चैप्टर 31 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 31 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 31 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

Chapter 31 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

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सायरन होने लगा था। उसने पानी के गिलास की तरफ हाथ बढ़ा दिया। उसने रेडीमेड गारमेंट्स की एक फैक्ट्री में छोटे बच्चों के फ्रॉक सीने का काम शुरू कर दिया था।

“तुम्हारे हाथ में ज्यादा सफाई नहीं है। अभी काफ़ी अरसा तुम्हें काम सीखना पड़ेगा। इसलिए तुम्हें बाकी औरतों जितने रुपयेए नहीं मिलेंगे, बल्कि सीखने वाली लड़कियों की तरह स्टाईपेंड मिला करेगी।”

पहले ही दिन सुपरवाइजर औरत ने उसका काम देख कर कह दिया था। वह ख़ुद भी जानती थी कि उसके काम में सफाई नहीं है। वह सिलाई कढ़ाई में कभी भी माहिर नहीं रही थी। बस उसे बहुत से दूसरे कामों की तरह यह भी आता था। उसने इस फैक्ट्री में काम हर तरफ से मायूस होने के बाद शुरू किया था और वह मिलने वाले मुआवज़े से ख़ुश नहीं थी। लेकिन उसने उसके पास और कोई रास्ता नहीं था। उसके पास रुपये कम होते जा रहे थे और हर माह फ्लैट का किराया, बिजली और गैस के बिल और दूसरी अख्राजात (खर्च) के लिए उसे रुपये चाहिए थे। यहाँ काम करने से बहुत ज्यादा नहीं, लेकिन वह इतने पैसे ज़रुर कमा सकती थी, जिससे उसके बुनियादी अख्राजात (खर्च) पूरे हो जाते।

दो दिन पहले अज़रा ने इत्तला दी थी कि वह चंद दिनों में फ्लैट छोड़ने वाली है। शादी कर रही थी। उसके लिए यह एक बुरी खबर थी क्योंकि उसके फ्लैट छोड़ने का मतलब यह होता कि उसे और गुल को फ्लैट का ज्यादा किराया देना पड़ता और बिजली और गैस के बिल आपस में बांटने पड़ते (पहले वह तीन लोगों में शेयर होता था।) उसने बुझेदिल से अज़रा को मुबारकबाद दी थी और बिस्तर में लेट कर एक बार फिर हिसाब-किताब में मशरूफ़ हो गई।

कल गुल और अज़रा दोनों बेहद ख़ुश नज़र आ रही थीं। वह एक ही बिस्तर में बैठी बातें कर रही थी और बातें करते-करते हो एकदम खिलखिला कर हँस पड़ी। वह अफ़सुर्दगी (खिन्नता) से उनके चेहरे देख रही थी। वह पता नहीं क्या-क्या सोच रही थी और फिर उन्हें सोचो में वह सो गई थी।

दोबारा उनकी आँख सहरी (सुबह) के वक्त खुली थी। उसके दिल की धड़कन बेहद तेज थी। उसे याद आ गया था चंद लम्हे पहले उसने सपने में क्या देखा था। उसने हैदर को देखा था। उसने देखा था कि वह दोनों हैदर के घर के लॉन में फिर रहे हैं और हँसते हुए बातें करते हुए और फिर एकदम उसकी आँख खुल गई थी और अब वह कमरे में फैली हुई तारीकी (अंधेरे) को घूर रही थी। उसने दोनों हाथों से अपने सिर को जकड़ लिया। बहुत दिनों से यही हो रहा था। वह उसे ख्वाब में अपने साथ देखती थी, उसी तरह अपने मकसूद (सूफ़ियाना) अंदाज़ में बातें करता हुआ, धीमी आवाज में हँसता हुआ और फिर एकदम उसकी आँख खुल जाती थ। उसने बिस्तर से निकलकर कमरे की लाइट जला दी। चंद मिनट के बाद गुल और अज़रा भी उठ गई थी। आज उनतीसवां रोज़ा था और वह दोनों रात को उसे बता चुकी थी कि सुबह वह भी रोज़ा रखेंगी।

