चैप्टर 10 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 10 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 10 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

Chapter 10 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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नवाब जावेद मिर्ज़ा के यहाँ रात के खाने की मेज पर इमरान भी था। शौकत के अलावा खानदान के वो सारे लोग मौजूद थे, जिन्हें इमरान पहले भी यहाँ देख चुका था। वह काफ़ी देर से सोच रहा था कि आखिर शौकत क्यों गायब है? खाने के दौरान जावेद मिर्ज़ा को अचानक अपने मरहूम बाप याद आ गये और इमरान बेकार में बोर होता रहा। लेकिन उससे कोई बात नहीं चलाई। हो सकता है कि वह खुद ही बात बढ़ाना चाहता रहा हो।

ख़ुदा ख़ुदा करके उनके वालिद साहब की दास्तान खत्म हुई। फिर दादा साहब का बयान छिड़ने ही वाला था कि इमरान बोल पड़ा, “हाँ वो साहब! क्या नाम है यानी कि साइंटिस्ट साहब नज़र नहीं आते!”

“शौकत!” जावेद मिर्ज़ा बेदिली से बड़बड़ाया, “वह लेबोरेटरी में झक मार रहा होगा।”

“लाहौल विला कूवत!” इमरान ने इस तरह होंठ सिकोड़े, जैसे लेबोरेटरी में होना उसके नजदीक बड़ी ज़लील बात हो।

इस पर इरफ़ान ने साइंसदानों और फिलासफ़रों की बौखलाहट के चुटकुले छोड़ दिये। इमरान अब भी बोरियत महसूस करता रहा। आज वह कुछ करना चाहता था। जैसे ही इरफ़ान के चुटकुलों का स्टॉक खत्म हुआ, इमरान बोल पड़ा, “आप की कोठी बहुत शानदार है। पहाड़ी इलाकों में ऐसी अजीब इमारतें बनवाना आसान काम नहीं है।”

“मेरा ख़याल है कि आपने पूरी कोठी नहीं देखी।” जावेद मिर्ज़ा चहककर बोला।

“जी नहीं! अभी तक नहीं।”

“अगर आपके पास वक्त हो तो…”

“ज़रूर…ज़रूर…मैं ज़रूर देखूंगा।” इमरान ने कहा। खाना खाने के बाद उन्होंने लाइब्रेरी में कॉफी पी और फिर जावेद मिर्ज़ा इमरान को इमारत के अलग-अलग हिस्से दिखाने लगा। इस दौरान इन दोनों के साथ में और कोई नहीं था। जावेद मिर्ज़ा पर एक बार फिर बड़प्पन की बकवास का दौरा पड़ा, लेकिन इमरान ने उसे ज्यादा नहीं बहकने दिया।

“ये आपके शौकत साहब….क्या किसी ईज़ाद की फ़िक्र में है?”

“ईज़ाद!” जावेद मिर्ज़ा बड़बड़ाया, “ईज़ाद वह क्या करेगा? बस वक्त और पैसों की बर्बादी है। लेकिन आखिर आप इसमें इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं?”

“वजह है!”

“वजह?” तभी जावेद मिर्ज़ा रुककर इमरान को घूरने लगा।

“यकीनन आपको महंगा पड़ेगा।” इमरान जल्दी से बोला, “क्योंकि आप पुराने ख़याल के लोग हैं, लेकिन हमारी सोसाइटी पर जो बुरा वक्त पड़ा है, उसको आप भी नहीं जानते होंगे। अब हममें से हर एक को पुरानी शान को बरकरार रखने के लिए कुछ ना कुछ करना ही पड़ेगा।”

“यानी क्या करना पड़ेगा?”

“मैंने एक प्रोग्राम बनाया है…शौकत साहब से कहिये कि लेबोरेटरी में रहकर सिर खपाना सिर्फ ज़ेहनी अय्याशी है। बाहर निकलें और अपने लोगों की शान बरकरार रखने के लिए कुछ काम करें।”

“वह क्या करेगा?”

“मिसाल के तौर पर हजार एकड़ जमीन में…”

“खेती?” जावेद मिर्ज़ा जल्दी से बोला, “बकवास है!”

“अफ़सोस, यही तो आप नहीं समझे। खैर, मैं खुद ही शौकत साहब से बातचीत करूंगा। उनकी लेबोरेटरी कहाँ है?”

