चैप्टर 6 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 6 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 6 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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उस शाम को रुशी भी इमरान की टू सीटर कार लेकर सरदारगढ़ पहुँच गई। इमरान ने सुबह ही उससे उसके लिए तार दिया था और उसे उम्मीद थी कि रूशी दिन डूबते-डूबते सरदारगढ़ पहुँच जायेगी। उधर डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टिगेशन का एक आदमी ज़मील की कोठी तक पहुँच गया था। इमरान अपना काम करने का तरीका तय चुका था और स्कीम के तहत उसे रॉयल होटल में ठहरना था। वहाँ कमरे लेने में कोई दिक्कत नहीं हुई और यह हकीकत है कि उसने वहाँ के रजिस्टर में अपना नाम शहजादा सितवत जाह ही लिखवाया और रूशी, रूशी ही रही। उसे शहजादे साहब की प्राइवेट सेक्रेटरी की हैसियत हासिल थी।

रात का खाना उन्होंने डायनिंग हॉल में खाया और फिर इमरान रूशी को यहाँ के हालात बताने लगा। अचानक उसकी नज़र शौकत और इरफ़ान पर पड़ी, जो उनसे काफ़ी दूरी पर बैठे उन दोनों को घूर रहे थे।

इमरान ने हाल पूछने के अंदाज में अपने सिर को हिलाया और इमरान अपनी मेज से उठकर तीर की तरह उनकी तरफ आया। लेकिन शौकत ने मुँह फेर लिया।

“बैठे मिस्टर परवान!” इरफ़ान ने खुशी के अंदाज़ में बोला।

“परवान नहीं इरफ़ान!” उसने बैठते हुए कहा।

“आप कुछ ख़याल ना कीजियेगा।” इमरान ने शर्मिंदगी ज़ाहिर की, “मुझे नाम अक्सर गलत याद आते हैं।”

“आपने इरफ़ान और परवीन को गडमड कर दिया।” इरफ़ान हँसने लगा, “अक्सर ऐसा भी होता है, कहीं आपकी गाड़ी मिली?”

“लाहौल विला कूवत! क्या कहूं?” इमरान और ज्यादा शर्मिंदा नज़र आने लगा।

“क्यों, क्या हुआ?”

“वह कमबख्त तो यहाँ गैराज में बंद पड़ी थी और मुझे याद आ रहा था कि मैं गाड़ी ही पर था।”

“खूब!” इरफ़ान उसे अजीब नज़रों से देखने लगा, लेकिन वह बार-बार नज़रें चुराकर रूशी की तरफ भी देखता जा रहा था, जो सचमुच ऐसे अंदाज में बैठी थी जैसे शहज़ादे की प्राइवेट सेक्रेट्री हो।

“सेक्रेटरी!” अचानक इमरान उसकी तरफ मुड़कर अंग्रेजी में बोला, “मैं अभी क्या याद करने की कोशिश कर रहा था?”

“आप…आप….मेरा ख़याल है…उस आदमी…हाँ आदमी ही का नाम याद करने की कोशिश कर रहे थे।”

“वह..वह…आदमी…जिसने एक एकड़ जमीन में…डेढ़ मन शलजम उगाये थे। आहा… आहा…याद आ गया।” इमरान उछल कर खड़ा हो गया। फिर फौरन ही बैठ कर बोला, “मगर नहीं…वह तो दूसरा आदमी था, जिसने…क्या किया था…लाहौल विला कूवत…यह भी भूल गया…क्या बताऊं इमरान साहब!”

“इमरान नहीं इरफ़ान!” इरफ़ान ने फिर टोका।

“इरफ़ान साहब! हाँ तो मैं क्या कह रहा था?”

इमरान बोर होकर उठ गया। हालांकि वह रूशी की वजह से बैठना चाहता था। मगर उसे अंदाज़ा हो गया था, रूशी उस बेवकूफ आदमी की मौजूदगी में उसमें दिलचस्पी नहीं ले सकती, क्योंकि उसने इस दौरान एक बार इरफ़ान की तरफ नहीं देखा था।

इरफ़ान फिर शौकत के पास जा बैठा। इमरान और रूशी भी उठकर अपने कमरे में चले आये।

“वह दूसरा आदमी तुम्हें अच्छी नज़रों से नहीं देख रहा था।” रूशी ने कहा।

“तब वह तुम्हें देख रहा होगा।”

“शट अप!”

