चैप्टर 7 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 7 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 7 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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कैदी सलाखों की दूसरी तरफ मौजूद था। रूशी ने उसे गौर से देखा और वह उसे नीचे से ऊपर तक एक शरीफ़ आदमी मालूम हुआ। उसकी उम्र तीस और चालीस के बीच रही होगी।

आँखों में ऐसी चमक थी, जो सिर्फ ईमानदार आदमियों ही की आँखों में नज़र आ सकती है।

रूशी को देखकर वह सलाखों के करीब आ गया।

“मैं आपको नहीं जानता।” वह रूशी को घूरता को धीरे से बोला।

रूशी ने एक कहकहा लगाया, जिसका अंदाज़ चिढ़ान जैसा था। रूशी ने उस वक्त अपने ज़ेहन को बिल्कुल आजाद कर दिया था। वह अपने तौर पर उससे बातचीत करना चाहती थी। इमरान के बताए हुए तरीके पर अमल करने का उसका इरादा नहीं था। इमरान की बातों से उसने अंदाज़ा कर लिया था कि वह सिर्फ इस मुलाकात का असर मालूम करना चाहता है, इसके अलावा और कोई मकसद नहीं।

“आप कौन है?” कैदी ने फिर पूछा।

“मैं आहा…!” रूशी ने फिर कहकहा लगाया और बुरी औरतों की तरह बेढंगेपन से लचकने लगी।

“मैं समझ गया।” कैदी धीरे से बड़बड़ाया, “लेकिन तुम मुझे गुस्सा नहीं दिला सकती। बिल्कुल नहीं। कभी नहीं।”

बात बड़ी अजीब थी और उन जुमलों पर गौर करते वक्त रूशी की अदाकारी खत्म हो गई और वह एक सीधी-सादी औरत दिखने लगी। कैदी उसे गौर और दिलचस्पी से देखता रहा। फिर उसने धीरे से पूछा, “तुम्हें यहाँ किसने भेजा है?”

अचानक रूशी का ज़ेहन फिर जागा। उसने मायूसी से सिर हिलाकर कहा, “नहीं तो, वह आदमी नहीं मालूम होते।”

“कौन आदमी?”

“क्या तुम्हारा नाम सलीम है?”

“जी हाँ मेरा ही नाम है!”

“और तुम नवाबजादा शौकत के लिए लेबोरेटरी असिस्टेंट थे?”

“हाँ यह अभी ठीक है!”

“फिर तुम वही आदमी हो।”

कैदी के चेहरे पर फिक्रमंदी के आसार पैदा हो गए, लेकिन उनमें दहशत का दखल नहीं था। वह खाली जेहन के अंदाज में कुछ पल रूशी के चेहरे पर नज़र जमाए रहा। फिर दो तीन कदम पीछे हटकर बोला, “तुम जा सकती हो।”

“लेकिन अगर तुम सलीम!”

“मैं कुछ नहीं सुनना चाहता। यहाँ से चली जाओ।”

“मगर…वह!”

“जाओ!” वह गला फाड़कर चीखा और दो पहरेदार तेजी से चलते हुए सलाखों के पास पहुँच गये। इसके पहले कि कैदी कुछ कहता, रूशी बोल पड़ी, “तुम फ़िक्र ना करो सलीम, मैं तुम्हारे घरवालों की अच्छी तरह खबर लेती रहूंगी।”

और फिर वह जवाब का इंतज़ार किए बगैर बाहर निकल गई।

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