चैप्टर 3 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 3 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 3 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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जमील की कोठी बड़ी शानदार थी और उसका फैलाव बहुत ज्यादा था। शायद हो सकता है उसकी बनावट इस अंदाज में की गई हो कि पूरा खानदान उसमें रह सके। लगभग पच्चीस कमरे ज़रूर रहे होंगे। फैयाज़ इमरान को पिछली रात ही यहाँ पहुँचा गया था और फिर फैयाज़ वहाँ इतनी ही देर ठहरा था, जितनी देर में उसने सज्जाद और उसके दूसरे भाइयों से इमरान का परिचय कराया था। इमरान ने बाकी रात सुकून से गुजारी यानी सुबह तक इत्मीनान से सोता रहा।

दिन के उजाले में लोगों ने इमरान के बारे में कोई अच्छी राय नहीं कायम की, क्योंकि वह सूरत ही से एक नंबर का बेवकूफ लगता था। चाय उसने अपने कमरे में अकेले पी और फिर बाहर निकल कर एक एक से ‘अमज़ाद साहब’ के बारे में पूछने लगा। लेकिन सब ने इस नाम को पहली बार सुना था। कोई अमज़ाद साहब के बारे में उसे ना बता सका। आखिर सज्जाद आ टकराया। इमरान ने उससे भी अमज़ाद साहब के बारे में पूछा।

“यहाँ तो कोई अमज़ाद नहीं है।” सज्जाद ने कहा। वह एक अधेड़ उम्र का आदमी था और उसके चेहरे पर सबसे ज्यादा बड़ी चीज उसकी नाक थी।

“तो फिर शायद मैं गलत जगह पर हूँ।” इमरान ने मायूसी से कहा।

“कैप्टन फैयाज़ ने कहा था कि अमज़ाद साहब मेरे पुराने साथी हैं और उनके भतीजे…”

“अमज़ाद नहीं सज्जाद।” सज्जाद ने कहा, ” मैं सज्जाद हूँ।”

“नहीं साहब! मुझे अच्छी तरह याद है अमज़ाद। अगर आप सज्जाद कहते हैं, तो फिर यही सही होगा। आपके भतीजे साहब…मैं उनसे मिलना चाहता हूँ।”

“बहुत मुश्किल है जनाब!” सज्जाद बोला, “वह कमरे से बाहर निकलता ही नहीं। हम सब खुशामद करते करते थक गये।”

“मुझे वह कमरा ही दिखा दीजिये।”

“आइए फिर कोशिश करें। हो सकता है कि.??? मगर मुझे उम्मीद नहीं।”

गलियारों से गुजरने के बाद वे एक कमरे के सामने रुक गये। इमरान ने दरवाजा को धक्का दिया, लेकिन अंदर से बंद था। सज्जाद ने आवाज दी, लेकिन अंदर कोई सिर्फ खांसकर रह गया। इतने में इमरान ने जेब से सिगरेट केस निकाल कर एक सिगरेट सज्जाद को पेश किया और दूसरा खुद सुलगा लिया। सज्जाद ने सिगरेट सुलाकर फिर दरवाजे पर दस्तक दी।

“ख़ुदा के लिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।” अंदर से एक भर्राई हुई आवाज आई।

“जमील बेटे! दरवाजा खोल दो। बाहर आओ…देखो, मैंने एक नया इंतज़ाम किया है। हमारे दुश्मनों की गर्दनें नाली में रगड़ दी जायेंगी।”

“चाचा जान मैं कुछ नहीं चाहता…मैं कुछ नहीं चाहता।”

“हम तो चाहते हैं।”

“बेकार है…इस कमरे से मेरी लाश ही निकलेगी।”

“देखा आपने!” सज्जाद धीरे से इमरान से कहा और इमरान सिर हिलाकर रह गया।

फिर सज्जाद खामोश होकर कुछ सोचने लगा। साथ ही वह सिगरेट के लंबी-लंबी कश ले रहा था। अचानक उसके चेहरे के करीब एक धमाका हुआ और सिगरेट की धज्जियाँ उड़ गई।

“अरे क्या हुआ?” सज्जाद चीख मारकर जमीन पर ढेर हो गया।

“क्या हुआ?” अंदर से कोई चीखा। फिर दौड़ने की आवाज आई और दरवाजे झटके के साथ खुल गया। दूसरे पर में इमरान के सामने एक लंबा चौड़ा नौजवान खड़ा था, जिसके चेहरे पर बड़े-बड़े सफेद दाग थे। उसने झपट का सज्जाद को जमीन से उठाया और सज्जाद इमरान की तरफ देखकर दहाड़ा, “यह क्या बेहूदगी है?”

“अरे…खु…खुदा की कसम!” इमरान हकलाने लगा।

“यह क्या हुआ?” जमीनी सज्जाद कोचीन जोड़कर कहा, “यह क्या था?”

“कुछ नहीं?” सज्जाद इमरान को गुस्से से बोलता हुआ हांफ रहा था।

“आप कौन हैं?” जमील इमरान की तरफ मोड़ा, लेकिन फिर दूसरे ही पल में दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपा कर कमरे में चला गया। दरवाजा फिर बंद हो चुका था।

“मुझे बताइए कि इस बेहूदगी का क्या मतलब था?” सज्जाद इमरान के चेहरे के करीब हाथ हिलाकर चीखा।

घर के कई दूसरे लोग भी वहाँ पहुँच गए थे।

“देखिए! कहता हूँ?” इमरान भर्राई हुई आवाज में बोला, “यह कैप्टन फैयाज़ की हरकत है। उसने मेरे सिगरेट केस से अपना सिगरेट केस बदल लिया है, देखिए… सिगरेट केस पर उसका नाम भी मौजूद है।” इमरान ने सिगरेट केस उसे पकड़ा दिया।

“यह सिगरेट उसकी तरफ से मेरे लिए था।” इमरान फिर बोला, “मुझे बहुत अफ़सोस है। लाहौल विला कूवत। आप जले तो नहीं?”