“ऑर्डर! ऑर्डर…तुम मेरी सेक्रेटरी हो और मैं प्रिंस सितवत जाह!”

“लेकिन इस रोल में तो अपनी बेवकूफी से बाज़ आ जाओ।” रूशी ने कहा।

मगर इमरान इस बात को टाल कर दूसरी बात शुरू कर दी।

“कल तुम जेल खाने में जाओगी…अर्र…मेरा यह मतलब नहीं कि…हाँ…वहाँ एक कैदी है। मैंने आज बहुत सी मालूमात इकट्ठा कर ली है…हाँ…वह कैदी…उसका नाम सलीम है। उसे शौकत ने जेल भिजवाया था। कल सुबह तुम्हें उससे मिलने के लिए परमिशन कार्ड मिल जायेगा।” इमरान खामोश होकर कुछ सोचने लगा।

“लेकिन मुझे उससे क्यों मिलना होगा?”

“यह मालूम करने के लिए कि उस पर जो इल्जाम लगे हैं, उनमें कहाँ तक हकीकत है।”

“क्या इल्जाम लगाए गए हैं?”

“उसी से पूछना।”

“लेकिन वह है कौन और इस केस से उसका क्या ताल्लुक है?”

“तुम इसकी परवाह मत करो। उससे जो कुछ बातचीत हो, मुझे उसकी खबर कर देना।”

“खैर मत बताओ! मगर ज़ाहिर है कि मैं एक मुलाकात ही की हैसियत से वहाँ जाऊंगी। वह उस मुलाकात की वजह ज़रुर पूछेगा। वह सोचेगा…”

“उंह उंह!” इमरान हाथ उठाकर बोला, “तुम इसकी भी परवाह ना करो। उसे कह देना कि तुम किसी दूसरे शहर की अखबार की रिपोर्टर हो।”

“तब तो मुझे उसके बारे में थोड़ी जानकारी होनी चाहिए।”

“ठीक है!” इमरान सिर हिलाकर बोला, “तुम अब काफ़ी चल निकली हो। अच्छा सुनो। सलीम शौकत का लेबोरेटरी असिस्टेंट था। शौकत, वह आदमी जो तुम्हारी जानकारी में उस वक्त मुझे अच्छी नज़रों से नहीं देख रहा था। वह परवीन का चचेरा भाई है। शायद तुम समझ गई होगी।”

“यानी…वो खुद भी परवीन के उम्मीदवारों में से हो सकता है।”

“वाकई चल निकली हो। बहुत अच्छे! हाँ यही बात है और शौकत को साइंटिफिक तजुर्बे का खब्त है। वह एक अच्छे किस्म की लेबोरेटरी भी रखता है और वह क्या नाम है उसका…सलीम उसका लैबोरेटरी असिस्टेंट था और शौकत ही ने उसे जेल भिजवाया।”

“आखिर क्यों? क्या वजह थी?” रूशी ने सवाल किया।

“मुझे देखने से ऐसी नहीं है, जिसे उसके इस केस के सिलसिले में हमें कोई दिलचस्पी हो सके। लेकिन हो सकता है कि वजह वह न हो, जो ज़ाहिर की गई है।”

“क्या ज़ाहिर की गई है। मैं वही पूछ रही हूँ?”

“एक मामूली सी रकम इधर से उधर कर देने का इल्जाम!”

“यानी उसी इल्जाम के तहत वह जेल में है।” रूशी ने पूछा।

“यकीनन!”

“तो फिर ज़ाहिर है कि हकीकत भी यही होगी। वरना वह इस ज़ुर्म के तहत जेल में क्यों होता?”

“क्यों? क्या यह नहीं हो सकता कि असली ज़ुर्म लगे हुए इल्जाम से भी ज्यादा संगीन हो, जिसे ना शौकत ही ज़ाहिर करना पसंद करता हो और ना सलीम।”

“अगर यह बात है तो फिर वह मुझे हकीकत बताने ही क्यों लगा?”

“रूशी रूशी! इतनी अक्लमंद ना बनो, वरना मैं बोर हो जाऊंगा…मर जाऊंगा। जो कुछ मैं कह रहा हूँ, उस पर अमल करो।”

“तो फिर कोई तीसरी बात होगी, जिसे तुम ज़ाहिर नहीं करना चाहते।” रूशी ने लापरवाही से कहा, “खैर मैं जाऊंगी।”

“हाँ, शाबाश! मैं सिर्फ इतना ही चाहता हूँ कि तुम किसी तरह उससे मिल लो।”

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