“आप बेकार में अपना वक्त बर्बाद करेंगे।” जावेद मिर्ज़ा ने बेदिली से कहा। वह शायद अभी कुछ देर और इमरान को बोर करना चाहता था।

“नहीं जनाब मैं इसे ज़रूरी समझता हूँ। अगर वह मेरी मदद कर सके…” इतने में जावेद मिर्ज़ा ने किसी नौकर को आवाज दी और इमरान का जुमला अधूरा रह गया।

फिर कुछ पलों के बाद वह उस नौकर के साथ लेबोरेटरी की तरफ जा रहा था।

लेबोरेटरी असली इमारत से लगभग डेढ़ फर्लांग के फासले पर एक छोटी सी इमारत में थी। उसमें तीन कमरे थे। शौकत वहीं रहता भी था। इमरान ने नौकर को इमारत के बाहर ही से वापस कर दिया।

ज़ाहिर है कि वह किसी काम के लिए यहाँ आया था। दरवाजे बंद थे और वह सब नीचे से ऊपर तक ठोस लकड़ी के बने थे। उनमें शीशे नहीं थे। खिड़कियाँ थी, लेकिन उन्हें बाहर की तरफ से लाकर लगी हुई थी। अलबत्ता उनमें शीशे थे और वह सब रोशन दिख रही थी। जिसका मतलब यह था कि कोई अंदर मौजूद है। उसने एक खिड़की के शीशे पर चलती हुई परछाई रही हो।

इमरान उस खिड़की की तरह बढ़ा।

दूसरे ही पल वह इमारत के अंदर के एक कमरे का हाल बखूबी देख सकता था। हकीकत में वह लेबोरेटरी ही में झांक रहा था। यहाँ कई किस्म के औज़ार थे। शौकत लोहे की अंगीठी पर झुका हुआ था। उसमें कोयले दहक रहे थे और उनकी परछाई शौकत के चेहरे पर पड़ रही थी।

इमरान को अंगूठी से धुआं उठता दिख रहा था और वह शायद गोश्त ही था, जिसके जलने की बू थी, जो लेबोरेटरी से निकलकर बाहर भी फैल गई थी।

शौकत कुछ पल अंगीठी पर झुका रहा, फिर सीधा खड़ा हो गया।

अब वह करीब ही की मेज पर रखे व्यक्ति के एक डिब्बे की तरफ देख रहा।

फिर उसने उस में हाथ डालकर जो चीज निकाली वह कम से कम इमरान के ख्वाबों-खयालों में भी ना रही होगी। ज़ाहिर है कि वह किसी फौरन कामयाबी की उम्मीद लेकर तो यहाँ आया नहीं था।

शौकत के हाथ में एक छोटा सा नीले रंग का परिंदा था और शायद वह ज़िन्दा नहीं था। वह कुछ पल उसकी एक टांग पकड़ कर लटकाए उसे गौर से देखता रहा। फिर इमरान ने उसे दहकते हुए अंगारों में गिरते देखा। एक बार फिर अंगीठी से गहरा धुआं उठकर हवा में बल खाने लगा। शौकत ने दो और परिंदे उस डिब्बे से निकाले और उन्हें भी अंगीठी में झोंक कर सिगरेट सुलगाने लगा।

इमरान चुपचाप खड़ा रहा। वह सोच रहा था कि अब उसे क्या करना चाहिए। वैसे वह अब भी कानूनी तौर पर उसके खिलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं कर सकता था।

इमरान सोचने लगा। काश! उनमें से एक ही परिंदा उसके हाथ लग सकता। मगर अब वहाँ क्या था? एक बात उसकी समझ में ना आ सकी। मुर्दा परिंदे! उनको जलाने का मकसद यही हो सकता था कि वह उन्हें इस शक्ल में भी किसी दूसरे के कब्जे में नहीं जाने देना चाहता। यानी उन मुर्दा परिंदों से भी जमील वाले केस पर रोशनी पड़ सकती थी।

इमरान लेबोरेटरी की तलाशी लेने के लिए बेचैन था। लेकिन वह नहीं चाहता था कि किसी को उस पर ज़र्रा बराबर भी शक हो सके, क्योंकि यह एक ऐसा केस था, जिसमें मुज़रिम के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने के लिए काफ़ी कोशिशों की ज़रूरत थी और मुज़रिम के होशियार हो जाने पर परेशानी हो सकती थी।

शौकत अंगूठी के पास से हटकर एक मेज़ का दराज खोल रहा था। दराज़ में ताला लगा था।उसने उसमें से एक रिवाल्वर निकालकर उसके चेंबर भरे और जेब में डाल दिया। अंदाज़ से साफ मालूम हो रहा था कि वह कहीं बाहर जाने की तैयारी कर रहा है। फिर वह उस कमरे में चला गया।

