चैप्टर 5 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 5 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 5 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

Chapter 5 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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शाम बड़ी सुहानी थी, सूरज दूर की पहाड़ियों की तरफ झुक रहा था और कांपती हुई लाली जैसी धूप हरी हरी चट्टानों पर बिखरी हुई थी। इमरान चलते-चलते अचानक मुँह के बल गिर पड़ा। पहले तो छोटी-छोटी बच्चियों ने ठहाका लगाया, लेकिन जब इमरान उठने के बजाय चुपचाप औंधा पड़ा ही रहा, तो बच्चियों के साथ वाले की तरफ दौड़ पड़े। उनमें से दो जवान लड़कियाँ थीं और तीन मर्द। एक ने इमरान को सीधा किया और फिर अपने साथियों की तरफ देख कर बोला, “बेहोश हो गया है।”

“देखिए, कहीं सिर तो नहीं फटा।” एक लड़की बोली और वह आदमी इमरान का सिर टटोलने लगा।

यह लोग अपने कपड़ों की वजह से अमीर घराने के मालूम हो रहे थे।

“नहीं फिर महफूज़ है।” नौजवान बोला, “यह शायद किसी किस्म का दौरा है। क्या कहते हैं उसे मिर्गी….मिर्गी।” इमरान को होश में लाने की कोशिशें करने लगा।

सामने की एक आलीशान इमारत थी और यहाँ से उसकी दूरी ज्यादा नहीं थी। यह नवाब जावेद मिर्ज़ा की कोठी थी।

“अब क्या करना चाहिए?” नौजवानों में से एक ने कहा।

“यह बेचारा कब तक पड़ा रहेगा। क्यों ना हम इसे उठाकर कोठी में ले चले!”

लड़कियों ने भी इस बात पर हामी भरी। लेकिन तीसरा, जो सबसे अलग-थलग खड़ा था मुँह बनाकर बोला, “मेरा ख़याल है कि इसकी ज़रूरत नहीं।”

“क्यों?” एक लड़की झल्लाकर उसकी तरफ मुड़ी।

“यह मुझे कोई अच्छा आदमी नहीं मालूम होता।”

“बुरा ही सही!” लड़की ने मुँह बनाकर कहा, “दुनिया का कोई आदमी फ़रिश्ता नहीं होता।”

इमरान को जमीन से उठाया गया, लेकिन वह तीसरा अलग ही रहा। हालांकि वे दोनों उसकी मदद की ज़रूरत महसूस कर रहे थे। ज्यों-त्यों करके वह कोठी में दाखिल हुए और सबसे पहला कमरा, जो उनकी पहुंच में था, उसमें इमरान को लिटा दिया गया। मैं उसे होश में लाने के लिए तरह-तरह की कोशिश करते रहे, लेकिन सब बेकार। आखिर थक-हार कर उन्हें डॉक्टर को फोन करना पड़ा।

“यह बन रहा है!” उस आदमी ने कहा, जिसने उसे बुरा आदमी कहा था।

“तुम बेवकूफ हो।” लड़की बोली।

“हो सकता है शौकत का ख़याल ठीक हो।” दूसरे ने कहा।

“तुम भी बेवकूफ हो।”

 पहले ने कुछ नहीं कहा। दूसरी लड़की भी खामोश हो गई।

“अच्छा मैं इसे होश में लाता हूँ।” शौकत आगे बढ़ कर बोला।

“नहीं बिल्कुल नहीं?” लड़की ने कड़ी आवाज में कहा, “डॉक्टर आ रहा है।

“तुम्हारी मर्जी!” शौकत बुरा सा मुँह बनाते हुए पीछे हट गया। इतने में एक बूढ़ा कमरे में आया। उसकी उम्र सत्तर के आसपास रही होगी। लेकिन सेहतमंद था। सफेद बालों में भी वह जवान लगता।

“क्या बात है? यह कौन है?”

“एक राहगीर!” लड़की ने कहा, “चलते-चलते गिरा और बेहोश हो गया।”

“लेकिन है कौन?”

“पता नहीं! तब से अब तक बेहोश है।”

“ओह! तुम लोगों को बिल्कुल अकल नहीं। हटो उधर, मुझे देखने दो।”

बूढ़ा पलंग के करीब पहुँचकर बोला, “आदमी हैसियत वाला मालूम होता है। उसकी जेब में विजिटिंग कार्ड जरूर होगा। तुम लोग अब तक मारते रहे हो।”

उसने इमरान की जेब टटोलने के बाद आखिरकार एक विजिटिंग कार्ड निकाल ही लिया और उस पर नजर डालते ही उसने ठहाका लगाया।

“देखा परवीन मैं ना कहता था कि कोई हैसियत वाला आदमी है यह देखो राज कुमार सितवत जाह!”

