चैप्टर 19 : मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशान नॉवेल | Chapter 19 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Urdu Novel In Hindi Translation

Chapter 19 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

Chapter 19 Meri Zaat Zarra-e-Benishan Novel

Chapter 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 12 | 13141516 17 | 181920 2122 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31

Prev | Next | All Chapters

“अंकल! मुझे आपसे एक बात कहना है।” उस दिन उसने नाश्ते की मेज पर आफ़रीन से कहा, “क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मैं अपनी अम्मी के घर में रहूं। वह घर खाली है, फिर इस तरह आपको यह एतराज़ भी नहीं होगा कि मैं कभी अकेली रह रही हूँ क्योंकि पास फूफी और दूसरे लोगों के घर हैं।”

आफ़रीन उसकी बात पर हैरान रह गया।

“सारा! तुम किस तरह की बातें सोचती रहती हो। अगर तुम वहाँ से हो आई हो, इसका मतलब ये नहीं कि तुम वहाँ मुस्तकिल (स्थायी तौर पर) रहने के बारे में सोचने लगो। आखिर तुम्हें इस घर में क्या कमी है? तुम यहाँ ख़ुश क्यों नहीं हो?”  उन्होंने नाश्ता छोड़ दिया था।

“बात ख़ुशी या ना ख़ुशी की है, तो फिर मुझे अम्मी के घर में रहकर ज्यादा ख़ुशी होगी और फिर वह भी आपका ही घर है। मैं आपके घर में ही रहूंगी, चाहे यहाँ या वहाँ।”

“लेकिन मुझे तुम्हारा वहाँ रहना पसंद नहीं है और ना ही मुझे मैं तुम्हें इसकी इज़ाज़त दूंगा। अगर सबा ज़िन्दा होती, तो वह भी तुम्हें कभी उस घर में जाने नहीं देती।”

वह उनकी बातों पर झल्ला गई, “आखिर वह क्यों मुझे वहाँ जाने नहीं देती? ऐसी क्या बात हुई है वहाँ? ऐसा कौन सा काम कर दिया है उन्होंने कि वो कभी अपने घर वापस ही नहीं आई। हालांकि उन्हें आना चाहिए था। उन्हें देखना चाहिए था कि सब लोग उनकी गलती को भुला चुके हैं, उन्हें माफ़ कर चुके हैं। खानदान की मर्ज़ी के खिलाफ़ शादी ना-मुनासिब बात सही, लेकिन इतना बड़ा ज़ुर्म नहीं था कि वह हमेशा के लिए अपने खानदान से कटकर रह जाती। उन्होंने सारी उम्र मुझे भी तन्हाई के अज़ाब (दुःख) से दो-चार रखा, लेकिन अब मैं सब से मिलना चाहती हूँ, सबके पास जाना चाहती हूँ।”

पहली बार इस तरह ज़ज्बाती होकर बोली थी। हैदर को उस पर तरस आ गया, “पापा! मेरा ख़याल है कि अगर ये अपनी अम्मी के घर जाना चाहती हैं, तो यह कोई ऐसी नामुनासिब बात नहीं, बल्कि मेरा ख़याल है यहाँ के बजाय इनका वहाँ रहना ज्यादा बेहतर होगा।”

वह उसकी हिमायत में बोला था, लेकिन आपने अब बाद में उसे बुरी तरह झिड़क दिया, “यू मस्ट कीप योर माउथ शट। इट इज नन ऑफ योर बिजनेस।”

हैदर को तवक्को नहीं थी कि वह सारा के सामने उसे बुरी तरह झिड़क देंगे। वह सुर्ख चेहरे के साथ नाश्ता छोड़कर चला गया।

“आप मुझे बतायें, आप ने क्या फ़ैसला किया है?” सारा अपनी बात पर कायम थी।

“सारा! सबा कभी भी इतनी मामूली सी बात पर इस तरह ज़िद नहीं करती थी, जिस तरह से तुम कर रही हो।” आफ़रीन ने उससे कहा।

सारा ने अजीब सी नज़रों से उनको देखा।

“मगर मैं बहुत से ऐसे काम नहीं करूंगी, जो अम्मी ने किये।”

वह उसकी बात पर चौंक गये।

“नहीं सारा! मैं तुम्हें उस घर में कभी रहने नहीं दूंगा।” उन्होंने अपना फ़ैसला सुना दिया।

“ठीक है। फिर आप मेरे नाना से बात करें। उनके पास जाना चाहती हूँ।”

आफ़रीन बेबसी से उसका चेहरा देखकर रह गए थे। वह पहली दफ़ा उससे यूं ज़िद करते हुए देख रहे थे।

“ठीक है मैं तुम्हारे नाना से बात करूंगा।”

“आप मुझे बतायें कि आप कब बात करेंगे?”

