Chapter 12 Nakli Naak Ibne Safi Novel
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समुद्री लड़ाई
रात के दो बजे थे, मोटर कार तेजी से सड़क को पीछे छोड़ते हुए भागी जा रही थी। फ़रीदी ड्राइवर से और तेज चलने को कह रहा था।
“लेकिन मुझे तो डर लग रहा है।” हमीद ने बुरा सा मुँह बना कर कहा।
“क्यों?” फ़रीदी ने पूछा।
“इसलिए कि अभी यमराज उस आदमी की रूह पर कब्जा करने के लिए यहाँ आयेंगे और कहीं वे भूले से हम लोगों की तरफ घूम पड़े तब?” हमीद ने इस तरह कहा कि सबको हँसी आ गई।
“तुम अपनी हरकत से बाज नहीं आओगे हमीद?” फ़रीदी बोला।
“और यही शिकायत मुझे आपसे है, बैठे-बिठाये एक मुसीबत मोल ले ली है। ना मालूम बेचारी शहनाज़ का क्या हाल है।” हमीद ने एक ठंडी सांस लेकर कहा।
“अच्छा तुम अपनी बकवास बंद करो।”
“लेकिन मैं फिर आप से कहता हूँ कि जैसा कि मैंने उसकी बात सुनी है, उसे यही अंदाजा होता है कि जो हुंडियाँ, उसने हासिल की है, बीस तारीख के बाद बेकार हो जायेंगी। आज पंद्रह तारीख है, इसलिए मेरा ख़याल है कि वह कोलकाता में बिल्कुल नहीं ठहरेगा, बल्कि सीधे जिनेवा जायेगा। इसलिए हम लोगों को कोलकाता पहुँचने के बाद हवाई अड्डे पर पहुँचना चाहिए।” हमीद ने कहा।
“तुम बिल्कुल ठीक कहते हो। हम लोगों को सीधा हवाई और समुद्री अड्डे पर पहुँचना चाहिए।” फ़रीदी बोला।
रास्ते भर फ़रीदी ड्राइवर से कार की रफ्तार तेज करने को कह रहा था। सुनसान सड़क पर कार अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ रही थी। लेकिन फ़रीदी चाहता था कि किसी तरह उड़ कर जल्दी से कोलकाता पहुँच जाये।
“ड्राइवर और तेज।” फ़रीदी ने कहा।
“हुजूर कार अपनी पूरी रफ्तार में है।” उसने जवाब दिया।
फ़रीदी ‘अच्छा’ कह कर चुप हो गया और कलकत्ता पहुँचने के बाद के प्रोग्राम सोचने लगा।
दिन काफ़ी चढ़ चुका था। भूख के मारे हमीद का बुरा हाल था, क्योंकि आज कई रोज से उसे ठीक से खाना नहीं मिला था। लेकिन फ़रीदी के डर से वह बिल्कुल ख़ामोश था।
कोलकाता करीब आ गया था, क्योंकि आबादी का सिलसिला शुरू हो गया था। थोड़ी देर बाद कार शहर में दाखिल हुई।
हवाई अड्डे पर पहुँचकर फ़रीदी को मालूम हुआ कि कल रात से अब तक कोई जहाज जिनेवा नहीं गया। अब फ़रीदी ने ड्राइवर से समुद्री अड्डे पर चलने को कहा।
वहाँजाकर वो नौ-सेना के अफसर से मिला और अपना आई-कार्ड दिखाते हुए बोला, “हम लोग रामगढ़ से एक बहुत बड़े मुज़रिम का पीछा करते हुए आ रहे हैं। ज़ाबिर भेष बदलने में माहिर है। उसका पकड़ा जाना बहुत ज़रूरी है। क्या कोई ऐसी सूरत है कि वह जिनेवा उतरने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया जाये।”
“यहाँ से वायरलेस किया जा सकता है। लेकिन जब वह भेष बदलने में माहिर है, तो कैसे पहचाना जा सकता है।” नौसेना के अफसर ने जवाब दिया।
“नहीं, वायरलेस से काम नहीं चल सकता। क्या यू-बोट से हम लोग जहाज का पीछा नहीं कर सकते?”
