चैप्टर 4 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 4 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 4 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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पेरेसियन नाइट क्लब दिन में भी आबाद रहता था। वजह यह थी कि वहाँ रहने के लिए वाल कमरे भी मिलते थे और वहाँ रुकने वाले परमानेंट मेंबर कहलाते थे और फिर चूंकि यह सीजन का जमाना था, इसे यहां चौबीस घंटों की सर्विस चलती थी।

इमरान ने डायनिंग हॉल में दाखिल होकर चारों तरफ देखा और फिर एक कोने में जा बैठा। उसके पीछे खिड़की थी। उसने वेटर को बुलाकर आइसक्रीम का आर्डर दिया। हालांकि भीड़ इस वक्त भी अच्छी खासी थी। मैं थोड़ी देर तक आइसक्रीम खाता रहा, फिर अचानक किस तरह उतना कि सीने के बल मेज पर गिरा और फिर वह इस तरह कपड़े झाड़-झाड़ कर उछल कूद कर रहा था, जैसे कपड़ों में शहद की मक्खियाँ घुस गई हो। हॉल में उस वक़्त ज्यादा आदमी नहीं थे। बहरहाल, जितने भी थे, वह अपनी जगह पर बैठे तो नहीं रह सकते थे।

“क्या बात है? क्या हुआ?” किसी ने पूछा।

“प…प…परि…परिंदा!” इमरान एक कुर्सी पर हांफता हुआ बोला। फिर उसने उस खिड़की की तरफ इशारा किया, जिसके करीब बैठ कर उसने आइसक्रीम खाई थी।

“परिंदा!” एक लड़की ने डरी हुई आवाज में दोहराया और फिर लोग अलग-अलग तरह की बातें करने लगे। वेटरों ने झपट-झपट के सारी खिड़कियाँ बंद कर दीं। लेकिन इतने में एक भारी-भरकम आदमी इमरान के करीब पहुँच गया और वह सूरत से कोई अच्छा आदमी नहीं मालूम होता था। उसका चेहरा किसी बुलडॉग के चेहरे से मिलता जुलता था।

“परिंदा!” इमरान के कंधे पर हाथ मार कर गुर्राया, “जरा मेरे साथ आइये।”

“क..क..क्यों?”

“इसलिए कि मैं यहाँ का मैनेजर हूँ।” उसने इमरान के बगलों में हाथ देख कर उसे कुर्सी से उठा दिया। इमरान को उसके इस रवैये पर हैरत जरूर हुई, लेकिन वह खामोश रहा और उसने उसे इस बात का मौका नहीं दिया कि वह बगलों में हाथ दिए हुए ही उसे अपने साथ ले जाता। मैनेजर ने उसे अपने कमरे में खींच कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। इमरान उस वक़्त पहले से भी ज्यादा बेवकूफ दिख रहा था।

“हूं! क्या किसका था परिंदे का?” इमरान को घूरता हुआ गुर्राया।

“किस्सा तो मुझे याद नहीं!” इमरान ने बड़ी सादगी से कहा, “लेकिन परिंदा जरूर था, नीला!”

“और वह तुम्हारी गर्दन में लटक गया! क्यों?”

“नहीं लटक सका। मैं दावे से कहता हूँ…!”

“तुम्हें किसने भेजा है?” उसने मेज का दराज खोलकर लोहे का एक दो फुट का लंबा एक रुल निकालते हुए कहा।

“किसी ने नहीं! मैं घर वालों से छिपकर यहाँ आया था।” इमरान ने लापरवाही से जवाब दिया, लेकिन उसकी नजरें लोहे के इस रूल पर थीं।

“मैं तुम्हारी हड्डियाँ भूसा कर दूंगा।” मैनेजर गर्दन टाइट करके बोला।

“क्या वालिद साहब ने ऐसा कहा है?” इमरान ने डरी हुई आवाज में पूछा।

“तुम्हें यहाँ किसने भेजा है?”