इमरान खिड़की के पास से हटकर एक पेड़ के तने की ओट में छिप गया। जल्दी उसने किसी दरवाजे के खुलने और बंद होने की आवाज में। फिर सन्नाटे में कदमों की आहट गूंजने लगी। धीरे-धीरे ये आवाजें भी दूर होती गई और फिर सन्नाटा छा गया।

इमरान तने की ओट से निकल कर सीधा मेन गेट की तरफ आया। उसे उम्मीद थी कि वह बंद होगा, लेकिन ऐसा नहीं था। हाथ लगाते ही दोनों पट पीछे की तरफ खिसक गये।

इमरान कुछ देर के लिए रुका। दरवाजा बंद ना होने का मतलब यह था कि शौकत ज्यादा दूर नहीं गया। हो सकता था कि वह रात के खाने के लिए सिर्फ कोठी ही तक गया हो। मगर वह रिवाल्वर…आखिर सिर्फ कोठी तक जाने के लिए रिवाल्वर साथ ले जाने की क्या ज़रूरत थी? इमरान ने अपने सिर को थोड़ा हिलाया। जिसके मतलब यह था कि चाहे कुछ भी हो, उस वक्त इस छोटी सी इमारत की तलाशी ज़रूर ली जायेगी।

उसने जेब से एक काला नकाब निकाल कर अपने चेहरे पर चढ़ा लिया। ऐसे मौकों पर वह अक्सर यही करता था। मकसद यह था कि किसी से मुठभेड़ हो जाने के बावजूद भी वह न पहचाना जा सके।

यहाँ आते वक्त उसे जावेद मिर्ज़ा के नौकर से शौकत की आदत के बारे में बहुत कुछ मालूम कर लिया था। शौकत यहाँ अकेला रहता था और उसके लेबोरेटरी असिस्टेंट के अलावा बिना इज़ाज़त कोई वहाँ दाखिल नहीं हो सकता था। चाहे वह खानदान ही का कोई आदमी क्यों ना हो? फिलहाल उसका लेबोरेटरी असिस्टेंट जेल में था, इसलिए शौकत के अलावा वहाँ किसी और की मौजूदगी नामुमकिन थी। लेकिन इमरान ने इसके बावजूद भी एहतियात से नकाब इस्तेमाल किया था। वह अंदर गया। इमारत के चारों तरफ अंधेरा था। इमरान ने अपनी जेब से एक छोटी सी टॉर्च निकाली और वह उस कम रोशनी में उस कमरे की छानबीन करने लगा।

दस मिनट बीत गये, लेकिन कोई ऐसी चीज हाथ में लगी, जिसे शौकत के खिलाफ़ सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता।

दो कमरों की तलाशी लेने के बाद वह लेबोरेटरी में दाखिल हुआ। यहाँ भी अंधेरा था। लेकिन अंगूठी में अभी कोयले दहक रहे थे।

इमरान ने सबसे पहले दफ्ती के उस डिब्बे का जायज़ा लिया, जिसमें से मुर्दा परिंदे निकाल निकाल कर अंगीठी में डाले गए थे। मगर डिब्बा अब खाली था।

इमरान दूसरी तरफ मुड़ा।

“खबरदार!” अचानक उसने अंधेरे में शौकत की आवाज सुनी, “तुम जो कोई भी हो अपने हाथ ऊपर उठा लो…!”

मगर उसका जुमला पूरा होने से पहले ही इमरान की टॉर्च बुझ चुकी थी। वह झपटकर एक अलमारी के पीछे हो गया।

“खबरदार! खबरदार…!” शौकत कह रहा था, “रिवाल्वर का रूख गेट की तरफ है। तुम भाग नहीं सकते।”

इमरान ने अंदाज़ा कर लिया कि शौकत धीरे-धीरे स्विच बोर्ड की तरफ जा रहा है। अगर उसने रोशनी कर दी, तो? इस ख़याल में इमरान के जिस्म में बिजली किसी लहर दौड़ गई और वह तेजी से धीमे कदमों से चलता हुआ गेट के करीब पहुँच गया। उसे शौकत की बेवकूफी पर हँसी भी आ रही थी। एक तो इतना अंधेरा था कि वह उसे देख नहीं सकता था। दूसरा उस कमरे में अकेला एक वही गेट नहीं था। लेकिन इमरान ने उसी गेट को भागने का रास्ता बनाया, जिसकी तरफ शौकत ने इशारा किया था। वह बहुत ही आसानी से इमारत के बाहर निकल आया और फिर तेजी से कोठी की तरफ जाते वक्त उसने मुड़ कर देखा, तो खिड़कियाँ रोशन हो चुकी थीं।

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