चैप्टर 27 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 27 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 27 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

Chapter 27 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

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“इसमें ऐतराज़ वाली बात कौन सी है? हर एक अपनी बच्ची का तहफ्फुज़ (हिफ़ाज़त, सुरक्षा) चाहता है। सारा के माँ-बाप नहीं है। रिश्ते के लिहाज़ से मैं ही उसकी सर-परस्त (अभिभावक, संरक्षक) हूँ। फिर अगर मैं उसकी सरपरस्ती (संरक्षण) के लिए ऐसी ज़हमत चाहती हूँ, तो इसमें क्या बुराई है?

अक्सा ने निकाह से कुछ देर पहले हक्क-ए-महर (बीवी का अपने शौहर से महर वसूल करने का हक) में आफ़रीन के घर का मुतालबा (मांग) किया था। आफ़रीन ने उसके मुतालबा (मांग) पर सबा का घर सारा के नाम कर देने की पेशकश की। लेकिन अक्सा सबा के घर के साथ-साथ आफ़रीन का घर भी सारा के नाम लिखवाना चाहती थी। आफ़रीन को इस पर भी कोई एतराज़ नहीं था, लेकिन हैदर इस पर बिगड़ गया।

“यह सब क्या हो रहा है पापा? ये कौन होती हैं, इस तरह की डिमांड करने वाली? पहले इन्होंने फौरन शादी का हंगामा खड़ा कर दिया था। मैंने आपके मजबूर करने पर इस पर रजामंदी ज़ाहिर कर दी और अब यह हक्क-ए-महर में बेजा मुतालबात (अनुचित मांग) पेश कर रही हैं। सारा के लिए पाँच लाख, जेवरात और उसकी अम्मी का घर हक मेहर में काफ़ी नहीं है, जो यह आपके घर के लिए कह रही हैं। मैं इनका यह मुतालबा (मांग) हरगिज़ नहीं मानूंगा, चाहे जो मर्ज़ी हो जाये। वह घर आपका है और मैं किसी सूरत में किसी और का होने नहीं दूंगा। इनको अगर इतनी चीजें कबूल नहीं है, तो यह अपनी भांजी की शादी कहीं और कर दे।”

वह बेहद गुस्से में था और किसी तौर पर आफ़रीन की बात मानने पर आमादा नहीं हो रहा था।

“हैदर! तुम ज़ज्बाती मत बनो। यह घर सारा के नाम कर देने से क्या फ़र्क पड़ेगा? यह घर मेरे नाम हो, तुम्हारे नाम हो या सारा के नाम, एक ही बात है। रहना तो हम तीनों को ही है यहाँ।” आफ़रीन ने उसे समझाने की कोशिश की।

“आपको फ़र्क पड़ता है या नहीं मुझे पड़ता है। जो चीज आपकी मेहनत की है, वह मैं या मेरी बीवी कैसे हथिया सकते हैं। इन्हें मुतालबात (मांग) मेरी हैसियत देखकर करना चाहिए, न कि आपकी हैसियत देखकर नहीं।” वह अब भी अपनी बात पर अड़ा हुआ था।

“हैदर! यहाँ बदला सारा की जात का है। मैं एक मकान की खातिर उसके निकाह पर झगड़ा नहीं करना चाहता। इस तरह शादी से इंकार करने पर तुम्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। मगर सारा को पड़ेगा और मैं ऐसा कोई काम नहीं होने दूंगा, जिससे उसकी फीलिंग हर्ट हो।”

उन्होंने किसी ना किसी तरह उसे समझा बुझा दिया था। लेकिन हैदर का दिल बुरी तरह खट्टा चुका था। वह पहले इतनी जल्दी शादी की वजह से बहुत ख़ुश नहीं था और अब अक्सा के ऐसे मुतालबात (मांग) ने रही-सही कसर पूरी कर दी थी। लेकिन उसने महसूस किया था कि आफ़रीन इस सूरते-हाल से ना तो परेशान थे और ना ही ना ख़ुश।

अक्सा ने वाकई शादी जल्दी करने के लिए शोर मचाया था। वह वापस जाने से पहले सारा की शादी कर देना चाहती थी। आफ़रीन की रज़ामंदी के बाद उन्होंने अपने भाई और बाप को भी अमेरिका से अपनी फैमिली के साथ बुलवा लिया था। आफ़रीन के इंकार के बावजूद उन लोगों ने सारा के लिए दहेज खरीदना शुरू कर दिया और उन्होंने सारा के लिए हर वह चीजें खरीदी थी, जिसकी उसे ज़रूरत हो सकती थी। निकाह मेहंदी से कुछ देर पहले किया गया था और दूसरी शाम सारा की रुखसती थी। आफ़रीन की बड़ी बहन ने हक्क-ए-महर के सिलसिले में अक्सा के मुतालबा (मांग) से सारा को भी आगाह कर दिया था  वह जहाँ परेशान हुई थी, वही बेहद शर्मिंदा भी थ। निकाह के बाद जब सब लोग कमरे से चले गए, तो उसने अक्सा से उस बात की शिकायत की, मगर उन्होंने उसकी बात यह कहते हुए सुनी-अनसुनी कर दी, “तुम अभी छोटी हो। दुनिया को समझ नहीं सकती हो। मैंने जो कुछ किया है, तुम्हारी महफूज़ मुस्तकबिल (सुरक्षित भविष्य) के लिए किया है और ठीक किया है। यह कोई ऐसी बात नहीं है जिस पर तुम या कोई और ऐतराज़ करें।”

