Chapter 17 Neele Parindey Novel By Ibne Safi
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बात बढ़ गई। नवाब मिर्ज़ा का पारा चढ़ गया था।
उसने फैयाज़ से कहा, “जी फ़रमाइए! मेरे सब बच्चे यहीं मौजूद हैं। यह शौकत है। यह इरफ़ान है, यह सफ़दर है…बताइए आपको इनमें से किस पर शक है और शक की वजह भी आपको बतानी पड़ेगी। समझे आप!”
फैयाज़ बगले झांकने लगा। वह बड़ी बेचैनी से इमरान का इंतज़ार कर रहा था। उस वक्त वहाँ जावेद मिर्ज़ा के खानदान वालों के अलावा जमील के खानदान के सारे मर्द मौजूद थे। बात जमील और परवीन की शादी से शुरू हो गई थी। जावेद मिर्ज़ा ने एक कोढ़ी से अपनी लड़की का रिश्ता करने से साफ़ इंकार कर दिया। इस पर सज्जाद ने काफ़ी ले दे की। फिर फैयाज़ ने उसके भतीजों में से किसी एक को जमील की बीमारी का जिम्मेदार फहराया।
लेकिन जब जावेद मिर्ज़ा ने तस्दीक चाही, तो फैयाज़ के हाथ-पैर फूल गए। उसे उम्मीद थी कि इमरान वक्त पर पहुँच जायेगा, लेकिन इमरान? फैयाज़ दिल ही दिल में उसे हजार अल्फाज़ फ़ी मिनट की रफ्तार से गालियाँ दे रहा था।
“हाँ आप बोलते क्यों नहीं? खामोश क्यों हो गये?” जावेद मिर्ज़ा ने उसे ललकारा।
“अमां चलो यार! शर्माते क्यों हो?” कमरे के बाहर से इमरान की आवाज आई और फैयाज़ की बांछें खिल गई।
सबसे पहले सलीम दाखिल हुआ। उसके पीछे इमरान था और शायद वह उसे धकेलता हुआ ला रहा था।
“सित वत जाह!” जावेद मिर्ज़ा झल्लायी हुई आवाज में बोला, “यह क्या मज़ाक है? आप बगैर इज़ाज़त यहाँ कैसे चले आये।”
“मैं तो यह पूछने के लिए हाजिर हुआ हूँ कि आखिर इन हज़रत की रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज़ कराई?” इमरान ने सलीम की तरफ इशारा करके कहा , “आज से चार दिन पहले…”
“आप यहाँ से चले जाइए जनाब।” नवाब जावेद मिर्ज़ा गुर्राया।
“आपको बताना पड़ेगा जनाब।” अचानक इमरान के चेहरे से बेवकूफी के आसार गायब हो गये।
“ये मुझे जबरदस्ती लाये हैं।” सलीम डरी हुई आवाज में बोला।
“सितवत जाह! मैं बहुत बुरी तरह पेश आऊंगा।” जावेद मिर्ज़ा साथ खड़ा हो गया। उसी के साथ शौकत भी उठा।
“बैठो!” इमरान की आवाज में पूरे कमरे में झंकार से पैदा कर दी। फैयाज़ ने उसकी इस आवाज में अजनबीयत सी महसूस की। यह उस इमरान की आवाज तो नहीं थी, जिसे वह इतने लंबे वक्त से जानता था।
“मेरा ताल्लुक होम डिपार्टमेंट से है।” इमरान ने कहा, “आप लोग अभी तक गलतफ़हमी में फंसे थे। मुझे उन वायरस की तलाश है, जो आदमी के खून में मिलते ही उसे बारह घंटे के अंदर ही अंदर कोढ़ी बना देते हैं। शौकत क्या तुम्हारी लेबोरेटरी में ऐसे वायरस नहीं हैं?”
“हरगिज़ नहीं!” शौकत गुर्राया।
“क्या तुम बुधवार की रात का अपनी लेबोरेटरी में कुछ मुर्दा परिंदे नहीं जला रहे थे। नीले परिंदे!”
“हाँ! मैंने जलाये थे, फिर?”
इमरान सलीम की तरफ मुड़ा, “तुम पर किसने फायर किया था?”
