चैप्टर 1 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 1 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 1 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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चौदहवीं की चांदनी पहाड़ियों पर भी बिखरी हुई थी। सन्नाटे और चांदनी की रोशनी में नहाई और पहाड़ों में चक्कर खाती हुई काली सड़क किसी बल खाये सांप जैसी लग रही थी। और इसी सड़क पर एक लंबी सी कार दौड़ती चली जा रही थी। तभी अचानक में कार एक जगह रुकी और स्टीयरिंग के सामने बैठा हुआ आदमी बड़बड़ाने लगा, “क्या हो गया है भई?”

उसने उसे दोबारा स्टार्ट किया। इंजन जागा, एक छोटी सी अंगड़ाई ली और फिर सो गया।

कई बार स्टार्ट करने के बावजूद इंजन होश में ना आया।

“यार धक्का लगाना पड़ेगा।” उसने पीछे मुड़कर कहा।

मगर पिछली सीट से खर्राटे ही बुलंद होते रहे। उसने दोनों घुटने सीट पर टेक कर बैठते हुए सोने वाले को बुरी तरह से झिंझोड़ना शुरु कर दिया, लेकिन खर्राटे बराबर जारी रहे। आखिर जगाने वाला सोने वाले पर चढ़ा ही बैठा।

“अरे अरे बचाओ बचाओ!” अचानक होने वाले ने गला फाड़ना शुरू कर दिया। लेकिन जगाने वाले ने किसी ना किसी तरह खींच-खांचकर उसे नीचे उतार ही दिया।

“हांय ! मैं कहाँ हूँ?” जागने वाला आँखें मलमल का चारों तरफ देखने लगा।

“इमरान के बच्चे, होश में आओ!” दूसरे ने कहा।

“बच्चे…ख़ुदा कसम एक भी नहीं है…अभी तो मुर्गी अंडों की पर बैठी हुई है…सुपर फैयाज़!”

“कार स्टार्ट नहीं हो रही है।” कैप्टन फैयाज़ ने कहा।

“जब चले थे, तब तो स्टार्ट हो गई थी।”

“चलो धक्का लगाओ।”

इमरान ने उसके कंधे पकड़े और धकेलता हुआ आगे बढ़ने लगा।

“यह क्या बेहूदगी है? मैं थप्पड़ मार दूंगा।” फैयाज़ पलट कर उससे लिपट गया।

“हाय हाय अरे, मैं हूँ…मर्द हूँ।”

“कार धक्का दिये बगैर स्टार्ट नहीं होगी।” फैयाज़ गला फाड़कर चीखा।

“तो ऐसा बोलो ना? मैं समझा शायद…वाह यार!” फैयाज़ स्टीयरिंग के सामने जा बैठा और इमरान कार को आगे से पीछे की तरफ धकेलने लगा।

“अरे…अरे!” फैयाज़ फिर चीखा, “पीछे से!”

इमरान ने मुँह फेरकर अपनी कमर कार के अगले हिस्से से लगा दी और जोर देने लगा।

“अरे ख़ुदा गारत करें…सूअर गधे!” फैयाज़ दांत पीसकर रह गया।

“अब क्या हो गया?” इमरान झल्लाई हुई आवाज में बोला।

फैयाज़ नीचे उतर आया। कुछ पल खड़ा इमरान को ढूंढता रहा, फिर बेबसी से बोला, “क्यों परेशान करते हो?”

“परेशान तुम करते हो या मैं?”

“अच्छा तुम स्टीयरिंग संभालो मैं धक्का देता हूँ।” फैयाज़ ने कहा।

“अच्छा बाबा!” इमरान माथे पर हाथ मार कर बोला। वह अगली सीट पर जा बैठा और कैप्टन फैयाज़ कार को धकेल कर आगे की तरह बढ़ाने लगा। कार न सिर्फ स्टार्ट हुई, बल्कि फर्राटे भरती हुई आगे बढ़ गई।

