चैप्टर 15 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 15 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 15 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

Chapter 15 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

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हैदर की धमकी का उस पर कोई असर नहीं हुआ. उसने मुलाज़मत की तालाश और तेज़ कर दी. लेकिन जब चंद और हफ़्ते इसी तरह गुज़र गये, तो उसने एक अकादमी के ज़रिये एक घर में आंठ्वीं क्लास के एक बच्चे को मैथ्स में ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. दो घंटेघनते के लिए दो हज़ार रूपये की ये जॉब उसके लिए बेहद पुरकशिश थी. उसे शाम को दो से चार बजे तक उस बच्चे को पढ़ाने के लिए जाना होता था और उसने आफ़रीन अब्बास से कहा था कि वो एक जगह कपड़ों की कटिंग और सिलाई का कोर्स करना चाहती है. इसलिए उसे दो घंटे के लिए वहाँ रोज़ जाना होगा. आफ़रीन अब्बास ने किसी एतराज़ के बगैर उसे इज़ाज़त दे दी और हैदर के इस्तिफ़्सार (पूछताछ) पर उन्होंने से भी यही बताया. हैदर को कुछ हैरत हुई कि एकदम जॉब की तलाश छोड़ कर उसने ऐसी सरगर्मी में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया. मगर उसने उस पर ज्यादा गौर नहीं किया. उसने सोचा कि शायद सारा पर उसकी बातें असर कर गई हैं.

उस दिन छुट्टी का दिन था और उसका कोई दोस्त उससे मिलने आया था. सारा, आफ़रीन अब्बास के पास बाहर लॉन में बैठी थी. हैदर ने अपने दोस्त को ड्राइंग रूम में बैठाया, लेकिन वो ड्राइंग रूम की कद-आदम खिड़कियों से बाहर लॉन की तरफ़ देखते ही चौंक उठा.

“ये कौन है?” उसने उंगली से बाहर लॉन की तरफ़ इशारा किया, जहाँ सारा, आफ़रीन अब्बास के पास बैठी चाय पी रही थी. हैदर उसके सवाल पर कुछ हैरान हुआ.

“ये मेरे पापा की किसी कज़न की बेटी है. हमारे साथ रहती हैं, तुम जानते हो उन्हें?” हैदर ने उससे पूछा था.

“नहीं ऐसा कुछ ख़ास नहीं. दरअसल ये मेरे भांजे को पढ़ाती हैं. यहाँ देखा, तो हैरानी हुई, इसलिए पूछ लिया.”

हैदर उसकी बात पर चुप रह गया था.

“कबसे पढ़ा रही हैं?” उसने कुछ देर बाद पूछा.

“ये तो मुझे नहीं पता. असल में दो-तीन बार मुझे अपनी बहन के घर जाने का इत्तेफाक हुआ. वहीं मैंने इनको देखा था, लेकिन मुझे ये नहीं पता कि उन्होंने उसे कबसे पढ़ना शुरू किया है.”

वो उसे तफ्सील (ब्यौरा) बता रहा था. हैदर ने मज़ीद (और ज्यादा) कोई सवाल नहीं किया. उसका मूड एकदम ख़राब हो गया था. उसका दोस्त कुछ देर बैठा रहा और फिर चला गया. दोस्त के जाने के बाद वो सीधा बाहर लॉन में आ गया था, जहाँ सारा और आफ़रीन अभी भी बैठे हुये थे.

कुछ उखड़े हुए तेवरों के साथ वो उनके पास आ कर बैठ गया.

“सारा! मैंने आपसे कहा था कि आप को जो भी करना है, पापा को उसके बारे में पता होना चाहिए. लेकिन आपने मेरी बात की ज़रा भी परवाह नहीं की और पापा के साथ गलतबयानी करके ट्यूशन करने जा रही हैं.”

