चैप्टर 18 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 18 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 18 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

Chapter 18 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

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सबा को यकीन था ताई कभी कुरान पाक पर हाथ रखकर झूठ नहीं बोलेंगी। आफ़रीन अपनी माँ और बाप को ले आया था। दूसरे दोनों ताया भी आ गए थे। सभा के कमरे में कभी कितने लोग नहीं आये थे। हर चेहरा तनाव से दो-चार था। वह उठकर वज़ू (कुरान को हाथ लगाने के पहले चेहरा, हाथ-पैर धोना) करने चली गई। बहते आँसुओं के साथ उसने वाजू किया। फिर चेहरा और आँखें खुश्क करके वह कमरे में आ गई। कमरे में मुकम्मल ख़ामोशी थी। उसे आफ़रीन पर तरस आने लगा।

‘जब उसकी माँ कुरान पाक पर हाथ नहीं रखेगी, तो आफ़रीन का क्या हाल होगा! वह क्या करेगा?’ उसने आफ़रीन को देखते हुए सोचा। फिर उसने ताई का चेहरा देखने की कोशिश की। उनके चेहरे पर कोई तासूर नहीं था। वह बस सिर झुकाए हुए बैठी थी। आफ़रीन ने अक्सा को कुरान पाक लाने के लिए कहा। अक्सा कुरान पाक ले आई। आप ही ने कुरान पाक हाथ में ले लिया। वह अपनी माँ की तरफ गया।

“अम्मी! आप कुरान पाक हाथ में लेकर कहे कि आपने सबा और आदिल के खिलाफ कोई मंसूबा नहीं बनाया और ना ही कल रात उन दोनों को मेरे कमरे में भेजा था।”

आप ही ने कुरान पाक माँ की तरफ बढ़ाते हुए कहा। सभा के दिल की हरकत तेज हो गई, फिर उसकी सांस रुक गई। ताई अम्मी कुरान पाक हाथ में ले रही थी। उसने बे-यक़ीनी से उनका चेहरा देखा। फिर उसने वही कलामात दोहराते हुए सुना, जो आफ़रीन ने कहे थे। उन्होंने एक बार नहीं तीन बार झुके हुए सिर के साथ वही कलामात दोहराये।

‘क्या कोई कुरान पाक पर हाथ रखकर झूठ बोलने की हिम्मत कर सकता है?’ उसने सोचा, ‘और अब मैं भी कुरान पाक हाथ में लेकर सच बोल दूंगी और इस कमरे में मौजूद हर शख्स सोचेगा कि दोनों में से एक झूठा है और उसने कुरान पर हाथ रखकर झूठ बोला है।‘

आप ही ने ताई अम्मी से कुरान दे दिया और उसकी तरफ आया। हर नज़र अब सबा पर जमी थी। वह रुके हुई सांस के साथ अपनी तरफ देखती रही। आफ़रीन का चेहरा सुजा हुआ था। सबा ने ताई अम्मी का चेहरा देखा। कोई मलाल, कोई रंज, कोई पछतावा उनके चेहरे पर कुछ भी नहीं था। उसने अपनी माँ के चेहरे को देखा। वहाँ बेचैनी थी, आँसू थे, उम्मीद थी। अक्सर दरवाजे से टेक लगाए खड़ी थी। आफ़रीन उसके पास आया।

“सबा! अब तुम कुरान पाक हाथ में लेकर कहो कि तुम बेगुनाह हो, आदिल के साथ वहाँ अपनी मर्ज़ी से नहीं गई थी।”

उसने कुरान पाक सबा की तरफ बढ़ा दिया। सबा ने आफ़रीन का चेहरा देखा। वह उसका चेहरा देखती रही। आफ़रीन ने नज़रें चुरा ली।

“यह लो कुरान पाक पकड़ो।” उसने एक बार फिर बेताबी से कहा। सबा ने ना सिर उठाया और ना ही हाथ बढ़ाये।

“सबा!” अम्मी के हलक से चीख निकली। ऐसा फूट-फूट कर रोने लगी। आफ़रीन थके कदमों के साथ पीछे हट गया। उसने कुरान पाक उसकी स्टडी टेबल पर रख दिया। सबा की अम्मी और अक्सा रोते हुए कमरे से निकल गई। दोनों ताया भी उठकर कमरे से चले गये। सबा ने सिर उठाया।

“आफ़रीन! मुझे तुमसे किसी चीज की ज़रूरत नहीं है, ना मैं आइंदा तुमसे कोई मुतालबा (मांग) करूंगी। बस मुझे अपना नाम दे दो। मुझे तलाक़ मत देना, तुम दूसरी शादी कर लो, मुझे कोई एतराज़ नहीं है।”

“तुम्हें नाम की क्या ज़रूरत है?” वो गुर्राया।

“आफ़रीन मुझ पर रहम करो।”

“तुमने मुझ पर रहम किया? बताओ तुमने मुझ पर तरस खाया? फिर मैं रहम कैसे कर सकता हूँ सबा करीम! मैं आफ़रीन अब्बास अली पूरे होशो-हवास में तुम्हें तलाक देता हूँ।”

वह कमरे से निकल गया। ताई भी और ताया भी उसके पीछे चले गये। वह साकित (स्तब्ध) अपनी जगह पर बैठी रही।

“सबा करीम! मैं आफ़रीन अब्बास अली पूरे होशो-हवास में तुम्हें तलाक देता हूँ।” आवाज उसके कानों से टकराती रही। वह अपनी जगह से उठकर स्टडी टेबल के पास आ गई। बड़ी एहतियात से उसने कुरान पाक उठाया।

“किसी ना किसी को कुरान की हुरमत (पवित्रता, मर्यादा) का मान रखना था। फिर अगर लोग मुझे तर्क (छोड़) कर देते हैं, तो इस पर मेरा इख्तियार (बस) नहीं।” वह कुरान को सीने से लगाए फूट-फूट कर रोने लगी।

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