उसका दिल बोझिल हो रहा था। किचन में जाकर उसने चाय बनाई और फिर तीनों के लिए पराठे पकाने के बाद अपने हिस्से की चाय का कप और पराठा लेकर कमरे में आ गई। गुल और अज़रा भी चाय-पराठा लेकर कमरे में आ गई थी।

सारा पराठे के छोटे-छोटे लुक्मे (कौर) बेदिली से चाय के साथ निगलती जा रही थी। तब भी गुल ने किसी बात पर कहकहा लगाये। सारा नहीं जानती थी कि उसने क्या हुआ, बस उसने चाय और पराठे एक तरफ रख कर घुटनों में मुँह छुपाकर बेआवाज़ रोना शुरू कर दिया।

“तुम्हें क्या हो गया? अब तुम पर कौन सी आफ़त टूट पड़ी है?” गुल और अज़रा उसके करीब चली आई, मगर उसने सिर नहीं उठाया।

“इस वक्त कौन याद आ गया? क्या रोने की बीमारी लग लगा रखी है? अब फिर दौरा पड़ गया है। सहरी खत्म होने में बहुत थोड़ा वक्त रह गया है। कम से कम अपना खाना तो खा लो आमना। क्या पागल हो गई हो? इस वक्त रोने की क्या बात है? अपना सिर उठाओ।”

गुल और अज़रा बारी-बारी उसे चुप कराने की कोशिश करती रही, मगर वह चुप ना हुई ना उस ने सिर उठाया। तंग आकर गुल और अज़रा ने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया। फिर अजान होने लगी, मगर वह उसी तरह चेहरा छुपा आँसू बहाती रही। वह दोनों कमरे की लाइट बंद करके एक बार फिर बिस्तर पर जा चुकी थी।

छः बजे के करीब उसने उठकर फैक्ट्री जाने की तैयारी शुरू कर दी। इसकी सूजी हुई आँखें और चेहरे ने फैक्ट्री में भी सबको नोटिस हुआ था।

“तबीयत खराब है?” उसने हर एक से यही कहा। तीन बजे फैक्ट्री से फ्री होने के बाद वह वापस घर जाने के बजाय बाजार चली गई। पूरा एक घंटे वो बगैर किसी मकसद से बाजार में फिरती रही। दुकानों पर बैठती हुई चहल-पहल और सड़कों के किनारे लगे हुए ईद के कार्ड्स के स्टाल देखती रही। पिछले साल भी वह ईद पर माँ के साथ बे मकसद बाजार में फिरती रही थी। तब उसकी दोस्त अल्फिशा भी उसके साथ थी और उसने कुछ चीजें भी खरीदी थी। इस दफ़ा वह अकेली ही वहाँ फिर रही थी।

इफ्तार में एक घंटा रह गया था। उसने आज मिलने वाली पूरी सैलरी खाने-पीने की चीजें खरीदने में लगा दी। यह ईद के लिए उसकी वाहिद (एकमात्र) अय्याशी थी।

इफ्तार में आधा घंटा बाकी था, जब वह वापस फ्लैट में पहुँची थी। गुल ने दरवाजा खोला।

“आओ सारा! आज तो बहुत देर लगा दी। मैं तो परेशान हो गई थी।”

सारा ने गौर नहीं किया कि उसने उसे आमना की बजाय सारा क्यों कहा। वह बगैर कोई जवाब भी अंदर आ गई। लिफ़ाफे उसने दीवार के पास पड़ी चारपाई पर रख दिए। बैग हाथ से फेंकने के बाद उसने चादर उतारी और थक-थके अंदाज में से छह करने लगी। गुल और अज़रा खिलाफ-ए-मामूल थी और उसने उन्हें देखने की कोशिश नहीं की।

