चैप्टर 10 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 10 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 10 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel 

Chapter 10 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel 

Chapter 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 12 | 13141516 17 | 181920 2122 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31

Prev Part | Next Part All Chapters

ह उस दिन सुबह से ही परेशान थी। ‘अगर अम्मी अपनी मर्ज़ी से शादी ना करती, तो आज मैं अम्मी के रिश्तेदारों का सामना करने से इस कदर परेशान ना होती।‘

वह बार-बार बेदिली से सोच रही थी। कुरान-खवानी सा-पहर के वक़्त थी और जो कि आज छुट्टी का दिन था, इसलिए हैदर भी घर ही था। मर्दों के बैठने का इंतज़ाम लॉन में टेंट लगाकर किया गया था। सारा को मुलाज़िमों को हिदायत नहीं देनी पड़ रही थी। वह किसी मशीन की तरह ख़ुद ही हर काम बांट रहे थे। लोगों के आने का सिलसिला आहिस्ता-आहिस्ता शुरू हो गया था। आफ़रीन खाने वालों का तारूफ़ करवा रहे थे। हर एक रस्मी से कलमात दोहराता और हाल में बैठ जाता।

“सारा! यह मेरी सबसे बड़ी बहन है।”

आफफ़रीन एक औरत के साथ उसके पास आये। वह औरत एकदम सारा से लिपट गई और उसने बुलंद आवाज में रोना शुरू कर दिया।

“सबा ने जिद पूरी कर ली। कितना समझाया था, कितना कहा था उससे मगर उसने बात नहीं मानी, वापस नहीं आई। अरे गलती इंसान से ही होती है, फिर तो…..”

“आपा! पिछली बातों को छोड़ें। माज़ी को रहने दें।”

“कैसे रहने दूं आफ़रीन! कैसे रहने दूं। मुझे समझ नहीं आता, मुझे सुकून नहीं मिलता, कोई ऐसे करता है, जैसे सबा ने किया। यह कोई उसके मरने की उम्र थी, मगर उस पर तो एक ही ज़िद….”

आफ़रीन ने जबरदस्ती उन्हें सारा से अलग किया। आफ़रीन उन्हें लेकर हॉल से बाहर चले गए। वह बोझिल दिल से वहीं दूसरी औरतों के पास बैठ गई।

“और अब वह आपा को समझायेंगे कि वह मेरे सामने मेरी माँ के माज़ी के बारे में कोई बात ना करें, क्योंकि उससे मुझे तकलीफ़ होगी। काश, यह बात एक बार अम्मी ने भी सोच ली होती कि इस तरह के रिश्ते औलाद के लिए कितना बड़ा अजब (अफ़सोसनाक, बुरा) बन जाते हैं।”

आयत-ए-करीमा का विर्द (कुरान की कोई आयत या दुआ के कालिमात का वजीफ़ा पढ़ना, दोहराना) करते हुए वह सिर झुकाए भीगी पलकों के साथ मसलसल (अनवरत) अम्मी के बारे में सोच रही थी।

थोड़ी देर बाद आफ़रीन की दूसरी दोनों बहनें भी आ गई थी, मगर बड़ी बहन की निस्बत वह सारा से बहुत मुहतज़ (खुश) और नॉर्मल अंदाज़ में मिली थी। उनके आने के चंद मिनट बाद आफ़रीन की बड़ी बहन दोबारा हॉल में आ गई थी। वह अभी निढाल नजर आ रही थी, मगर पहले की तरह रो नहीं रही थी। वह आकर सारा के पास बैठ गई।

आयत-ए-करीमा का विर्द करने और कुरान-ख्वानी के बाद दुआ करवाने वाली औरत ने दुआ शुरू कर दी। वो मुख्तलिफ आयत को तराजिम (अनुवाद, भाषांतर, तर्जुमा) के साथ पढ़ती जा रही थी।

‘उस रोज लोग मुत-फ़र्रिक़ (विविध, अनेक, कई) हालत में पलटेंगे, ताकि उनके अमाल उनको दिखाए जायें, फिर जिस ने ताज़ा बराबर नेकी की होगी, वो उसको देख लेगा और जिसने ज़र्रा बराबर बड़ी (पाप) की होगी, वो उसे देख लेगा।’

