चैप्टर 2 नकली नाक : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 2 Nakli Naak Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 2 Nakli Naak Ibne Safi Novel In Hindi

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दूसरा कबूतर

फ़रीदी और हमीद रामगढ़ के एस.पी. के बंगले में बैठे चाय पी रहे थे. एस.पी. उन्हें पूरा केस बता रहा था.

“बस यही समझ लो कि बिल्ली की मौत के बाद से ही मेरी तहकीकात की गाड़ी ठप हो जाती है.” एस.पी बोला.

“मरने वाली की सोशल पोजीशन क्या थी?” फ़रीदी ने पूछा.

“नवाबज़ादा शाकिर एक बहुत ही अच्छा आदमी था और सोसाइटी में इज्ज़त की नज़रों से देखा जाता था. वह था तो नौजवान ही, लेकिन बूढ़ों से ज्यादा अक्लमंद था. उसकी शादी नहीं हुई थी. वह अपना ज्यादातर वक़्त कबूतर या किताबों में गुजारता था. अजीब बात थी कि वह एक कोने में बैठे हुए भी बहुत ही सोशल आदमी लगता था. उससे मिलने वाले उसे अकेला पसंद नहीं करते थे, हालांकि वह सौ फ़ीसदी अकेला रहना पसंद करता था. यह उसके क़िरदार का एक अजीबो-ग़रीब पहलू था. किसी ने आज तक उसे किसी से लड़ते-झगड़ते नहीं देखा था.  मेरा ख़याल है कि उसका कोई दुश्मन ही नहीं था.”

“थोड़ा बहुत अय्याश तो ज़रूर रहा होगा?” फ़रीदी ने पूछा.

“मैंने उसके बारे में कभी कोई ऐसी बात नहीं सुनी, जिससे उसका अय्याश होना साबित होता और यहाँ ऐसा कोई रईस नहीं, जो उसके बारे में न जानते हों.”

“यहाँ उसके साथ कौन-कौन रहता था?”

“सिर्फ़ कुछ नौकर…उसका कोई रिश्तेदार उसके साथ नहीं रहता था?”

“कोई ऐसा रिश्तेदार जो उसकी मौत के बाद उसकी ज़ायदाद का मालिक हो सके.”

एस.पी. कुछ सोचने लगा.

“हाँ…एक साहिबा हैं…नवाब अख्तरुज्ज़माँ की बेवा.”

“मरने वाले से उसका रिश्ता..?”

“चचेरी बहन..!”

“उम्र..?”

“यही कोई चौबीस-पच्चीस साल…एक सात-आठ साल की बच्ची भी है.”

“मरने वाले से उसके ताल्लुकात कैसे थे?”

“अच्छे ही थे…वैसे कोई ऐसी बात ही नहीं थी कि कुछ कहा जा सके.”

“तुमने उससे इस केस के बारे में बातचीत ज़रूर की होगी?”

“हाँ, वह बहुत ग़म में थी.”

“मेरा मतलब यह नहीं…तुमने उससे बातचीत करने के बाद क्या नतीज़ा निकाला?”

“यही कि उस पर किसी तरह का शक नहीं किया जा सकता.”

“शक न करने की वजह?”

“वह एक बहुत ही शरीफ़ औरत है.”

“यह तो कोई वजह नहीं हुई. आखिर तुम उसे शरीफ़ किस वजह से समझते हो?”

“इसक अंदाज़ा तो तुम उसे देखकर ही लगा सकोगे.”

“यानी इसका मतलब है कि वह सूरत से शरीफ़ मालूम होती है.”

“नहीं भई, यह बात नहीं.” एस.पी. उकता कर बोला.

“खैर इसे हटाओ.” फ़रीदी ने कुछ सोचते हुए कहा.

“उसके ख़ास-ख़ास दोस्तों में कोई ऐसा आदमी, जिस पर शक किया जा सके?”

“मैंने हर एक अच्छी तरह टटोल कर देख लिया है. उनमें से भी कोई ऐसा नहीं जिस पर शक किया जा सके.” एस.पी. ने जवाब दिया.

“उसके दोस्तों में कोई कबूतरबाज़ है.”

“हाँ…एक साहब हैं तो.” एस.पी. कुछ सोचता हुआ बोला, “सिद्दीक अहमद साहब, रिटायर्ड जज.”

“कैसे आदमी हैं?”

“अच्छे आदमी हैं.”

“मैं ज़रा कबूतर और उसके नाखून लगे हुए खोल देखना चाहता हूँ.”

एस.पी. ने एक कबूतर मंगवाया, जो एक पिंजरे में बंद था.

“कबूतर तो अच्छी नस्ल का मालूम होता है…शीराज़ी है.”

“मैं कबूतरों के बारे में कुछ नहीं जानता.” एस.पी. बोला.

हमीद उसके नाखून पर चढ़े खोल को बहुत देर तक देखता रहा.

“वाक़ई मुज़रिम बहुत ही दिमाग़ी मालूम होता है.” फ़रीदी बोला.

”इसमें शक नहीं.”

“अच्छा थोड़ा सा कागज़ तो दो.”

एस.पी. ने मेज़ पर से पैड उठा दिया. फ़रीदी लिखने लगा.

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