चैप्टर 1 नकली नाक : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 1 Nakli Naak Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 1 Nakli Naak Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 1 Nakli Naak Ibne Safi Novel In Hindi

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सफ़र

गर्मियों का मौसम था. मैदानों के रहने वाले बड़े लोग गर्मी से तंग आकर रामगढ़ की हरी-भरी पहाड़ियों में पनाह ढूंढने जा रहे थे. उनमें विदेशी सैलानी भी थे, जिन्हें रामगढ़ की पुरानी इमारतें देखने की ख्वाहिश खींच लाई थी.

इस वक़्त पहाड़ियों के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर टट्टुओं और खच्चरों की लाइनें धीरे-धीरे रेंगती हुई दिख रही थी. हालांकि यहाँ बस सर्विस भी है, लेकिन बहुत से मुसाफ़िर सिर्फ़ कुदरती मंज़र का मज़ा लेने के लिए टट्टुओं या खच्चरों पर सफ़र करते हैं. लेकिन फ़रीद के बारे में दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि उसने सैर के लिए यह रास्ता चुना था या फिर वह हमीद को तंग करना चाहता था. वह रास्ते भर उसकी झुंझलाहटों से ख़ुश होता चला आ रहा था. इस वक़्त भी वह उसे बात-बात पर छेड़ रहा था. एक जगह चलते-चलते अचानक हमीद के खच्चर ने ठोकर खाई और गिरते-गिरते बचा. हमीद घबरा कर कूद पड़ा.

फ़रीदी को भी अपना खच्चर रोक देना पड़ा, “अरे अरे यह क्या भई?’ फ़रीदी हँसकर बोला.

“जी कुछ नहीं, बेचारा थक गया है.” हमीद मुँह बनाते हुए बोला, “अब यह मुझपे सवार होकर बाकी का रास्ता तय करेगा. मैं कहता हूँ आखिर…आपको यह सूझी क्या थी?”

“भई मैंने सिर्फ़ तुम्हारी सैर के लिए यह सिरदर्द मोल लिया था, वरना मुझे पागल कुत्ते ने नहीं काटा था.”

“सैर…जहन्नुम गयी सैर.” हमीद ने खच्चर की लगाम पकड़कर पैदल चकते हुए कहा.

“अरे यह क्या?” फ़रीदी बनावटी हैरानी ज़ाहिर करते हुए बोला, “तो क्या पैदल ही चलोगे.”

“जी हाँ….” हमीद झटकेदार आवाज़ में बोला.

“धत्त तेरे की…अजीब बेवकूफ़ हो…देखो वह एंग्लो-इंडियन लड़की तुम्हें इस हालत में देखकर शायद अपने साथियों में तुम्हारा मज़ाक उड़ा रही है.”

हमीद ने मुड़कर देखा, तो वाक़ई कुछ एंग्लो इंडियन मुसाफ़िर उसकी तरफ़ देखकर ताना देने के अंदाज़ में मुस्कुरा रहे थे. उनमें इत्तेफ़ाक से एक लड़की भी थी. हमीद पर बौखलाहट का दौरा पड़ा. उसने रस्सी की रक़ाब पर पैर रखा और उछलकर खच्चर पर बैठ गया और बैठा भी तो इस शान से जैसे नेपोलियन अपने बड़े से घोड़े पर सवार आल्प्स के मुश्किलों से भरे रास्ते तय कर रहा हो.

“शाबास मेरे शेर…!” फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला, “तुम्हें राह पर लाने के लिए हमेशा एक औरत की ज़रूरत पड़ती है.”

“जी हाँ, मेरी पैदाइश के सिलसिले में भी एक औरत की ज़रूरत पड़ी थी.” हमीद जलकर बोला.

“अरे तुम तो फिलॉसफ़ी झाड़ने लगे…भई मैं दरअसल इसलिए तुम्हारी कद्र करता हूँ.”

“क़द्रदानी का शुक्रिया.” हमीद ने कहा, “इस वक़्त आप भी फिलॉसफ़र ही मालूम हो रहे हैं.”

“क्यों?”

“ईस आदत बज़ोर खच्चर नीस्त….!”

“शाबास….मैंने सुना है कि हज़रत ईसा का गधा लातीनी बोलता था, मगर तुम खच्चर पर बैठकर अच्छी-खासी फ़ारसी बोल रहे हो.”