“मैं नहीं जानता।” सलीम ने सूखे होठों पर ज़बान फेर कर कहा।
“तुम जानते हो। तुम्हें बताना पड़ेगा।”
“मैं नहीं जानता जनाब! मुझ पर किसी ने अंधेरे में फायर किया था। एक गोली हाथ पर लगी थी और बदहवासी में मैं पेड़ पर चढ़ गया था।”
“यह रिवाल्वर किसका है?” इमरान ने जेब से एक रिवाल्वर निकाल कर सबको दिखाते हुए कहा।
शौकत और जावेद मिर्ज़ा के चेहरों पर हवाइयाँ उड़ने लगी।
“मैं जानता हूँ कि रिवॉल्वर शौकत का है और शौकत के पास उसका लाइसेंस भी है। मैं यह भी जानता हूँ कि सलीम पर इसी रिवाल्वर से गोली चलाई गई थी और जिसने भी फायर किया था, उसकी उंगलियों के निशान उसके हत्थे पर मौजूद थे और निशान शौकत की उंगलियों के थे।”
“होगा होगा! मुझे शौकत आपसे कोई शिकायत नहीं है।” सलीम जल्दी से बोल पड़ा।
“असलियत क्या है सलीम ?” इमरान ने नर्मी से पूछा।
“उन्होंने किसी दूसरे आदमी के धोखे में मुझ पर फायर किया था।”
“किस के धोखे में?”
“यह वही बता सकेंगे। मैं नहीं जानता।”
“हूं फैयाज़! हथकड़ियाँ लाए हो।” इमरान ने कहा।
“नहीं नहीं, यह कभी नहीं हो सकता।” जावेद मिर्ज़ा खड़ा होकर खौफ़नाक अंदाज़ में चीखा।
“फैयाज़ हथकड़ियाँ!’
फैयाज़ ने जेब से हथकड़ियों का जोड़ा निकाल लिया।
“ये हथकड़ियाँ सज्जाद के हाथों में डाल दो।”
“क्या?” सज्जाद पूरे गले से चीख कर खड़ा हो गया।
“फैयाज़! सज्जाद को हथकड़ियाँ लगा दो।”
“क्या बकवास है।” फैयाज़ झुंझला गया।
“खबरदार सज्जाद! अपनी जगह से हिलना नहीं।” इमरान ने रिवाल्वर का रुख सज्जाद की तरफ कर दिया।
“इमरान मैं बहुत बुरी तरह पेश आऊंगा।” फैयाज़ का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
“फैयाज मैं हुक्म देता हूँ। मेरा ताल्लुक सीधे होम डिपार्टमेंट से है और डायरेक्टर जनरल के अलावा सीबीआई का हर अफसर मेरे मातहत है। चलो जल्दी करो।”
इमरान ने अपना सरकारी आई कार्ड जेब से निकालकर फैयाज़ के सामने डाल दिया।
फैयाज़ के चेहरे पर सचमुच हवाइयाँ उड़ने लगी। उसके हाथ कांप रहे थे। आई कार्ड मेज पर रखता वह सज्जाद की तरफ बढ़ा और हथकड़ियाँ उसके हाथों में डाल दी।
“देखा आपने।” सलीम में शौकत की तरफ देखकर पागलों की तरह कहकहा लगाया, “ख़ुदा नाइंसाफ नहीं है।”
शौकत के होठों पर थोड़ी सी मुस्कुराहट फैल गई।
“तुम इधर देखो सलीम!” इमरान ने उसे मुखातिब किया, “तुमने किसके डर से जेल में पनाह ली थी।”
“जिसके हाथों में हथकड़ियाँ हैं। यह यकीनन मुझे मार डालता। हम जानते थे कि वह वायरस हमारी लाइब्रेरी से इसी ने चुराये हैं, लेकिन हमारे पास कोई सबूत नहीं था। अक्सर लोग हमारे लेबोरेटरी में आते रहे हैं। एक दिन यह भी आया था। वायरस पर बात चल गई थी। मैंने कई वायरस इसे भी दिखाये। उनमें वह वायरस भी थे, जो सौ फीसदी शौकत साहब की ईज़ाद हैं। फिर एक हफ्ते के बाद ही वायरस का डिब्बा अचानक लेबोरेटरी से गायब हो गया। उससे तीन ही दिन पहले कॉलेज के साइंस के स्टूडेंट हमारी लेबोरेटरी देखने आये थे। हमारा ख़याल उन्हीं की तरफ था। लेकिन जब गायब होने के चौथे ही दिन जमील साहब और नीले परिंदे की कहानी मशहूर हुई, तो मैंने शौकत साहब को बताया कि एक दिन सज्जाद भी लेबोरेटरी में आया था। फिर उसी शाम को हमारी लेबोरेटरी में तीन मुर्दा परिंदे पाये गये। वे वह बिल्कुल उसी किस्म के थे, जिस किस्म के परिंदे का बयान अखबारों में किया गया था। हमने उन्हें आग में जलाकर राख कर दिया और फिर यह बात साफ हो गई कि सज्जाद अपना ज़ुर्म शौकत साहब के सिर थोपना चाहता है और उसी शाम किसी अनजान आदमी ने मुझ पर गोली चलाई। मैं बाल-बाल बच गया। शौकत साहब ने मुझसे मशवरा दिया कि मैं किसी महफूज़ जगह पर चला जाऊं, ताकि वे इत्मीनान से सज्जाद के खिलाफ सबूत इकट्ठा कर सकें। मेरा दावा है कि मुझ पर सज्जाद ही ने हमला किया था। सिर्फ इसलिए कि मैं किसी से कहने के लिए ज़िन्दा ना रहूं कि सज्जाद भी लेबोरेटरी में आया था और उसे वायरस दिखाये गए थे।”