“चंद दिनों तक।” वह बेदिली से कहकर नाश्ते की मेज़ से उठ गये।

तीन दिन बाद ही उस रात उन्होंने उसे अपने कमरे में बुलवाया।

“मैंने तुम्हारी ख़ाला से बात की है। थोड़ी देर में ऑपरेटर दोबारा कॉल मिलवा देगा। तुम उनसे बात कर लेना।” उसे देखते हैं उन्होंने कहा।

उसके दिल की धड़कन एकदम तेज हो गई। फिर फोन की बेल बजने लगी। आफ़रीन ने फोन उठाया और फिर उसे थमा दिया। उसने कांपते हाथों के साथ रिसीवर पकड़ा। चंद लम्हों बाद उसने किसी औरत की आवाज सुनी।

“हलो सारा!”

“हलो!” उसने एक लफ्ज़ कहा और एकदम दूसरी तरफ से हिचकियों की आवाजें आने लगी।

“मैं तुम्हारी अक्सा ख़ाला हूँ, तुम कैसी हो?” वह औरत रोते हुए कह रही थी। सारा का दिल भर आया।

“मैं ठीक हूँ।”

“सारा मेरा दिल चाह रहा है, तुम मेरे पास होती और मैं तुम्हें गले लगाकर इतना प्यार करती, इतना प्यार करती है…” किसी ने अब तक ख़ाला के हाथ से फोन ले लिया था और कोई उन्हें चुप हो जाने की तलक़ीन (नसीहत) कर रहा था। फिर उसने फोन पर किसी मर्द की आवाज सुनी।

“सारा! मैं तुम्हारा मामू हूँ। देखो तुम परेशान मत होना, ना ही कोई फ़िक्र करना। चंद दिनों तक तुम्हारी अक्सा ख़ाला पाकिस्तान आयेंगी। तुम्हारे कागजात वगैरह तैयार करवाकर वह तुम्हें अपने साथ अमेरिका ले आयेंगी।”

बड़े ठहरे हुए लहजे में उन्होंने ऐसा कहा था। किसी ने न उसकी अम्मी का ज़िक्र किया था, ना उसकी किसी गलती का। वह शायद सब कुछ भुला चुके थे। चंद मिनट वह उससे गुफ्तगू करते रहे थे। उन्होंने इससे ख़ुदा हाफ़िज़ कहा। अक्सा ख़ाला अभी भी रो रही थी। अजीम मामू ने फोन उनके हाथ में थमा दिया और फिर उन्होंने उसी तरह रोते हुए उसे अपना ख़याल रखने की हिदायत करके फोन बंद कर दिया।

“अक्सा ख़ाला कुछ दिनों बाद पाकिस्तान आयेंगी और फिर मुझे अपने साथ ले जायेंगी।” उसने फोन का रिसीवर रखते हुए आफ़रीन अब्बास को बताया। उनका चेहरा धुआं-धुआं हो गया।

“तुम जानती हो सबा तुम्हें मेरे पास रखना चाहती थी!”

“मैं जानती हूँ, लेकिन तब उन्हें कोई अंदाज़ा नहीं होगा कि उनके घरवाले मुझे कबूल कर लेंगे। वो अम्मी कि हर गलती को माफ़…!”

“सारा इतनी जल्दी नतीजे पर मत पहुँचो, तुम जो कुछ समझ रही हो वह सब गलत है।” आफ़रीन अब्बस ने उसकी बात काट दी।

“फिर आप मुझे बतायें हकीकत क्या है?” उसने उनसे पूछा।

वह बेकरारी से उठकर खड़े हो गए। सारा को उन पर बेतहाशा तरस आया।

‘मैं जानती हूँ, आप क्या छुपाना चाहते हैं। मैं यह भी जानती हूँ कि आपका दिल कितना बड़ा है, लेकिन मैं दाइमी (स्थायी) घाव की तरह आपके पास रहना नहीं चाहती। मैं चली जाऊंगी, तो आप आहिस्ता-आहिस्ता नॉर्मल हो जायेंगे। बाकी ज़िन्दगी आपके लिए और मेरे लिए आसान हो जायेगी। मैं यहाँ रहूंगी, तो ना आप माज़ी भूल सकेंगे ना मैं अपनी हैसियत। मुझे आपसे मोहब्बत है आफ़रीन अंकल, इसलिए मैं आपको हर उस ज़िम्मेदारी से आज़ाद कर देना चाहती हूँ, जो आइंदा कभी आपको हैदर और उसके बीवी बच्चों की नज़र में शर्मिंदा करें।”

सारा ने दिल में सोचा और फिर वह नम आँखों के साथ सामने के कमरे में चली गई।

Prev | Next | All Chapters

Chapter 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 12 | 13141516 17 | 181920 2122 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31

पढ़ें :

ज़िन्दगी गुलज़ार है उर्दू नावेल हिंदी में 

मेरे हमदम मेरे दोस्त उर्दू नावेल हिंदी में 

Leave a Comment