“अच्छा तुम ही बताओ कि कौन भेज सकता है?” इमरान ने सवाल किया, लेकिन मैनेजर रुल संभाल कर उस पर टूट पड़ा। इमरान ‘अरे’ करता हुआ एक तरफ हट गया। रुल दीवार पर पड़ा और मैनेजर फिर पलटा। दूसरा हमला भी खतरनाक था। लेकिन इस बार मैनेजर अपनी ही झोंक में मेज से जा टकराया और फिर मैं इसके साथ ही खुद भी उलट गया। मौका था, इमरान चाहता, तो इतनी देर में दरवाजा खोलकर कमरे से बाहर निकल सकता था। मगर वह बेवकूफों की तरह खड़ा ‘अरे अरे’ ही करता रहा।

“आपके कहीं चोट तो नहीं आई?” इमरान ने उस वक्त पूछा, जब वह दूसरी तरफ हाथ टेककर उठ रहा था। उसके इस जुमले पर मैनेजर को इतना जबरदस्त गुस्सा आया कि वह एक बार फिर उल्टी हुई मेज पर ढेर हो गया।

“मैं तुम्हें ज़िन्दा नहीं छोडूंगा!” मैंने जो दोबारा उठने की कोशिश करता हुआ गुर्राया।

“आप बेकार में नाराज हो रहे हैं चाचजान!” इमरान ने बहुत ही सादगी से कहा, “आप यकीनन वालिद साहब के दोस्त मालूम होते हैं। अगर आप की यही ख्वाहिश है, तो आइंदा मैं यहाँ नहीं आऊंगा।”

मैंने जो सामने खड़ा उसे बोल रहा था और इसका सीना सांस के उतार-चढ़ाव के साथ फूल पिचक रहा था।

“जी हाँ!” इमरान बेवकूफों की तरह सिर हिलाकर बोला, “वालिद साहब कहते हैं कि जहाँ औरतें भी हों, वहाँ न जाया करो…जी हाँ…कान पकड़ता हूँ…अब कभी नहीं आऊंगा।”

मैनेजर फिर भी ना बोला। वह एक कुर्सी पर बैठकर इमरान को घूरने लगा। इमरान भी सिर झुकाए खड़ा रहा। उसके इस रवैये ही ने मैनेजर को उलझन में डाल दिया, वरना यह बात वह भी सोच सकता था कि इमरान अगर भागना चाहता, तो वह उसे रोक न पाता।

“परिंदा! तुमने अपनी आँखों से देखा था?” थोड़ी देर बाद पूछा।

“मेरी गर्दन से टकराया था। मुझे परों की हल्की सी झलक दिखाई दी थी। फिर मैं नहीं जानता कि वह किधर गया।”

“बकवास…बिल्कुल बकवास….मेरे क्लब को बदनाम करने की एक सोची समझी साजिश!”

“मैं बिल्कुल नहीं जानता कि आप क्या कह रहे हैं।”

“तुम बस यहाँ से चुपचाप चले जाओ और कभी यहाँ तुम्हारी शक्ल ना दिखाई दे! समझे!”

इमरान को सोचने लगा। फिर से हिला कर बोला, “यह कोई दूसरा मामला मालूम होता है। आप मालिक साहब के दोस्त नहीं है। क्यों?”

“चले जाओ!” मैनेजर गला फाड़कर बोला।

“तुम मेरी बेइज्जती कर रहे हो दोस्त!” इमरान अचानक संजीदा हो गया।

“तुम कौन हो?”

“मैं सैलानी हूँ और मैंने उस नीले परिंदे के बारे में अखबारों में पढ़ा था।”

“सब बकवास है।” मैनेजर गुर्राया, “वह परिंदा उस कुत्ते ज़मील के अलावा और किसी को नहीं दिखाई दिया था। क्लब को बदनाम करने का एक गलत तरीका है।”

“तब तो ज़रूर यही बात हो सकती है और मैं सच कहता हूँ कि मुझे भी इस कहानी पर यकीन नहीं आया है।”

“अभी तुमने क्या स्वांग भरा था?” मैनेजर फिर झल्लाकर खड़ा हो गया।

“बैठो बैठो! यह मेरा पेशा है।” इमरान हाथ उठाकर बोला।

“क्या पेशा?”