वह आगे झुककर उसके चेहरे का जायजा लेने लगा।

“अगर यह मज़ाक था, तो मैं ऐसे मज़ाक लानत भेजता हूँ।” सज्जाद ना खुश होते हुए बोला, “मैं नहीं जानता था कि फैयाज़ अभी तक बचपन ही के दायरे में है।”

“मैं फैयाज़ से सुलझ लूंगाज़ाद” इमरान अपनी मुट्ठियाँ बंद करके बोला। दूसरे लोग सज्जाद से धमाके के बारे में पूछने लगे और सज्जाद ने सिगरेट फटने की बात दोहराते हुए कहा, “इस तरह अचानक हादसा फिर हो सकता है। फैयाज़ को ऐसा मजाक नहीं करना चाहिए था। उसने उसके सिगरेट केस से अपना सिगरेट बदल लिया है। अब सोचता हूँ, कहीं फैयाज़ ने मुझसे भी तो मज़ाक नहीं किया है।”

“ज़रूर किया होगा।” इमरान बेवकूफी के अंदाज में पलके झपकाता बोला।

“आपका ओहदा क्या है?” सज्जाद ने उससे पूछा।

“शोहदा…मेरा कोई शोहदा नहीं है। लाहौल विला कूवत…क्या आप मुझे लफंगा समझते हैं। लिखा होगा वही साला फैयाज़। एक बार फिर लाहौल विला कूवत।”

“आप ऊँचा भी सुनते हैं?” सज्जाद उसे घूरने लगा।

“मैं ऊँचा नीचा सब कुछ सुन सकता हूँ।” इमरान बुरा सा मुँह बनाकर बोला और सिगरेट केस से दूसरा सिगरेट निकालने लगा। फिर इस तरह चौंका, जैसे धमाके वाली बात भूल ही गया हो। उसने झल्लाहट के साथ सारे सिगरेट तोड़ कर फेंक दिए और सिगरेट केस को जमीन पर रख पहले तो उस पर घूंसे बरसाता रहा, फिर खड़ा होकर जूतों से रौंदने लगा। नतीजा यह हुआ कि सिगरेट केस की शक्ल ही बिगड़ गई। कुछ लोग मुस्कुरा रहे थे और कुछ हैरत से देख रहे थे।

“मैंने आपका ओहदा पूछा था।” सज्जाद बोला।

“मैं आपकी किसी सवाल का जवाब नहीं दूंगा।” इमरान की आवाज कुछ अजीब थी, “मैं अभी वापस जाऊंगा। फैयाज़ की वैसी की ऐसी….ऐसी की ऐसी…लाहौल विला कूवत…क्या कहते हैं इसे…वैसी की जैसी…!”

“ऐसी की तैसी!” एक लड़के ने हँसते हुए उसकी बात पूरी की।

“जी हाँ! ऐसी की तैसी…शुक्रिया!” इमरान ने कहा और लंबे-लंबे कदम उठाता हुआ वहाँ से चला गया। लड़की ने सज्जाद का हाथ पकड़ा और एक दूसरे कमरे में ले आई।

“यह आदमी बड़ा घाघ मालूम होता है।” उसने सज्जाद से कहा।

“बिल्कुल गधा!”

“नहीं डैडी! मैं ऐसा नहीं समझती। जमील भाई को कमरे से निकालने की एक बेहतरीन तदबीर थी। यह बताइए कि पहले भी कोई इसमें कामयाब हो सका था। खुद फैयाज़ साहब ने भी तो कोशिश की थी।

सज्जाद कुछ ना बोला। उसके माथे पर लकीरें उभर आई। उसने थोड़ी देर बाद कहा, “तुम ठीक कहती हो सईदा! बिल्कुल ठीक! मगर कमाल है…सूरत से बिल्कुल गधा मालूम होता है।”

“डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टिगेशन में ऐसे ही लोग ज्यादा कामयाब समझे जाते हैं।”

इमरान गलियारे से कुछ इस अंदाज में रुखसत हुआ था, जैसे अपने कमरे में पहुँचते ही वहाँ से रवाना हो जाने की तैयारी शुरू करेगा।

“अब क्या किया जाये?” सज्जाद ने सईदा से कहा।

“आप जाकर उसे रोकिये।”

“मैं… मैं नहीं…तुम जाओ!”

“अच्छा! मैं ही रोकती हूँ।”

सईदा उस कमरे में आई, जहाँ इमरान रुका हुआ था। दरवाजा अंदर से बंद नहीं था। उसने दस्तक दी, लेकिन जवाब नहीं मिला। आखिर तीसरी दस्तक देने के बाद उसने धक्का देकर दरवाजा खोल दिया। कमरा खाली था। लेकिन इमरान का सामान वैसे ही मौजूद था। फिर नौकरों से पूछने पर मालूम हुआ कि इमरान खाली हाथ बाहर गया है।

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