Chapter 1 Jungle Mein Lash Ibne Safi Novel
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Chapter 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8| 9| 10 | 11 | 12 | 13 | 14 |
जंगल में फ़ायर
गर्मियों की अंधेरी रात थी। घंटों करवटें बदलने के बाद कोतवाली इंचार्ज स्पेक्टर सुधीर की बस आँख लगी ही थी कि एक सब-इंस्पेक्टर ने आकर उसे जगा दिया।
“क्या है भाई? क्या आफत आ गई?” वह झल्लाता हुआ बोला।
“सब खत्म हो गया है…?”
“क्या मतलब…?”
“एक आदमी धर्मपुर के जंगलों में एक लाश देखकर ख़बर देने आया है।”
“इतनी रात गये धर्मपुर के जंगलों में वह आदमी क्या कर रहा था?” स्पेक्टर सुधीर ने बिस्तर से उतरते हुए कहा।
“मैंने उसे कुछ सवाल नहीं किया। मैं यहाँ चला आया।” सब-इंस्पेक्टर ने जवाब दिया।
दोनों तेज कदमों से चलते हुए दफ्तर जा पहुँचे। इंस्पेक्टर सुधीर ने ख़बर लाने वाले अजनबी को घूर कर देखा। एक नौजवान था। उसके चेहरे पर घबराहट नजर आ रही थी। टाई की गांठ ढीली होकर कॉलर के नीचे लटक आई थी। बालों पर जमी हुई धूल से ज़ाहिर हो रहा था कि वह बहुत दूर का सफ़र करके आ रहा है। उसकी साँस अभी तक फूल रही थी।
“क्यों भाई…. क्या बात है?” सुधीर तेज़ आवाज में पूछा।
“मैं अभी-अभी….धर्मपुर के जंगल में एक औरत की लाश देखकर आ रहा हूँ।” उसने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा।
“लेकिन आप धर्मपुर के जंगल में क्या कर रहे थे?” सुधीर ने कहा।
“मैं दरअसल जलालपुर से वापस आ रहा था।”
“जलालपुर से….? जलालपुर यहाँ से लगभग बीस मील की दूरी पर है। आप किस सवारी पर आ रहे थे?”
“मोटरसाइकिल पर…जब मैं जोसेफ रोड से पीटर रोड की तरफ़ मुड़ने लगा, तो मैंने सड़क के किनारे एक औरत की लाश देखी। उसका ब्लाउज खून से तर था। उफ्फ मेरे खुदा, इतना भयानक मंज़र था….मैं उसे ज़िन्दगी भर न भुला सकूंगा।
“आप जलालपुर में रहते हैं?”
“जी नहीं….मैं तो शहर में रहता हूँ। एक दोस्त से मिलने जलालपुर गया था।“
“तो इतनी रात वहाँ से वापसी की क्या ज़रूरत पड़ गई थी?”
“सर, मैं तो ख़ुद करके आपको खबर देने नहीं आया।” अजनबी ने झुंझला कर कहा, “मैंने एक लाश देखी और एक शहरी होने की हैसियत से अपना फ़र्ज़ समझा की पुलिस को इत्तला दे दूं।“
“नाराज़ होने की ज़रूरत नहीं….!” सुधीर ने संज़ीदगी से कहा, “मैं भी अपना फ़र्ज़ ही अदा कर रहा हूँ……आपका क्या नाम है?”
“मुझे रणधीर सिंह कहते हैं।“
“आप क्या काम करते हैं?”
“उफ़ मेरे ख़ुदा! मैंने आकर गलती की। उसने परेशान होते हुए कहा, “अरे साहब मैं आपके साथ ही चलूंगा।”
“चलना तो पड़ेगा ही….खैर, अच्छा, आप बहुत ज्यादा परेशान मालूम होते हैं, फिर सही….दरोगा जी ज़रा जल्दी से तीन कांस्टेबलों को तैयार कर लीजिए और इस वक्त ड्यूटी पर जो ड्राइवर हो, उसे भी बुलवा लीजिए।“
थोड़ी देर बाद पुलिस की लॉरी पीटर रोड पर धर्मपुर की तरफ़ जा रही थी। रात बहुत अंधेरी थी। सन्नाटे में लॉरी की आवाज दूर तक सुनाई दे रही थी। लॉरी की हेड लाइटों की रोशनी दूर तक सड़क पर फैल रही थी। सड़क के मोड़ से लगभग दो फर्लांग की दूरी पर एक बड़ा सा पेड़ सड़क पर गिरा हुआ नज़र आया।
“अरे यह क्या…?” अजनबी चौंक कर बोला।
लॉरी पेड़ के पास आकर रुक गई।
“मैं आपसे कसम खाकर कहता हूँ कि अभी आधा घंटा पहले मैं इधर से गुज़रा, तो यह पेड़ यहाँ नहीं था।” अजनबी ने परेशान होते हुए कहा।
सब लोग लॉरी से उतर आये।
“आप भी कमाल करते हैं।आपकी बात पर किसी यकीन आएगा। जाहिर है, आज आंधी भी नहीं आई। यह भी साफ है कि पेड़ काटा गया है और आधे घंटे में इतने मोटे तने वाले पेड़ को काट डाला आसान काम नहीं।
“अब मैं आपसे क्या कहूं।” अजनबी ने अपने सूखे होठों पर ज़बान फेरते हुए कहा।
“खैर, यह बाद में सोचा जायेगा।” कोतवाली इंचार्ज तेज़ आवाज़ में बोला, “अबे ज्यादा यहाँ से कितनी दूर है?”
