चैप्टर 11 वापसी : गुलशन नंदा का उपन्यास | Chapter 11 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda Online Reading

Chapter 11 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda

Chapter 11 Vaapsi Novel By Gulshan Nanda

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ऑफिसर्स मैस में कर्नल चौधरी को दी जाने वाली विदाई की पार्टी पूरे यौवन पर थी। व्हिस्की और कोल्ड ड्रिंक से गिलास लोगों के हाथों में चमक रहे थे। अफसरों की पत्नियाँ और कुछ अतिथि रमणी महफिल की शोभा को चार चाँद लगा रही थीं। पश्चिमी संगीत के धीमी मधुर ध्वनि हॉल में गूंज रही थी। इसके साथ लोगों की बातचीत और ठहाके तथा गिलासों की खनक अनोखा समा उत्पन्न कर रही थीं।

रशीद गुरनाम को साथ लिए हुए सभी अफसरों से उसका परिचय करा रहा था। और गुरनाम हर मिलने वाले के साथ अपना गिलास टकराकर पीता जा रहा था। अब तक वह काफ़ीशराब पी चुका था और थोड़ा बहकने भी लगा था। रशीद ने उसे संभालकर साथ में जाकर कोने में रखे एक सोफे पर बिठा दिया और बैरे को ताकीद कर दी कि उसका ध्यान रखे।

इस बीच रशीद की दृष्टि बार-बार मुख्य प्रवेश द्वार की ओर जाती और निराश लौट आती। उसे पूनम की प्रतीक्षा थी, जो अभी तक नहीं आई थी। कर्नल चौधरी ने उसकी व्याकुलता को अनुभव करते हुए पूछा, “क्या बात है कैप्टन?”

“कुछ नहीं सर!”

“ज़रूर कोई बात है। मैं देख रहा हूँ, तुम पार्टी इंजॉय नहीं कर रहे हो।”

“यह बात नहीं सर! मुझे वास्तव में अपने फियांसी की प्रतीक्षा है। वह पार्टी में आने वाली थी।”

“तो यंग मैन जाओ, उसे उठा लाओ।”

“नहीं सर! वह आप ही आ जायेगी।”

“डोंट बी क्रुएल टू लव।” कर्नल ने उसका कंधा थपथपाते हुए कहा।

“कुछ देर और प्रतीक्षा करता हूँ। नहीं आई, तो चला जाऊंगा।” रशीद ने कर्नल के हाथ से गाली गिलास लेकर भरा हुआ गिलास उसे देते हुए कहा।

कर्नल चौधरी ने चमकती आँखों से घूरते हुए पूछा, “तुम्हारा गिलास कहाँ है।”

“आज नागा है सर। मंगल का व्रत है मेरा।”

“ओ आई सी! तो कब से रिलीजियस बन गये?”

“जब से पाकिस्तान से लौटा हूँ। कैद के एकाकीपन ने भगवान के निकट कर दिया है सर।”

कर्नल चौधरी जो नशे की तरंग में थे, रशीद की बोर कर देने वाली बात सुनकर खिसककर दूसरी ओर चले गये। रशीद मुस्कुराकर जवान अफसरों के एक झुरमुट में जा मिला। वह किसी से कुछ बात कर रहा था कि अचानक उसकी पीठ पर धीरे से उंगली का टहूका लगा। उसने पलट कर देखा, रुखसाना जॉन के पास खड़ी मुस्कुरा रही थी। वह अभी-अभी पार्टी में आये थे। रशीद ऐसी घनिष्ठता से उन्हें मिला, मानो बहुत देर के बिछड़े दोस्तों से मिला हो। फिर वह संकेत से उन्हें एक एकांत कोने में ले गया।

“सब ठीक है ना मेजर! आप कुछ परेशान से मालूम होते हैं?” जॉन ने धीरे से पूछा।

“यू हैव टू बी केयर फुल जॉन।” रशीद ने इधर उधर देखते हुए धीमे स्वर में कहा।

“क्यों क्या हुआ?”