“हेलो सारा! कैसी हो?” उसने धीमी आवाज में उसे मुखातिब किया था। उसके जिस्म में करंट दौड़ गया। वह पत्थर के पुतले की तरह हो गई। आवाज उसके कानों के लिए अजनबी नहीं थी। बहुत आवाज को लाखों में पहचान सकती थी। कमरे में इटर्निटी की तरह फैली हुई मानूस (जानी पहचानी) सी महक को उसने अब महसूस कर लिया था। सिर उठाकर उसे कमरे में ढूंढने के बजाय उसने उसी तरह गर्दन को हरकत दिए बगैर सिर झुकाये हुए फर्श पर नज़रें दौड़ाना शुरू कर दिया था। कमरे में दायें कोने में लेदर शूज़ उस पर उसकी नज़र अटक गई। वह खड़ा था। सीने पर बाजू लपेटे, दीवार से टेक लगाये। स्याह जींस और उसकी कलर की लेदर जैकेट में मबलूस पुरसुकून, संजीदा, नज़र उस पर जमाये हुये। सारा ने सिर्फ एक बार उसे सिर उठाकर देखा और फिर सिर झुका लिया। चादर को एक बार फिर खोल कर उसने कंधों पर डाल दिया।

“सारा! यह तुमसे मिलना चाहते हैं। काफ़ी देर से तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। इन्होंने ही हमें बताया कि तुम्हारा नाम आमना नहीं सारा है।”

कमरे में गुल की आवाज गूंजी। सारा का दिल नहीं चाहा कि वह गुल और अज़रा की शक्ल देखे।

“हम ज़रा साथ वाले फ्लैट में जा रहे हैं। तुम्हें इनसे जो बात करना है कर लो।” सारा ने अज़रा को कहते और फिर दरवाजा बंद करते सुना था।

“मैं तुम्हें सिर्फ यह समझाने आया हूँ कि फ़रार होना किसी मसले का हल नहीं होता।” कमरे में उसकी आवाज गूंजी। सारा ने एक गहरी सांस लेकर उसे देखा। वह अब पहले वाली जगह से आगे बढ़ आया था।

“मुझे किसी की कोई बात नहीं सुननी है। तुम यहाँ से जाओ।” उसके चेहरे को देखे बगैर उसने कहा।

“लेकिन मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना है और मैं यहाँ से नहीं जाऊंगा।” वह अब भी पुरसुकून था।

वो चिल्ला उठी, “मैंने कहा तुम यहाँ से जाओ।”

“हाँ चिल्लाओ! और चिल्लाओ! उसे तुम्हारा डिप्रेशन दूर हो जायेगा और तुम्हें इस वक्त इसी की ज़रूरत है।” वह किसी माहिर साइक्लोजेस्ट की तरह कह रहा था। वह एकदम चुप हो गई।

“और मुझे तुमसे बहुत कुछ पूछना है।” हैदर ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा।

“तुम्हें जो कुछ पूछना है, अपने बाप से पूछो। मेरे पास तुम्हारे किसी सवाल का जवाब नहीं है।”

“मुझे पापा से जो कुछ पूछना था पूछ चुका हूँ। अब तुम्हारी बारी है। मुझे बताओ तुमने मुझसे किस बात का बदला लिया है? मैंने तुम पर क्या ज़ुल्म किया था?

“मेरी माँ ने किसी पर ज़ुल्म किया था? तुम्हारे बाप ने उनसे किस चीज का बदला लिया था?” वह फर्श पर बिछे हुए बिस्तर पर बैठ गई।

“हाँ तो यह सवाल तुम्हें पापा से करना चाहिए था। पूछना चाहिए था उनसे कि बल्कि मेरे साथ चल कर उनसे पूछो, मगर तुममें इतनी हिम्मत कहाँ कि तुम उनके सामने खड़ी होकर बात कर सको।” वह उसे चैलेंज देने वाले अंदाज़ में बोला।

“मैं तुम्हारे घर दोबारा कभी नहीं जाना चाहती हूँ, ना तुम्हारे बाप की शक्ल देखना चाहती हूँ। मैं उनसे कोई बात नहीं करना चाहती।” वह उस पर गुर्राई।

“अगर तुम मेरे बाप की शक्ल देखना नहीं चाहती थी, तो फिर तुमने मेरा प्रपोजल कबूल क्यों किया? मुझसे निकाह क्यों किया? मेरे साथ…”

