Chapter 28 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel
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“बस मुझे यहाँ उतार दें, मैं थोड़ी देर में आ जाऊंगी।” सारा ने गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए कहा।
“मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ।” अक्सा ने भी गाड़ी से उतरना चाहा, लेकिन सारा ने उन्हें रोक दिया।
“नहीं खाला! मुझे अकेले ही जाना है। आपके साथ जाना मुझे अच्छा नहीं लगेगा। मैं बस अपनी दोस्त से मिलकर वापस आ जाऊंगी।” उसने गाड़ी से उतरकर दरवाजा बंद कर दिया।
अक्सा ने ना चाहते हुए भी उसे जाने दिया। वह उसे तैयार करवाने के लिए ब्यूटी पार्लर लेकर जा रही थी, जब उसने अपने किसी दोस्त से मिलने की फ़रमाइश की थी और ड्राइवर को पता बताया था। अक्सा ने बड़े आराम से ड्राइवर को वहाँ जाने का कह दिया था, क्योंकि बारात को शाम पाँच बजे आना था और इस वक्त सिर्फ एक बजा था। गाड़ी में अक्सा के साथ उनकी बड़ी बेटी अफ़सा और अजीम की बीवी मरियम थी। रोड पर एक बुलंद-वा-इमारत (ऊँची और शानदार) के सामने उसने गाड़ी रुकवाई थी।
“यही ऊपर उसका फ्लैट है।” सारा ने अक्सा को बताया और गाड़ी से उतरकर चली गई।
ड्राइवर ने कार पार्किंग में खड़ी कर दी और वह आपस में बातें करते हुए उसका इंतज़ार करने लगे। उन्हें वहाँ तकरीबन पंद्रह मिनट गुजर गए, लेकिन वह बाहर नहीं आई। अब अक्सा को बेचैनी होने लगी। ब्यूटीशियन के साथ उनकी दो बजे की अपॉइंटमेंट थी और डेढ़ यहीं बज चुका था।
“तुम लोग बैठो मैं उसे देख कर आती हूँ।” अक्सा ने गाड़ी से उतरते हुए कहा।
“अम्मी! अब कहीं यह ना हो कि आप सारा को ढूंढने जायें और वो इतनी देर में आ जाये। फिर हम आपके इंतज़ार में बैठे रहें।” अफ़सा ने माँ से कहा।
“नहीं अगर सारा आ जाती है, तो तुम लोग ब्यूटी पार्लर चले जाना। मैं टैक्सी लेकर आ जाऊंगी।” अक्सा यह कहकर गाड़ी से उतर गई थी। यह कमर्शियल इमारत थी और काफ़ी लोग अंदर जा रहे थे।
“फ्लैट्स किस मंजिल पर है।” अक्सा ने चौकीदार से पूछा।
“बीबी इस इमारत में कोई फ्लैट नहीं है। बस ऑफिस है।”
अक्सा के पैरों तले जमीन निकल गई। उन्होंने हवस बहाल रखते हुए एक बार फिर उससे पूछा, “नहीं ऑफिस तो ग्राउंड फ्लोर पर होंगे। ऊपर वाली मंजिल पर फ्लैट होंगे?”
“बीबी ये इमारत मेरे सामने बनी थी। मैं पंद्रह साल से यहाँ हूँ। यहाँ सारी मंजिलों पर ऑफिस है। फ्लैट कोई नहीं। ऊपर वाली दो मंजिलों तो इसी कंपनी ने ले रखी है।” उसने एक मल्टीनेशनल कंपनी का नाम बताया, “नीचे की दो मंजिलों पर भी सिर्फ ऑफिस हैं। फिर भी अगर आपको यकीन नहीं आता, तो आप अंदर जाकर पता कर ले।” अक्सा को लगा था, जैसे उनके सिर पर आसमान गिर पड़ा हो। वह तकरीबन भागती हुई वापस कार पार्किंग में आई।
“चौकीदार कह रहा है कि उस इमारत में कोई फ्लैट नहीं है, सिर्फ ऑफिस है।” उन्होंने बौखलाये हुए अक्सा और मरियम को बताया। वह दोनों गाड़ी से उतर आई थी।
अज़ीम की बीवी भी बौखलाई हुई थी। वह तीनों इमारत के अंदर गए और वहाँ उन्होंने जिससे भी पूछा था, सबसे यही कहा था कि वहाँ कोई फ्लैट नहीं है सिर्फ ऑफिस हैं। तीनो बेहद परेशान होकर इमारत के अंदरूनी दरवाजे पर बैठे गार्ड के पास गई और उन्होंने सारा का हुलिया बताकर उसके बारे में मालूमात लेने की कोशिश की। मगर वह भी सारा के बारे में कुछ नहीं बता सका।
“आप ख़ुद ही देख ले। इस इमारत में इतनी ज्यादा औरतें आती है, हम किस किस को याद रख सकते हैं।” गार्ड ने उनसे कहा।
उन तीनों के चेहरों पर हवाइयाँ उड़ने लगी।
“अम्मी! आप आप और अंकल अज़ीम को रिंग कर दें। वही कुछ कर सकते हैं।” अफ़सा ने माँ को समझाया। एक पब्लिक कॉल ऑफिस से फोन करके उन्होंने अज़ीम को बुलाया और वह आधा घंटे में वहाँ पहुँच गये। उन्होंने भी चौकीदार और गार्ड से सारा के बारे में कुछ जानने की कोशिश करनी चाही, मगर वह भी नाकाम रहे। सारा का कहीं कोई नामोनिशान नहीं था।