“भारत सरकार को हमारे रिंग का पता चल गया है।”

“वह कैसे?” रुखसाना ने घबराकर पूछा।

“इसका भेद जानने के लिए उन्होंने कैप्टन गुरनाम तो यहाँ भेजा है।”

“लेकिन आपको कैसे पता चला?” रुखसाना ने जल्दी से पूछा।

“गुरनाम रणजीत का दोस्त है ना। वह मुझे रणजीत समझकर मेरे यहाँ ही ठहरा हुआ है।”

“तो यह उसी ने आपको बताया?” जॉन ने चिंतित स्वर में पूछा।

“हाँ और यह भी कि उस रिंग के बारे में तहकीकात करने यहाँ आया है, जो कश्मीर में पाकिस्तान के लिए जासूसी कर रहा है। वह यहाँ ड्यूटी पर है, लेकिन रहेगा सिविलन ड्रेस ही में।”

“तो हमें क्या करना होगा?”

“ज़रा होशियार रहना होगा। आदमी चालाक और तजुर्बेकार है। मिलिट्री में आने से पहले ये इंटेलिजेंस ब्यूरो में था।”

“क्यों ना हम अपना अड्डा यहाँ से बदल लें।” रुखसाना ने राय दी।

“कोई ज़रूरत नहीं है।” जॉन झट से बोला, “सिर्फ कोड नंबर मालूम होने से क्या होता है? पीर बाबा पर किसी को शक नहीं हो सकता। देखते हैं, अगर ज़रूरत समझेंगे, तो अड्डा बदल दिया जायेगा।”

“यह ठीक है।” रशीद ने उसका साहस बढ़ाने के लिए कहा और फिर मुस्कुराते हुए बोला, “चलो, तुम्हें उस जासूस से मिला दूं, जो तुम्हारी खोज में कश्मीर आया है।”

वह जॉन और रुखसाना को लेकर उधर चला आया, जहाँ पर गुरनाम को बैठा आया था। गुरनाम वहाँ अकेला नहीं था, बल्कि दो-चार अफसरों को घेरे अंट-शंट बहस कर रहा था। रशीद ने उसे अपनी और आकर्षित करते हुए जॉन और रुखसाना का परिचय कराया। गुरनाम बड़े तपाक से उन दोनों से मिला और जब रशीद ने उसे जॉन और रुखसाना के आपसी प्रेम संबंध के बारे में बताया, गुरनाम ने बड़े उत्साह से उन दोनों को बधाई दी और उनको अपने पास में बैठा कर उनके रिश्ते की ख़ुशी में जाम पिया। रशीद ने जॉन को आँख से कुछ संकेत किया और हँसते हुए बोला, “देखो अब मेरा दोस्त हम दोनों के हवाले हैं। इसकी खातिर में कोई कमी ना रहे।”

“चिंता मत करो। कैप्टन तुम्हारा दोस्त हमारा दोस्त है।” जॉन ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया।

रशीद वहाँ से हटकर अफसरों के झुरमुट में जा मिला। तभी अचानक उसकी दृष्टि प्रवेश द्वार की ओर उठ गई और वह चौंक पड़ा। पूनम द्वार में खड़ी चार ओर दृष्टि दौड़ा कर उसे ढूंढ रही थी। उसकी सज-धज देखकर क्षण भर के लिए तो रसीद की आँखें चौंधिया गई। उस दिन पूनम वही सफेद रेशमी साड़ी पहने हुए थी,  जो आज रशीद ने उसे भेंट में दी थी। सुंदर साड़ी में बिजली के प्रकाश में इस रंग भरी सभा में वह सबसे सुंदर और आकर्षक लग रही थी, मानो उजाले बर्फ से पंखों में आकाश से कोई अप्सरा उतर आई हो।