“लेकिन यू-बोट के लिए आपको इंस्पेक्टर जनरल पुलिस और कमांडेंट चीफ़ अफसर ऑफ ईस्टर्न कमांड से इज़ाजत लाना होगा।” ऑफिसर ने कहा।
“अच्छी बात है।” फ़रीदी यह कहता हुआ सब लोगों को लेकर इंस्पेक्टर जनरल के बंगले की तरफ चला गया।
जैसे ही माथुर में अपना कार्ड भेजा, आईजी ने फौरन उन लोगों को बुलवाया और माथुर को देखते हुए बोला, “मैं तो ख़ुद कल आपके यहाँ आ रहा था। राहुल इंटरनेशनल डाकू है और उसने सरकार के कुछ ज़रूरी कागजात भी हासिल कर लिये हैं। उसका गिरफ्तार होना बहुत ज़रूरी है।”
फ़रीदी और माथुर ने सारे हालात बतायें, जिसे सुनकर आईजी ने फ़रीदी से कहा –
“मिस्टर फ़रीदी! हम आपके बेहद शुक्रगुजार हैं कि आपने अपनी जान की परवाह न करते हुए उसका पीछा नहीं छोड़ा। लेकिन क्या आपको इसका यकीन है कि वह उसी जहाज में जिनेवा गया होगा और उसने अपना हुलिया बदल दिया होगा। आप उसे कैसे पहचान सकते हैं।” आईजी ने पूछा।
“यह सब आप मेरे ऊपर छोड़ दीजिए, लेकिन अगर ज़रा भी देर की गई और जहाज़ जिनेवा पहुँच गया, तो फिर वह हाथ नहीं लग सकता।” फ़रीदी बोला।
“अच्छा तो मैं अभी कमांडेंट इन चीफ साहब से मिल कर आता हूँ। आप लोग मेरा यहाँ इंतज़ार कीजिये।” वह बोले।
“मैं थोड़ी देर के लिए बाजार जाऊंगा, क्योंकि अगर जहाज पर उसने हम लोगों को असली हालत में देख लिया, तो मुश्किल हो जायेगी।” फ़रीदी ने कहा।
आईजी साहब तो कमांडेंट इन चीफ के यहाँ चले गए और फ़रीदी हमीद को लेकर बाजार चला गया। माथुर और इंस्पेक्टर वहीं उन लोगों के इंतज़ार में बैठ गये।
फ़रीदी बाजार से कुछ सामान खरीद कर जब लौटा, तो मालूम हुआ कि अभी आईजी साहब नहीं आए हैं। वह उन सब लोगों को चपरासी के साथ बाथरूम में ले गया।
थोड़ी देर बाद फ़रीदी मारवाड़ी, माथुर साहब प्रोफेसर और इंस्पेक्टर सेठ और हमीद जहाज के खलासी बने हुए बाथरूम से बाहर निकले।
आईजी ने कार से उतरते हुए जब उन लोगों को देखा फिर मुस्कुरा कर बोले, “आप लोगों ने खूब भेष बदला है। अच्छा यह ऑर्डर लीजिये। आप लोगों को और किसी चीज की ज़रूरत है?” आईजी ने सवाल किया।
“जी नहीं! अब बाकी काम हम लोग अंज़ाम दे देंगे।” फ़रीदी ने कहा और सब लोगों को लेकर कार से समुद्री अड्डे की तरफ रवाना हो गया।
आईजी ने नौसेना के अफसर को फोन कर दिया था। यू-बोट यानी पनडुब्बी बिल्कुल तैयार खड़ी थी।
फ़रीदी ने नौसेना के अफसर को हुक्मनामा देते हुए कहा, “शायद आपने जहाज़ के कप्तान को वायरलेस कर दिया होगा।”
“हाँ मैंने उसको ज़रूरी हिदायतें दे दी है और जहाज की रफ्तार कम कर देने को भी कह दिया है।” अफसर ने जवाब दिया।
“बस ठीक है…हमीद जल्दी से बैठो।” फ़रीदी पनडुब्बी के पास आकर बोला और सब लोग जल्दी-जल्दी उसमें सवार हो गए और यू-बोट तेजी से पानी के अंदर चल पड़ी।
“बाप रे बाप! कितना खतरनाक सफ़र है?” हमीद डर कर बोला।
फ़रीदी ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और वक्त देखते हुए बोला, “इस वक्त ग्यारह बजे हैं। हम लोग उससे सिर्फ पाँच घंटे पीछे हैं।”
फ़रीदी के चेहरे पर अजीब तरह के रंग पैदा हो गए थे, जिसे सिर्फ हमीद ही समझ सकता था। इसलिए उसने उस वक्त फ़रीदी को छेड़ना उचित नहीं समझा। यू-बोट तेजी से समंदर की गहराइयों में भाग रही थी।
शाम हो चुकी थी, फ़रीदी की परेशानी बढ़ती जा रही थी। उसने कप्तान से पूछा, तो मालूम हुआ कि बस एक घंटे का फासला और रह गया है। फ़रीदी हमीद वगैरह को ज़रूरी हिदायतें देने लगा।
एक घंटे के बाद जहाज का सिग्नल मिलना शुरू हुआ और थोड़ी देर बाद यू-बोट जहाज के बिल्कुल करीब थी।
जहाज दो मिनट के लिए रुका और ये लोग जल्दी-जल्दी जहाज के बिल्कुल निचले हिस्से में घुस गये। जहाज फिर चल पड़ा।
कप्तान ने उन लोगों को गुप्त रूप से सेकंड क्लास के एक केबिन में पहुँचा दिया और वे लोग मुसाफिरों की हैसियत से सफ़र करने लगे।
