चैप्टर 11 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 11 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 11 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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रूशी ने हैरत के अंदाज़ में इमरान की तरफ देखा।

“मैं ठीक कह रहा हूँ।” इमरान ने सिर हिलाकर कहा, “पिछली रात शौकत ने मुझे धोखा दिया था। शायद उसे किसी तरह पता चल गया था कि मैं खिड़की से झांक रहा हूँ।”

“रिवाल्वर था उसके पास?”

“हाँ! लेकिन उसकी अहमियत नहीं। हो सकता है, वह उसका लाइसेंस भी रखता हो।”

“और वह परिंदे नीले ही थे?”

“सौ फ़ीसदी!” इमरान ने कहा। कुछ देर खामोश रहा, फिर बोला, “तुम पिछली रात कहाँ गायब थी?”

“मैं उसी आदमी सलीम के चक्कर में गई थी!”

“हाय रुशी! तुम सचमुच जासूस होती जा रही हो…बहुत खूब….हाँ तो फिर…तुमने शायद…!”

“ठहरो, बताती हूँ। मैंने उसके बारे में बहुत सी मालूमात हासिल की है।”

“शुरू हो जाओ।”

“उसके कुछ रिश्तेदारों ने उसकी जमानत लेनी चाही थी, लेकिन उसने उसे मंजूर नहीं किया। इस पर खुद पुलिस को भी हैरत है।”

“उससे इसकी वजह ज़रूर पूछी गई होगी।”

“हाँ हाँ! लेकिन उसका जवाब कुछ ऐसा है कि जो किसी फिल्म की कहानी बनकर ज्यादा दिलचस्प साबित हो सकता है।”

“यानी…!”

“वह कहता है कि मैं अपना दागी चेहरा किसी को नहीं दिखाना चाहता। मैंने एक ऐसे मालिक को धोखा दिया है, जो बहुत ही नेक शरीफ़ और मेहरबान था। मैं नहीं चाहता कि अब कभी उसका सामना हो। मैं जेल की कोठरी में मर जाना पसंद करूंगा।”

“अच्छा!” इमरान बेवकूफों की तरह आँखें फाड़कर देखने लगा।

“मैं नहीं समझ सकती कि बीसवीं सदी में भी इतने अच्छे आदमी पाये जाते होंगे। ज़ाहिर है, जो इतना अच्छा होगा वह चोरी की क्यों करने लगा? वैसे उसके जानने वाले कहते हैं कि वह एक बहुत अच्छा आदमी है और वह चोरी जैसा काम कर ही नहीं सकता। मगर दूसरी तरफ वह खुद ही जुर्म कबूल करता है।”

“तो फिर उसके जानने वालों में कई तरह के ख़याल पाये जाते होंगे।”

“हाँ! मैंने भी यही महसूस किया है।” रूशी सिर हिलाकर बोली, “कुछ लोग कहते हैं कि यह सिर्फ किसी किस्म का ड्रामा है।”

“लेकिन किस किस्म का ड्रामा? उसके मकसद पर भी किसी ने रोशनी डाली या नहीं?”

“नहीं उसके बारे में किसी ने कुछ नहीं कहा।”

इमरान कुछ सोचने लगा। फिर उसने कहा, “मामला काफ़ी पेचीदा है।”

“पेचीदा नहीं, बल्कि मज़ाकिया कहो।” रूशी मुस्कुराकर बोली, “सलीम शौकत का नौकर था। अगर शौकत को असल मुज़रिम मान लिया जाये, तो सलीम के जेल जाने की बात बिल्कुल बेईमानी हुई।”

“किसी हद तक तुम्हारा ख़याल बिल्कुल सही है।”

“किसी हद तक क्या? बिल्कुल सही है।” रूशी बोली।

“नहीं उस पर बिल्कुल की छाप लगाना ठीक नहीं।” इमरान कुछ सोचता हुआ बोला।

“अच्छा तो फिर तुम ही बताओ कि उसे जेल क्यों भिजवाया गया?”

“हो सकता है कि उसने सचमुच चोरी की हो।”

“ओहो! क्या तुम्हें वह बातचीत याद नहीं, जो जेल में मेरे और उसके बीच हुई थी?”

“मुझे अच्छी तरह याद है।”

“फिर?”

“फिर कुछ भी नहीं। मुझे सोचने दो। हाँ, ठीक है उसे यूं ही समझो। मान लो कि सलीम शौकत के जुर्म के बारे में जानता है, इसलिए वह उस पर चोरी का इल्जाम लगा कर उसे जेल भिजवा देता है।”

“अगर यही बात है..” रुशी जल्दी से बोली, “….तो वह बहुत ही आसानी से शौकत के जुर्म का राज फ़ाश कर सकता था। अदालत को बता सकता था कि उसे किसलिए जेल भिजवाया गया है।”

“आं हां! “इमरान हाथ नचाकर बोला, “तुम बिल्कुल बुद्धू हो। अदालत में शौकत भी यही कह सकता था कि वह अपनी गर्दन बचाने के लिए उस पर झूठा इल्जाम लगा रहा है। आखिर उसने गिरफ्तार होने से पहले ही उसकी जुर्म की पुलिस को क्यों नहीं इत्तला दी? साफ रहे कि सलीम की गिरफ्तारी ज़मील वाले वाक़ये के तीन दिन बाद हुई थी।”

“चलो वैसे मान लेती हूँ।” रूशी ने कहा, “सलीम ने मुझे यह क्यों कहा था कि तुम मुझको गुस्सा नहीं दिला सकती?”

