चैप्टर 8 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 8 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 8 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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इमरान ने रूशी का बयान बहुत गौर से सुना और कुछ पल खामोश रह कर बोला, “तुम वाकई चल निकली हो। इससे ज्यादा मैं भी ना कर सकता था।”

“और तुम मेरी इस कार्रवाई से मुतमईन हो।” रूशी ने पूछा।

“इतना मुतमईन…कि…”

इमरान जुमला पूरा ना कर सका क्योंकि किसी ने कमरे के दरवाजे पर हल्की सी दस्तक दी।

“हां… आं…कम इन!” इमरान ने दरवाजे को घूरते हुए कहा।

एक लड़की दरवाजा खोल कर कमरे में आई। इमरान ने उस पर एक उचटती सी नज़र डाली।

“मैं सईदा हूँ।” लड़की ने कहा, “आपने मुझे देखा तो होगा।”

“नहीं! अभी नहीं देखा। सेक्रेटरी, मेरी ऐनक।”

लड़की उस पर कुछ झुंझला सी गई।

“मैं सज्जाद साहब की लड़की हूँ।”

“लाहौल विला कूवत। मैं लड़का समझा था…बैठिए! सेक्रेटरी! डायरी में देखो, यह अमजाद साहब कौन है?”

“सज्जाद साहब!” लड़की गुस्से में बोली, “आखिर आप मेरा मज़ाक क्यों उड़ा रहे हैं?”

“मैंने आज तक पतंग के अलावा और कोई चीज नहीं उड़ाई। आप यकीन कीजिये।  यूं तो उड़ाने को मेरे खिलाफ बेपर की भी उड़ाई जा सकती है।”

“मैं यह कहने आई थी कि जमील भाई आपसे मिलना चाहते हैं।” सईदा झल्ला कर खड़ी हो गई।

“सेक्रेटरी ज़रा डायरी…”

इमरान का जुमला पूरा होने से पहले ही सईदा कमरे से निकल गई।

“उस लड़की को मैंने कहीं देखा है।” रूशी बोली, “तुमने क्या कह दिया, वह गुस्से में मालूम होती थी।”

इमरान खामोश रहा। इतने में फोन की घंटी बज उठी। इमरान ने बढ़कर रिसीवर उठा लिया।

“हेलो…हाँ हाँ! हम ही बोल रहे हैं। सितवत जाह! अच्छा-अच्छा…ज़रूर…हम ज़रूर आयेंगे।”

इमरान ने रिसीवर रखकर अंगड़ाई ली और यूं ही मुस्कुराने लगा।

“मुझे उस आदमी सलीम के बारे में बताओ।” रूशी ने कहा।

“क्या वह बहुत खूबसूरत था?” इमरान ने पूछा।

“बकवास मत करो। बताओ मुझे…वह अजीब था और उसका वह जुमला…तुम मुझे गुस्सा नहीं दिला सकती…और उसने पूछा था कि तुम्हें किसने भेजा है।”

“रूशी! तुमने उसके बारे में क्या सोचा है?” इमरान ने पूछा।

“मैंने! मैंने कुछ नहीं सोचा। वैसे वह चोरी के इल्जाम में गिरफ्तार किया गया है। है ना!”

“यही खास पॉइंट है।” इमरान कुछ सोचता हुआ बोला, “लेकिन उसने जो बातचीत उनसे की थी…वह अजीब थी…थी या नहीं…अब तुम खुद अंदाज़ा कर सकती हो।”

“यानी उसी के सिलसिले में हकीकत वह नहीं है, जो ज़ाहिर की गई है।”

“बस, बिल्कुल ठीक है। इससे ज्यादा मैं भी नहीं जानता।”

थोड़ी देर तक खामोशी रही। फिर रूशी बड़बड़ाने लगी, “और वह नीला परिंदा? बिल्कुल कहानियों की बातें।”

“नीला परिंदा!” इमरान एक लंबी सांस लेकर अपनी ठोड़ी को खुजाने लगा, “मेरा ख़याल है कि उसे जमील के अलावा और किसी ने नहीं देखा। पेरिसियन नाइट क्लब के मैनेजर का यही बयान है। आज मैं कुछ ऐसे लोगों से भी मिलूंगा, जिनके नाम मुझे मालूम हुए हैं।”

“किन लोगों से?”

“वही लोग, जो शाम क्लब के डाइनिंग हॉल में मौजूद थे।”

लेकिन उसी दिन कुछ घंटों के बाद इस सिलसिले में इमरान ने रूशी को जो कुछ भी बताया, वह मतलब का नहीं था। वह उन लोगों से मिला था, जो वारदात की शाम क्लब में मौजूद थे। लेकिन उन्हें वहाँ कोई परिंदा नहीं दिखा था। अलबत्ता, उन्होंने जमील को बौखलाए हुए अंदाज में उछलते ज़रूर देखा था।

“फिर अब क्या ख़याल है?” रूशी ने कहा।

“फिलहाल कुछ भी नहीं!” इमरान ने कहा और जेब में चुइंग गम का पैकेट तलाश करने लगा। रूशी मेज पर पड़े हुए चाकू से खेलने लगी। उसके ज़ेहन में एक साथ कई सवाल थे। इमरान थोड़ी देर तक खामोश रहा, फिर बोला, ” उसने कहा था कि नाइटक्लब में वह परिंदा कई आदमियों को दिखा था। लेकिन दूसरों के बयान उसके उल्टे हैं।”

“हो सकता है कि कैप्टन भैया उसको गलत खबर मिली हो।” रूशी ने कहा।

“उसे यह सारी खबरें सज्जाद से मिली थी और सज्जाद जमील का चचा है।”

“अच्छा! तो फिर इसका मतलब यह हुआ कि खुद जमील ही इन खबरों के लिए जिम्मेदार है।”

“हाँ फिलहाल तो यही समझा जा सकता है।” इमरान कुछ सोचता हुआ बोला, “अच्छा तो मैं चला, जमील मुझसे मिलना चाहता है।”

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