Chapter 44 Zindagi Gulzar Hai Novel In Hindi

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24 अक्टूबर कशफ़
आज से एक हफ्ता पहले मैंने एक बेटे को जन्म दिया था. जिस रात मेरा बेटा पैदा हुआ था, उस रात को ज़ारून को एक डिनर में जाना था, लेकिन तैयार होने के बाद अचानक उसने अपना इरादा तर्क (छोड़) कर दिया.
“पता नहीं यार आज मेरी छाती-हिस्स (sixth sense) क्यों हो, मुझे बार-बार घर में रहने को कह रहा है और मेरा ख्याल है मुझे इसकी बात मान लेनी चाहिए.”
उसकी छाती-हिस्स ने उसे ठीक गाइड किया था. मेरी डिलीवरी में अभी एक हफ्ता था. लेकिन गैर-मुतावक्के (अप्रत्याशित) तौर पर मुझे उसी रात हॉस्पिटल जाना पड़ा था. मैं अभी सोच कर तड़प जाती हूँ कि अगर ज़ारून उस रात घर पर ना होता, तो बाद में मेरा क्या हाल होता क्योंकि मैं काफ़ी तकलीफ़ में थी. ज़ारून मुझे अस्पताल लेकर गया था. कार ड्राइव करते हुए उसने मेरा हाथ थाम रखा था. वह बार-बार मुझे तसल्ली दे रहा था. उससे उसके हाथ की गर्मी मुझे कितना सुकून पहुँचा रही थी. अगर वो यह जान जाता, तो शायद सारी उम्र में मेरा हाथ थामे रखता. लेबर रूम में जाने से पहले उसने मुझे कहा, “घबराओ मत सब कुछ ठीक हो जाएगा. मैं तुम्हारी लिये ख़ुदा से दुआ करूंगा.”
उसकी बात पर मेरी आँखों में आँसू आ गए थे. वह बड़ी सेकुलर सोच रखने वाला आदमी था. शादी के बाद से मैंने कभी उसके मुँह से ख़ुदा का ज़िक्र नहीं सुना था. शायद उसकी ही दुआ का असर था कि मैं सर्जरी से बच गई थी, हालांकि पहले डॉक्टर का कहना था कि शायद ऑपरेशन करना पड़े. जब मुझे कमरे में शिफ्ट किया गया, वह मेरे पास आया था और बहुत देर तक मेरे हाथ अपने हाथों में लिए बैठा रहा. वह बहुत अर्से से मुझे कह रहा था कि अपने बच्चे का नाम मैं रखूंगा. लेकिन तैमूर के पैदा होने के बाद उसने बगैर फ़रमाइश के यह हक़ मुझे दे दिया था.
“पहले बच्चे का नाम तुम रखोगी, मैं नहीं.” उसने मुझसे कहा था.
मैंने अपने बेटे को तैमूर नाम दिया था. कल ही मैं अस्पताल से घर शिफ्ट हुई हूँ.
इस हफ्ता में ज़िन्दगी जैसे बदल गई है? हर चीज़ बहुत ख़ूबसूरत, बहुत रोशन लगने लगी है. मैं ख़ुद को बहुत ताकतवार महसूस करने लगी हूँ. तैमूर मुझे दुनिया का ख़ूबसूरत-तरीन मर्द लगता है. शायद हर माँ अपने बेटे के लिए ऐसा ही सोचती है. काश! मेरी सारी ज़िन्दगी यूं ही गुजर जाये, किसी तकलीफ़ किसी परेशानी के बगैर.
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