चैप्टर 13 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 13 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 13 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

Chapter 13 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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जमानत हो जाने के बाद भी सलीम अदालत से नहीं टला। उसके चेहरे पर परेशानी के आसार थे। वह अदालत ही के एक बरामदे में टहल रहा था और कभी-कभी खौफनाक आँखों से इधर-उधर भी देख लेता था।

इमरान उसके लिए बिल्कुल अजनबी था, इसलिए उससे बहुत करीब रहकर भी उसकी हालत का जायज़ा कर सकता था।

शाम हो गई और सलीम वहीं टहलता रहा। जिसने उसकी जमानत दी थी, वह हथकड़ियाँ खुलने से पहले ही अदालत से खिसक गया था।

फिर वह वक्त भी आया, जब सलीम उस बरामदे में बिल्कुल अकेला रह गया। इमरान भी वहाँ से हट गया था। लेकिन अब ऐसी जगह पर् था, जहाँ से वह उसकी निगरानी आसानी से कर सकता था। सलीम को शक करने का मौका दिया बगैर।

अदालत में सन्नाटा छा जाने के बाद सलीम वहाँ से चल पड़ा। इमरान उसका पीछा कर रहा था। सलीम ने टैक्सी के अड्डे पर पहुँचकर एक टैक्सी की। इमरान की टू-सीटर भी वहाँ से दूर नहीं थी।

बहरहाल पीछा जारी रहा। लेकिन इमरान महसूस कर रहा था कि यह सलीम की टैक्सी यूं ही बेमक़सद शहर की सड़कों के चक्कर काट रही है। फिर अंधेरा फैलने लगा। सड़कों पर बिजली की रोशनी चमकने लगी। इमरान ने सलीम का पीछा नहीं छोड़ा। वह अपना पेट्रोल फूंकता रहा।

जैसे ही अंधेरा कुछ और गहरा हुआ, अगली टैक्सी जंक्शन रोड पर लगी और इमरान ने जल्द ही अंदाज़ा कर लिया कि उसका रूख नवाब जावेद मिर्ज़ा की हवेली की तरफ है।

दोनों कारों में लगभग चालीस गज का फ़ासला था और यह फ़ासला इतना कम था कि सलीम को पीछा किए जाने पर शक ज़रूर हो सकता था। हो सकता है कि सलीम को पहले ही शक हो गया हो और वह टैक्सी को इसलिए इधर-उधर चक्कर खिलाता रहा हो।

जावेद मिर्ज़ा की हवेली से लगभग एक फर्लांग दूर टैक्सी रुक गई। लेकिन इमरान ने सिर्फ रफ्तार कम कर दी, कार नहीं रोकी। अब वह धीरे-धीरे रेंग रही थी। सड़क सुनसान थी। टैक्सी वापसी के लिए मुड़ी। इमरान ने उसे रास्ता दे दिया।

अपनी कार की अगली लाइट में उसने देखा कि सलीम ने बेतहाशा दौड़ना शुरू कर दिया है। इमरान ने अपनी रफ्तार तेज कर दी और साथ ही उसने जेब से कोई चीज निकाल कर बाहर सड़क पर फेंकी। एक हल्का-सा धमाका हुआ और सलीम दौड़ते-दौड़ते गिर पड़ा। लेकिन वह फौरन ही उठ कर भागने लगा। इमरान ने उसे जावेद मिर्ज़ा के बाग में छलांग लगाते देखा।

इमरान की कार फर्राटे भरते हुए आगे निकल गई। लेकिन अब उसकी सारी लाइटें बुझी हुई थी।

दो फर्लांग आगे जाकर इमरान ने कार रोकी और और उसे एक बड़ी-सी चट्टान की ओट में खड़ा कर दिया। वह पैदल ही बाग के उस हिस्से की तरफ जा रहा था, जहाँ लेबोरेटरी वाली इमारत थी। अचानक उसने फायर की आवाज सुनी, जो उसी तरफ से आई थी, जिधर लेबोरेटरी थी। फिर दूसरा फायर हुआ और एक चीख सन्नाटे का सीना चीरते हुए अंधेरे में डूब गई। इमरान ने पहले तो दौड़ने का इरादा किया, फिर रुक गया। अब उसने लेबोरेटरी की तरफ जाने का इरादा भी छोड़ दिया था। वह जहाँ था, वहीं रुका रहा। जल्दी उसने कई आदमियों के दौड़ने की आवाज सुनी। उनमें हल्का-सा शोर भी शामिल था। इमरान कार की तरफ पलट गया। उसका ज़ेहन बहुत तेजी से सोच रहा था।

लेकिन अचानक उसके जज़ेहन में एक नया ख़याल पैदा हुआ। क्या वह अकेले में भी बेवकूफी करने लगा? क्या हुआ बेवकूफी नहीं थी? उसने फायरों की आवाजें सुनी और वह चीख भी किसी जख्मी ही की मालूम हुई थी। फिर आखिर वह कार की तरफ क्यों पलट आया था? उसे आवाज की तरफ बेतहाशा दौड़ना चाहिए था।

इमरान ने कार स्टार्ट की और फिर सड़क पर वापस आ गया। कोठी के करीब पहुँचकर उसने कार बाग कि तरफ मोड़ दी और उसे सीधा पोर्च में लेता चला गया।

जावेद मिर्ज़ा कोठी से निकलकर पोर्च में आ रहा था। उसकी रफ्तार तेज थी। चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थी और हाथ में राइफल थी।

“खैरियत नवाब साहब!” इमरान ने हैरत ज़ाहिर की।

“ओह सितवत जाह!” उसने लेबोरेटरी की तरफ इशारा करके कहा, “कोई हादसा हो गया है…दो फायर हुए थे…चीख भी…आओ आओ।”

