चैप्टर 26 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 26 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 26 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

Chapter 26 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

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“सबा! इस तरह अपनी ज़िन्दगी बर्बाद ना करो। यहाँ से चलो। तुम इस तरह ठोकर खाने के लिए नहीं बनाई गई हो। मैंने फोन पर चाचा से बात की थी। उन्हें सब कुछ बता दिया था। वह अगले हफ्ते पाकिस्तान आ रहे हैं। अगर हमारे साथ नहीं, तो उनके साथ चली जाओ। मगर इस तरह धक्के नहीं खाओ।”

अपनी माँ के मरने के छः दिन बाद एक बार फिर उसके पास गया था।

“यह मेरी ज़िन्दगी है, मैं जैसे चाहूंगी इसे गुजारूंगी।” वह आवाज भी उसी तरह सर्द थी।

“तुम इस तरह ज़िन्दगी गुज़ारोगी, तो हम में से कोई भी सुकून से नहीं रह सकेगा।”

“सब सुकून से हैं। सब खुश हैं। किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। बस सबको मुझे बर्बाद करना था, सो सबने मिलकर कर दिया।” आफ़रीन ने उसकी ज़ुबान पर शिकवा सुन लिया।

“तुम बर्बाद नहीं होगी सबा। मैं तुमसे शादी करूंगा। सब कुछ ठीक हो जायेगा।” आफ़रीन ने अपनी दिल की बात कह दी।

“और आसमां और हैदर, उनका क्या होगा?” उसने अजीब से लहज़े में पूछा।

“आसमां मान जयेगी। वह मुझसे मोहब्बत करती है और जानती है कि मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ।” आफ़रीन ने बड़े यक़ीन से कहा।

“मुझे लोगों के पैरों के नीचे से जमीन खींचना नहीं आता। ऐसा कर भी लूं, तो मुझे उस पर पैर जमाना नहीं आयेगा। तुम्हें तीन साल पहले मुझे गंदगी समझ कर झटक दिया था। मुझे आज भी अपना वजूद गंदगी ही लगता है। तुम एक अच्छी ज़िन्दगी गुज़ार रहे हो, गुज़ारो। मुझे दूसरों की चादर खींचकर अपना वजूद ढांपना नहीं आता।” वह अभी भी वही सबा थी, तीन साल पहले वाली। ज़ाहिर बदल गया था। बातें कैसे बदल जाती?

“ठीक है…मुझे शादी नहीं करना चाहती, ना करो। अपने माँ-बाप के पास चली जाओ। अपना नहीं, तो सारा का तो सोचो।” आफ़रीन ने एक बार फिर उसे समझाने की कोशिश की।

“उसी का तो ख़याल है मुझे अब। मेरा दिल अपने घरवालों के पास जाने को नहीं चाहता। वह मुझे कबूल कर लेंगे, सारा को नहीं। यह उन्हें बोझ लगेगी, वह उससे नफ़रत करेंगे। तुम जानते हो सारा के बाप ने उसे अपनी बेटी तस्लीम नहीं किया था। उसने मुझे इसी वजह से तलाक दी थी। मर्द तवायफ़ को बसा लेता है, तोहमत लगी हुई औरत को नहीं। कल को सारा बड़ी होगी। अगर किसी ने उसे सब बता दिया, तो वह क्या करेगी। जो कुछ हुआ था, उसमें मेरा कसूर नहीं था, लेकिन मुझे सजा मिली। जो कुछ हुआ उसमें सारा की भी गलती नहीं है, लेकिन बस मैं चाहती हूँ, मेरी तरह उसे सजा न मिले।”

“सारा का ख़याल है तुम्हें, बस अपना नहीं है!”

“मेरा ख़याल अल्लाह ने नहीं किया, तो मैं क्यों करूं? मुझे लगता है आफ़रीन मैंने ज़रूर कोई गुनाह किया था। ख़ुदा किसी को गुनाह के बगैर इतनी रुसवाई नहीं देता, जितनी उसने मुझे दी है। तीन साल पहले मेरा जब जी चाहा था, मैं उससे बातें करती थी। तीन साल से उसने मुझसे बात करना बंद कर दिया है। मैं तीन साल से उसे आवाज दे रही हूँ, मगर वह जवाब नहीं देता। मैं तीन साल से हर वह काम कर रही हूँ, जो उसे ख़ुश कर दे। अल्लाह सब्र करने वालों को पसंद करता है, देख लो। मैंने सब्र किया है। मैं किसी से शिकवा नहीं करती। मैंने तीन साल में एक बार भी किसी को यह सब कुछ नहीं बताया, मगर वह फिर भी राज़ी नहीं हुआ। अल्लाह माफ़ करने वालों को पसंद करता है। मैंने सबको माफ़ कर दिया। तुमको तायी अम्मी को, ताया अब्बा की, अम्मी को, सबको, मगर वह फिर भी मुझसे ख़फ़ा है। अल्लाह को अजिज़ी (विनम्रता) पसंद है। मेरा दिल चाहता है, मैं मिट्टी बन जाऊं, लोगों के पैरों के नीचे आऊं, मसली जाऊं, फिर वह मुझ पर अपनी नज़र कर देगा। मगर फिर भी मुझे लगता है, आफ़रीन मैंने कोई गुनाह किया है, कोई गुनाह तो ज़रूर किया है।”