रशीद कुछ देर खड़ा एकटक उसके यौवन को निहारता रहा। यूं तो उसने पूनम को कई बार देखा था, किंतु हर बार उसे किसी दूसरे की प्रेमिका मानकर तभी गहराई से उसने दृष्टि नहीं डाली। लेकिन आज उसका प्रलय ढाने वाला सौंदर्य देखकर वह अपने दिल पर नियंत्रण न रख सका। उसकी दृष्टि उसके सुंदर मुखड़े से फिसलती हुई उसके शरीर की पूरी भौगोलिक रेखाओं को नापने लगी। तभी पूनम की निगाह उस से टकराई और वह चौक पर एकाएक सचेत हो गया। तेज-तेज कदमों से चलता हुआ वह उस तक पहुँचा और मुस्कुराती आँखों से उसका स्वागत करता हुआ बोला, “मैं कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूँ।”

“प्रायः तो मैं ही आपकी प्रतीक्षा करती थी। इसलिए आज का श्रेय आप ही ले लीजिये।” पूनम मुस्कान की बिजलियाँ गिराती हुई बोली।

“तुम्हारे लिए तो सरल सी बात हुई और यहाँ एक-एक पल एक बरस के बराबर बीता है।”

“चलिए अब तो मैं आ गई। क्या खिला-पिला रहे हैं?”

“आओ…अंदर आओ! आंटी को नहीं लाई?”

“आपने उन्हें इनवाइट ही कब किया था?”

“अरे वाह कमाल करती हो! तुम्हारे साथ तो उन्हें आना ही चाहिए था। अपनों में भी कहीं फॉर्मेलिटीज़ बरती जाती हैं।” रशीद खिसियाकर बोला।

पूनम उसकी खिसियाहट देख कर मुस्कुरा दी और जल्दी से बोली, “अरे नहीं! मैं तो मज़ाक कर रही थी। वास्तव में उन्हें पार्टियों इत्यादि में जाना अच्छा नहीं लगता।”

पूनम के आते ही पार्टी में जैसे नवजीवन फूंक गया हो। नशे में झूमते अफसरों ने प्रशंसा से उस परी जैसी सुंदर रमणी को देखा और कुछ एक ही पत्नियों ने अपने पतियों की भूखी नज़रों को ताड़ते हुए नाक-भौं चढ़ा ली। कर्नल चौधरी ने रशीद के उत्तम चुनाव की प्रशंसा करते हुए आगे बढ़कर पूनम का हाथ थामा और स्टेज पर ले जाकर ऊँचे स्वर में रणजीत की मंगेतर के रूप में सबसे उसका परिचय कराया। हॉल तालियों के शोर से गूंज उठा।

लोगों से मिल चुकने के बाद पूनम जमघट से थोड़ा अलग हटकर खड़ी हो गई। नशे की तरंग में कुछ अफसरों की बेबाकी के लिए रशीद ने उससे क्षमा मांगना चाहा, तो हम मुस्कुरा कर बोली, “क्षमा मांगने की क्या बात है? आप तो ऐसे कह रहे हैं, जैसे मैं पहली बार ऐसी पार्टियों में सम्मिलित हुई हूँ। याद नहीं, जब आप पहली बार मुझे पालम मैस वाली पार्टी में साथ ले गए थे?”

“तब की बात और थी।”

“क्यों?”

“तब मैं तुम्हें केवल एक प्रेमिका के रूप में देखता था।”

“और अब!”

“अब…अब…अब मैं तुम्हें अपने जीवन का एक अंग समझता हूँ।”

रशीद की उस दर्शनमयी बात में पूनम को क्षण भर  के लिए स्थिर कर दिया। वह ध्यान से उसके चेहरे को देखती हुई सोचने लगी कि आज से पहले तो कभी उसने इतनी गंभीर बात नहीं कही थी।

