चैप्टर 16 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 16 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 16 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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इमरान धुन का पक्का था। फैयाज़ के लाख मना करने के बावजूद वह चोरों की तरह जमील की कोठी में दाखिल हो गया। फैयाज़ वहीं से वापस हो गया , लेकिन उसे रात भर नींद नहीं आई थी। इमरान की बकवास से उसके सही ख़यालों का अंदाज़ा करना बहुत ही मुश्किल था और यही चीज फैयाज़ के लिए उलझन बनी हुई थी। वह सारी रात यही सोचता रहा कि मालूम नहीं इमरान ने वहाँ क्या हरकत की हो। ज़रूरी नहीं कि वह हर मामले में कामयाब ही होता रहे। हो सकता है कि वह पकड़ा गया हो। फिर उसकी क्या पोजीशन होगी।

सुबह होते ही सबसे पहले उसने सज्जाद को फोन किया। दिखावटी मकसद यूंही रस्मी तौर पर खैरियत मालूम करना था। उसे उम्मीद थी कि अगर कोई वाकया पेश आया होगा, तो सज्जाद ख़ुद ही बतायेगा। लेकिन सज्जाद ने किसी वाकयेकी खबर नहीं दी। फैयाज़ को फिर भी इत्मीनान नहीं हुआ। उसने सज्जाद से कहा कि वह किसी टॉपिक पर बातचीत करने के लिए घर आयेगा और फिर नाश्ता करके जमील की कोठी की तरफ रवाना हो गया। उसे ड्राइंग रूम में काफ़ी देर तक बैठना पड़ा। लेकिन फैयाज़ सोचने लगा कि उसे किस टॉपिक पर बातचीत करनी है। बहरहाल सज्जाद ड्राइंग रूम में मौजूद नहीं था, इसलिए उसे सोचने का मौका मिल गया। लेकिन वह कुछ भी न सोच सका। उसकी जानकारी में अभी तक कोई नई बात हुई ही नहीं थी। इमरान की पिछली रात की बातों को वह जज़्बे में बह रहे आदमी का पर बड़बोलापन समझता था और उसी बिना पर उसने सलीम के बारे में जानकारी हासिल करने की भी ज़रूरत नहीं समझी थी। इमरान का ख़याल आते ही उसे गुस्सा आ गया और साथ ही इमरान ने ड्राइंग रूम में जाकर सलाम किया।

फैयाज़ की पीठ दरवाजे की तरफ थी। वह एकदम से उछल पड़ा।

“ये क्या बेहूदगी?” फैयाज़ झल्ला गया।

“परवाह न करो। मैं इस वक्त जेम्स बॉन्ड हो रहा हूँ। प्यारे डॉक्टर वाटसन! नीले परिंदों के बाप का सुराग मुझे मिल गया है और मैं बहुत जल्द….अस्सलाम वालेकुम!”

“वालेकुम अस्सलाम।” सज्जाद ने सलाम का जवाब दिया, जो दरवाजे में खड़ा इमरान को घूर रहा था।

“आइये आइये!” इमरान ने बेवकूफों की तरह बौखलाकर कहा।

सज्जाद आगे बढ़कर एक सोफे पर बैठ गया। उसके चेहरे पर परेशानी झलक रही थी।

“क्यों क्या बात है?” फैयाज़ ने कहा, “तुम कुछ परेशान दिख रहे हो?”

“मैं…हाँ…मैं परेशान हूँ। सईदा भी उसी बीमारी में फंस गई है।”

“क्या?” फैयाज़ उछलकर खड़ा हो गया।

“हाँ…मगर…उसके सिर्फ चेहरे पर धब्बे हैं…बाकी जिस्म पर नहीं।”

“काले धब्बे!” फैयाज़ से पूछा।

“फैयाज़ साहब!” सज्जाद ने नाखुशी से कहा, “मेरा ख़याल है कि यह मज़ाक का मौका नहीं है।”

“ओह…माफ़ करना…मगर…क्या कोई नीला परिंदा?”