“तुम खामोशी से मेरी बात सुनती जाओ।” इमरान झुंझलाकर बोला, “बात खत्म होने से पहले ना टोका करो। मैं तुम्हें सलीम के उन अल्फाज़ का मतलब भी समझा दूंगा और उसी रोशनी में कि शौकत ही मुज़रिम है, वैसे एक बात साफ है कि सलीम शौकत से भी ज्यादा घाघ है। मान लो, सलीम ने सोचा हो कि वह जेल ही में ज्यादा महफूज़ रह सकेगा, वरना हो सकता है कि शौकत अपना जुर्म छिपाने के लिए उसे कत्ल ही करा दे। शौकत ने उसे इस उम्मीद पर चोरी के इल्जाम में जेल भिजवाया होगा कि वह उसका राज ज़रूर उगल देगा, लेकिन खुद भी शामिल होने की बिना पर अदालत को उसका यकीन दिलाने में कामयाब ना होगा। शौकत के पास इस सूरत में सबसे बड़ा एतराज़ यही होगा कि उसने गिरफ्तार होने से तीन दिन पहले पुलिस को इसकी खबर क्यों नहीं दी।”

“मैं समझ गई, लेकिन सलीम के वह जुमले।” रूशी ने फिर टोका।

“अरे ख़ुदा तुम्हें गारत करें…सलीम के जुमलों की ऐसी की तैसी…मैं खुद फांसी पर चढ़ जाऊंगा….तुम्हारा गला घोटकर…हाँ…मुझे अपनी बात पूरी करने दो, रूशी की बच्ची।”

इमरान ने कुछ इसी किस्म के मजाकिया अंदाज़ में झल्लाहट ज़ाहिर की थी कि रूशी हँस पड़ी।

“अरे उस उल्लू के पट्ठे ने बिल्कुल खामोशी अपना ली…यानी शौकत के जुर्म का मामला बिल्कुल ही घोंट कर अपना जुर्म कबूल लिया। अब तुम खुद सोचो शैतान की खाला कि शौकत पर उसका क्या असर हुआ होगा? ज़ाहिर है उसने यह ज़रूर चाहा होगा कि सलीम के उस रवैये की वजह मालूम करें और दूसरी तरफ सलीम ने भी यह सोचा होगा कि शौकत उसकी वजह मालूम करने की कोशिश ज़रूर करेगा। फिर तुम वहाँ जा पहुँची। सलीम समझा कि तुम शौकत ही की तरफ से उसकी टोह में आई हो। इसलिए उसने तुम्हें उड़नघाईयाँ बताई और यहाँ तक कह दिया कि तुम उसे गुस्सा दिला कर भी असलियत नहीं उगलवा सकती। हो सकता है कि उसने अपनी जानकारी में शौकत को और ज्यादा डराने के लिए तुमसे इस किस्म की बातचीत की हो।”

“मगर!”

“मगर की बच्ची! अब अगर तुमने कोई नया पेंच निकाला, तो मैं एक बोतल कोकाकोला पीकर हमेशा के लिए खामोश हो जाऊंगा!”

“तुम्हारा नज़रिया गलत भी हो सकता है।” रूशी ने संजीदगी से कहा।

“नहीं मैं जेम्स बांड हूँ।” इमरान गला फाड़कर चीखा, “मुझसे कभी कोई गलती नहीं हो सकती। मैं जूते का चमड़ा देखकर बता सकता हूब कि कबूतर की खाल का है  या मेंढक की खाल का है। अभी मुझे डॉक्टर वाटसन जैसा कोई चुगद नहीं मिला। यही वजह है कि मैं तेजी से तरक्की नहीं कर सकता।”

“अच्छा मान लो कि नाइट क्लब के मैनेजर ही की बात सच हो तो?”

“मुझे बड़ी खुशी होगी। ख़ुदा हर एक को सच बोलने की सहूलियत अता करें।”

“मुझसे बेतुकी बातें ना किया करो।” रूशी झल्ला गई।

“ऐ रूशी! तुम अपना हुलिया ठीक करो। मैं तुम्हारा शौहर नहीं हों…हाँ!”

“तुम्हें शौहर बनाने वाली किसी गधी ही के पेट से पैदा होगी।”

“खबरदार अगर तुमने गधी की शान में कोई गलत बात मुँह से निकाली।” इमरान बुरा सा मुँह बना कर बोला और रूशी बुरा सा मुँह बनाए हुए कमरे से बाहर निकल गई।

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