सारा ने तेजी से उसकी बात काट दी, “…तब मुझे हकीकत का पता नहीं था और मुझे सब कुछ पहले पता चल जाता तो तुम्हारे साथ निकाह तो दूर की बात है, मैं कभी तुम्हारे बाप के पास भी ना जाती। मैं कभी उस शख्स के पास जाना पसंद ना करती जिसने मेरी माँ की ज़िन्दगी बर्बाद कर दी, जिसने उनको बेइज्जत किया।”

“सारा! तुम यह बात मत कहो। तुम्हें यह बात कहने का कोई हक नहीं है। हाँ तुम्हारी अम्मी कह सकती थी क्योंकि उन पर ज़ुल्म हुआ था और उन्होंने किसी से इसका बदला नहीं लिया था। मगर तुम बदला ले चुकी हो। तुमने मुझे बेइज्जत किया है। अगर तुम्हारी माँ बेकसूर थी, तो मुझे बताओ मैंने कौन सा गुनाह किया था? क्या तुमने सोचा तुम्हारे इस तरह चले जाने से मैं लोगों के सामने तमाशा बन कर रह जाऊंगा? नहीं! तुमने नहीं सोचा, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह मेरे दादा, दादी ने नहीं सोचा था। उसी तरह जिस तरह मेरे बाप ने नहीं सोचा था। तुममें और उनमें क्या फ़र्क है, बता सकती हो तो बताओ?”

वह एक कुर्सी खींचकर उसके मुकाबिल (सामने) बैठ गया।

“तुम्हारी अम्मी का दिल मरने को चाहा होगा। मेरा दिल भी चाहा था, मैं खुदकुशी कर लूं। तुम्हारी अम्मी मज़लूम (पीड़ित, जिसके साथ ज़ुल्म हुआ हो) थी। तुम मजलूम नहीं हो।”

“मैं तुमसे या किसी से भी कोई बदला नहीं दिया। मैं बस तुमसे शादी नहीं करना चाहती थी। तुम्हारे घर नहीं आना चाहती थी। इसलिए मैं वहाँ से भाग आयी। यह मैंने बाद में सोचा था कि इससे…”

हैदर ने उसकी बात काट दी, “दादा ने भी यह बाद में सोचा था कि उन्होंने तुम्हारी अम्मी पर ज़ुल्म किया। दादी ने भी यह बाद में सोचा था कि उन्होंने तुम्हारी अम्मी को रुसवा कर दिया था। पापा को भी यह बाद में ख़याल आया था कि उन्होंने तुम्हारी अम्मी की ज़िन्दगी बर्बाद कर दी। अगर तुम अपने इस डिसीजन को जस्टिफाई करती हो, तो उनको भी करो, कोई भी गलत काम करते हुए नहीं सोचता कि वह गलत काम कर रहा है। हर एक बाद में ही सोचता है। तुम हो या पापा हो या दादी।”

सारे ने अपने आँसू को कंट्रोल करते हुए कहा, तुम चाहते क्या हो?”

“बहुत कुछ, यह कि तुम पापा को माफ़ कर दो और यह कि तुम मेरे साथ चलो।”

“मैं दोनों काम नहीं कर सकती।” उसने कॉन्फिडेंटलि कहा।

“फिर तीसरा काम मैं कर सकता हूँ यानी तुम्हें तलाक दे दूं।”

तारा ने बे-इख्तियार सिर उठाकर उसे देखा और फिर घुंटती हुई आवाज़ में कहा, “दे दो।”

वह उसका चेहरा देखता रह गया। फिर उसने एक लंबी सांस लेकर कहा, “तलाक लेकर क्या करोगी? कैसे रहोगी? ज़िन्दगी कैसे गुज़ारोगी।”

“वैसे ही गुज़ारूंगी, जैसे मेरी माँ ने गुज़ारी थी।”