“पता नहीं! वह सो रही थी…अचानक किसी तकलीफदेह एहसास से जाग गई और जागने पर उसे महसूस हुआ जैसे कोई चीज दायें गाल में चुभ गई हो।”

“परिंदा लटका हुआ था।” इमरान जल्दी से बोला।

“जी नहीं, वहना कुछ भी नहीं था।” सज्जाद ने झल्लाई हुई आवाज में कहा।

“ओह!” इमरान अपने होंठ दांतों से चबा कर रह गया।

फैयाज़ इमरान को घूमने लगा और इमरान धीरे से बड़बड़ाया, “ऐसी जगह मारूंगा जहाँ पानी भी ना मिल सके।” इस पर सज्जाद भी इमरान को घूरने लगा।

“मगर…!” इमरान ने दोनों को बारी-बारी देखते हुए कहा, “जमील साहब को दागदार बनाने का मकसद तो समझ में आता है। मगर सईदा साहिबा का मामला मेरी समझ से बाहर है। आखिर शौकत को उनसे क्या दुश्मनी हो सकती है?”

“शौकत!” सज्जाद चौंक पड़ा।

“जी हना! उसकी लेबोरेटरी में ऐसे वायरस मौजूद हैं, जिनका बयान डॉक्टरों की रिपोर्ट में मिलता है।”

“आप इसे साबित कर सकेंगे ?” सज्जाद ने पूछा।

“चुटकी बजाते ही उसके हाथों में हथकड़ियाँ डलवा दूंगा। बस देखते रह जाइयेगा।”

“आखिर क्या सबूत है तुम्हारे पास?” फैयाज़ ने पूछा।

“आहा! उसे मुझ पर छोड़ दो। जो कुछ मैं कहूं, करते जाओ। उसके खिलाफ़ हुआ, तो फिर मैं कुछ नहीं कर सकूंगा। बहरहाल, आज ड्रामे का ड्रॉप सीन हो जायेगा।”

“नहीं पहले मुझे बताओ!” फैयाज़ ने कहा।

“क्यों बताऊं?” अचानक इमरान झल्ला गया, “तुम क्या नहीं जानते? बच्चों की सी बातें कर रहे हो। क्या सलीम पर गोली नहीं चलाई गई थी? क्या रिवाल्वर के हत्थे पर शौकत की अंगुलियों के निशान नहीं मिले? क्या मैंने उसकी लेबोरेटरी में नीले परिंदे नहीं देखे, जिन्हें वह अंगूठी में झोंक रहा था।”

“रिवाल्वर…सलीम…नीले परिंदे…यह आप क्या कह रहे हैं? मैं कुछ नहीं समझा।” सज्जाद हैरान होकर बोला।

“बस, सज्जाद साहब! इससे ज्यादा अभी नहीं। जो कुछ मैं कहूं, करते जाइये। मुज़रिम के हथकड़ियाँ लग जायेंगी।”

“बताइए जो कुछ आप कहेंगे करूंगा!”

“गुड! तो आप अभी और इसी वक्त अपने भाइयों और जमील साहब के मामुओं समेत जावेद मिर्ज़ा के यहाँ जाइए और जावेद मिर्ज़ा से पूछिए कि अब उसका क्या इरादा है? जमील से अपनी लड़की की शादी करेगा या नहीं? ज़ाहिर है कि वह इंकार करेगा। फिर उस वक्त ज़रूरत इस बात की होगी कि कैप्टन फैयाज़ उस पर अपनी असलियत ज़ाहिर करके कहें कि उन्हें इस सिलसिले भतीजों में से किसी एक पर शक है और फैयाज़ तुम उनसे कहना कि वह अपने सारे भतीजों को बुलाये, तुम उनसे कुछ सवाल करना चाहते हो।”

“फिर उसके बाद?” फैयाज़ ने पूछा।

“मैं ठीक उसी वक्त वहाँ पहुँचकर निपट लूंगा।”

“क्या निपट लोगे?”

“तुम्हारे सिर पर हाथ रख रोऊंगा।” इमरान ने संजीदगी से कहा।

फैयाज़ और सज्जाद उसे घूरते रहे। अचानक सज्जाद ने पूछा, “अभी आपने किसी रिवाल्वर का हवाला दिया था, जिस पर शौकत की उंगलियों के निशान थे।”

“जी हाँ…बाकी बातें वहीं होंगी। अच्छा टाटा…” इमरान हाथ हिलाता हुआ ड्राइंग रूम से निकल गया और फैयाज़ उसे पुकारता ही रहा।

“मैं नहीं समझ सकता कि ये हज़रत क्या फरमाने वाले हैं?” सज्जाद बोला।

“कुछ ना कुछ तो करेगा ही। अच्छा अब उठो। हमें वही करना चाहिए, जो उसने कहा है।”

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