‘अरे अरे रुको रुको!” फैयाज़ चीखता हुआ कार के पीछे दौड़ने लगा। लेकिन वह अगले मोड़ पर जाकर गायब हो गई। फैयाज़ बराबर दौड़ता रहा। उसके पास इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं था। यहाँ तक की ताकत जवाब दे गई और वह एक चट्टान से टेक लगाकर हांफने लगा। चढ़ाई पर दौड़ना आसान काम नहीं होता। वह एक पत्थर पर बैठकर हांफने लगा। इस वक्त इस हरकत पर वह इमरान की बोटियाँ भी उड़ा सकता था। लेकिन सांसों के साथ ही उसकी दिमागी हालत भी ठिकाने पर आती गई। इमरान पर गुस्सा आना कुदरती बात थी। लेकिन उसके साथ ही फैयाज़ को इस बात का भी एहसास था कि आज उसने भी इमरान को काफी परेशान किया है। आज शाम को इमरान को सैर के बहाने कार में बिठाकर किसी अनजान मंजिल की तरफ से उड़ा था। इमरान को बताए बगैर वह रूशी से उसका सामान पहले ही हासिल कर चुका था और वह सब कार की डिक्की में ठूंस दिया गया था। मैं जानता था कि इमरान आजकल काम के मूड में नहीं है, इसलिए यह हरकत करनी पड़ी और फिर जब वह दूर बढ़ता ही गया, तू फैयाज़ को यह बताना पड़ा कि उसे सरदारगढ़ ले जा रहा है। इस पर इमरान एक लंबी सांस खींचकर खामोश हो गया। उसने यह भी नहीं पूछा कि इस तरह सरदारगढ़ ले जाने का मतलब क्या है?

फिर उसने कोई बात ही नहीं की थी। कुछ देर यूं ही बैठा रहा। फिर पिछली सीट पर जाकर ले खर्राटे लेने शुरू कर दिए थे। ज़ाहिर है कि ऐसी सूरत में फैयाज़ का गुस्सा ज्यादा जोर ना पकड़ सका होगा। वह उसी पत्थर पर घुटनों में सिर दिए बैठा रहा। सिगरेटों का डिब्बा और कॉफ़ी का थरमस गाड़ी में रह गया था, वरना वह इसी सुकून भरे माहौल का आनंद लेने की कोशिश ज़रूर करता। वैसे उसे इत्मीनान था कि इमरान का यह मजाक लंबा नहीं होगा और वह जल्दी ही वापस आएगा और कोई ताज्जुब नहीं कि वह करीब भी कहीं हो। फैयाज़ घुटनों में सिर दिए इमरान ही के बारे में सोचता रहा। उसे उसकी बहुत सी हरकतें याद आ रही थीं। ऐसी हरकतें, जिन पर हँसी और गुस्सा साथ ही आते थे और दूसरों के समझ में नहीं आता था कि वह हँसते ही रहें या इमरान को मार बैठें। बेवकूफी उसकी फितरत का दूसरा हिस्सा बन चुका था और वह किसी मौके पर भी उसे पास नहीं आता था। वह उनके सामने भी बेवकूफों जैसी हरकत करता, जो उसे बेवकूफ नहीं समझते थे। मिसाल के तौर पर खुद कैप्टन फैयाज़ के लिए इमरान ने एक नहीं, दर्जनों केस निपटाये थे। काम उसने किए थे और नाम फैयाज़ का हुआ था। ज़ाहिर है कि वह ऐसे आदमी को बेवकूफ नहीं समझ सकता था, लेकिन इसके बावजूद इमरान के बेवकूफाना रवैये में कोई तब्दीली नहीं हुई थी। लगभग पाँच मिनट बीत गए और फैयाज़ उसी तरह बैठा रहा हूँ। लेकिन कब तक? आखिर उसे सोचता ही पड़ा कि कहीं सचमुच इमरान जुल ना दे गया हो क्योंकि वह भी तो उसे गोली देखकर ही सरदारगढ़ ले जा रहा था। फैयाज़ उठा और दिल ही दिल में इमरान को गालियाँ देता हुआ सड़क पर चलने लगा। लेकिन जैसे ही अपने मोड़ पर पहुँचा, उसे सामने से कोई आता दिखाई दिया। चलने का अंदाज इमरान का सा ही था। फैयाज की मुट्ठियाँ बंध गई। इमरान ने दूर से हांक लगाई, “कप्तान साहब! वह फिर रुक गई है। चलो धक्का लगाओ।”