“यह तो मुश्किल है सारा कि तुम अपनी अम्मी की तरह ज़िन्दगी नहीं गुज़ार सकती। मैं तुम्हारी अम्मी के बारे में वही कुछ जानता हूँ, जो मैंने लोगों से सुना है लेकिन मुझे लगता है मैं उनको किसी से भी बेहतर समझ सकता हूँ। तुमसे भी बेहतर। हालांकि मैंने ना कोई साइकोलॉजिस्ट हूँ, ना मुझे लोगों को समझने का शौक है। लेकिन पिछले दो माह में मैंने उनके बारे में इतना सोचता रहा हूँ कि उनके पसंद करने लगा हूँ। मुझे यकीन नहीं आता कि कोई इतना सब्र कर सकता है, जितना उन्होंने किया। पापा को लगता है जैसे सबा ने उनसे बहुत मोहब्बत की थी और जब उन्होंने उन्हें छोड़ दिया, तो फिर सबा ने दुनिया तर्क (छोड़ दी) कर दी मगर मुझे ऐसा नहीं लगता। मुझे लगता है कि तुम्हारी अम्मी का और ख़ुदा का एक बहुत ख़ास रिश्ता था। उन्हें सिर्फ ख़ुदा के होने पर यकीन था। यह भी कहा था कि जो कुछ उन्हें मिल रहा है, उसकी वजह से है और उन्हें लगता होगा कि ख़ुदा ने उनके गिर्द एक हिफ़ाज़ती दीवार खींचा हुआ है। उन्हें यकीन होगा कि वह ख़ुदा से इतनी मोहब्बत करती है कि वह कभी इस यकीन को टूटने नहीं देगा। लेकिन हुआ क्या? मेरे दादा-दादी तुम्हारी मम्मी को पसंद नहीं करते थे। पापा के मजबूर करने पर उन्होंने तुम्हारी अम्मी से उनका निकाह किया था। दादा ने तो ना चाहते हुए भी इस रिश्ते को कबूल कर लिया था, लेकिन दादी नहीं कर पाई और फिर वही औरत वाली रक़ाबत (ईर्ष्या, डाह, विरोध) और साजिश, फिर एक के बाद एक ऐसे वाक्यात हुए जिन्होंने तुम्हारी अम्मी को…उन्हें यकीन नहीं आया होगा कि यह सब उनके साथ हो सकता है और ताबूत में आखिरी कील पापा ने तलाक देकर गाड़ी थी। तुम्हारी अम्मी को लगा आफ़रीन अब्बास ने नहीं, ख़ुदा ने उन्हें छोड़ दिया और फिर सारी उम्र ज़िन्दगी वह ख़ुदा को मनाने की कोशिश करती रही। और तुम्हें पता है ऐसे लोग मेरे तुम्हारे जैसे दुनिया वालों के लिए कितने खतरनाक होते हैं। उनको मनाकर रखो, तो उनका गुलाम बन जाने को जी चाहता है। उनको तकलीफ पहुँचाओ, तो अल्लाह सुकून छीन लेता है। जैसा पापा के साथ हुआ। मेरे खानदान के दूसरे लोगों के साथ हुआ। मैंने जब से होश संभाला है, उन्हें खुश या मुतमईन नहीं देखा, जैसा दूसरे लोग होते हैं। उनके पास किसी चीज की कमी नहीं थी। कामयाब मैनेजर, अच्छी खूबसूरत बीवी, औलाद, दौलत, इज्जत उनके पास क्या था जो नहीं रहा। हाँ बस सुकून नहीं था, ना अब है।”

वह इस तरह से उसे सब कुछ बता रहा था, जैसे वह उसकी बेहतरीन दोस्त है। जैसे वह यह सब बताने के लिए वहाँ आया हो। वह ना चाहते हुए भी उसकी बातें सुनती गई।