वह कुछ कहना चाहती थी कि एक गरजते हुए कर्कश स्वर ने उनके बीच छाई निस्तब्धता को झकझोर कर रख दिया। यह गुरनाम की आवाज थी, जो जॉन और रुखसाना से किसी बात पर उलझ पड़ा था। वह जॉन का गिरेबान पकड़कर गुस्से में चिल्ला रहा था, “ओ लाट साहब के बच्चे…मैं तेरे ढिबरी टाइट कर दूंगा। मुझे बरस दो बरस में बस एक ही बार गुस्सा आता है और जब गुस्सा आता है, तो मैं खून कर देता हूँ।”

इससे पहले कि लोग झगड़े का कारण जान पाते, रशीद झपट कर उनके पास जा पहुँचा। उसने गुरनाम से जॉन का गिरेबान छुड़ाया और उसे खींचता हुआ हॉल से बाहर ले जाने लगा।  गुरनाम रशीद के साथ घिसटता हुआ चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था, “क्रिस्तान है साला। अंग्रेज का पिट्ठू। इसे निकालो यहाँ से। बाहर निकालो।”

रशीद से खींचता हुआ बाहर बगीचे में ले गया और उसे शांत करने के लिए बोला, “हाँ हाँ! तुम ठीक कहते हो गुरनाम। यह अपने आप को अंग्रेज ही समझता है। तुम चिंता मत करो। मैं उसका दिमाग ठीक कर दूंगा।”

“केवल दिमाग ठीक मत करो, मार डालो साले को, जान से मार डालो।”

“हाँ हाँ! मार डालूंगा अच्छा तुम अब जाओ। घर जाकर आराम करो।”यह कहते हुए रचित ने उसे ले जाकर उसके जीप गाड़ी में बिठा दिया। फिर उसने इधर उधर देखा, तो कुछ दूर बरामदे में उसे शाहबाज खड़ा दिखाई दिया। रशीद ने उसे बुलाकर गुरनाम को घर छोड़ आने का आदेश दिया। शाहबाज उसकी बात सुनकर कुछ दुविधा में पड़ गया तो रशीद बोल उठा, “घबराओ मत! मैं जानता हूँ, तुम सिंधु साहब के ड्राइवर हो न….मैं उनसे कह दूंगा तुम्हें अपने काम से भेजा है।”

शाहबाज ने रशीद की जीप में बैठकर स्टेयरिंग संभाल लिया। गुरनाम ने  मुश्किल से नशे से बोझिल आँखें खोलकर शाहबाज को देखा और लड़खड़ाती आवाज में बोला, “यह कौन है?”

“दोस्त…दुश्मन नहीं।” रशीद ने उसके कोट के बटन ठीक करते हुए शाहबाज को संकेत किया और उसने जीप आगे बढ़ा दी। रशीद ने संतोष की सांस ली और मैस में लौटा आया।

जॉन रुखसाना के पास आकर उसे क्षमा मांगी, “आई एम सॉरी जॉन! उसने बहुत पी ली थी।”

“इट्स ऑल राइट! कसूर मेरा ही था, जो उससे उलझ गया।”

“क्या बात हुई थी?” रशीद ने झगड़े का मूल कारण जानना चाहा।

“यूं ही नशे की तरह में रुखसाना से कुछ कह बैठा था।”

“दरअसल शराब उसकी कमजोरी है। पीने लग जाता है, तो भूल जाता है, वह कहाँ है? क्या कर रहा है?”

“कौन था वह रणजीत?” पूनम ने बीच में आकर मधुर स्वर में पूछा।

“अपना दोस्त गुरनाम!”

“कौन गुरनाम?”

“अरे वही कैप्टन गुरनाम! तुम्हें तो अच्छी तरह जानता है।”

“लेकिन मैं तो उस से कभी नहीं मिली।” वह आश्चर्य से बोली।

रशीद को पूनम का उत्तर सुनकर एक झटका सा लगा, लेकिन इससे पहले कि वह उसे उलझन में डाल दे, उसने बात का विषय बदलते हुए पूनम से पूछा, “क्या लोगी पाइन एप्पल जूस…लेमन स्क्वैश?”

