चैप्टर 16 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 16 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 16 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

Chapter 16 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

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उसकी आँख खुलते ही दर्द की लहर उसके सिर से पैर तक दौड़ गई। कमरे में अंधेरा था। कहीं से चिड़ियों के चहचहाने की आवाज आ रही थी। वह कालीन पर लेटी हुई थी। उसने आहिस्ता-आहिस्ता उठने की कोशिश की। पूरा सिर फोड़े की तरह दु:ख रहा था। किसी ना किसी तरह दु:ख बैठने के बाद उसने सिर दीवार के साथ लगा दिया। पिछली रात एक डरावने ख्वाब की तरह उसके सामने खड़ी थी। उसने रात के वाक्यात को याद करने की कोशिश की। बहुत देर तक उसे पीटते रहने के बाद ताया चले गए थे। फिर आहिस्ता-आहिस्ता बरामदे में खड़े लोग बात करते हुए गायब होने लगे। उन सब के जाने के बाद वह आहिस्ता-आहिस्ता खड़ी हुई थी और किसी ना किसी तरह खुद को अपने घर तक ले आई थी।

घर का दरवाजा खुला था। किसी कमरे से अम्मी और अक्सा के रोने और अज़ीम के बोलने की आवाज आ रही थी। वह कमरे में आ गई थी। पता नहीं कब अम्मी को उसके अंदर आने का पता चला था और वह ऊँचे आवाज में बोलते हुए उसके कमरे में आ गई थी।

“मुँह काला करने के बाद यहाँ क्या लेने आई हो? बेगैरत! जाओ जाकर कहीं डूब मरो।”

“मुँह काला मैंने नहीं किया। आप सबने मिलकर कर दिया है। आफ़रीन को आने दे। सबको पता चल जाएगा कि सच्चा कौन है और झूठा कौन।”

“हां आयेगा आफ़रीन। ज़रूर आएगा तुम्हारे मुँह पर थूकने। तलाक के कागजात तुम्हारे मुँह पर मारने। सबा तू तो मेरे घर के लिए सांप से भी बढ़कर जहरीली साबित हुई है। मैंने पैदा होते ही तेरा गला क्यों ना घोंट दिया।”

“घोंट तो दिया है अम्मी! चंद घंटे पहले सबने मिलकर मेरा गला ही तो घोंटा है। अब बचा क्या है, जिसका वावेला कर रही हैं।”

“इस बेशर्म को देखो। यह अभी भी मज़लूम बन रही है। अभी भी इंकारी है। मेरा बस चलता सबा तो मैं तुझे यह सब के सामने बीच सेहन में कोड़े मारती। तूने अपना मुँह इस दुनिया में खुद काला किया है। अगली दुनिया में अल्ला ताला करेगा। तू देखना सबा कितनी रुसवाई है तेरे लिए आगे।”

“अब कोड़ों कि ज़रूरत नहीं रही अम्मी! अब किसी चीजों की ज़रूरत नहीं रही। मुझे जितनी रुसवाई मिलनी थी, मिल गई। अब दूसरों कि बारी है। आपकी, उस खानदान के हर शख्स की, जिसने मुझ पर तोहमत लगाई।”

“कितना झूठ बोलेगी सबा! तू कितना झूठ बोलेगी. सबने देखा है तुझे आदिल के साथ उस कमरे से निकलते। सबने देखा है और फिर भी कहती गई कि तू सच्ची है।”

“हाँ सबने देखा है…सबने देखा है। बस अल्लाह ने नहीं देखा। तुम लोगों का देखना न देखना बराबर है। लोगों के देखने न देखने से मुझे फ़र्क नहीं पड़ता।”

वो बेसाख्ता चिल्लाने लगी थी। अक्सा अम्मी को उनके कमरे में ले गई। फिर कोई उसके कमरे में नहीं आया। उसे याद नहीं किस वक़्त उसकी आँख लग गई थी और अब सुबह हो चुकी थीं। कमरे में अंधेरा था। वो पर्दे खींचकर उस अंधेरे को खत्म करना नहीं चाहती थीं। उसे अब सिर्फ़ आफ़रीन का इंतज़ार था। सिर्फ़ वो था, जो अब उसकी ज़िन्दगी का फ़ैसला कर सकता था। उसे यक़ीन था, वो उस पर एतबार करेगा। वो उसे गुनहगार नहीं समझेगा।

वो उसी शाम आ गया था। ताई अम्मी को उसकी आमद के बारे में पहले से पता था और जो उन्हें उससे कहना था, वो सब कुछ भी ताई कह चुकी थी। उन्होंने उसका इस्तकबाल रोते हुए किया था और फिर आँसुओं और हिचकियों के बीच उस पर कयामत तोड़ी। आफ़रीन को यकीन नहीं आया। वो सांस रोक बेयक़ीनी के आलम में सब कुछ सुनता रहा। आदिल घर से गायब था और सारे सबूत सबा के ख़िलाफ़ थे, लेकिन वो एक बार सबा से पूछना चाहता था। वो उससे बात करना चाहता था। वो ताई अम्मी से सारा किस्सा सुनते ही उन्हीं कदमों पर सबा के घर आया और सबा उसे देखते ही फूट-फूट कर रोने लगी। उसकी हालत देख कर उसके दिल को कुछ होने लगा था। लेकिन वो जो कुछ उससे पूछने आया था, उसका ताल्लुक दिल से नहीं था।

“सबा मुझे बताओ, तुम ने क्या किया है?” वो दहशतज़दा था।

“आफ़रीन! मैंने कुछ नहीं किया। यक़ीन करो मैंने कुछ नहीं किया। मैं ऐसा कर सकती हूँ। क्या मैं तुम्हें धोखा दे सकती हूँ? क्या मैं तुम्हें धोखा दे सकती हूँ?”