“बकवास है!” सज्जाद बोला, “मैं कभी लेबोरेटरी में नहीं गया था।”
“तुम खामोश रहो। फैयाज़ उसे खामोश रखो।” इमरान ने कहा और फिर सलीम से बोला, ” बयान जारी रहे।”
सलीम कुछ फल खामोशी रहकर बोला, “शौकत साहब ने सिर्फ मेरी ज़िन्दगी की हिफाज़त के ख़याल में मुझ पर चोरी का इल्जाम लगाकर गिरफ्तार करा दिया। लेकिन सज्जाद ने मेरा वहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा। एक अंग्रेज लड़की वहाँ पहुँच गई, जो शायद सज्जाद ही की भेजी हुई थी और मुझे बेकार में गुस्सा दिलाने लगी, ताकि मैं झल्लाकर अपने जेल आने का राज उगल दूं।”
“खैर खैर! आगे कहो।” इमरान बड़बड़ाया। वह समझ गया था कि उसका इशारा रूशी की तरफ है।
“फिर पता नहीं क्यों और किस तरह मेरी ज़मानत हुई। ज़ाहिर है कि उस अनहोनी बात ने मुझे बदहवास कर दिया और मैंने उसी तरफ रुख किया। लेकिन कोई मेरा पीछा कर रहा था। कोठी के पास पहुँचकर उसने एक फायर भी किया। लेकिन मैं फिर बच गया। वहाँ बाग में अंधेरा था। मैंने लेबोरेटरी के करीब पहुँचा, शौकत साहब समझे, शायद मैं वही आदमी हूँ, जो आये दिन लेबोरेटरी में मुर्दा पर परिंदे डाल जाया करता हूँ। उन्होंने उसी के धोखे में मुझ पर फायर कर दिया।”
“क्यों?” इमरान ने शौकत की तरफ देखा।
“हाँ, यह बिल्कुल सही है! सज्जाद यही चाहता था कि किसी तरह उन परिंदों पर चचा साहब की भी नज़र पड़ जाये और वे मुझे ही मुज़रिम समझने लगे। वैसे उन्हें थोड़ा बहुत शक पहले भी था।”
इमरान ने जावेद मिर्ज़ा की तरफ देखा। लेकिन जावेद मिर्ज़ा खामोश रहा।
“क्या बकवास हो रही है। यह सब पागल हो गए हैं।” सज्जाद गला फाड़कर चीखा, “अरे बदबख्तो, अंधों! मेरे साथ चलकर मेरी लड़की सईदा की हालत देखो। वह भी उसी बीमारी में फंस गई है। क्या मैं अपनी बेटी पर भी उस किस्म के वायरस….या ख़ुदा…यह सब पागल है।”
अचानक शौकत हँस पड़ा।
“खूब!” उसने कहा, “तुम्हें बेटियाँ बेटे से क्या सरोकार? तुम्हें तो दौलत चाहिए। दोनों कोढ़ीयों की शादी करा दो। वे दोनों एक-दूसरे को पसंद करेंगे। दूसरी हरकत तुमने सिर्फ अपनी गर्दन बचाने के लिए की है।”
“नहीं सज्जाद! तुम कुछ ख़याल ना करना।” इमरान मुस्कुरा कर बोला, “दूसरी हरकत मेरी थी।”
सज्जाद उसे घूरने लगा। शौकत की ऑंखें भी हैरत से फैल गई। फैयाज़ इस तरह खामोश बैठा था, जैसे उसे सांप सूंघ गया हो।
“खैर खैर! मुझ पर झूठा इल्जाम लगाया जा रहा है और मैं अदालत में देखूंगा।”
“ज़रूर देखना सज्जाद। वाकई तुम्हारे खिलाफ़ सबूत पहुँचाना बड़ा मुश्किल काम होगा, लेकिन यह बताओ कि पिछली रात अपनी लड़की का चेहरा देखकर तुम बेतहाशा ईंधन के गोदाम की तरह क्यों भागे थे। बताओ बोलो जवाब दो।”
तभी सज्जाद के चेहरे पर ज़र्दी फैल गई। माथे पर पसीने की बूंदें फूट आई। आँखें धीरे-धीरे बंद होने लगी और फिर उसकी गर्दन अचानक एक तरफ ढलक गई। वह बेहोश हो गया था।
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