“ज्यादा से ज्यादा दो ढाई फर्लांग…!” अजनबी ने जवाब दिया।
लॉरी वही छोड़कर यह पार्टी टॉर्च की रोशनी में आगे बढ़ी। सुनसान सड़क पुलिस वालों के भारी-भरकम जूतों की आवाज से गूंज रही थी।
“उफ्फ मेरे ख़ुदा…!” अजनबी ने चलते चलते रुक कर कहा।
“क्यों क्या बात है?” कोतवाली इंचार्ज बोला।
“नहीं मैं पागल ना हो जाऊं।” अजनबी ने बेचैनी में अपनी नाक रगड़ते हुए करते हुए कहा।
“ए मिस्टर! तुम्हारा मतलब क्या है?” कोतवाली इंचार्ज ने गरज कर कहा।
“मैंने बोला यहीं देखी थी मगर मगर!”
“मगर…मगर क्या कर रहे हो? यहाँ तो कुछ भी नहीं है।“
“यही तो हैरत है।“
“सरकार, यहाँ भूत-प्रेत ज्यादा रहते हैं।” एक कांस्टेबल ने मिनमिनाती आवाज में कहा।
“बको मत!” कोतवाली इंचार्ज चीख कर बोला। वह गुस्से में तमतमा रहा था।
“मैं तो बड़ी मुश्किल में फंस गया।” अजनबी ने धीमी आवाज में कहा।
“अभी कहाँ…अब फसेंगे आप मुश्किल में।” कोतवाली इंचार्ज ने सख्त आवाज़ में कहा, “जबरदस्ती परेशान किया। क्या तुमने रुक कर करीब से लाश देखी थी?”
“जी हाँ….उसके सीने से खून उछल रहा था।“
“अजीब लाश थी, कहीं जमीन पर खून का धब्बा तक दिखाई नहीं देता।” कोतवाली इंचार्ज ने झुक कर टॉर्च की रोशनी में जमीन को गौर से देखते हुए कहा।
“मैं कसम खाकर…!”
“बस बस…. रहने दो। बेकार ही वक़्त बर्बाद कराया।, “कोतवाली इंचार्ज ने उसकी बात काटते हुए कहा।
“मैं कहता हूँ सरकार, भूत….!”
“ठांय!!!” अचानक फायर की आवाज़ ने सबको बौखला कर रख दिया। कोतवाली इंचार्ज का हाथ पिस्तौल केस ही पर था कि दूसरा फ़ायर हुआ। फिर तीसरा…. चौथा….अब ऐसा मालूम हो रहा था, जैसे बहुत से आदमी एक साथ बंदूक के चला रहे हैं। कोतवाली इंचार्ज और सब-इंस्पेक्टर ने अपने पिस्तौल निकाल कर पेड़ों की आड़ ले ली। लेकिन उन्हें जल्दी वहाँ से भागना पड़ा, क्योंकि उनके पीछे से भी फ़ायर होने शुरू हो गए थे। तभी एक चीज सुनाई थी….फिर दूसरी और एक सिपाही लड़खड़ा कर गिर पड़ा। फिर उठ कर भागा। यह लोग छुपते-छुपाते लॉरी तक पहुँच पाये। जिस वक्त ड्राइवर लॉरी बैक कर रहा था, करीब से दोबारा फ़ायर होने शुरू हो गए।
लॉरी तेज रफ्तार से शहर की तरफ़ जा रही थी। फ़ायर अब तक सुनाई दे रहे थे। एक सिपाही के बाजू पर गोली लगी थी। कराह रहा था।
“लेकिन…वह…वह कहाँ गया?” सब-इंस्पेक्टर ने भर्रायी हुई आवाज़ में कहा।
“पानी में….!” कोतवाली इंचार्ज ने चीखते हुए कहा, “मुझसे ज्यादा बेवकूफ़ शायद दूसरा ना मिले। आखिर मैं अच्छी तरह इत्मीनान किए बगैर उसके साथ चला क्यों आया? कमबख्त का पता भी तो मालूम ना हो सका। हम लोगों की जान लेने की एक बेहतरीन साज़िश थी।“
“मगर साहब….वह किसी तरह भी झूठा नहीं मालूम होता था।” सब इंस्पेक्टर ने कहा।
“बाईस साल से इस महकमे में झक नहीं मार रहा, दरोगा जी।” कोतवाली इंचार्ज ने कहा, “अभी आप का तज़ुर्बा ही कितना है। मैं एक मील से मुज़रिम को सूंघ लेता हूँ। मुझे शुरु से ही उस पर शक था। आखिर वही हुआ, जिसका डर था। मगर यह किसी बहुत बड़े गिरोह का काम मालूम होता है।”
“अरे, इसका तो मुझे ख़याल ही ना आया था।” सब इंस्पेक्टर जल्दी से बोला, “हम लोग बाल-बाल बच गये।”
“अलबत्ता, बेचारा किरण सिंह बुरी तरह जख्मी हो गया।” कोतवाली इंचार्ज ने कहा, “अब मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं सुपरिंटेंडेंट साहब को अपनी इस बेवकूफी का क्या जवाब दूंगा।”
थोड़ी देर बाद सब चुप हो गये। अलबत्ता, किरण सिंह की कराहें अब तक जारी थी। गनीमत ये हुआ था कि गोली हड्डी को कोई नुकसान पहुँचाए बगैर बाजू के गोश्त को भेदती हुई निकल गई थी।
“क्यों ना हम लोग फिर वहीँ चले, इस तरह भाग निकलना तो ठीक नहीं।” सब-इंस्पेक्टर ने कहा।
“पागल हो गए हो।” इंचार्ज बोला, “हमारे पास दो-तीन पिस्तौल के अलावा और है ही क्या? उधर न जाने कितने हों। मेरा ख़याल है कि पंद्रह-बीस से कम न होंगे।”
“अच्छी बेवकूफी हुई।” सब-इंस्पेक्टर धीरे से बोला.
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