चैप्टर 14 अदल बदल : आचार्य चतुरसेन शास्त्री का उपन्यास | Chapter 14 Adal Badal Novel By Acharya Chatursen Shastri

Chapter 14 Adal Badal Novel By Acharya Chatursen Shastri

Chapter 14 Adal Badal Novel By Acharya Chatursen Shastri

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रात के नौ बज रहे थे। क्लब के एक आलोकित कमरे में तीन व्यक्ति बड़ी सरगर्मी से बहस में लगे थे। तीनों में एक थे डाक्टर कृष्णगोपाल, दूसरे सेठजी और तीसरी थीं श्रीमती मालतीदेवी! डाक्टर और सेठजी खूब जोश में बहस कर रहे थे।

डाक्टर ने कहा – ‘जीवन की सामग्री पर नारी का अधिकार है, नर का नहीं, क्योंकि कर्मक्षेत्र में नारी की ही प्रधानता है।’

‘परन्तु पुरुष का ज्ञान सबसे बढ़कर है।’ सेठजी ने कहा।

‘बेशक, पुरुष मस्तिष्क से ज्ञान प्राप्त कर सकता है, पर उसमें तब तक उसके प्रयोग की शक्ति उत्पन्न नहीं होगी जब तक कि नारी-शक्ति का उसमें सहयोग न हो।’

‘यह क्यों?’

‘इसलिए कि पुरुष संसार का ज्ञान प्राप्त कर सकता है, पर उसमें सौन्दर्य की सृष्टि स्त्री ही करती है।’

‘किन्तु किस प्रकार?’

‘पुरुष मन और बुद्धि से कर्मक्षेत्र में विजय पाता है, स्त्री सहज चातुरी से। सच्ची बात तो यह है कि नारी की शक्ति ने नारी को वस्तुओं से बांध रखा है। पाण्डवों को जय करने के लिए कौरवों को अठारह अक्षौहिणी सेना इकट्ठी करनी पड़ी, पर द्रौपदी ने नेहबंधन से पाण्डवों को बांध लिया।’

‘परन्तु पुरुष के शरीर में बल है।’

‘तो स्त्री के हृदय में शक्ति है, उसके हृदय में जो शक्ति की धार बहती है, उसके प्रभाव से उसे किसी बाहरी बल की आव-श्यकता नहीं। यही शक्ति उसके कोमल अंग को बज्र का-सा प्रहार सहने की शक्ति देती है। युग-युग से वह पुरुष के भयानक प्रहारों को सहती आई है, सो इसी शक्ति की बदौलत। वह इन पुरुष-पशुओं की चिता पर ज़िन्दा जली है इसी शक्ति को लेकर। उसने अकेले ही विश्वभर के निर्मम पुरुषों को संयत संसार में बांध रखा है, इसी शक्ति की बदौलत।’

‘फिर भी पुरुष सदा से समाज का स्वामी रहा है।’

‘पर समाज की निर्मातृ देवी स्त्री है। पुरुष पुरुष है, स्त्री देवी देवी है। पुरुष में प्राण-शक्ति की न्यूनता है। पुरुष में सामर्थ्य का व्यय है, स्त्री में आय। इसी से नारी शील, संस्कार की जितनी वश वर्तिनी है उतना पुरुष नहीं।’

‘यह कैसे?’

‘आप देखते नहीं कि नारी जिसे एक बार स्पर्श करती है उसे अपने में मिला लेती है अपनापन खोकर।’

‘और पुरुष?’

‘पुरुष तो केवल जानना और देखना चाहता है, अपनाना नहीं।’

‘नारी भी तो।’

‘नारी निष्ठा के कारण वस्तु-संसर्ग में जाकर लिप्त हो जाती है, जब कि पुरुष उससे अलग रहता है।’

‘तो इसीसे क्या पुरुष नारी से हीन हो गया?’

‘क्यों नहीं, जहाँ तक प्रतिष्ठा का सवाल है, नारी पुरुष से आगे है।’

‘कहां?’