वह बिलख-बिलखकर रो रही थी। आफ़रीन उसके आँसू नहीं देखना चाहता था। उससे शिकवा सुनाना चाहता था। मगर अब उसकी हर बात उसके वजूद को मोम की तरह पिघला रही थी।

“तुम ऐसी बातें ना करो सबा, तुम ऐसी बातें ना करो। तुम्हारी ऐसी बातों ने कितनों की ज़िन्दगी उजाड़ दी है। तुम्हारे इस आँसू की वजह से अल्लाह ने कितनों को खून के आँसू रुलाये हैं। तुम सब्र रखो, शिकवा करो, माफ़ ना करो, बदला लो। तुम ऐसे करोगी, तो बहुत से ज़िन्दगी तबाह होने से बच जयेगी।’ कोई उसके वजूद के अंदर चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा था।

“सबा! मुझे बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ।” आफ़रीन उसके करीब आ गया।

“तुम! तुम बस एक काम करना। दोबारा कभी मेरे पास मत आना, ना मुझसे राबता करना, ना मुझसे ढूंढना। बस मेरे लिए कुछ करना है, तो यही करना।” वह अभी पहले की तरह ज़ार-ओ-क़तार (रोना-चिल्लाना, विलाप करना) रो रही थी। उस रोज वो चुप नहीं हुई। वह रोती रही बच्चों की तरह, यूं जैसे किसी ने उससे सब कुछ छीन लिया हो। यूं जैसे किसी ने उसे कुछ ना दिया हो। आफ़रीन बहुत देर तक उसके पास बैठा रहा। जब उसके आँसू उसके बर्दाश्त से बाहर हो गए, तो वहाँ से चला गया।

अगले शाम को वह उसकी डिग्री और दूसरे कागजात उसके घर से निकाल लाया और उसे देने के लिए आया। दरवाजा पर ताला लगा हुआ था। वह उसका इंतज़ार करता रहा। बहुत देर हो गई। वह घर नहीं लौटी। वह बेचैन हो गया। उसने उसके पड़ोसी का दरवाजा खटखटाया।

“वह तो सुबह अपना सामान लेकर घर छोड़कर चली गई है। चाबी हमें दे गई है कि मालिक मकान को दे दे।” पड़ोस की औरत ने अंदर से उसे बताया। किसी ने बरछी से एक बार फिर आफ़रीन के पूरे वजूद को छेदना शुरू कर दिया था।

उसने सबा को दोबारा ढूंढने की कोशिश नहीं की। वह जानता था कि इस बार वह नहीं मिलेगी। सबा के घर वाले पाकिस्तान आ गए थे। उन्होंने आफ़रीन के घरवालों से सारा तालुकाकात तोड़ लिए थे। लेकिन आफ़रीन से सबा के वालिद नाराज नहीं रह सके। उसने उनके पैरों पर गिरकर उनसे माफ़ी मांग ली थी। वापस अमेरिका जाते हुए उसने उनसे सबा का घर खरीद लिया था। फिर वह ख़ुद भी आसमां और हैदर के साथ वापस फ्रांस आ गया। यहाँ आकर उसे नर्वस ब्रेकडाउन हुआ और दो-तीन माह तक वह कुछ करने के काबिल नहीं रहा। उसका डिप्रेशन के दौरे पड़ते और वह कई-कई दिन तक ख़ामोश रहता। फिर आहिस्ता-आहिस्ता वो आसमां और हैदर की वजह से नॉर्मल होने लगा था। आसमां ने उन दिनों उसका बहुत साथ दिया था। वह घंटों उससे सबा के बारे में बातें करता रहता और वह बड़े सब्र और हमदर्दी से सुनती रहती और जब उस पर ख़ामोशी के दौरे पड़ते, तो वह सबा का ज़िक्र करके उसे बोलने पर मजबूर करती थी। कई साल वह पाकिस्तान नहीं गया था। फिर बाप की वफ़ात (मृत्यु) पर उसने पाकिस्तान मुंतक़िल (स्थानांतरण) होने का फैसला किया।

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