“और वह अकेले इस अज़िय्यत (तकलीफ़) का शिकार नहीं थे। हमारे खानदान में हर फ़र्द (शख्स) को अज़ीयत का सामना करना पड़ा है। दादा को, दादी को, फूफू को, मेरी मम्मी को और अब मुझे और मैं चाहता हूँ कि यह सिलसिला खत्म हो जाये। तुम्हारी अम्मी ने अल्लाह से इतनी मोहब्बत की, फिर उसके अलावा और चीज की ख्वाहिश नहीं की। मगर सारा तुम्हारा ख़ुदा के साथ ऐसा कोई रिश्ता नहीं है। तुम कभी भी सबा करीम जैसी कैनूनत (पैदाइश) हासिल नहीं कर सकती। तुम घर को छोड़ सकती हो, दुनिया को नहीं। तुम्हारी अम्मी तुम्हारी तरह एकेडमी में नहीं गई ना उन्होंने अपने सर्टिफिकेट हासिल करने की कोशिश की क्योंकि उन्होंने अब किसी मेटरियलिस्ट परस्यूट में शरीक़ नहीं होना था और तुम, तुम ना दुनिया छोड़ सकती हो, ना ख़ुदा को। कुछ वक़्त गुज़रेगा। फिर तुम्हें पछतावा होने लगेगा और मैं चाहता हूँ कि उस वक्त से पहले तुम वापस आ जाओ। तुमने याद रखना चाहिए कि तुम्हारी अम्मी ने तुम्हें मेरे पापा के पास भिजवा दिया था। उनकी यह ख्वाहिश होगी कि तुम वैसी ज़िन्दगी ना गुजारो, आम लोगों जैसी ज़िन्दगी नॉर्मल ज़िन्दगी गुज़ारो। अपनी मर्ज़ी से बेखबर रहकर इसलिए, उन्होंने तुम्हें अपने बहन भाइयों के पास नहीं भेजा। उन्हें यह हादसा (डर) होगा, वह उनके और तुम्हारे माज़ी को छुपाकर नहीं रखेंगे और यह बा-खबरी तुम्हें सारी उम्र तकलीफ़ देती रहेगी। पापा यह काम कर सकते थे, जो तुम्हारी अम्मी ने तुम्हें उनके पास भिजवा दिया। तुम्हारे नाना, मामा और खाला ने तुम्हें ढूंढने की बहुत कोशिश की। तुम नहीं मिली। एक माह पहले वह वापस चले गये। अब तुम्हें सिर्फ मैं और पापा ढूंढ रहे थे।”

सारा ने एक बार फिर अपने सिर घुटनों में छुपा लिया।

“तुमसे मैं एक बार फिर कह रहा हूँ, मेरे साथ चलो। पापा से नाराजगी है, उनसे लाडो, जो कहना है कह दो। मुझसे अगर कोई शिकायत है, तो करो लेकिन मेरे साथ चलो।”

वह सिर छुपाए बे-आवाज रोती गई। “हाँ तुमने सच कहा, मुझे अम्मी की तरह दुनिया में रहना नहीं आ रहा, ना कभी आ सकता है। अम्मी की तरह ज़िन्दगी गुज़ारना बहुत मुश्किल है और मैं बहुत कमजोर हूँ।” वह रोती हुई दिल ही दिल में ए’तिराफ़ (स्वीकार करना, मान लेना) कर रही थी।

दूर कहीं सायरन बजने लगा था। फिर अजान हो गई। हैदर अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और तिपाई पर रखे हुए लिफाफा को खोल कर देखने लगा, उसने एक खजूर निकालकर इफ्तार किया।

गुल और अज़रा अंदर आ गई थी।

“इसको फिर दौरा पड़ गया।” गुल ने सारा को देखते ही देखते बे-इख्तियार कहा।

“सारा! रोजा को इफ्तार कर दो।” अज़रा किचेंन से प्लेट में कुछ चीजें रखकर उसके पास आ गई थी। उसने फिर उठाया था और आस्तीन से चेहरा खुश्क करना शुरू कर दिया था। फिर उसने प्लेट में से एक खजूर उठाकर मुँह में डाल दी और खड़ी हो गई। बिस्तर पर रखे हुए बैग को उसने कंधे पर डाल दिया था। हैदर मुस्कुराया और उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया। उसने उसके हाथ में अपना हाथ थमा दिया।