खाना खाने का वक्त हो गया था। ये लोग खाने की मेज पर आकर बैठ गए, जहाँ दूसरे मुसाफिर पहले से बैठे हुए थे। हमीद ने खलासी के भेष में आकर मेज साफ की, जिस पर खाना लगा दिया गया। ये लोग खाने में लग गये। फ़रीदी खाना खाता जाता था और मुसाफिरों को गौर से देखता भी जाता था। लेकिन किसी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया।
खाना खाने के बाद सब लोग अपने केबिन में लौट आये। थोड़ी देर बाद हमीद भी आ गया।
“कुछ पता चला?” फ़रीदी ने पूछा।
“नहीं! मैं करीब-करीब पूरा जहाज घूम आया।” हमीद ने जवाब दिया।
“अच्छा अब तुम जाकर सो रहो। सुबह देखा जायेगा। इस वक्त हो सकता है कि किसी को हम लोगों पर शक हो जाये।” फ़रीदी ने कहा।
हमीद चला गया। फ़रीदी माथुर और दोनों इंस्पेक्टर अपने-अपने बिस्तर पर लेट गए थे। दिन भर की दौड़-धूप और रात भर जागने की वजह से यह लोग फ़ौरन सो ये।
सुबह सवेरे ही फ़रीदी की आँख खुली। वह अपने कपड़े वगैरह ठीक करके कैबिनेट से बाहर निकला। करीब-करीब सभी मुसाफिर जाग चुके थे। ऊपर डेक पर कुछ लोग खड़े हुए सुबह के सुहावने मंज़र और समंदर की ठंडी हवाओं का आनंद ले रहे थे। फ़रीदी भी डेक पर चढ़ गया और समंदर की तरफ देखने लगा कि अचानक उसकी निगाह एक अंग्रेज पर पड़ी, जो चमड़े के एक बटुए से तंबाकू निकालकर सिगरेट बना रहा था। फ़रीदी ने गौर से बटुए की तरफ देखा और उसकी आँखें ख़ुशी से चमक उठी और वह धीरे-धीरे डेक से उतरने लगा।
डेक से उतरते ही वह फौरन अपने कमरे में आ गया। माथुर और दोनों इंस्पेक्टर भी जाग चुके थे।
“आप लोग जल्दी से तैयार हो जाइये। दुश्मन मिल गया।” फ़रीदी ने माथुर से कहा।
“कहाँ?” माथुर ने हैरत से पूछा।
“अंग्रेज का भेष बदले हुए डेक पर खड़ा है। आप लोग अभी अपने-अपने पिस्तौल जेब में रखकर डेक पर फ़ौरन पहुँच जायें, लेकिन उसको ज़रा भी शक ना होने पाये। मैं कप्तान के पास जा रहा हूँ, ताकि हमीद को आगाह कर दूं।”
फ़रीदी यह कहता हुआ जल्दी से कप्तान के केबिन के तरफ चला गया और हमीद को हिदायतें देकर वह फौरन डेक पर पहुँच गया।
वह अंग्रेज इत्मीनान से सिगरेट के लंबे-लंबे कश ले रहा था।
“ज़ाबिर अगर तुम अपनी जगह से ज़रा भी हिले, तो गोली तुम्हारे सीने के पार होगी।”
उसने पलट कर देखा, तो एक मारवाड़ी सामने पिस्तौल ताने खड़ा था।
अंग्रेज के चेहरे पर परेशानी फैल गई। लेकिन फौरन ही मुस्कुराहट पैदा करता हुआ बोला, “मिस्टर आपको कुछ गलतफ़हमी हुई है…मैं वह…”
इतने में एक फायर की आवाज सुनाई दी और अंग्रेज चकराकर जमीन पर गिर पड़ा। माथुर और वे दोनों इंस्पेक्टर उस पर झपटे।
फ़रीदी चिल्लाया। लेकिन वे लोग बिल्कुल करीब पहुँच चुके थे और अब माथुर का पिस्तौल उस अंग्रेज के हाथ में था।
हवा में दो फ़ायरों की आवाज गूंजी। अंग्रेज के हाथ से खून बह रहा था और पिस्तौल जमीन पर पड़ी थी। अब अंग्रेज माथुर और इंस्पेक्टर की पकड़ में था।
“आप लोगों ने तो कमाल ही कर दिया।” फ़रीदी ने माथुर से कहा।
“लेकिन भई अभी तक मेरी समझ में कुछ नहीं आया कि पहला फायर कैसा था?” माथुर बोला।
“वह देखिये।” फ़रीदी ने डेक के किनारे इशारा किया, जहाँ एक आदमी खून में लथपथ पड़ा था, “यह ज़ाबिर का आदमी है, जो पीछे से मेरे ऊपर हमला करना चाहता था और हमीद ने उस पर फायर कर दिया। फायर की आवाज से उसने यह फायदा उठाया, जिसे आप लोग ना समझ सके और यह दूसरा फायर आप पर करना ही चाहता था कि मैंने गोली चला दी।”
ज़ाबिर को गिरफ्तार करके फ़रीदी ने उसके मुँह में कपड़ा ठूंस कर बंधवा दिया था और अब यह लोग उसी यू-बोट से ज़ाबिर को लेकर वापस आ रहे थे।
रास्ते में हमीद और माथुर ने फ़रीदी से बहुत सारे सवाल किए, लेकिन उसने यह कहकर टाल दिया कि अब अदालत ही में मेरा बयान सुनना।
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