उसने किसी तहमीद (प्रशंसा करना) के बगैर बराह-ए-रास्त (सीधे तौर पर) उससे बात शुरू कर दी. आफ़रीन अब्बास ने कुछ न समझने वाले अंदाज़ में अखबार सामने पड़ी मेज़ पर रख दिया. सारा हैरत के आलम में हैदर का चेहरा देखने लगी थी. उसे तवक्को नहीं थी कि वो इस तरह पकड़ी जायेगी और हैदर किसी लिहाज़ के बगैर आफ़रीन अब्बास के सामने उसकी पोल खोल देगा.

“क्या बात है हैदर? क्या किया है सारा ने?” आफ़रीन ने कुछ हैरत से उससे पूछा था.

“आप इनसे पूछिये.” उसने उसकी तरफ़ इशारा किया. सारा ने अब सिर झुका लिया.

“क्यों सारा क्या हुआ?” आफ़रीन ने अब उससे पूछा था. उसकी समझ में नहीं आया कि वो क्या कहे.

उसके खामोश रहने पर हैदर बोल उठा, “ये कोई कोर्स करने नहीं जाती हैं. किसी जगह पर ट्यूशन ले लिए जाती हैं.”

आफ़रीन अब्बास को एक झटका सा लगा था. चंद लम्हों तक वो कुछ बोल ही नहीं पाई.

“सारा! ये क्या कर रही हो? जो रूपये मैं तुम्हे देता हूँ, क्या वो काफ़ी नहीं है? और अगर वो तुम्हारी ज़रुरियात के लिए काफ़ी नहीं है, तो तुम मुझसे और रूपये ले सकती हो, मगर इस तरह.”

सारा ने उनकी बात काट दी, “अंकल! मुझे इस तरह आपके घर रहना और आप पर बोझ बनना अच्छा नहीं लग रहा. मैं यहाँ रहना भी नहीं चाहती.”

“क्यों?” आफ़रीन ने बे-इख्तियार (सहसा) पूछा था.

“अंकल! मैं नहीं जानती थी अम्मी मुझे कहाँ और किसके पास भेज रही हैं और आफ़रीन अब्बास उनके क्या लगते हैं. आपका और उनका क्या रिश्ता था. मैं इसके बारे में ज्यादा नहीं जान पायी, लेकिन जो थोड़ा बहुत जान सकी हूँ, वो मेरी लिए कोई ज्यादा ख़ुशी का रीज़न नहीं है. मैं जानती हूँ आपको ये जानकर दु:ख होगा, लेकिन आप दोनों का रिश्ता मेरे लिए कोई काबिल-ए-फ़क्र नहीं है और उस हवाले से यहाँ रहना मेरे लिए तकलीफ़देह है. आप पर मेरा कोई हक नहीं है, जिसके हवाले से मैं आपसे कुछ ले सकूं या यहाँ रह सकूं. मैंने इसलिए आपसे कहा था कि आप मेरे नाना से मेरा राब्ता करवा दें. मैं उनके पास जाना चाहती थी, लेकिन आपने मुझे इसकी इज़ाज़त नहीं दी. अब मैं जॉब ढूंढ रही हूँ. अभी तक जॉब मिली नहीं है, इसलिए मैंने ट्यूशन करना शुरू कर दिया है, क्योंकि उससे कम-अज-कम मेरे अख्राज़त (खर्च) तो पूरे हो सकते हैं. जॉब मिलते ही मैंने यहाँ से चली जाऊंगी.”

उसने आहिस्ता आवाज़ में उन दोनों को हैरान करने का सिलसिला ज़ारी रखा.

“सारा! तुम अकेले कैसे रहोगी?” आफ़रीन ने कुछ बेचैनी से उससे पूछा.

“अंकल! बहुत लड़कियाँ अकेली रहती हैं. फिर मेरे लिए तो ये कोई नयी चीज़ नहीं है. अम्मी की ज़िन्दगी में भी मैं अकेली ही होती थी.”