“तुम जा रही हो, अपना सामान तो ले जाओ।” अज़रा उसे जाते देख कर चीखी।

“नहीं मुझे कुछ नहीं चाहिए ख़ुदा हाफिज़!” उसने दरवाजा पार करते हुए भर्राई हुई आवाज में कहा। उसका हाथ थामे किसी नन्हे बच्चे की तरह वह उसके पीछे चलती जा रही थी।

“पिछले दो माह से मैंने अपनी पूरी सैलरी तुम्हें ढूंढने पर खर्च कर रहा हूँ बल्कि अकाउंट में जो थोड़े बहुत रुपये थे, वह भी खर्च कर चुका हूँ। इसलिए अब तो मैं चंद साल मेरी तरह पापा पर डिपेंड करना पड़ेगा। हद से ज्यादा छुट्टियों पर बैंक वालों की तरफ से भी एक वार्निंग लेटर मिल चुकी है।” उसका हाथ थामे सीढ़ियों में उसके आगे चलते पर वह कह रहा था।

“तुम यहाँ तक कैसे पहुँचे?” सारा को एकदम ख़याल आया।

“मैं जानता था कि तुम हॉस्टल में नहीं, तो फिर किसी तरह के किसी फ्लैट में होगी। तुम किसी बड़े प्रॉपर्टी डीलर के पास हो जा नहीं सकती थी, इसलिए ज़ाहिर है कि किसी छोटे-मोटे प्रॉपर्टी डीलर के पास ही जाती। पुलिस ने तमाम छोटे-मोटे प्रॉपर्टी डीलर को कांटेक्ट किया और तुम्हारे बारे में इंक्वायरी किया। फाइनली एक डीलर के ज़रिये तुम्हारा पता मिल गया, फिर आज दोपहर को ही हम यहाँ तक पहुँच गये। तुम्हारे साथ रहने वाली लड़कियों को तुम्हारी फैक्ट्री का पता नहीं था, वरना मैं सीधा वहीं आता।” वह कहता गया।

“हैदर ज्यादा बात ही नहीं करता। यह कह सकती हूँ कि वह कम-गो है। वह किसी से ज्यादा बे-तकल्लुफ़ भी नहीं होता। यह सब उनकी आदतों में शामिल है।” आफ़रीन अब्बास ने एक बार उसे हैदर के बारे में बताया था।

सारा ने उस कम-गो को देखा, जो उसका हाथ थामे सीढ़ियाँ उतरते हुए मुसलसल (लगातार) बोल रहा था।

“मुझे अक्सर चीजों का पता बाद में चलता है।” वो कह रहा था, “जैसे तुम्हारी मम्मी और पापा का असली रिश्ता क्या है, वह कौन थी और उनके साथ क्या हुआ था या यह एक अगर हर दफ़ा तुम तक पहुँचने में नाकाम हो जाता था, तो इसकी वजह मेरी गाड़ी थी, जिसकी मौजूदगी हर दफ़ा तुम्हें पहले ही खबरदार कर दिया करती या फिर यह कि मैं तुमसे मोहब्बत करने लगा था या कि यह मोहब्बत एकतरफ़ा नहीं थी।”

सारा के गाल गुलाबी हो गये। उसके होठों पर मुस्कुराहट आ गई।

“और यह भी कि तुम जानती थी।” वो एकदम फ्रेंच बोलने लगा, “इस ला-इल्मी से मुझे क्या नुकसान पहुँचा, यह तुम मुझे घर पहुँचकर बताना।” वो सीढ़ियाँ उतरकर इमारत से बाहर आ गए थे।

“ओए होए! टाइटैनिक के हीरो हीरोइन जा रहे हैं।” पास से गुजरते एक लड़के ने सीटी बजाते हुए कमेंट किया था। हैदर ने झेंपते हुए सारा का हाथ छोड़ दिया। वो खिलखिला कर हँस पड़ी। सामने सड़क पर बहुत रश था। ज़िन्दगी का रास्ता उतना ही साफ नज़र आने लगा था। उसके साथ चलते हुए उसने सिर्फ उठाकर आसमां पर चांद देखने की पहली कोशिश की थी।

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