यह कहकर वह कमरे से निकलकर घर के बरामदे में आ गई। सामने सहन रोशनी से जगमग आ रहा था। मेहंदी आफ़रीन के घर के बजाय ताया के घर से सहन में आनी थी और वहीं पर तमाम रस्मात सर-अंज़ाम (पूरी करना) दी जानी थी। उसके बाद सबा के घर से उन सबने हैदर की मेहंदी लेकर ताया के घर जाना था, सारा इंतज़ाम सहन में किया गया था और उसे खूब सजाया गया था। हमेशा शादी की तक़रीबात (उत्सव) के लिए सहन को ही इस्तेमाल किया जाता था, क्योंकि वह बड़ा था और उसमें बहुत ज्यादा मेहमान बैठे जा सकते थे। एक थकावट की लहर उनके वजूद पर छाई जा रही थी। वह बरामदे में आकर सीढ़ियों पर बैठ गई।

“क्या बात है अक्सा, तुम यहाँ क्यों बैठी हो? तैयार क्यों नहीं हो रही?” अज़ीम ने अंदर से बाहर आते हुए उससे पूछा।

“अज़ीम मेरे दिल को कुछ हो रहा है। पता नहीं हम यह सब ठीक कर रहे हैं या नहीं। पता नहीं हमें सारा का रिश्ता हैदर के साथ करना चाहिए था या नहीं।” वह बेहद बेचैन थी।

“अक्सा! अब ऐसी बातें सोचने का वक्त नहीं है ना मौका। सारा का निकाह हो चुका है। कुछ देर बाद मेहंदी की रस्म अदा की जायेगी और कल शाम उसकी रुखसती है। फिर अब किसी बातों पर मलाल का कोई फायदा नहीं।” उन्होंने नरमी से बहन के कंधे पर हाथ रखते हुए उसे समझाया।

“हाँ बस मलाल ही तो नहीं जाता, मलाल ही तो नहीं जाता।” अक्सा की बेचैनी में कोई कमी नहीं आई।

“तुम परेशान मत हो। हैदर अच्छा लड़का है। सारा का ख़याल रखेगा। फिर सारा भी उसे पसंद करती है।”

“सिर्फ इसी एक वजह से, सिर्फ इसी एक वजह से, मैंने यह रिश्ता कबूल कर लिया। वरना अज़ीम मैं कभी सारा को इस ज़लील खानदान में जाने ना देती। यह लोग इस काबिल नहीं कि सबा की बेटी इनके पास जाये।”

अक्सा ख़ुद पर ज़ब्त नहीं कर सकी और रोने लगी। अज़ीम कुछ अफ़सुर्दगी (खिन्नता) से ख़ुद भी अक्सा के पास बैठ गए।

“अक्सा! जो कुछ हो चुका है, उसे भूलने की कोशिश करो।” उन्होंने बहन का हाथ थाम कर उसे चुप करने की कोशिश की।