“पाइन एप्पल जूस!”

पूनम का उत्तर सुनते ही रुखसाना काउंटर से जाकर पाइन एप्पल जूस के दो गिलास ले आई और रशीद और पूनम को उसने एक एक गिलास थमा दिया। जॉन ने अपना व्हिस्की का गिलास उठाया और आधा रुखसाना की खाली गिलास में उड़ेल दिया। चारों गिलास चीयर्स की आवाज के साथ टकराए और उन चारों के होंठ तर करने लगे।

ज्यों ही घड़ी ने ग्यारह बजाये ‘बॉटम अप’ की ध्वनि के साथ सबने अपने गिलास खाली कर दिये। यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर ने सबको संबोधित करते हुए कर्नल चौधरी को दी गई पार्टी के बारे में कुछ शब्द कहें और उनकी फौजी सेवाओं तथा चरित्र की जी खोलकर सराहना की। आखिर में रात्रि खाने की घोषणा कर दी।  खाने की मेज पर कश्मीरी, पंजाबी और अंग्रेजी खाने पहले ही चुन दिए गए थे। खाने की घोषणा के बाद सभी उस पर बढ़ गये।

रशीद पूनम के साथ मेज तक आया और खानों तक पहुँचने में उसकी सहायता करने लगा। पूनम को इस पार्टी की चहल-पहल बहुत भली लग रही थी। खाने की प्लेट हाथ में लिए वह एक ओर खड़ी महिलाओं के पास चली गई। सभी महिलायें शायद पुरूषों के अधिक पीने पिलाने से ऊब चुकी थी और अब खाना खाती हहुई चहकने लगी थी। वही घिसे-पिटे औरतों के विषय चल रहे थे। किसी की साड़ी या गहने की प्रशंसा, किसी के फैशन पर टिप्पणी, कोई रसोईघर का वर्णन, आया, नौकरियों की बातें और अपने पतियों के गुणों की चर्चा।

पूनम चुपचाप खड़ी सबकी बातें सुन रही थी और मन ही मन अपने भावी जीवन के बारे में सोच रही थी। जब उसका रणजीत से ब्याह हो जायेगा। वह भी गृहणी बन जायेगी और सहेलियों से यही बातें किया करेगी।

“तुम इन चहकती बुलबुलों में चुपचाप खड़ी क्या सोच रही हो?” अचानक रशीद ने उसके पास आकर पूछा।

“घर संसार के बारे में!”

“घर संसार!” रशीद ने आश्चर्य से दोहराया।

“हाँ! उस जीवन के बारे में विचार कर रही हूँ, जब मेरे सिर पर भारी उत्तरदायित्व होगा। सुबह से शाम तक चौके की चिंता, नौकरों पर दृष्टि, मेहमानों की देखभाल, बच्चों का ध्यान, घर की सफाई, महीने भर के बजट का नापतौल। कहिये कैसा रहेगा यह जीवन?”

“तुम तो बहुत दूर की सोचने लगी।” रशीद ने कुछ बोझिल हुए स्वर में कहा।

पूनम ने गहरी दृष्टि से उसे देखा और झट अपनी प्लेट से एक ग्रास उठा कर उसके मुँह में ठूंसते हुए बोली, “शायद तुम यह सब कुछ नहीं सोचते होगे। मैं तो रात भी उस दिन की कल्पना में डूबी रहती हूँ, जब तुम तुम न रहोगे और मैं मैं न रहूंगी।”

तभी पास खड़ी कुछ औरतों की हँसी ने उन्हें चौंका दिया। वे लोग उसी की बात सुनकर हँस पड़ी थी। रशीद कुछ सोच कर वहाँ से खिसक गया, किंतु पूनम ठीठ बनी वहीं खड़ी रही और औरतों की ओर पलट कर बोली, “इट्स जस्ट द बिगिनिंग।”