“तुम उसे यहाँ लेकर क्यों आई थी? तुमसे किसने कहा था कि उसे अकेले अंदर जाने दो?” वह बुरी तरह अक्सा पर बरस पड़े। अक्सा कुछ बोलने के काबिल नहीं रही। अज़ीम ने मोबाइल पर कॉल करके अक्सा के शौहर असद को भी वही बुलवा लिया था। उन तीनों को इंतज़ार करने का कहकर वह दोनों एक बार फिर अंदर गायब हो गए। एक घंटे बाद सुते हुए चेहरे के साथ उनकी वापसी हुई थी।
“अब और कोई चारा नहीं, सिवा इसके कि आफ़रीन को यहाँ बुला लिया जाये। अब तक तो बारात भी रवाना हो चुकी होगी। तुम लोग होटल चले जाओ क्योंकि वहाँ बारात के इस्तकबाल के लिए तो घर वालों में से किसी को होना चाहिए। अक्सा! तुम यहाँ रहो और मरियम तुम आफ़रीन को यहाँ भिजवा दो। उसे अभी सारा की गुमशुदगी के बारे में मत बताना। सिर्फ यह कहना कि अज़ीम ने किसी ज़रूरी काम के लिए यहाँ बुला लिया है और किसी से भी सारा के बारे में कुछ मत कहना। बस यही कहना कि वह अभी ब्यूटी पार्लर में है और अक्सा उसके पास है। अज़ीम ने उन्हें हिदायत दी और फिर उन्हें भिजवा दिया।
आधा घंटा बाद आफ़रीन भी आ गए। वह काफ़ी परेशान नज़र आ रहे थे। शायद वह समझ नहीं पाए थे कि उन्हें वहाँ क्यों बुलाया गया था। अज़ीम भाई ने उनका पूरा वाक्य दर वाक्य बता दिया था और उनका चेहरा ज़र्द पड़ गया था।
“यह कैसे हो सकता है? सारा कहाँ जा सकती है? अक्सा कहीं तुमने तो उसे कुछ नहीं बताया।” आफ़रीन का ज़ेहन फौरन अक्सा की तरफ गया था।
“नहीं आफ़रीन! यकीन करो। मैंने उसे कुछ नहीं बताया। मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा कि वह अचानक क्यों गायब हो गई।” अक्सा ने सफाई पेश करने की कोशिश की।
“ख़ुदा खैर…अक्सा! अगर यह सब तुमने किया है, तो ऐसा मत करो। वहाँ पूरा खानदान इकट्ठा है। मेरे सब दोस्त, अहबाब, मिलने वाले जमा हैं। मैं उनके सामने कैसे करूंगा।” आफ़रीन अब्बास ने मिन्नत-आमेज़ (याचनापूर्ण) अंदाज में अक्सा से कहा।
“आफ़रीन! मेरा यकीन करो। मैं कसम खाने को तैयार हूँ कि सारा को मैंने नहीं भेजा। वह अपनी मर्ज़ी से गई है। गलतबयानी कर के गई है कि यहाँ उसकी एक दोस्त का फ्लैट है। तुम क्या समझते हो, उसके चले जाने से सिर्फ तुम्हारी रुसवाई हुई है। नहीं आफ़रीन! हम भी किसी का सामना नहीं कर सकेंगे।” अक्सा बे-इख्तियार रो पड़ी।
आफ़रीन उन्हें बेबसी से देख कर रह गये। कुछ देर तक उन्होंने भी एक हल्की-सी उम्मीद में उसकी इमारत में उसे ढूंढने की कोशिश की और फिर बिला-आखिर अपने एक दोस्त को फोन करके पुलिस को बुलवाया। पुलिस की थोड़ी सी तबीयत से ही यह पता चल गया था कि वह सामने वाले गेट से दाखिल होने के बाद अकबी (पिछले दरवाज़े) गेट से बाहर निकल गई थी। और वो वहाँ से आसानी से जा सकती थी।
शाम हो चुकी थी और वह वहाँ से वापस आ गए थे। आफ़रीन ने होटल वापस आकर हैदर को एक कमरे में बुलाया और उसे सब कुछ बता दिया। वह सकते में आ गया।
“पापा! यह कैसे हो सकता है? यह कैसे मुमकिन है?” उसे यकीन नहीं आ रहा था, “वह कहाँजा सकती है और क्यों जायेगी।” वह रोआंसा हो गया, “मुझे बतायें मैं क्या करूं? मैं लोगों के सामने कैसे जाऊं?”
“हैदर! ख़ुद पर काबू पाओ। अक्सा सबसे कह रही है कि सारा को फूड प्वाइजनिंग हो गई और इस वजह से उसे हॉस्पिटल एडमिट करवाना पड़ा है। हम भी सबसे यही कहेंगे।”
“पापा! लोग बेवकूफ नहीं है। आपको क्या लगता है, वे इस बात पर यकीन कर लेंगे? मैं उनके सवालों का जवाब कैसे दूंगा? मुझे सच बतायें, वो क्यों गई है? ऐसा क्यों हुआ है?” हैदर को लग रहा था, उसका नर्वस ब्रेकडाउन हो जायेगा।
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