जावेद मिर्ज़ा उसका बाजू पकड़कर उसे भी लेबोरेटरी की तरफ घसीटने लगा।

कोठी के सारे नौकर लेबोरेटरी के करीब इकट्ठा थे। सफदर, इरफ़ान और शौकत भी वहाँ मौजूद थे। शौकत ने जावेद मिर्ज़ा को बताया कि वह अंदर था। अचानक उसने फायरों की आवाज सुनी…फिर चीख भी सुनाई दी। बाहर निकला, तो अंधेरे में कोई भागता दिखाई दिया। लेकिन उसके संभलने के पहले ही वह गायब हो चुका था।

“और लाश?” जावेद मिर्ज़ा ने पूछा।

“हम अभी तक किसी की लाश ही तलाश कर रहे हैं।” इरफ़ान बोला।

“लेकिन अभी तक कामयाबी नहीं हुई।”

“लाश!” इमरान धीरे से बड़बड़ाकर चारों तरफ देखने लगा।

“तुम अब यहाँ अकेले नहीं रहोगे, समझे!” जावेद मिर्ज़ा शौकत का कंधा झिंझोड़कर चीखा।

शौकत कुछ ना बोला। वह इमरान को घूर रहा था।

“कोई भूत-प्रेत ही होगा, मेरा दावा है।” इमरान मुक्का हिलाकर रह गया।

“आप इस वक्त यहाँ कैसे?” शौकत ने उससे पूछा।

“शौकत तुम्हें बात करने की तमीज़ कब आयेगी?” जावेद मिर्ज़ा ने झल्लायी हुई आवाज में कहा और इमरान हँसने लगा। अचानक उसके दायें गाल पर दो-तीन गर्म-गर्म बूंदे फिसल कर रह गई और इमरान ऊपर की तरफ देखने लगा। फिर गाल पर हाथ फेरकर जेब से टॉर्च निकाली। उंगलियाँ किसी चीज से चिपचिपाने लगी थी।

टॉर्च की रोशनी में उसे अपनी उंगलियों पर खून दिखा…ताज़ा खून! सब अपनी अपनी बातों में लगे थे। किसी का ध्यान इमरान की तरफ नहीं था।

इमरान ने एक बार फिर ऊपर की तरफ देखा था। वह एक पेड़ के नीचे था और पेड़ का ऊपरी हिस्सा अंधेरे में गुम था।

“लेकिन हमें यहाँ किसी के जूते मिले हैं।” सफ़दर कह रहा था।

“शायद भागने वाला अपने जूते छोड़ गया है।”

उसने पेड़ के तने की तरफ रोज की रोशनी डाली। जूते सचमुच मौजूद थे। इमरान आगे बढ़कर उन्हें देखने लगा। लेकिन सफ़दर ने टॉर्च बुझा दी और इमरान को अपनी टॉर्च जलानी पड़ी।

“खत्म करो यह किस्सा और चलो यहाँ से ।” जावेद मिर्ज़ा ने कहा, “शौकत मैं तुमसे खास तौर पर कह रहा हूँ कि तुम अब यहाँ नहीं रहोगे।”

“मेरे लिए खतरा नहीं है।” शौकत बोला।

“है क्यों नहीं ?” इमरान बोल पड़ा, “मैं भी आपके यही मशवरा दूंगा।”

“मैंने आपसे मशवरा नहीं मांगा है।”

“इसकी परवाह ना कीजिये। मैं फ्री फंड में मशवरा देता हूँ।” इमरान ने कहा और फिर बुलंद आवाज में बोला, “मैं उसे भी मशवरा देता हूँ, जो पेड़ पर मौजूद है। उसे चाहिए कि वह नीचे उतर आये। वह जख्मी है। आ जाओ नीचे…मुझे भी मालूम है कि तुम असलहे से लैस नहीं हो और यहाँ सब तुम्हारे दोस्त हैं। आ जाओ नीचे।”

“अरे अरे! तुम्हें क्या हो गया है सितवत जाह।” जावेद मिर्ज़ा ने घबराती हुई आवाज में कहा।

अचानक इमरान ने अपनी टॉर्च का रुख ऊपर की तरफ कर दिया।

“मैं सलीम हूँ।” ऊपर से एक बार भरायी हुई सी आवाज आई।

“हकीम हो या डॉक्टर्स। इस की परवाह ना करो। बस नीचे आ जाओ।” सन्नाटे में सिर्फ इमरान की आवाज गूंजी। बाकी लोगों को जैसे सांप सूंघ गया था।

पेड़ पर अचानक कई टार्चों की रोशनी पड़ रही थी। लेकिन इमरान की नज़र शौकत के चेहरे पर थी। शौकत अभी बरसों का बीमार दिखने लगा।

सलीम टहनियों से उतरता हुआ तने के सिरे पर पहुँच चुका था। अचानक उसने कराहकर कहा, “मैं गिरा मुझे बचाओ।”

एक ही छलांग में इमरान तने के करीब पहुँच गया।

“चले आओ चले आओ। खुद को संभालो। अच्छा मैं हाथ बढ़ाता हूँ। अपने पैर नीचे लटका दो।” इमरान ने कहा।

जावेद मिर्ज़ा वगैरह भी उसकी मदद को पहुँच गये। किसी ना किसी तरह सलीम को नीचे उतारा गया। उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। उसने भरायी हुई आवाज में कहा, “मेरे दायें हाथ पर गोली लगी है।”

“मगर तुम तो जेल में थे।” जावेद मिर्ज़ा बोला।

“जज…जी हाँ मैं था।” सलीम आगे पीछे झूलता हुआ जमीन पर गिर गया। वह बेहोश हो चुका था।

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