकी रह भी क्या गया था?

“तुम फ़िक्र ना करो आफ़रीन! तुम देखना मैं तुम्हारे लिए कैसी परी ढूंढती हूँ।” ताई अब मैंने उसे तसल्ली देने की कोशिश की।

“नहीं अम्मी! मुझे अब परियों की ज़रूरत नहीं है। आप मेरे लिए कोई लड़की ढूंढने की कोशिश ना करें।”

“लो तुम अब उसके लिए जोग ले बैठोगे। क्या तुम शादी ही नहीं करोगे?”

“मैंने कब कहा कि मैं जोग ले बैठूंगा या मैं शादी नहीं करूंगा। मैं शादी ज़रूर करूंगा, लेकिन अपनी मर्ज़ी से। आपको इस सिलसिले में परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।” उसने रूखे अंदाज़ में कहा।

“क्या अभी भी अपनी मर्ज़ी की शादी का भूत सर से नहीं उतरा। देख तो लिया ऐसे रिश्तो का क्या अंजाम होता है।”

तय ने उसे समझाने की कोशिश की। वह ख़ामोश रहा। वो आरग्यू नहीं करना चाहता था। जानता था, उसके पास कोई दलील नहीं, जिसकी बिना पर वह बहस कर सके।

चंद दिनों के बाद वापस फ्रांस चला गया। माँ-बाप को उसने अपनी शादी की तस्वीरों के साथ शादी की इत्तला दी। पूरा खानदान सकते में आ गया था। उनके खानदान में पहली बार किसी ने गैर मुल्की औरत से शादी की थी।

ट्रेसी उसके साथ उसी पाकिस्तान बैंक में जॉब करती थी, जिसमें वह करता। वो जानता था, वह उसके लिए पसंदीदगी के ज़ज्बात रखती है। उसने कुछ माह उससे मुलाकात करते रहने के बाद उसे प्रपोज़ कर दिया। ट्रेसी ने फौरन उसका प्रपोजल कबूल कर लिया। शादी से पहले उसने इंसान इस्लाम कबूल कर लिया था और आफ़रीन ने उसका नाम आसमां रखा था। उसने आसमां को सबा के बारे में सब कुछ बता दिया था। वह उसे अपनी माज़ी के बारे में किसी धोखे में नहीं रखना चाहता था। आसमां अच्छी बीवी साबित हुई थी। आफ़रीन अपने इंतिखाब (चुनाव) से मायूस नहीं हुआ था। हैदर की पैदाइश फ्रांस में ही हुई थी। हैदर की पैदाइश के बाद आसमां ने जॉब छोड़ दी।

आफ़रीन की शादी के बाद तायी और ताया को दूसरा शौक तब लगा, जब आफ़रीन की शादी के एक माह बाद उनकी सबसे बड़ी बेटी अपने चारों बच्चों के साथ बेवा होकर उनके दर पर आ गई थी।

तायी अब बिल्कुल गुमसुम होकर रह गई थी। अब उन्हें बहुत कुछ याद आने लगा था। उनकी रातों की नींद गायब हो गई थी। वह सारी-सारी रात बैठी पता नहीं क्या-क्या सोचती रहती।

बड़ी बेटी के बेवा होने के चार माह बाद उनकी दूसरी बेटी भी तलाक लेकर घर आ गई थी। उसके शौहर ने किसी तवायफ़ से शादी कर ली थी और उसके कहने पर उसने अपनी बीवी को तलाक दे दी।

ताया की कमर टूट गई थी। उनका गुस्सा एकदम खत्म हो गया था और तायी अम्मी सारा दिन इबादत में मशरूफ़ रहती थी। वह क्या पढ़ती थी, कोई नहीं जानता था। वह क्या मांगती थी, अल्लाह खूब जानता था।

सबा की शादी के छः माह बाद उसकी अम्मी और बहन भाई अमेरिका चले गये। उनके लिए उस रुसवाई का सामना करना बहुत मुश्किल हो गया था, जो सबा की वजह से हुई थी। सबा की अम्मी को अब अक्सा की शादी करना थी और वह जानती थी खानदान में कोई उसका रिश्ता नहीं लेगा। सबा के अब्बू ने उन सबको अपने पास बुला लिया था।

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