दुआ करने वाली औरत ने एक आयत का तर्जुमा (अनुवाद) किया था। आपा एक बार फिर बिलख-बिलख कर रोने लगी थी। सारा का दिल चाहा जमीन फटे और वह उसमें समा जाये। उसे यूं लग रहा था, उसका सिर दोबारा कभी उठ नहीं पायेगा। जब्त करने के बावजूद उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे।

‘अल्लाह तु मम्मी को बख्श देना। तुम उनको माफ़ कर देना, जैसा इन सब लोगों ने किया है।”

बे-इख्तियार उसके दिल से दुआ निकली। खाना खाने के बाद आहिस्ता-आहिस्ता सब लोग जाने लगे। आपा भी उसे अपने यहाँ आने की दावत दे कर चली गई।  मुलाज़िमों ने चीजें समेटना शुरू कर दिया। बाहर आफ़रीन अब्बास और हैदर लोगों को रुखसत कर रहे थे। लोगों के जाने के बाद दोनों अंदर आ गये।

“सारा! तुम आराम करना चाहती हो, तो आराम कर सकती हो।”

उसकी आँखें देखकर आफ़रीन अब्बास ने उससे कहा। वह अपने कमरे में चली आई। उस रात वो सो नहीं पाई। अम्मी का चेहरा बार-बार उसकी नज़रों के सामने आ जाता। फिर उसे उनके साथ गुजारा हुआ वक्त याद आ जाता।

वह बेहद बेचैन थी। 1:00 बजे के करीब वह लॉन की तरफ़ खुलने वाला दरवाजा खोलकर लॉन में निकल आई। हर तरफ़ खामोशी छाई हुई थी। बैरोनी (बाहरी) दीवार पर लगाई हुई फ्लडलाइट में लॉन की तारीकी (अंधेरे) को खत्म कर दिया था। ठंडक होने के बावजूद उसे बाहर आकर सुकून मिला। घास ओंस से भरी हुई थी। पांव में चप्पल के बावजूद घास पर चलने की वजह से उसके पांव उससे गीले हो रहे थे। मगर उसको उनकी परवाह नहीं थी। वह चादर को अपने गिर्द लपेटे बिना मकसद लॉन के तूल-वा-अर्ज़ को (लंबाई-चौड़ाई) नापती रही।

हैदर ने 2:00 बजे अपना काम खत्म किया था। लाइट ऑफ़ करने से पहले वो खिड़कियों से के पर्दे बराबर करने के लिए खिड़की की तरफ़ आया था, मगर नीचे लॉन में नज़र डालते ही उसके हाथ पर्दा खींचते हुए रुक गए थे। लॉन में कोई चक्कर लगा रहा था, उसने गौर से नीचे देखा और दूसरी नज़र डालते ही जान गया कि चक्कर लगाने वाला कौन है, नागावरी की एक लहर सी उसके अंदर उठी वह ख़ुद भी नीचे आया और पोस्ट का दरवाजा खोलकर बाहर लॉन में आ गया।

“देखें इस वक्त रात के 2:00 बजे हैं और आप अपने कमरे का दरवाजा खुला छोड़ कर यहाँ लॉन में फिर रही हैं। कोई भी जो इस लॉन में किसी गलत नीयत से छुपा ह, वह आराम से आपकी बे-खबरी में आपके कमरे में और फिर वहाँ से घर में कहीं भी जा सकता है। मैं नहीं जानता आपको यह घर, इस घर में रहने वाले कितने अजीज़ हैं, लेकिन मेरे पापा ने इस घर की हर चीज़ बड़ी मोहब्बत से बनाई है। इसलिए मुझे इस घर की सिक्योरिटी की परवाह है। घर के गेट पर खड़ा चौकीदार बाहर की हिफ़ाज़त कर सकता है, अंदर आकर किसी को नहीं बचा सकता। इसलिए अगर आप माइंड ना करें, तो लॉन में फिरने के का शौक दिन के वक्त पूरा कर लिया करें।“

सारा अपने करीब उभरने वाले इस आवाज पर चौंकी थी और फिर पुतला बनी उसकी बातें सुनती रही। उसकी बातें खत्म होने पर कुछ शर्मिंदगी के आलम में वह अपने कमरे की तरफ से चली गई। हैदर वहीं खड़ा उसे जाता देखता रहा। जब उसे अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया, तो वह ख़ुद भी अंदर चला आया।

Prev Part | Next Part All Chapters

Complete Novel : Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi 

Complete Novel : Chandrakanta By Devki Nandan Khatri    

Complete Novel : Nirmala By Munshi Premchand

Leave a Comment