‘अपने सारे जीवन में, नारी की प्रतिष्ठा प्राणों में है, पुरुष की विचारों में। इसलिए नारी सक्रिय है और पुरुष निष्क्रिय। इसी से पुरुष भगवान का दास है, परन्तु नारी पत्नी है। पुरुष भक्ति देता है, स्त्री प्रेम। पुरुष विश्व को केन्द्र मानकर आत्म-प्रतिष्ठा की चेष्टा करता है और स्त्री आत्मा को केन्द्र मानकर विश्व-प्रतिष्ठा करती है। इसीसे समाज-रचना और परिपालन में वही प्रमुख है।’

‘फिर भी वह पुरुष पर आश्रित है।’

‘वह कृत्रिम है। वास्तव में नारी केंद्रमुखी शक्ति है और पुरुष केंद्र विमुखी। नारी-संसर्ग से ही पुरुष सभ्य बना है। नारी से ही धर्म-संस्था टिकी है। एक अग्नि है दूसरा घृत। अग्नि में घृत की आहुति पड़ने से ही से यज्ञ संपन्न होता है। स्त्री-पुरुष का जब संयोग होता है, तब उसे यज्ञ धर्म कहते हैं, सच्चे यज्ञ का यही स्वरूप है।’

‘परंतु सृष्टिकर्ता पुरुष है।’

‘पुरुष मन की सृष्टि करता है, नारी देह की सृष्टि करती है। पुरुष जीवात्मा को जगा सकता है, पर उसके आकार की रचना नारी ही करती है।’

‘पुरुष हिरण्य गर्भ है।’

‘नारी विराट् प्रकृति है।’

‘पुरुष स्वर्ग है।’

‘नारी पृथ्वी है।’

‘पुरुष तपशक्ति का रूप है।’

‘नारी यज्ञ शक्ति का। विवाह धर्माचरण है, स्त्री सहधर्मिणी है। उसके बिना पुरुष धर्माचरण नहीं कर सकता। दीन-हीन पुरुष संसार में रह सकता है, पर दीन-हीन नारी नहीं रह सकती। उसकी जीवन-शक्ति, सौंदर्य के प्रकाश में रहती है।’

‘संक्षेप में, समाज के दो समान रूप हैं, एक नर दूसरा नारी। दोनों एक वस्तु के दो रूप हैं। दोनों मिलकर एक सम्पूर्ण वस्तु बनती है।’ मायादेवी ने विवाद का उपसंहार किया। इस मनो-रंजक विवाद को सुनने क्लब के अन्य सदस्य भी एकत्र हो गए थे। सबने करतल-ध्वनि करके मायादेवी को साधुवाद दिया और सब लोग विनोदपूर्ण बातों में लग गए।

जब सब लोग विदा होने लगे तब डाक्टर मायादेवी के साथ-साथ मालतीदेवी के स्थान तक आए। दोनों में थोड़ा गुप्त परामर्श हुआ और मायादेवी को मालती के स्थान पर छोड़कर डाक्टर अपने घर चले गए।

रात के नौ बज रहे थे। क्लब के एक आलोकित कमरे में तीन व्यक्ति बड़ी सरगर्मी से बहस में लगे थे। तीनों में एक थे डाक्टर कृष्णगोपाल, दूसरे सेठजी और तीसरी थीं श्रीमती मालतीदेवी! डाक्टर और सेठजी खूब जोश में बहस कर रहे थे।

डाक्टर ने कहा – ‘जीवन की सामग्री पर नारी का अधिकार है, नर का नहीं, क्योंकि कर्मक्षेत्र में नारी की ही प्रधानता है।’

‘परन्तु पुरुष का ज्ञान सबसे बढ़कर है।’ सेठजी ने कहा।

‘बेशक, पुरुष मस्तिष्क से ज्ञान प्राप्त कर सकता है, पर उसमें तब तक उसके प्रयोग की शक्ति उत्पन्न नहीं होगी जब तक कि नारी-शक्ति का उसमें सहयोग न हो।’

‘यह क्यों?’

‘इसलिए कि पुरुष संसार का ज्ञान प्राप्त कर सकता है, पर उसमें सौन्दर्य की सृष्टि स्त्री ही करती है।’

‘किन्तु किस प्रकार?’

‘पुरुष मन और बुद्धि से कर्मक्षेत्र में विजय पाता है, स्त्री सहज चातुरी से। सच्ची बात तो यह है कि नारी की शक्ति ने नारी को वस्तुओं से बांध रखा है। पाण्डवों को जय करने के लिए कौरवों को अठारह अक्षौहिणी सेना इकट्ठी करनी पड़ी, पर द्रौपदी ने नेहबंधन से पाण्डवों को बांध लिया।’

‘परन्तु पुरुष के शरीर में बल है।’

‘तो स्त्री के हृदय में शक्ति है, उसके हृदय में जो शक्ति की धार बहती है, उसके प्रभाव से उसे किसी बाहरी बल की आव-श्यकता नहीं। यही शक्ति उसके कोमल अंग को बज्र का-सा प्रहार सहने की शक्ति देती है। युग-युग से वह पुरुष के भयानक प्रहारों को सहती आई है, सो इसी शक्ति की बदौलत। वह इन पुरुष-पशुओं की चिता पर ज़िन्दा जली है इसी शक्ति को लेकर। उसने अकेले ही विश्वभर के निर्मम पुरुषों को संयत संसार में बांध रखा है, इसी शक्ति की बदौलत।’

‘फिर भी पुरुष सदा से समाज का स्वामी रहा है।’

‘पर समाज की निर्मातृ देवी स्त्री है। पुरुष पुरुष है, स्त्री देवी देवी है। पुरुष में प्राण-शक्ति की न्यूनता है। पुरुष में सामर्थ्य का व्यय है, स्त्री में आय। इसी से नारी शील, संस्कार की जितनी वश वर्तिनी है उतना पुरुष नहीं।’

‘यह कैसे?’