हामिद के खच्चर ने फिर ठोकर खायी और हमीद गिरते-गिरते बचा. पीछे से ज़ोरदार हँसी की आवाज़ आई और हमीद दांत पीसता रहा. उसे सचमुच फ़रीदी पर गुस्सा आ रहा था. अगर बस ही से सफ़र किया जाता, तो कौन सी मुसीबत आ जाती. कोई तुक है कि सामान और कर्मचारी बस पर जायें और ख़ुद खच्चरों पर. फ़रीदी की ऐसी ही अजीबो-ग़रीब हरक़तों पर हमीद कभी-कभी इतना नाराज़ हो जाता था कि फ़रीदी की सूरत से नफ़रत होने लगती थी. ऐसे मौके पर वह बिना यह सोचे – समझे कि फ़रीदी उसका अफ़सर है, जो कुछ मुँह में आता, कह डालता और फ़रीदी….वह उसकी चिड़चिड़ाहट से ख़ुश हुआ करता था. वह उस वक़्त भी हमीद की झल्लायी हुई हरक़तों से ख़ुश हो रहा था.

“मेरा ख़याल है कि अब तुम इस खच्चर को कंधे पर उठा लो.” फ़रीदी फिर बोला.

हमीद ने कोई जवाब न दिया. उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था, जैसे फ़रीदी के इस जुमले पर उसके ज़हन में कोई ऐसा जुमला गूंजा हो, जिसे न कहना ही बेहतर था.

“अमाँ, तो इस तरह ख़राब मुँह क्यों बना रहे हो?” फ़रीदी ने कहा.

“तो मेरा मुँह अच्छा ही कब था?” हमीद जलकर बोला.

“मेरे ख़याल से तो अच्छा-ख़ासा था.”

हमीद फिर चुप हो गया.

थोड़ी देर बाद फ़रीदी फिर बोला, “हमीद….!”

“जी…!”

“ज़रा इन हरी-भरी पहाड़ियों की तरफ़ देखो….!”

“देख रहा हूँ.”

“कैसा लग रहा है?”

“ऐसा लग रहा है, जैसे मैं एक नंबर का गधा हूँ.” और खच्चर पर सवार हो हमीद ने कोई जवाब न दिया.

“हमीद…!”

“फ़रमाइए…!”

“इधर उस चट्टान के पास देख रहे हो…वह पहाड़ी लड़की.” फ़रीदी बोला.

“मुझे फ़िलहाल उसमें कोई दिलचस्पी नहीं….क्योंकि यह पहाड़ी खच्चर….!”

“अमाँ, खत्म भी करो.”

“अभी यह कमबख्त मुझे ही खत्म कर देता.” हमीद ने झल्ला कर खच्चर को एक डंडी मारते हुए कहा.

खच्चर एक ढलवा चट्टान की तरफ़ जा रहा था. डंडी पड़ते ही उछल पड़ा. अगर हमीद फ़ौरन उसकी गर्दन से न लिपट जाता, तो वह उसकी पीठ पर से ज़मीन पर आ जाता.

हमीद ने नीचे उतरकर उसे दो-चार डंडियाँ मारकर लगाम छोड़ दी. खच्चर ढलान में दूर तक चला गया.

“ऐ साहब, ऐ साहब.” खच्चर वाला पीछे से चिल्लाया और वह एंग्लो इंडियन लड़की अपने साथियों समेत हँसे जा रही थी. हमीद को उसकी सुरीली आवाज़ ज़हर मालूम होने लगी. उसने पलटकर उसकी तरफ़ देखा. फ़रीदी भी अपने खच्चर से उतर पड़ा था.

खच्चर वाला हमीद के खच्चर को पकड़ने के लिए दौड़ा जा रहा था.

“क्यों भई, यह क्या किया तुमने.” फ़रीदी ने हमीद से कहा.

“अब बेहतर यही है कि आप मुझे किसी ऊँची चट्टान से नीचे धकेल दें.” हमीद हाँफता हुआ बोला.

“नहीं, मैं इसे ठीक नहीं समझता.” फ़रीदी ने शरारती मुस्कराहट के साथ कहा.

“मैंने बहुत बुरा किया कि आपके साथ चला आया.” हमीद बोला.

“लेकिन इसके अलावा कोई चारा भी न था.”

“मैं अपनी मर्ज़ी का मालिक हूँ.”

“ग़लत…मैं तुम्हे बांधकर ले आता.” फ़रीदी ने कहा, “भला तुम्हारे बगैर भला ख़ाक मज़ा आता.

