चैप्टर 9 नकली नाक : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 9 Nakli Naak Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 9 Nakli Naak Ibne Safi Novel

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Chapter 9 Nakli Naak Ibne Safi Novel

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नंगी लाशें

फ़रीदी की आँख खुली, तो उसने अपने आप को एक अलमारीनुमा खाने में बंद पाया। उसके हाथ-पैरों में ताकत आ गई थी। वह बोल भी सकता था। लेकिन उसके मुँह पर पट्टी बांध दी गई थी और सारा बदन रस्सियों से जकड़ दिया गया था।

कमरे का अजीब माहौल था। चारों तरफ इंसानी पिंजर रखे हुए थे। बड़े-बड़े मर्तबानों में अजीबोगरीब तरह की चीजें भरी हुई थी। कमरे में सीलन और बदबू थी।

सामने लगे हुए चार्ट पर नंबर पड़े हुए थे। उसके ऊपर जर्मन भाषा में लिखा हुआ था –

“ज़ाबिर कभी बिला वजह किसी को दावत नहीं देता। अब तक इस चार्ट पर जितने के नाम लिखे गए हैं, वह सब उसके मेहमान रह चुके हैं और उनमें वह बहुत कुछ शामिल भी कर चुका है।”

अलमारी के बिल्कुल सामने ही वह चार्ट था। चार्ट के नीचे अजीबोगरीब शक्लें बनी हुई थी। दीवारें बहुत पुरानी मालूम होती थी। पूरा माहौल भयानक था।

ज़ाबिर अपने कमरे में बैठा हुआ था। कमरा चारों तरफ से बंद था। लैंप की रोशनी में वह अपनी मेज के सामने पड़ी तीन नंगी लाशों को गौर से देख रहा था। उसने अपना चेहरा छुपा रखा था। मगर उसकी खौफनाक छोटी-छोटी आँखें चमक रही थी। अपनी कुर्सी से उठा और लाशों पर झुककर गौर से देखने लगा। मेज पर से एक पुर्जा उठाने के बाद उसने लाश के सीने को देखना शुरू किया। अभी उससे यह सिलसिला जारी था कि धमाके के साथ एक चौथी लाश उसके कमरे में गिरी।

“मुझे तुम्हारा ही इंतज़ार था।” वह बड़बड़ाया और उसके कपड़े उतार कर उसने उसे भी बिल्कुल नंगा कर दिया और इन तीनों की बगल में उसको लिटा दिया। फिर कमरे में लगे हुए एक बड़े से चार्ट पर उसने लिखा नंबर 4 और कुर्सी पर बैठकर दराज में से कुछ कागजात निकाल कर उसे देखकर लगा कि एक दूसरा धमाका हुआ और अब पांचवीं लाश इस कमरे में पड़ी थी।

यह लाशे खूबसूरत औरत की थी। वह कुछ चौंका। “आखिर तुम भी आ गई, अच्छा हुआ!” वो फिर कुछ बड़बड़ाया और एक बड़ी अलमारी के पास जाकर रुक गया। उसकी आँखों की चमक तेज हो गई थी और फिर वह कमरे में टहलने लगा। लाश के करीब आकर उसने औरत की लाश को भी उन लाशों के बराबर डाल दिया और चार्ट पर नंबर 5 लिखकर उसे गौर से देखने लगा। अभी एक खाना खाली था। वह अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया और धीमी रोशनी में वह छत की तरफ देखने लगा। यह छत बिल्कुल सपाट मालूम होती थी, जिसे देखकर कोई यह नहीं समझ सकता था, कि इसमें कोई जोड़ है और यह जरा सा बटन दबाने से खुल सकती है। वह सोच रहा था कि पुरानी छत इसके लिए कारगर साबित हुई है। गर्मी से परेशान होकर वह टहलने लगा। इसी तरह का एक और धमाका हुआ, छत खुली और लाश अंदर गिर पड़ी।

“तुमने काफ़ी इंतज़ार करवाया। खैर अब मुझे किसी का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा।”

वह फिर बड़बड़ाया और उसको भी बिल्कुल नंगा करके उन लाशों के बगल में लेटा दिया। चार्ट का जो खाना खाली था, 6 नंबर से भर चुका था।

उसने एक जोरदार कहकहा लगाया और दीवार से लगी हुई बड़ी अलमारी का पर्दा हटाया। एक शख्स रस्सियों से जकड़ा हुआ था। उसके मुँह में कपड़ा ठूंस दिया गया था। “देखो तुम्हारे मेहमान आए हुए हैं।” उसने लाशों की तरफ इशारा किया। बंधे शख्स की आँखें गुस्से से लाल हो गई। उसने रस्सी से आजाद हो जाने के लिए पूरी ताकत लगा दी है। लेकिन रस्सी टस से मस न हुई।