“सारा तुम्हें अच्छा लगे या बुरा, लेकिन तुम्हें यहीं रहना है. मैं तुम्हें अकेले कहीं नहीं रहने दूंगा. सबा तुम्हें मेरी ज़िम्मेदारी बना कर गई है. मैं तुम्हें इस तरह ख्वार (परेशान, बदहाल, तिरस्कृत) होने की इज़ाज़त नहीं दूंगा.” आफ़रीन ने फ़ैसला-कुन (दो टूक) अंदाज़ में कहा था.

“लेकिन मैं…”

आफ़रीन ने उसकी बात काट दी, “सारा इस मसले पर मैं बात नहीं करूंगा. मेरे लिए तुम मेरी बेटी हो. ये घर जितना हैदर का है, उतना ही तुम्हारा है. तुम मुझ पर पहले कभी बोझ थी ना आइंदा कभी होगी. मेरे और सबा के रिश्ते के बारे में कुछ गलात मत सोचो. ये ठीक है कि हम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे और किसी वजह से हमरी शादी नहीं हो सकी, लेकिन हमारे दरमियान ये वहीद (अकेला) रिश्ता नहीं था. हम एक-दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त भी थे और इस हवाले से तुम्हारा मुझ पर हक़ है.”

“लेकिन आप ये क्यों नहीं चाहते कि मैं अपने नाना के पास चली जाऊं?” वो उनकी बात पर कुछ झुंझला गई थी.

“सबा नहीं चाहती थी कि तुम उसके घर वालों के पास जाओ.”

“वो ये क्यों नहीं चाहती थीं?”

“मैं नहीं जानता कि वो ये क्यों नहीं चाहती थी.”

“मैं जानती हूँ. उन्होंने अपने घरवालों की मर्ज़ी के खिलाफ़ शादी की. वो सब उनसे नाराज़ हो गए और उन्होंने अम्मी से ताल्लुक खत्म कर लिया. अम्मी का ख़याल होगा कि वो अब तक उनसे नाराज़ हैं और शायद मुझे कबूल नहीं करेंगे. लेकिन मेरा ख़याल है कि अब अम्मी के मर जाने के बाद उनकी नाराज़गी खत्म हो चुकी होगी. अब वो मुझे ठुकरायेंगे नहीं. कम-अज-कम मैं उसके बात करके उनकी नाराज़गी दूर कर सकती हूँ.”

आफ़रीन उसकी बातों पर हैरान हो गये थे. “सारा तुम्हें ये सब किसने बताया” उन्होंने पूछा.

“किसी ने नहीं. मैंने ख़ुद अंदाज़ा लगाया है. मैं बच्ची नहीं हूँ. मैं बड़ी हूँ. चीज़ों को समझ सकती हूँ.”

“हर चीज़ वैसी नहीं है, जैसे तुम समझ रही हो. बहुत सी बातों से तुम ला-इल्म हो. बहुत सी चीज़ों के बारे में तुम्हारा अंदाज़े गलत हैं.” उन्होंने थके हुए लहज़े में उससे कहा.

“तो फिर आप मुझे बतायें कि हकीकत क्या है. किस चीज़ के बारे में मेरा अंदाज़ा गलत है? अम्मी ने मुझे कभी कुछ नहीं बताया, मगर आप तो बता सकते हैं.”

“सारा! मैं तुम्हारे नाना से कांटेक्ट करूंगा, लेकिन तुम ये बात ज़रूर याद रखना कि सबा ये नहीं चाहती थी कि तुम उनके पास रहो.”

उसकी तवक्को के बर’अक्स (विपरीत, उल्टा) आफ़रीन अब्बास ने उसकी बात मान ली और फिर वो तेज़ी से उठकर चले गए थे.

हैदर ने इस पूरी गुफ्तगू में हिस्सा नहीं लिया था, मगर वो दिलचस्पी से दोनों की बातें सुनता रहा. सारा ने पहली बार उसे सही मायनो में चौंकाया था. आफ़रीन के जाने के बाद वो भी उठकर अंदर चला गया. सारा देर तक लॉन में बैठी रही.

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