“आखिर आप मेरे पीछे क्यों पड़ गये हैं?”

“बहुत पुराने बदले ले रहा हूँ.”

“तो इसके लिए इतना लंबा सफ़र करने की क्या ज़रुरत थी?”

 “एडवेंचर…!”

इतनी देर में खच्चर वाला खच्चर को वापस लेकर वहीँ आ गया.

“चलो बैठो…!” फ़रीदी बोला.

“हरगिज़ नहीं…!”

“अजीब बेवकूफ़ आदमी हो.”

“कुछ भी सही.”

“बैठो बैठो…!” फ़रीदी ने दोबारा कहा.

“मैं इससे ज्यादा एडवेंचर चाहता हूँ.” हमीद ने कहा.

“यानी….!”

‘पैदल चलूंगा…” हमीद ने कहा, “और आपको भी इसकी नसीहत करता हूँ. पैदल चलना सेहत के लिए अच्छा होता है.”

“पागल हो गये हो…अभी छः मील चलना है.”

“तो क्या हुआ…!”

“अरे भई, यह पहाड़ी रास्ता है. एक ही मील चलने में काम तमाम हो जायेगा.”

“यही तो मैं चाहता हूँ.” हमीद लापरवाही से बोला.

“अजीब बेवकूफ़ से पला पड़ा है.”

“ख़ुदा का शुक्र है कि बेवकूफ़ के खच्चर से सामना नहीं पड़ा.” हमीद ने कहा.

“अरे भई, बैठो भी.”

“बिल्कुल नहीं….मैं अपने एडवेंचर का खून नहीं कर सकता.” हमीद बोला.

“जहन्नुम में जाओ…!” फ़रीदी ने कहा और अपने खच्चर पर सवार होकर आगे बढ़ गया.

खच्चर वाला खच्चर की लगाम पकड़े हुए हमीद के साथ-साथ पैदल चल रहा था. थोड़ी डोर जाकर फ़रीदी भी लौट आया.

“ले भाई संभाल इसे.” फ़रीदी अपने खच्चर की लगाम भी खच्चर वाले को थमाते हुए बोला और हमीद के साथ पैदल चलने लगा.

“ज़रा इन हरी-भरी वादियों की तरफ़ देखिये…कैसा लगता है?” हमीद मुस्कुराकर बोला.

“ऐसा लगता है जैस अभी तुम्हारी मुसीबत आने वाली है.” फ़रीदी ने कहा.

“आये शौक से आये….आखिर मुसीबत भी ज़नाना ही तो है.”

“यूं तो मौत भी ज़नाना है, मियाँ साहबज़ादे.”

“लेकिन बहुत बूढ़ी हो चुकी है, इसलिए मुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं.” हमीद मुस्कुराकर बोला.

“खैर, शुक्र है कि तू मुस्कुराया तो.”

“तो मैं रो कब रहा था.” दोंनों ख़ामोशी से चलते रहे.

“आखिर आपको अचानक रायगढ़ की क्यों याद आ गयी?” हमीद बोला.

“ज़ाबिर…!”

“ओह…तो आप उसका पीछा नहीं छोड़ेंगे?”

“मैं कसम खा चुका हूँ.”

“क्या आपको उसकी मौजूदगी की कोई पक्की ख़बर है?’

“नहीं..!”

“यानी..!”

“यहाँ कुछ किस्से ऐसे हुए हैं, जिनके बिना पर मैं सोचने पर मजबूर हुआ हूँ.”

“मेरे ख़याल से यह ज़रूरी नहीं कि उनका ताल्लुक ज़ाबिर से हो.” हमीद बोला.

“यह तुम सिर्फ़ इसलिए कह रहे हो क्योंकि तुमने उसके तरीकों को जानते नहीं हो.” फ़रीदी ने कहा, “क्या तुमने आज तक किसी कबूतर के पंजों के ज़हरीले होने के बारे में सुना है?”

‘नहीं…!”

 “अगर किसी शख्स की मौत कबूतर के नाखून लगने से हो जाये, तो तुम उसे क्या कहोगे?”

“एक हैरत-अंगेज़ किस्सा, जिस पर यकीन न किया जा सके.”

“इतना ही यकीन नहीं, जितना ज़हर खाने वाले के केस का मिर्गी की बीमारी में बदल जाना.”

