चैप्टर 10 नकली नाक : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 10 Nakli Naak Ibne Safi Novel In Hindi

Chapter 10 Nakli Naak Ibne Safi Novel

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Chapter 10 Nakli Naak Ibne Safi Novel

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कबूतरों का खून

“बहुत ही बदतमीजी का सबूत है। अगर कैद ही करना था, तो यह एक सिरे से नंगा करने की क्या ज़रूरत थी?” हमीद नकाबपोश से बोला।

“मैं क्या जानूं? ये तो फ़रीदी साहब ही बता सकते हैं।” नकाबपोश ने जवाब दिया।

“फ़रीदी साहब…क्या मतलब!”

“जी हाँ…आप भी के कैदी हैं।” नकाबपोश बोला।

“क्या बकते हो? इतने बड़े हो गए और तुम्हें झूठ बोलना भी नहीं आया और यह पिस्तौल ताने क्यों खड़े हो? हटाओ इसको, मैं भागा थोड़ी जा रहा हूँ।”

“लीजिए आपको यकीन नहीं आ रहा था, तो खुद देख लीजिए फ़रीदी साहब खुद आ रहे हैं ।” नकाबपोश ने इशारा किया। इतने में वह कमरे में दाखिल हुआ।

“आप?” हमीद का मुँह खुला रह गया।

“इसके दोनों हाथ पीछे से अच्छी तरह बांध दो।” उसने नकाबपोश को खत्म किया।

हम इतने गौर से उसको देखा, “ओह तुम…” उसके मुँह से निकला।

“अगर तुमने ज़रा भी हरकत की तो..”

“तो तुम गोली चला दोगे।” हनीद ने जुमला पूरा किया, “लो बांध लो।” हमीद ने मुँह बना कर कहा।

आदमी हमीद के दोनों हाथ बांध कर कुछ नकाबपोशों से, “इनको कबूतर खाने में ले जाओ। मैं चिराग लेकर आता हूँ।”

थोड़ी देर बाद बाद चिराग लेकर वहाँ आ गया, जहाँ हमीद उस आदमी के साथ पहले ही से खड़ा था। कमरे में हजारों कबूतर पड़े हुए थे, जिनके पेट चीर दिए गए थे।

“देखा..!” उसने हमीद से पूछा।

“हाँ देख लिया ।” हमीद ने बेदिली से जवाब दिया।

“नहीं इधर देखो!”

उसने अपनी नाक को पकड़कर एक झटका दिया। हमीद ने देखा कि उसकी बनावटी नाक गायब है और उसकी जगह पर एक बड़ा सा गहरा छेद है। हमीद ने फ़ौरन ऑंखें बंद कर ली।

“ज़ाबिर!” उसके मुँह से निकला।

ज़ाबिर ने एक ज़ोरदार कहकहा लगाया और अपनी नाक लगाते हुए बोला, “देखा! यह मेरा एक मामूली सा करिश्मा है। तुम्हारा उस्ताद भला मेरा क्या मुकाबला कर सकता है?”

“ज़ाबिर, मैं मानता हूँ कि भेष बदलने में तुम उस्ताद हो। फ़रीदी का भेष इस सफाई से बदला है कि कोई तुम्हें पहचान ही नहीं सकता। मैं ख़ुद थोड़ी देर के लिए धोखा खा गया था। लेकिन यह याद रखो कि तुम सूरत से फ़रीदी बन सकते हो, उसका दिमाग नहीं पा सकते।” हमीद ने जवाब दिया।

“खैर छोड़ो…आओ! मैं तुम्हें अपने कबूतर दिखाऊं। यह देखो जज सिद्दीकी अहमद साहब का प्यारा कबूतर कमरी। बिल्कुल असल नस्ल का है।” ज़ाबिर ने हमीद को साथ लेकर कमरे में दाखिल होते हुए कहा।

“और यह नवाबजादा शाकिर अली का वह अफ़्रीकी ‘शीराजी’ है, जिसकी मुझे काफ़ी दिनों से तलाश थी। इसकी नस्ल बहुत कम है। यह सिर्फ अफ्रीका के जंगलों में पाया जाता है। इनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि उनके खून में कुछ मिठास होती है, जो इंसान के जिगर को बदल देने की ताकत रखती है। इत्तेफ़ाक से मैंने यह कबूतर शाकिर अली के यहाँ देखा और इसको हासिल करने के लिए मुझे एक खून करना पड़ा।” ज़ाबिर लाल धागे से बंधे हुए एक कबूतर को उठाते हुए बोला।

बदबू से हमीद कादिमाग फटा जा रहा था। उसने तंग आकर कहा कहा, “हाँ हाँ! मैंने सब देख लिया।”

“वाह…लंपट मक्खी तो तुम्हें देखा ही नहीं!” जाबिर ने एक कबूतर की तरफ इशारा किया, “यह कबूतर ज़फर अली साहब के एक दोस्त उनके लिए अरब से लाए थे। इसकी हड्डियाँ बड़े काम के लायक होती है। उनसे चेहरे का रंग बदल देने का एक ऐसा पाउडर तैयार होता है, जो बगैर दवाओं की मदद से नहीं छूटता। स्विजरलैंड में तीन साल तक मैं इस पाउडर की मदद से अपना रंग बदले हुए था और यह चांदना है, यह जोगी बीर, यह गफूरी, यह लट्ठमाया गिरबाज।” ज़ाबिर ने अलग-अलग कबूतरों की तरफ इशारा किया।