‘आप देखते नहीं कि नारी जिसे एक बार स्पर्श करती है उसे अपने में मिला लेती है अपनापन खोकर।’

‘और पुरुष?’

‘पुरुष तो केवल जानना और देखना चाहता है, अपनाना नहीं।’

‘नारी भी तो।’

‘नारी निष्ठा के कारण वस्तु-संसर्ग में जाकर लिप्त हो जाती है, जब कि पुरुष उससे अलग रहता है।’

‘तो इसीसे क्या पुरुष नारी से हीन हो गया?’

‘क्यों नहीं, जहाँ तक प्रतिष्ठा का सवाल है, नारी पुरुष से आगे है।’

‘कहां?’

‘अपने सारे जीवन में, नारी की प्रतिष्ठा प्राणों में है, पुरुष की विचारों में। इसलिए नारी सक्रिय है और पुरुष निष्क्रिय। इसी से पुरुष भगवान का दास है, परन्तु नारी पत्नी है। पुरुष भक्ति देता है, स्त्री प्रेम। पुरुष विश्व को केन्द्र मानकर आत्म-प्रतिष्ठा की चेष्टा करता है और स्त्री आत्मा को केन्द्र मानकर विश्व-प्रतिष्ठा करती है। इसीसे समाज-रचना और परिपालन में वही प्रमुख है।’

‘फिर भी वह पुरुष पर आश्रित है।’

‘वह कृत्रिम है। वास्तव में नारी केंद्रमुखी शक्ति है और पुरुष केंद्र विमुखी। नारी-संसर्ग से ही पुरुष सभ्य बना है। नारी से ही धर्म-संस्था टिकी है। एक अग्नि है दूसरा घृत। अग्नि में घृत की आहुति पड़ने से ही से यज्ञ संपन्न होता है। स्त्री-पुरुष का जब संयोग होता है, तब उसे यज्ञ धर्म कहते हैं, सच्चे यज्ञ का यही स्वरूप है।’

‘परंतु सृष्टिकर्ता पुरुष है।’

‘पुरुष मन की सृष्टि करता है, नारी देह की सृष्टि करती है। पुरुष जीवात्मा को जगा सकता है, पर उसके आकार की रचना नारी ही करती है।’

‘पुरुष हिरण्य गर्भ है।’

‘नारी विराट् प्रकृति है।’

‘पुरुष स्वर्ग है।’

‘नारी पृथ्वी है।’

‘पुरुष तपशक्ति का रूप है।’

‘नारी यज्ञ शक्ति का। विवाह धर्माचरण है, स्त्री सहधर्मिणी है। उसके बिना पुरुष धर्माचरण नहीं कर सकता। दीन-हीन पुरुष संसार में रह सकता है, पर दीन-हीन नारी नहीं रह सकती। उसकी जीवन-शक्ति, सौंदर्य के प्रकाश में रहती है।’

‘संक्षेप में, समाज के दो समान रूप हैं, एक नर दूसरा नारी। दोनों एक वस्तु के दो रूप हैं। दोनों मिलकर एक सम्पूर्ण वस्तु बनती है।’ मायादेवी ने विवाद का उपसंहार किया। इस मनो-रंजक विवाद को सुनने क्लब के अन्य सदस्य भी एकत्र हो गए थे। सबने करतल-ध्वनि करके मायादेवी को साधुवाद दिया और सब लोग विनोदपूर्ण बातों में लग गए।

जब सब लोग विदा होने लगे तब डाक्टर मायादेवी के साथ-साथ मालतीदेवी के स्थान तक आए। दोनों में थोड़ा गुप्त परामर्श हुआ और मायादेवी को मालती के स्थान पर छोड़कर डाक्टर अपने घर चले गए।

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अन्य हिंदी उन्पयास :

~ निर्मला मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास

~ प्रेमा मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास 

~ प्रतिज्ञा मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास 

~ गबन मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास

~ चंद्रकांता देवकी नंदन खत्री का उपन्यास

 

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