“क्यों” वह शख्स ज़ोर से हँसा, “मेरा नाम जानते हो…मेरे कामों में रुकावट डालने का नतीजा तुम्हारे सामने है। मैंने तुमसे कई बार कहा था कि तुम मेरे रास्ते से हट जाओ, लेकिन तुम मानते नहीं। खैर, यह देखो…इन्हें पहचानो…गज़ाला।” उसने लाशों की तरफ इशारा किया, “और यह है मिस्टर हमीद। इनसे मिलकर तुमको ज़रूर खुशी हुई होगी और यह बेचारे जज साहब है। नवाब रशीदुज्जमा से तो मिल लो…” उसे बंधे हुए शख्स का कंधा हिलाया, “और वह देखो माथुर साहब, बेचारे के चेहरे पर रोशनी कम पड़ रही है। मालूम होता है कि इन्होंने मुज़रिम पर बहुत ज़ुल्म ढायें हैं। क्यों क्या ख़याल है तुम्हारा!” उसने फिर छेड़ा, “शायद तुम्हें इन मेहमानों से मिलकर खुशी नहीं हुई।” वह बोला। फिर सबसे आखिरी लाश पर जाकर खड़ा हो गया, “देखिए सरकार, यह आपके खास कद्रदानों ने में से हैं मिस्टर तारिक…लेकिन इनका नेवला इस वक्त उनके कंधे पर नहीं है।” यह कहकर उसने अलमारी पर पर्दा डाल दिया और हमीद की लाश उठाकर कमरे से बाहर चला गया।

थोड़ी देर बाद वह अपने हाथ में एक सफेद शीशी लिए हुए वापस आया और शीशी में से थोड़ा सा पाउडर निकाल कर उसने तारिक की नाक में डाल दिया और कमरे में टहलने लगा। उसने कमरे की रोशनी कम कर दी और तारिक की लाश पर झुक गया। थोड़ी देर बाद लाश एक छींक आई। वह जल्दी से हट गया और जेब से दूसरी शीशी निकालकर उसको सुंघाया। तारिक के जिस्म में हरकत पैदा हो चुकी थी।

“मैं… मैं कहाँ हूँ!” तारिक कमरे के चारों तरफ देखते हुए बोला और जब उसकी नजर अपने नंगे बदन पर पड़ी, तो वह वो उछलकर खड़ा हो गया।

“डरो नहीं!”

उसने तारीख के कंधे पर हाथ रखा।

“लेकिन…तुम…तुम…हो कौन… और मैं…मेरे…क…क…कपड़े?” तारीख ने हकलाते हुए पूछा।

“यह लो अपने कपड़े, घबराओ नहीं। अभी तुमको मालूम हो जाएगा कि मैं कौन हूं।”

तारीख जल्दी-जल्दी अपने कपड़े पहनने लगा। जब वह कपड़े पहन चुका, तो उसने अपने चेहरे पर से नकाब हटाया , “फ़रीदी” तारिक जोर से चीखा, “क्या मैं ख्वाब देख रहा हूँ?”

“नहीं अब ख्वाब नहीं देख रहे हैं। मैं हूँ इंस्पेक्टर कमाल अहमद फ़रीदी!”

“लेकिन यह सब क्या है, तुम पागल तो नहीं हो गए हो।” तारिक बोला।

“अभी बताता हूँ।” वह बोला और बाकी लाशों को होश में लाने की कोशिश करने लगा। नवाब रशीदुज्जमा और गज़ाला के अलावा सबको होश आ चुका था। वह उन सबके कपड़े देते हुए बोला।

“घबराइए नहीं अभी आप लोगों को सब कुछ मालूम हो जायेगा।” और वह नवाब साहब और गजाला के मुँह पर पानी के छींटे देने लगा।

सब लोग हैरत से उसको देख रहे थे। उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि है क्या मामला है। फ़रीदी यहाँ किस तरह पहुँचे और हम लोगों को किस ने गिरफ्तार किया। वह सोच रहे थे कि नवाब साहब उठ बैठे और उसने उन्हें भी कपड़े पहनने को दे दिये। नवाज साहब की नज़र जैसे ही गज़ाला पर पड़ी, वे बड़े जोर से चीखे, “फ़रीदी!”

“नवाब साहब परेशान ना हो।” उसने हमदर्दी से कहा, “शुक्र है कि मैं वक्त पर पहुँच गया, वरना आप लोगों का न जाने क्या हश्र होता।”

“मेरी बच्ची!” नवाब साहब की आँखों से आँसू निकल रहे थे।

“घबराइए नहीं अभी उनको भी होश आ जाएगा।“ उसने तसल्ली दी।

“मिस्टर फ़रीदी कुछ बताइए कि क्या बात है।” माथुर ने पूछा।

“बात तो कोई खास नहीं है।” वजह से पिस्तौल निकालकर उछलता हुआ बोला, “आप इन्हें देख रहे हैं। नवाब रशीदुज्जमा, एक बुजुर्ग हस्ती, जिनसे कभी इस बात की उम्मीद नहीं रखी जा सकती कि नवाबजादा शाकिर अली के क़त्ल में इनका हाथ हो सकता है।” इसने पिस्तौल से खेलते हुए कहा।

“क्या बकते हो?” नवाब साहब गुस्से में खड़े हो गए, “मैं तुम्हें इतना गिरा हुआ नहीं समझता था…मैंने तुम्हें आज तक अपने बेटे की तरह, लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि तुम्हारी रगों में गंदा खून दौड़ रहा है…कमीने…ज़लील!”