“मैं क्या करूं अज़ीम? मुझे कुछ भूलता नहीं है। मुझे कुछ भूलता ही नहीं है। मुझे आज भी एक-एक बात याद है। एक-एक मंज़र नक्श है मेरे दिल पर। यही घर था। यही लोग थे। इसी तरह सब कुछ सजा हुआ था। इसी तरह सब लोग हँस बोल रहे थे, जब तायी अम्मी ने नीचे आकर चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया था। किसी की कुछ समझ में नहीं आया था। मैं भी अम्मी के साथ हवस-बाख्ता (डरी हुई) ऊपर गई थी और वहाँ तायी अम्मी ने उसे आदिल के साथ कमरे से निकाला था। मेरा दिल कह रहा था मेरी बहन ने कुछ नहीं किया, मगर वह इस कदर खौफ़ज़दा थी कि कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। उसे यक़ीन नहीं आया होगा कि तायी उसकी सास उसके साथ यह धोखा कर सकती है। आज आफ़रीन की बड़ी बहन को एक मामूली घर हक्क-ए-महर में देते हुए इतना एतराज़ हुआ कि वह यह बात बताने के लिए सारा के पास जा पहुँची और उस शाम वही दुपट्टे के बगैर सबा को धक्के देते हुए नीचे लाई और उससे नंगे सिर और नंगे पांव सहन में धक्का दिया था। मैं यहीं बैठी हुई थी, जहाँ आज बैठी हूँऔर मुझे लग भी रहा था, कोई मेरे वजूद को छुरी से काट रहा है। तुम भी तो खड़े थे ना? यहीं पास ही तो खड़े थे, जब ताया ने उसे सहन के बीचों-बीच जूते से मारना शुरू किया था। तुम्हें याद है ना? अम्मी अब्बू ने उसे कभी सख्त हाथ तक नहीं लगाया था और उस शक्स ने सबके सामने उसके सर पर जूते मारे थे और मैं अज़ीम! मैंने कुछ भी नहीं किया। मैं बस यही बैठी रोती-चीखती रही थी और सब लोग बरामदे में तमाशा देख रहे थे। किसी ने आगे बढ़कर ताया का हाथ रोकने की कोशिश नहीं की थी। याद है वह एक बार भी नहीं चीखी थी। उसने कितने ख़ामोशी के साथ से झुकाकर मार खाई थी। उसके साथ किसी ने अच्छा सुलूक नहीं किया था, ना हमने ना किसी और ने। तुम उसे जान से मार डाला चाहते थे, जब तायी अम्मी ने कुरान पर हाथ रखकर झूठी कसम खाई थी कि उन्होंने उसे और आदिल को आफ़रीन के कमरे में नहीं भेजा था और सबा ने कुरान पर हाथ रखने से इंकार कर दिया। फिर आफ़रीन ने उसी कमरे में उसे खड़े-खड़े तलाक दे दी थी। तब मेरा दिल चाहा था मैं सबा को मारूं। मुझे भी बाकी सब की तरह यक़ीन आ गया था कि वही मुज़रिम है, मगर को मुज़रिम नहीं थी। मुज़रिम तो हम थे। गुनाह तो हमसे हुए थे और यह खानदान तो सात पुश्तों तक सबा का मर्कूज़ रहेगा (लगे रहेंगे) । किस किस चीज का क़र्ज़ उतरेगा? ताया को ख़ुदमुख्तारी (स्वच्छंदता, आज़ादी) की बीमारी थी। फैसलों का शौक था। बड़ा गुरूर था अपने खानदान पर। वह किस-किस गुनाह का कफ्फारा अदा करेंगे (गुनाह का बदला देना)? सबा आपा को एक बूढ़े की दूसरी बीवी बना देने का? या सारा पर नाज़ायज औलाद का ठप्पा लगवा देने का? या शादी के चार माह बाद उसके तलाक होने जाने का? इस खानदान की झोली गुनाहों से भरी हुई है और हम…एक बार फिर उनसे रिश्ता कर रहे हैं। सारा को इस गंदगी में फेंक रहे हैं। यह लोग क्या इस काबिल है कि उन्हें माफ़ किया जाये। उनकी वजह से हम किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहे थे। उनकी वजह से हमें यह घर छोड़कर जाना पड़ा और यह सब देखो, यह सब कितने ख़ुश हैं, कितने मुतमइन (संतुष्ट) है। उन्हें एहसास ही नहीं है कि उन्होंने कितनी ज़िंदगियाँ बर्बाद कर दी है। यह तो इस शादी के जरिये अपने खुफ्फरे अदा कर रहे हैं। आकिबात (परलोक) संवार रहे हैं। वरना इन्हें सारा की कोई परवाह हो सकती है? “

“कुछ भी हो अक्सा! सारा के साथ हो सब नहीं हो सकता, जो सबा के साथ हुआ। उस वक्त हम बेबस थे। कुछ नहीं कर सकते थे। सबा को बचा सकते थे ना उसे तहफ्फुज़ (सुरक्षा) दे सकते थे। अब हालात पैसे नहीं है। अब हम सारा को सपोर्ट कर सकते हैं। फिर आफ़रीन और हैदर दोनों सारा का ख़याल रखेंगे। तुम परेशान मत हो अक्सा।”

अज़ीम ने उन्हें तसल्ली देने की कोशिश की। वह भाई के कंधे से लग कर रोने लगी। सहन में चहल-पहल बढ़ती जा रही थी। मेहंदी ले जाने लिए सब लोग ताया के घर इकट्ठे हो रहे थे। अक्सा की बड़ी बेटी बाहर आ गई।

“उफ्फो अम्मी! अब तो आ कर तैयार हो जाइए, वो लोग आने वाले हैं। जल्दी करें। अब यह रोना-धोना खत्म करें।”

वह आकर माँ का बाजू खींचने लगी। अक्सा आँखें पोंछते हुए तैयार होने के लिए अंदर आ गई। रात देर तक मेहंदी का हंगामा जारी रहा।

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