पार्टी के बाद जब रशीद पूनम को छोड़ने उसके घर की ओर जा रहा था, तो रास्ते में उसके साथ फ्रंट सीट पर बैठे हुए पूनम अपने कुछ अधिकारों का प्रयोग करने लगी। वह अपने सिर से खिसकते-खिसकते बिल्कुल उससे सट गई और फिर धीरे से अपना सिर रशीद के कंधे पर टिका दिया।

पूनम की लहराती जुल्फें बार-बार उड़कर रशीद के चेहरे पर आ जाती और वह उन्हें प्यार से हटा देता। पूनम इस खेल से आनंदित हो रही थी। उस पर एक नशा सा छाने लगा था।

रशीद रात के सन्नाटे में धीमी गति से जीप गाड़ी चलाता हुआ चश्माशाही की टूरिस्ट लॉज की ओर बढ़ रहा था। उसकी दृष्टि सामने सड़क पर थी, जहाँ चिनार की लंबी परछाइयों के कारण अंधेरा था। गाड़ी की हेडलाइट का प्रकाश उस अंधेरे को चीरता चला जा रहा था।

पूनम की निकटता की गर्मी और कोमलता से एकाएक उसकी कल्पना उसे मरी की सुंदर वादियों में ले गई, जहाँ पहली बार सलमा के साथ हनीमून मनाने गया था। सलमा को रात के सन्नाटे में ड्राइव करने का बड़ा शौक था और वह रसीद को मजबूर करके मीलों दूर कश्मीर के रास्ते पर निकल जाती थी। चांदनी रात का वह दृश्य उसकी आँखों के सामने घूमने लगा, जब चिनार की लंबी परछाइयों के तले उसे अपनी गाड़ी में बैठाये वह न जाने किस मंज़िल की ओर दौड़ा चला जा रहा था। उस रात सलमा की जुल्फ़ें इसी प्रकार और उनके चेहरे को छू रही थी और उनकी सुगंध सारे वातावरण को विभोर सा कर रही थी। प्रतिक्षण दोनों की कामनायें तरुण सांसे तेज हो जा रही थी। इस उमड़ते हुए भाव के तूफान को नियंत्रित करने के लिए सलमा ने एक प्यार भरा गीत छेड़ दिया था।

रशीद उस मधुर गीत की कल्पना में खोया हुआ आगे बढ़ता जा रहा था कि अचानक एक मोड़ से एक ट्रक उसके सामने आ गया। ट्रक की तेज रोशनी और चिरमिराती ब्रेकों की चीख ने उसे कंपकपा दिया, लेकिन वह जल्दी संभल गया और उसने गाड़ी को सड़क के नीचे उतार दिया। अनायास उसके लरजते होठों से सलमा का नाम निकल गया।

एक चीख के साथ पूनम ने अपने आप को संभाला और धुंधली रोशनी में ध्यान से रशीद के चेहरे को देखने लगी। उसके माथे पर पसीने की बूंदें उभर आई थी, वह अब तक अपनी घबराहट पर नियंत्रण न पा सका था। पूनम ने दाएं-बाएं झांक कर देखा। जीप डल झील के बिल्कुल किनारे एक पेड़ के तने के साथ लगी खड़ी थी। कुछ देर तक दोनों पर एक अजीब सी कंपकंपी सी छाई रही। फिर पूनम ने कांपते स्वर में पूछा, “क्या हुआ?”

“कुछ नहीं! न जाने किस दिन में ड्राइव कर रहा था। ट्रक की ओर ध्यान ही नहीं गया।”

“लेकिन सलमा कहकर किसे पुकार रहे थे?” पूनम ने संदेहमयी दृष्टि से उसे देखते हुए पूछा।

“सलमा रशीद की पत्नी है।” रशीद ने झट कहा और पूनम के चेहरे पर आई लटें हटाता हुआ बोला, “वही दोस्त, जिसने मुझे अपनी जीप में बॉर्डर तक पहुँचाया था, तब सलमा भी उसके साथ थी।”

“वह रशीद, जिसने आपकी सुरक्षा के लिए वह लॉकेट दिया था!”