“बस बस नवाब साहब। आपके मुँह से गालियाँ कुछ भली नहीं मालूम होती।” वह मुस्कुराया।

“लेकिन तुम को अपने हाथों में कानून नहीं लेना चाहिए था।” माथुर अफसर के अंदाज में बोला, “और अगर तुम्हारे पास उसका सबूत था कि नवाब साहब शौकत अली के कातिल है, या इस क़त्ल में उनका हाथ है, तो तुम्हें कानूनी तौर पर इन्हें गिरफ्तार करना चाहिए और हम लोगों का हाथ किस क़त्ल में है, जो इस तरह से यहाँ लाए गये?”

“माथुर साहब, क्योंकि मुझे इस बात का यकीन है कि नवाबजादा शाकिर अली के क़त्ल में नवाब साहब का हाथ है और मेरे पास कोई कानूनी सबूत नहीं है। इसलिए मुझे ऐसा करना पड़ा और चूंकि आप पुलिस के जिम्मेदार अफसर है इसलिए आपके सामने इनका बयान होगा।”

“फ़रीदी खुदा के लिए होश में आओ…आज तुम्हें क्या हो गया है। यह सब क्या तमाशा है। अगर तुम्हें यही करना थ, तो कपड़े उतार कर हम लोगों को बेइज्जत करने से तुम्हें क्या फायदा मिला?”

“फायदा..जज साहब, आप हमेशा फायदे ही की सोचते हैं।” उसने जज साहब को जवाब दिया, “आप लोगों का असली रूप यही है। आप सब कमीने हैं, जो शराफ़त का बनावटी लिबास पहनकर लोगों को धोखा देते हैं। ख़ुद ज़ुर्म करके दूसरों के सर थोंप देते हैं। आपके इन जिसमें को नंगा ही रहना चाहिए। बिल्कुल नंगा…एक कुत्ते की तरह, ताकि आप किसी को धोखा ना दे सकें।”

वह गुस्से में बके जा रहा था और जज साहब बेचारे सहम कर चुप हो गए थे। गज़ाला को होश आ रहा था। नवाब साहब धीरे-धीरे उसके सर पर हाथ फेर रहे थे। गज़ाला ने आँखें खोल दी और अपने बाप को अपने पास देखकर उसे कुछ इत्मीनान हुआ। वो उठ कर बैठ गई और फ़रीदी की बात गौर से सुनने लगी।

“बहरहाल, नवाब साहब को यह कबूल करना पड़ेगा कि शाकिर अली के क़त्ल में उनका हाथ है।” उसने कनखियों से गज़ाला की तरफ देखा।

“यह झूठ है…यह सब झूठ है!” गज़ाला चिल्लाई।

“क्या आपको भी इससे इंकार है।” उसे नवाब साहब से पूछा।

“आपकी तुम चाहते क्या हो?” नवाब साहब तंग आकर बोले।

“यही कि आप यह लिखकर दे दीजिए कि नवाब ज़ादा शाकिर अली के क़त्ल में आपका हाथ है।”

“यह कभी नहीं हो सकता।” नवाब साहब गुस्से में बोले।

“हो सकता है!” उसने पिस्तौल दिखाया।

“ठहरो!” माथुर कुर्सी से उठा हुआ बोला, “तुम बहुत आगे बढ़ रहे हो।”

“ओह…एसपी साहब आप को गुस्सा आ गया कुर्सी पर बैठ जाइये।”

“लेकिन तुम यह सब क्या कर रहे हो?”

“मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ…यह कागज है…इस पर लिख दीजिए। मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है। जल्दी कीजिये।”

“लेकिन!”

“लेकिन वेकिन कुछ नहीं, जल्दी कीजिए और एसपी साहब आपको गवाही देनी होगी।”

उसने पिस्तौल की नली का रुख उनकी तरफ करते हुए कहा।

नवाब साहब मजबूरन कलम उठाते हुए बोले, “क्या लिखूं?”

“हाँ लिखिए…मैं आज इंस्पेक्टर फ़रीदी और एसपी माथुर साहब के सामने इस बात का इकरार करता हूँ कि नवाबजादा शाकिर अली का क़त्ल मेरी ही साजिश थी नवाब रशीदुज्जना बकेलम खुद।”

“लीजिए माथुर साहब, अब आप भी गवाही कर दीजिये।” मुस्कुराता हुआ बोला।

“हूं!” माथुर ने उसको घूरा और फिर उस कागज पर अपने दस्तखत कर दिये।

उसने कागज अपनी जेब में रखते हुए कहा, “आप लोगों को बहुत तकलीफ नहीं जिसकी मैं माफी चाहता हूँ।” गज़ाला नफ़रत से मुँह फेर लिया।

“अच्छा अब आप लोग जा सकते हैं।” ताली बजाई और फौरन आठ नकाबपोश कमरे में आये।

“इन लोगों को आराम से छोड़ आओ।” उसने इशारा किया।

और नकाबपोश उन लोगों को लेकर कमरे से बाहर चले गये।

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