चैप्टर 21 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 21 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 21 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

Chapter 21 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

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“पापा आप डॉक्टर के पास गए थे?” हैदर शाम को घर आते ही सीधा बाप के कमरे में गया। पिछले कुछ दिनों से आफ़रीन की तबीयत खराब थी।

“हाँ! मैं डॉक्टर के पास गया था। बस ब्लड-प्रेशर हाई था। बाकी सब कुछ ठीक है।”

हैदर को वह बहुत थके हुए लग रहे थे। वो उनके पास सोफा पर बैठ गया।

“पापा! अगर सारा अपने घरवालों के पास चली जायेगी, तो इसमें इतनी परेशानी वाली कौन सी बात है? उसे आज नहीं तो कल यहाँ से जाना ही था और जिस तरह उसकी ख़ाला या मामू उसका ख़याल रख सकते हैं, उस तरह मैं या आप नहीं रख सकते। फिर इतनी सी बात पर आपने इतनी बड़ी टेंशन क्यों ले ली है?”

वो उनकी तबीयत की खराबी की वजह जानता था। उसे मालूम था कि वह सारा के जाने की वजह से टेंशन के शिकार हैं। आफफ़रीन अब्बास ने न्यूज़पेपर तह करके टेबल पर रख दिया।

“हैदर! वह सारा को दोबारा मुझसे मिलने नहीं देंगे।” उन्होंने पहली बार अपने हादसे (डर) का इज़हार किया था।

“क्यों मिलने नहीं देंगे?” वह हैरान हुआ था।

“मैं जानता हूँ। वह उसे दोबारा पाकिस्तान मेरे पास नहीं आने देंगे। पहले सबा चली गई थी। अब सारा चली जायेगी। मैं सारी ज़िन्दगी ज़मीर की आग में जलता रहूंगा।” आफ़रीन अब्बास ने जैसे ख़ुद-कलामी की थी।

“पापा! आप क्या कह रहे हैं?” वह उनकी बात नहीं समझा था।

“कुछ नहीं!” एक गहरी सांस लेकर चेहरे को हाथों से ढांप लिया।

“पापा! अगर सारा दोबारा हमसे नहीं मिलती, तो भी क्या है? उसे हमारे पास रहते तीन माह तो हुए हैं। हम दोनों पहले भी अकेले रहते थे। अब भी रहेंगे। इसमें प्रॉब्लम क्या है?”

“पहले की बात और थी हैदर! मुझे उसके जाने से वहशत हो रही है। मैं उसके वजूद के बिना घर का तसव्वुर (कल्पना) नहीं कर सकता। मैं उसे हमेशा के लिए यहाँ रखना चाहता हूँ।” वह बेहद बेचैन थे।

“पापा! आपसे कभी भी हमेशा के लिए नहीं रख सकते। अगर आप उसे किसी ना किसी तरह यहाँ रहने पर मजबूर कर भी लें, तो भी एक ना एक दिन तो आपको की शादी करनी हो गई। फिर आप क्या करेंगे। मैं आपके और सबा के बारे में सब नहीं जानता हूँ। जो कुछ आपने बताया था उसके हवाले से मैं सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि आप माज़ी को भूल जायें। सबा मर चुकी हैं और सारा यहाँ रहना नहीं चाहती। हमें उसकी ख्वाहिश का एहतिराम (सम्मान) करना चाहिए।” वह आफ़रीन को किसी बच्चे की तरह समझा रहा था।

“हैदर! सबा सारा को मेरे सुपुर्द करके…”

“हाँ वो आपके सुपुर्द करके गई थी। मगर वह यह भूल गई थी कि सारा कोई छोटी बच्ची नहीं है, जिसे एक गार्जियन की ज़रूरत होगी। अपने बारे में फ़ैसला करने का हक रखती है और हम उसे रोक नहीं सकते।”

आफ़रीन ने एकदम उसका हाथ पकड़ लिया।

“ऐसा नहीं हो सकता कि तुम उससे शादी कर लो?” उन्होंने बड़ी मिन्नत से कहा।

“पापा आप क्या कह रहे हैं?”

“हाँ हैदर! तुम उससे शादी कर लो। इस तरह वो यहाँ रह सकती है।”

“पापा! मैं उसे शादी नहीं कर सकता।”

“क्यों? क्या तुम किसी और लड़की को पसंद करते हो।” आफ़रीन ने बेचैनी से पूछा था।

“नहीं पापा! आप जानते हैं मेरा पैशन सिर्फ मेरा प्रोफेशन है। मैंने आपसे पहले भी कहा था, आज भी कहता हूँ कि शादी में आपकी पसंद से करूंगा। लेकिन मैं इस वक्त शादी नहीं कर सकता। मुझे अपना कैरियर बनाना है, टॉप बैंकर बनना है। इस स्टेज पर शादी करके मैं अपना फ्यूचर तबाह नहीं कर सकता।” उसने बाप को समझाया।

“तुम्हारा फ्यूचर बर्बाद होगा ना करियर। सारा से शादी से तुम्हें कोई नुकसान नहीं होगा। फिर मेरा सब कुछ तुम्हारा ही तो है। तुम्हें किस चीज की फ़िक्र है। मैं हूँ ना तुम दोनों को सपोर्ट करने के लिये।”

“पापा! शादी सिर्फ मेरी रज़ामंदी से नहीं हो सकती। सारा का राज़ी होना भी ज़रूरी है। मैं अगर शादी पर मान भी जाऊं, तो क्या वह राज़ी होगी?” हैदर उलझन में पड़ गया।

“तुम सारा की फ़िक्र मत करो। मैं उससे बात कर लूंगा। तुम सिर्फ यह बताओ कि तुम्हें तो इस रिश्ता पर कोई एतराज़ नहीं?”

हैदर एक तवील (लंबी) सांस लेकर रह गया।

“पापा मैं शादी अभी नहीं कर सकता। शादी तीन-चार साल बाद ही करूंगा। आप इंगेजमेंट करना चाहते हैं, तो वह कर दे। मुझे इस पर कोई एतराज़ नहीं है।”

आफ़रीन का चेहरा धमक उठा, “थैंक यू हैदर! तुम देखना सारा बहुत अच्छी बीवी साबित होगी।”

हैदर के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट फैल गई।

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