“राजकुमार सितवत जाह!” शौकत ने बुरे अंदाज में दोहराया।

परवीन बूढ़े के हाथ से कार्ड लेकर देखने लगी।

“हो सकता है कि यह मुझसे मिलने ही के लिए इधर आया हो।” बूढ़े ने कहा।

शौकत दूसरी लड़की के करीब खड़ा धीरे-धीरे कुछ बड़बड़ा रहा था। अचानक वह लड़की बूढ़े से बोली, “शौकत भाई का ख्याल है कि वह शख्स बेहोश नहीं है।”

“तुम्हारा क्या ख़याल है?” बूढ़े ने लड़की से पूछा।

“बात यह है कि अब तक होश में आ जाना चाहिए था।” लड़की ने कहा।

“यानी तुम भी यही समझती हो क्या बन रहा है।’

“जी हाँ! मेरा भी यही ख़याल है।”

“अच्छा तो इस मामले में जिसे भी शौकत की बात ठीक लगती है, वह अपने हाथ उठा दे।” बूढ़े ने उनकी तरफ देख कर कहा। परवीन के अलावा और सब ने हाथ उठा दिए।

“क्यों तुम उन लोगों से सहमत नहीं हो?” बूढ़े ने उससे पूछा।

“नहीं अब्बा हुजूर!”

“अच्छा तो तुम यहीं ठहरो और तुम सब यहाँ से दफ़ा हो जाओ।” बूढ़े ने हाथ झटक कर कहा। परवीन के अलावा बाकी लोग चले गये। नवाब जावेद मिर्ज़ा अपनी बातों में झक्की था और उसके ज़ेहन में जो बाद बैठती, पत्थर की लकीर हो जाती…जो लोग उससे किसी बात पर सहमत ना होते, उन्हें आम तौर पर नुकसान ही में रहना पड़ता था। उसके तीनों भतीजे शौकत, इरफ़ान, सफ़दर और भांजी रेहाना उस वक़्त धोखे ही में रहे। इसलिए उन्हें उसके गुस्से का शिकार होना पड़ा। उन्हें यह नहीं मालूम था कि नवाब जावेद मिर्ज़ा की राय अलग होगी।

“मेरा ख़याल भी कभी गलत नहीं होता।” जावेद मिर्ज़ा ने परवीन की तरफ देख कर कहा, “या होता है!”

“कभी नहीं!”

इतने में डॉक्टर आ गया। वह काफ़ी देर तक इमरान को देखता रहा। फिर जावेद मिर्ज़ा की तरफ देख कर कहा, “आपका क्या ख़याल है?”

“नहीं तुम पहले अपना ख़याल ज़ाहिर करो।”

“जो आपका ख़याल है, वही मेरा भी है।”

“यानी!” डॉक्टर कशमकश में पड़ गया। वह वहाँ का फैमिली डॉक्टर का और वहाँ से उसे सैकड़ों रुपये महीना आमदनी होती थी। इसलिए वह बहुत खामोश रहता था। वह जावेद मिर्ज़ा के सवाल का जवाब दिए बगैर एक बार फिर इमरान पर झुक गया।

“हाँ हाँ!” जावेद मिर्ज़ा सिर हिलाकर बोला, “अच्छी तरह इत्मीनान कर लो, फिर ख़याल ज़ाहिर करना।” जावेद मिर्ज़ा टहलने लगा। थोड़ी देर के लिए उसकी पीठ उनकी तरफ हुई और परवीन ने इशारे से डॉक्टर को समझा दिया। जावेद मिर्ज़ा टहल रहा था। वह धीरे-धीरे बड़बड़ा रहा रहा था, “राजकुमार सितवत…राजकुमार सितवत जाह। वाह नाम ही से शान टपकती है। पुरानी अज़मतों का एहसास होता है।”

“जनाबे आली!” डॉक्टर सीधा खड़ा होता हुआ बोला, “बेहोशी! ज़हीन बेहोशी! मगर कोई मर्ज़ नहीं मालूम होता।”

“खूब! तो तुम भी मुझसे सहमत हो।”

“बिल्कुल जनाब!”