“लेकिन सब लोग कह रहे है वो…”

“सब लोग झूठ बोल रहे हैं।” उसने बे-इख्तियार आफ़रीन की बात काट दी।

“क्या आँखों देखी झूठ हो सकती है।”

“आँखें कुछ नहीं दिखाती। आँखें तो सिर्फ़ वो देखती है, जो हमारा दिल, हमारा दिमाग देखना चाहता है।”

“सबा! आज फ़िलोसफ़ी मत बोलो। आज उस ज़ुबान में बात करो, जो मेरी समझ में आ जाये। जिससे मुझे यक़ीन आ जाये कि तुम बेगुनाह हो, तुमने कुछ नहीं किया।”

सबा को उसके लहजे पर शॉक हुआ। वो दस दिन पहले का आफ़रीन नहीं था, वो उसका साथ देने नहीं आया था। वो उसकी पारसाई (पवित्रता) का सबूत लेने आया था। उसने हारी हुई आवाज़ में पूरा वाक़या सुना दिया। उसका चेहरा बे-तासुर रहा। वो जान गई वो ये आखिरी बाज़ी भी हार चुकी थी।

“तुम्हारा मतलब है ये सब मेरी माँ ने करवाया है। है ना!”

सबा की बात खत्म होने पर उसने पूछा। वो चुप रही। वो जान गई थी कि ये सवाल नहीं था।

“अगर तुम और आदिल सच्चे हो और मेरी अम्मी झूठी है, तो आदिल कहाँ भाग गया। क्यों भाग गया? सामने क्यों नहीं आता? अपनी बेगुनाही साबित क्यों नहीं करता?” वो चिल्ला उठा।

वो चंद लम्हे कुछ नहीं बोल सकी।

“तो तुमने भी मान लिया कि मैं…”

आफ़रीन ने उसकी बात काट दी।

“मैंने कुछ नहीं माना, मगर तुम मुझे अपनी बेगुनाही का सबूत दो। मुझे सबूत दो इस बात का कि ये मंसूबा मेरी माँ ने बनाया है और तुम्हारा आदिल के साथ कोई ताल्लुक नहीं और तुम दोनों वहाँ…”

वो बात मुकम्मल करने के बजाय अपना सिर पकड़ कर कुर्सी पर बैठ गया।

“मेरे पास कोई सबूत नहीं है किसी बात का और मैं फिर भी कहती हूँ कि मैं बेकुसूर हूँ। मैंने कोई गुनाह नहीं किया है। हाँ, अल्लाह को पता है। वो जानता है। उससे पूछो।”

वो उसकी बात पर चिल्ला उठा, “ख़ुदा से कैसे पूंछूं? मैं कोई पैगम्बर हूँ?”

“लोग कहते हैं अल्लाह दिलों में बसता है। तुम अपने दिल से पूछो।”

“मैं दिल से कैसे पूछूं? मैं तुमसे क्यों ना पूछूं ।”

“मैं सच कहती हूँ, तुम्हें ऐतबार नहीं आता। मैं झूठ बोलूंगी, तुम्हें फ़ौरन यक़ीन आ जायेगा। तुम क्यों नहीं कह देते कि तुम्हें लोगों की बातों पर यक़ीन आ चुका है। मुझसे तो सिर्फ़ तस्दीक़ (पुष्टि, प्रमाण, सबूत) चाहते हो।”

वो होंठ भींचते हुए उसे देखता रहा, फिर खड़ा हो गया।

“तुम चाहती हो ना अल्लाह से पूछूं। मैं अल्लाह से ही हर बात का फैसला करवाऊंगा। क़ुरान लाऊंगा तुम्हारे सामने। उस पर हाथ रख कर कहोगी कि तुम बेगुनाह हो, तुमने कुछ नहीं किया?”

“अगर फैसला क़ुरान पर ही होना है, तो अपनी माँ को भी लाओ। पहले उनसे कहो कि वो क़ुरान पर हाथ रख कर कहें कि उन्होंने मुझे और आदिल को तुम्हारे कमरे में नहीं भेजा। उन्होंने ये सारा मंसूबा नहीं बनाया। और अगर वो क़ुरान पर हाथ रख कर ये सब ना कहें, तो फिर उन्हें भी सेहन के बीचों-बीच उसी तरह जूते मारा जाये, जैसे तुम्हारे बाप ने मुझे मारा है। बोलो लाओगे अपनी माँ को?”

आफ़रीन की आँखों में खून उतर आया था, “लाऊंगा! अपनी माँ को भी लाऊंगा।” वो दरवाजे से निकलने लगा, फिर जाते-जाते रुक गया।

“और सबा! अगर तुम झूठी हुई, तो मेरा हर रिश्ता, हर चीज से ऐतबार उठ जायेगा। यहाँ तक कि ख़ुदा से भी।”

वो कमरे से बाहर निकल गया था।

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