“अच्छा, अब तुम चलो। आराम करो, मुझे तुम्हारे साथ कुछ बातें करनी है।”

ज़ाबिर ने हमीद को एक नकाबपोश के हवाले किया और ख़ुद अपने कमरे की तरफ चला गया।

कमरे में पहुँचकर उसने अलमारी का पर्दा हटाया।

“कहिए फ़रीदी साहब, ज़ाबिर की ताकत का आपको अंदाज़ा हो गया। अब भी बेहतर है कि तुम मेरे रास्ते से हट जाओ…” ज़ाबिर ने फ़रीदी का मुँह खोलते हुए कहा। फ़रीदी ने थक कर अपनी आँखें बंद कर ली थी।

“अच्छा! अब तुम अलमारी में से निकल आओ।”

ज़ाबिर ने फ़रीदी के आसपास लिपटी हुई रस्सियों की खोल दिया, लेकिन उसके हाथ बंधे रहने दिये।

रस्सी खुलते ही फ़रीदी जमीन पर गिरकर बेहोश हो गया। ज़ाबिर उसको होश में लाने के लिए उसके मुँह पर पानी के छींटे देने लगा। थोड़ी देर बाद फ़रीदी को होश आ गया।

“फ़रीदी! तुम्हारी अक्लमंदी का मुझे इकरार है और मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे खून से अपने हाथ रंगू। बेहतर है तुम मुझे भी दोनों किताबें ‘रूह और उसकी अहमियत’ और ‘खूनी खाके’ वापस करके मेरा पीछा छोड़ दो। इन किताबों को हासिल करने के लिए मुझे क्या-क्या करना पड़ा है, यह मैं ही जानता हूँ।”

“ज़ाबिर अगर तुम यह समझते हो कि मैं इस वक्त तुम्हारे बस में हूँ और डर के मारे मैं अपनी जिम्मेदारी से हट जाऊंगा, तो तुम्हारा यह ख़याल गलत है। मैं तुम जैसे लोगों को, जो एक खतरनाक जहर की तरह इंसानों की ज़िंदगियाँ तबाह करने पर तुले हुए हो खत्म कर देना चाहता हूँ। मैं अगर मौत से डरता, तो यह नौकरी ना करता। तुम्हारे हाथ में पिस्तौल है, तुम मुझे खत्म कर सकते हो। लेकिन वे किताबें, जिनसे तुम और तुम्हारे साथी गलत फायदा उठायेंगे, मैं कभी तुम्हरे हवाले नहीं कर सकता।”

“फ़रीदी! ” ज़ाबिर ने गुस्से से कहा, “बेहतर है कि तुम अपने फैसले पर फिर एक बार गौर करो। तुमने अब तक मुझे काफी नुकसान पहुँचाया है और मैं टालता रहा। लेकिन इस बार में इतने बड़े नुकसान को बर्दाश्त नहीं कर सकता।”

“नुकसान और तुम्हारा, जैसे सभी किताबें तुम्हारे बाप दादा की जागीर है।”

“हद से आगे मत बढ़ो फ़रीदी! तुम भूल रहे हो कि तुम उस वक़्त ज़ाबिर से बातें कर रहे हो।”

“और ज़ाबिर तुम भी यह मत भूलो कि आज तुमने नवाज रशीदुज्जमा वगैरह के साथ बदतमीजी की है। इससे मेरा खून खौल रहा है।”

“अभी क्या किया है? अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी, तो इससे भी बुरा नतीजा होगा। खैर! इस वक्त रात के ग्यारह बजे है, मैं कल बारह बजे रात तक तुम्हें मौका देता हूँ, क्योंकि कल रात मुझे सेठ चुन्नीलाल की लड़की के गले से हीरे का हार और हर नारायण एंड संस की तिजोरी से सिर्फ  पचास लाख लेने हैं और लगे हाथों रशीदुज्जमा से भी मुलाकात करूंगा…दोबारा मिलकर ज़रूर खुश होंगे और इस तहरीर से कुछ रुपए मिल जायेंगे।” ज़ाबिर हँसा, “जानते हो फ़रीदी! मुझे तुम्हारा भेष और आवाज बदलने के लिए काफ़ी दिनों तक प्रैक्टिस करनी पड़ी है और अब मैं इतना कामयाब हो गया हूँ कि नवाब रशीदुज्जमा, गज़ाला और माथुर –  कोई मुझे नहीं पहचान सका। मजे की बात यह है कि हमीद भी थोड़ी देर के लिए धोखा खा गया था।”

“हमीद क्या, मैं ख़ुद तुम्हें एक नज़र में पहचान नहीं सका था। लेकिन ज़ाबिर याद रखो कि तुम ज्यादा दिनों तक लोगों को धोखा नहीं दे सकते। एक फ़रीदी मर सकता है। लेकिन यह ना भूलो कि हजारों फ़रीदी पैदा हो सकते हैं।” फ़रीदी बोला।

“मुझे परवाह नहीं! मैं अपने रास्ते में आने वाले लोगों को पत्थर के एक मामूली टुकड़े की तरह अपनी ठोकर से हटा देता हूँ।”

“अच्छा अब मैं चला। ठीक बारह बजे यहाँ  पहुँच जाऊंगा। तुम अपना फैसला सोच रखना।”

यह कहता हुआ ज़ाबिर बाहर निकल गया, फ़रीदी को कमरे में बंद कर गया।

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