“फिर यह होश में कैसे आयेगा?”

“मेरा ख़यालहै, खुद-ब-खुद! दवा की ज़रूरत नहीं!”

“मगर मेरा ख़याल है कि दवा की ज़रूरत है।”

“अगर आपका ख़याल है, तो फिर होगी, आप मुझसे ज्यादा तजुर्बेकार हैं।” डॉक्टर ने कहा।

“नहीं भई! भला मैं किस काबिल हूँ।” जावेद मिर्ज़ा ने मुस्कुरा कर कहा।

“फिलहाल मैं एक इंजेक्शन दे रहा हूँ।”

“इंजेक्शन!” जावेद मिर्ज़ा ने बुरा सा मुँह बनाया, “पता नहीं! क्या हो गया है आजकल के डॉक्टरों को। इंजेक्शन के अलावा और कोई इलाज नहीं है।”

“फिर आप क्या चाहते हैं?” डॉक्टर ने उकताये हुए अंदाज से पूछा।

“कोई नया तरीका! एक बार नादिर शाह दुर्रानी ने…”

अचानक इमरान बौखला कर उठ बैठा।

“गेट आउट ऑल ऑफ यू!” उसने झल्लाए हुए अंदाज में कहा और चारों तरफ देख कर शर्मिंदा हो जाने के अंदाज में होठों पर ज़ुबान फेर-फेर कर थूक निकलने लगा।

“अब कैसी तबीयत है?” जावेद मिर्ज़ा ने पूछा।

“वह तो ठीक है मगर!” इमरान आँखें फाड़-फाड़ कर चारों तरफ देखने लगा।

“मैं जावेद मिर्ज़ा हूँ, यह परवीन है और यह डॉक्टर फितरत!”

“इशरत!” डॉक्टर साहब ने अपना नाम ठीक करके दोहराया।

“”और मैं!”

“हाँ हाँ! तुम सितवत जाह हो…शहज़ादा सितवत जाह!”

“हांय!” इमरान आँखें फाड़ कर बोला, “आप मेरा नाम कैसे जान गये?”

इस पर जावेद मिर्ज़ा सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया।

“मैंने अभी तक किसी पर अपनी असलियत ज़ाहिर नहीं की थी। आपको कैसे?”

“परवाह मत करो!” जावेद मिर्ज़ा ने कहा, “अब तुम्हारी तबियत कैसी है?”

“मगर मैं यहाँ कैसे आया?”

“तुम चलते-चलते गिर कर बेहोश हो गए थे।” जावेद मिर्ज़ा बोला।

“हांय!” इमरान के मुँह पर हवाइयाँ उड़ने लगी, “कोई एक्सीडेंट तो नहीं हुआ!”

“एक्सीडेंट!” जावेद मिर्ज़ा ने हैरत ज़ाहिर की, “मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा!”

“मेरी कार कहाँ है?”

“कार!” परवीन उसे घूर कर बोली, “आप तो पैदल थे, हमने कोई कार नहीं देखी।”

“मजाक ना कीजिये!” इमरान घिघियाकर बोला।

“नहीं बखुदा वहाँ कोई कार नहीं थी।”

“मेरे खुदा! क्या मैं ख्वाब देख रहा हों?” इमरान माथा रगड़ने लगा।

“क्या मामला है?” जावेद मिर्ज़ा ने पूछा।

“मैं अपनी कार खुद चला रहा था।” इमरान ने कहा।

बात का नतीजा यह हुआ कि घर के सारे लोग उसकी कार ढूंढने के लिए निकल पड़े। लेकिन काफ़ी भागदौड़ के बाद ही कार न मिली। बड़ी दूर दूर तक कार तलाश की गई। मगर वहाँ था क्या? थोड़ी देर बाद सब वापस इकट्ठे हुये। शौकत, इरफ़ान, सफ़दर और रेहाना सभी मौजूद थे। शौकत बार-बार इमरान को अजीब नज़रों से घूरने लगता था। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह उन सबसे नाराज़ हो। उसने इस दौरान एक बार भी हैरत ज़ाहिर नहीं की थी।

“सरदारगढ़ भूतों का अड्डा बन गया है।” जावेद मिर्ज़ा बड़बड़ाया, “रोज एक अनहोनी बात सामने आती है। वैसे सितवत जाह, तुम ठहरे कहाँ हो?”

“रॉयल होटल में!”

“सरदारगढ़ कब आए हो?”