“हाँ वही! उस दिन भी एक ऐसी ही घटना होते-होते रह गई थी और मैं चीख पड़ा  था – सलमा। आज भी अनायास उसी का नाम जुबान पर आ गया। तुम्हें बुरा लगा क्या?”

“नहीं तो!” पूनम ने हिचकिचाते हुए कहा और फिर क्षण भर रुक कर बोली, “मैंने आपसे वह लॉकेट ले लिया था। शायद इसी कारण यह दुर्घटना हो गई। लीजिये इसे आप दोबारा पहन लीजिये।” यह कहते हुए पूनम ने अपने गले से लॉकेट उतार कर रशीद के गले में डाल दिया।

रशीद, जो अभी तक यादों के सागर से निकल ना पाया था, जंजीर से लटके लॉकेट को हाथ में थाम कर अचानक कांप उठा। लॉकेट में ‘अल्लाह’ के स्थान पर ‘ओम’ का शब्द जगमगा रहा था। लॉकेट में किये गए इस परिवर्तन से उसका अंतर जल उठा था। वह अभी यह निश्चय ही नहीं कर पाया था कि पूनम की इस हरकत पर उसे क्या कहें कि वह स्वयं ही मुस्कुरा कर बोल उठी, “मैंने केवल अल्लाह को पिघलाकर ओम करवा लिया है।”

“लेकिन ऐसा तुमने क्यों किया?” रशीद अपने क्रोध को दबा ना सका और बोला, “तुम नहीं जानती, यह लॉकेट मुझे कितना प्रिय है। इसमें मेरे दोस्त का प्यार और पवित्र भावनायें गुंथी हुई है।”

“तो क्या हुआ? अल्लाह और ओम में अंतर ही क्या है?” पूनम ने उसे समझाना चाहा।

“अंतर नहीं है, तो तुम्हें पिघलवाने की क्या ज़रूरत थी? इससे तो यही स्पष्ट होता है कि तुम भी संकीर्ण मन की हो। मुसलमानों से घृणा करती हो।”

“मुझे तो किसी जाति से घृणा नहीं, लेकिन मैं यह देख रही हूँ कि पाकिस्तान में रहने के बाद आप को हिंदू धर्म से ज़रूर घृणा हो गई है। आपके विचार और दृष्टिकोण बदल गए हैं।”

रशीद को अनुभव हुआ जैसे पूनम ने उसकी दुखती रग पर उंगली रख दी हो।   उसने अपने आप को संभाला और बोला , “अच्छा रहने दो, अब जो हुआ वह हो गया।”

“नहीं! अब तो आपको अल्लाह वाला लॉकेट ही पहनना होगा।” पूनम ने कहा और अपने पर्स में से वह लॉकेट निकालकर रशीद के हाथ में थमा दिया और उसे ध्यान से देखते हुए फिर बोली, “मैंने तो केवल आपकी परीक्षा देने के लिए लॉकेट बदला था।”

“कैसी परीक्षा?” वह लॉकेट को उंगलियों से डोलते हुए घबराकर बोला।

“यही कि आपको एक दोस्त अधिक प्रिय है या प्रेमिका!” पूनम ने कहा और फिर अचानक कूदकर जीप गाड़ी से नीचे उतर गई।

रशीद ने आवाज देकर उसे रोकने का प्रयत्न किया। लेकिन पूनम ने पलटकर नहीं देखा और उस पगडंडी पर चलने लगी, जो उसके मकान की ओर जाती थी। जब तक पूनम दृष्टि से ओझल नहीं हो गई, रशीद वहीं खड़ा उसे देखता रहा।

पलटकर जब उसने जीप गाड़ी को देखा, तो इंजन पर पेड़ के तने की ठोकर लगने से गाड़ी से खौलता हुआ पानी बाहर आ चुका था और भाप ठंडी हवा में मिलती जा रही थी।

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