“ओह…”

“रामगढ़ के नौजवान कबूतरबाज़ रईस की मौत इसी तरह हुई. वह कबूतर पकड़ने की कोशिश कर रहा था. इत्तेफ़ाक से कबूतर का पंजा लग गया और एक घंटे के अंदर उसकी मौत हो गयी. बाद में कबूतर के पंजों का मुआयना करने पर पता चला कि उसके एक नाखून पर किसी धातु का एक हल्का-सा खोल चढ़ा हुआ था. बहरहाल, देखने से वह नाखून नहीं मालूम होता था और वह खोल ज़हरीला था. क्या तुम समझते हो कि यह किसी मामूली आदमी का काम है? जाबिर को ज़हरों के बारे में बहुत जानकारी है.”

“खैर, यह भी सही.” हमीद बोला, “लेकिन आप उसे कहाँ-कहाँ ढूंढते फिरेंगे?’ हो सकता है वह आपके आने की ख़बर सुनकर कहीं और चला जाये.”

“देखा जायेगा.”

“हम ठहरेंगे कहाँ?”

“दिलकशा में…!”

“यह क्या है?’

“एक ईमारत का नाम…बड़ी अच्छी जगह पर आबाद है.”

“अच्छा, उस कबूतर वाले मामले को कितने दिन हुआ?”

 “लगभग एक हफ़्ता.”

“ऐसे अजीबो-ग़रीब हादसे के बारे में तो अख़बारों में भी अना चाहिए था.”

“हाँ, इस बात कोई आउट नहीं किया गया था. वाक़या दरअसल यह है कि मरने वाले में यह सारी निशानी मौजूद थी, जो ज़हर खाने पर ज़ाहिर होती है, इसलिए लोगों ने यही समझा कि उसे किसी ने ज़हर खिलाया है. रामगढ़ के एस.पी. ने तहकीकात के दौरान पता लगाया कि उसने मरने से एक घंटा पहले कोई कबूतर पकड़ा था. उसने यूं ही बिना मतलब कबूतर को देखने की ख्वाहिश ज़ाहिर की. जिस वक़्त वह उसे हाथ में उठाये देख रहा था, उसने पंजे चलाने शुरू कर दिये. इत्तेफ़ाक से उसका एक नाखून एस.पी. के कोट के बटन में फंस गया. उसने झटके के साथ उसे निकलने की कोशिश की…नाखून तो निकल आया, लेकिन उस पर चढ़ा हुआ खोल कोट ही में अटक कर रह गया. उसने खोल निकलकर एहतियात से रख लिया और कबूतर को भी अपने साथ लेता आया. उसने पता लगाने के लिए उस नुकीले खोल को एक बिल्ली को चुभो कर देखा. लगभग एक घंटे के बाद वह बिल्ली तड़प-तड़प मर गयी. मामला हद से ज्यादा पेंचीदा हो गया था. इसलिए उसने इसका बयान अपनी रिपोर्ट में नहीं लिया. पहले तो वह ख़ुद ही छिपे तौर पर कबूतर के बारे में छान-बीन करता रहा. लेकिन जब उसे कोई कामयाबी नहीं मिली, तो उसने मुझे लिखा. वह मेरा क्लासफ़ेलो रह चुका है. इसलिए मैं उसकी दरख्वास्त को रद्द न कर सका.

“तो आपने मुझे इसके बारे में क्यों नहीं बताया?” हमीद बोला.

“अगर मैं पहले ही बताता, तो तुम यहाँ आने के लिए कभी छुट्टी न लेते.”

“तो इसका मतलब है कि आप मुझे धोखा देकर यहाँ लाये हैं.”

“यही समझ लो…”

“अब मैं बहुत जल्द यह नौकरी छोड़ दूंगा.” हमीद ने कहा.

“लेकिन क्या तुम मुझे छोड़ सकोगे?” फ़रीदी ने पूछा.

“यही तो सबसे बड़ी मुसीबत है.” हमीद ख़ामोश हो गया. वह चलते-चलते थक गया था.

“क्यों भई क्या वाक़ई पैदल ही चलोगे”’ फ़रीदी बोला.

“इरादा तो यही था…मगर खैर….!” हमीद ने कहा और खच्चर वाले के हाथ से लगाम लेकर खच्चर पर बैठ गया.

फ़रीदी भी खच्चर पर सवार हो गया.

“फ़िलहाल हम लोग माथुर के यहाँ चलेंगे.”

“माथुर कौन..?”

“यहाँ का एस.पी. है, जिसने हमें बुलाया है.”

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