“परसों!”

“फिर तुम अपनी कार के लिए क्या करोगे?”

“सब करूंगा!”

“आप कहाँ के राजकुमार हैं जनाब!” तभी शौकत ने पूछा।

“प्रिंस ऑफ ढमप!” इमरान अपनी गर्दन सख्त करके बोला।

“यह ढमप क्या बला है?”

“नक्शे में तलाश कीजिये। आप हमारी तौहीन कर रहे हैं।”

“शौकत बाहर जाओ।” जावेद मिर्ज़ा बिगड़ गया।

शौकत चुपचाप उठा और बाहर चला गया।

“तुम कुछ ख़याल न करना।” जावेद मिर्ज़ा ने इमरान से कहा, “यह ज़रा बंद दिमाग है।”

“तुम भी मेरी तौहीन कर रहे हैं!” इमरान ने नाखुश होते हुए कहा।

“न आप न जनाब…तुम…यह भी कोई बात हुई! मैं नवाब जावेद मिर्ज़ा हूँ।”

“अच्छा!” इमरान खड़ा हो गया। फिर आगे बढ़कर उससे हाथ मिलाता हुआ बोला, “आपसे मिलकर बड़ी खुशी हुई।”

“मुझे भी हुई।”

“पर यह सब हज़रात और औरतें?”

“यह इरफ़ान है, यह सफ़दर है…यह परवीन…यह रेहाना!”

“यह परवीन!” इमरान सफ़दर की तरफ इशारा करके बोला, फिर अपना मुँह पीटने लगा, “लाहौल विला कूवत…भूल गया! यह यह…”

जावेद मिर्ज़ा ने एक बार फिर उनके नाम दोहराकर इमरान को समझाने की कोशिश की।

“उन सबकी रगों में आपका खून है?” इमरान ने पूछा।

“हाँ, यह दोनों मेरे भतीजे हैं। यह भांजी और यह बेटी।”

“और वह साहब जो चले गये?”

“वह भी भतीजा है!”

“एक बार फिर बड़ी खुशी हुई!” जावेद मिर्ज़ा से बड़ी गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाया।

“मगर आपकी कार का क्या होगा?” जावेद मिर्ज़ा ने अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहा, “एक बार फिर याद कीजिए कि आप उसे कहाँ छोड़ा था?”

“पता नहीं मैंने उसे छोड़ा था या उसने मुझे छोड़ा था। मुझे सबसे पहले इस पर गौर करना चाहिए।”

अचानक नवाब जावेद मिर्ज़ा ने नाक सिकोड़ कर बुरा सा मुँह बनाया, “उस शौकत को यहाँ से निकाल दूंगा।” उसने कहा।

“नहीं, मैं खुद जा रहा हूँ।” इमरान ने उठते हुए कहा।

“अरे अरे! आपके लिए नहीं कहा गया।” जावेद मिर्ज़ा उसे कंधों से पकड़कर बैठाता हुआ बोला, “वह तो मैं शौकत को कह रहा था। क्या आप किसी किस्म की बदबू नहीं महसूस कर रहे हैं?”

“कर रहा हूँ। यह क्या बला है?” इमरान अपने नथूने बंद करके मिनमिनाया।

“उसे साइंटिस्ट कहलाये जाने का खब्त है। इस वक्त शायद वह अपनी लैबोरेट्री में है और यह बदबू किसी गैस की है। खुदा की पनाह! ऐसा मालूम होता है जैसे भंगियों की फौज कहीं करीब ही मार्च कर रही हो।”

“कम से कम शाही खानदान के लोगों के लिए तो यह मुनासिब नहीं है।” इमरान ने होंठ सिकोड़ कर कहा।

“आप के ख़यालात बहुत अच्छे हैं…बहुत अच्छे…” जावेद मिर्ज़ा उसे तारीफ ही नज़रों से देखता हुआ बोला। फिर परवीन की तरफ मुड़ कर, “देखा! मैं न कहता था आज भी शाही खानदान में ऐसे नौजवान मौजूद हैं, जिन्हें आम लोगों से नफ़रत है। यह साइंटिस्ट वाइंटिस्ट होना हमारे बच्चों के लिए मुनासिब नहीं है। डॉक्टर इशरत! तुम जा सकते हो।” जावेद मिर्ज़ा ने आखरी जुमला डॉ इशरत की तरफ देखे बगैर कहा था। डॉक्टर चला गया।

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