फैयाज़ की रफ्तार तेज हो गई। वह करीब-करीब दौड़ने लगा था। इमरान के करीब पहुँचकर उसका हाथ घुमा जरूर, लेकिन घूमकर ही रह गया, क्योंकि इमरान बड़ी फुर्ती से बैठ गया था।

“हाय! क्या हो गया है तुम्हें?” इमरान ने उठकर उसके दोनों हाथ पकड़े हुए कहा, “अभी तो अच्छे वाले थे…”

“मैं तुम्हें मार डालूंगा।” फैयाज़ दांत पीसकर बोला।

“अब यहाँ अकेले में जो चाहो कर लो। कोई देखने आता है?” इमरान ने शिकायतें अंदाज में कहा।

“अगर वह साली स्टार्ट नहीं होती, तो उसे मेरा क्या कसूर है?”

“हाथ छोड़ो!” फैयाज़ से झटका देकर कहा। लेकिन इमरान की पकड़ मजबूत थी। वह हाथ न छुड़ा सका।

‘वादा करो कि मारो कि नहीं।” इमरान बड़ी सादगी से बोला।

“मुझे गुस्सा ना दिलाओ।”

“अच्छा तो इसके अलावा जो कुछ कहो, दिला दूं। टॉफियाँ लोगे?”

फैयाज़ का मूड ठीक होने में बहुत देर नहीं लगी। वह करता भी क्या? इमरान पर गुस्सा उतारना भी एक तरह से वक्त की बर्बादी ही थी। वैसे इस बार हकीकत में कार को धक्का देने की जरूरत नहीं पेश आई। इमरान ने अपने कई मिनट उसके इंजन पर बेकार किए थे। वह ज्यादा दूर नहीं गया था। करीब ही एक जगह कार रोककर इंजन की मरम्मत करने लगा था। उसे उम्मीद थी कि फैयाज़ बेतहाशा दौड़ता हुआ वहाँ तक पहुँच ही जायेगा, लेकिन जब कहीं मिनट बीत जाने के बावजूद पर याद ना आया, तो वह खुद ही उसकी तलाश में चल पड़ा।

थोड़ी देर बाद वे फिर उसी चक्कर खाती हुई सड़क पर सफर कर रहे थे। लेकिन कार फैयाज़ ही चला रहा था और इमरान ने फिर पिछली सीट संभाल ली थी।

फैयाज़ बड़बड़ाने लगा, “उस वक्त तुम्हारी जगह अगर कोई और होता तो!”

“चैन से घर पर पड़ा सो रहा होता।” इमरान ने जल्दी से जुमला पूरा कर दिया।

“बकवास मत करो।” फैयाज़ ने कहा, “मामला पचास हजार पर तय हुआ है।”

“कैसा मामला?”

“सरदारगढ़ में तुम्हारा निकाह नहीं होगा।” फैयाज़ ने कहा।

“हाय, फिर क्या यूं ही मुफ्त में मेरा वक्त बर्बाद कर रहे हो।”

“एक बहुत ही दिलचस्प केस है।”

“यार फैयाज़! मैं तंग आ गया हूँ।”

“तुम्हारी सुबह से पहली बार इस किस्म का जुमला सुन रहा हूँ।” फैयाज़ ने हैरत ज़ाहिर की।

“सैकड़ों बार कह चुका हूँ कि लफ्ज़ केस मेरे सामने ना दोहराया करो। केस… लाहौल विला कूवत .. मैंने अक्सर दाइयों को बच्चे पैदा कराते वक्त केस ही कहते सुना है।”

“सुनो इमरान! बोर न करो। ऐसा दिलचस्प…”

“मैं कुछ नहीं सुनना चाहता। खत्म करो, मुझे नींद आ रही है।” इमरान ने अपने ऊपर कंबल डालते हुए कहा।

“फिलहाल मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूँ कि उन लोगों के सामने कोई ऐसी हरकत ना करना, जिससे वे बुरा मान जायें। मामला ऐसा है कि वह सरकारी तौर पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकते। अगर करना भी चाहे, तो कम से कम मेरा डिपार्टमेंट उसे हँसकर ही टाल देगा।” फैयाज़ बड़बड़ाता रहा और इमरान के खर्राटे कार में गूंजते रहे।

इतनी जल्दी सो जाने का मतलब था कि इमरान कुछ सुनना नहीं चाहता था। खर्राटे इस बात की गवाही दे रहे थे।

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