“मैं अखबार का रिपोर्टर हूँ…चंदननगर का मशहूर अखबार…’भोर हुई’…नाम सुना होगा तुमने। मैं सही बात मालूम करने के लिए यहाँ आया हूँ।”

“तुम झूठे हो।” मैनेजर गुर्राया।

“तुम्हारे पास क्या सबूत है कि मैं झूठा हूँ। मुझे सही मालूमात हासिल करनी है, वरना मैं अब तक यहाँ ठहरता क्यों। मेरा सिर इतना मजबूत नहीं है कि लोहे की रॉड से मोहब्बत कर सके।”

“तो तुमने परिंदे का नाम इस तरह क्यों लिया था?”

“सिर्फ इसलिए कि तुम मुझसे खुल कर बातचीत कर सको। तुमने गुस्से में इस बात का इजहार कर दिया कि यह तुम्हारे क्लब को बदनाम करने के लिए एक साजिश है। क्या तुमने दूसरे अखबार के रिपोर्टरों से भी यही कहा होगा।”

“नहीं!” मैनेजर अपने होठों पर ज़ुबान फेर कर बोला।

“क्यों?”

लेकिन मैंने जो ने इस ‘क्यों’ का कोई जवाब नहीं दिया। इमरान ने सिर हिलाकर कहा, “तुमने इसलिए इस बात का इज़हार नहीं किया कि ज़मील शहर का एक बहुत बड़ा आदमी है।”

इस पर मैनेजर ने शहर के उस बहुत बड़े आदमी को गंदी सी गाली दी और फिर खामोश हो गया।

“ठीक है! तुम खुल्लम-खुल्ला नहीं कह सकते। ज़ाहिर है कि तुम्हारा क्लब उन्हीं बड़े आदमी की वजह से चलता है।”

मैनेजर ने तमाम बड़े आदमियों के लिए भी वही काली दोहराई और अपनी जेब में हाथ डालकर सिगरेट का पैकेट तलाशने लगा।

“ठीक है!” इमरान मुस्कुरा कर बोला, “मैं तुम से हमदर्दी रखता हूँ, लेकिन मुझे सही बात का जानना ज़रूरी है।”

“मैं दावे से कह सकता हूँ कि वह परिंदा ज़मील के अलावा और किसी को नहीं दिखाई दिया था।”

“लेकिन ज़मील तुम्हारे क्लब को बदनाम क्यों करना चाहता है?”

“मैंने इलेक्शन में उसके खिलाफ अपना कैंडिडेट बता रहा था!” मैनेजर बोला।

“मगर मेरा ख़याल है कि उसने इलेक्शन में हिस्सा नहीं लिया था।” इमरान ने कहा।

“वह खुद हिस्सा नहीं लेता, मगर अपने उम्मीदवार खड़े करता है और उसकी यही कोशिश होती है कि इस इलाके से उसके उम्मीदवार के अलावा और कोई कामयाबी हासिल ना कर सके।”

“अच्छा खैर…हाँ मगर इलेक्शन का नतीजा क्या निकला था?”

“उसके दो उम्मीदवार कामयाब ना हो सके।”

“और वह इसके बावजूद भी तुम्हारे क्लब में आता रहा!”

“इसी पर तो मुझे हैरत थी। लेकिन उस परिंदे वाले मामले ने मेरी आँखें खोल दी। वह इस तरह बदला लेना चाहता है। आधे से ज्यादा परमानेंट मेंबरों ने क्लब में आना छोड़ दिया है और रोज़ाना के ग्राहकों में भी कमी आ गई है।”

“अच्छा अगर यह साजिश है, तो मैं देख लूंगा।” इमरान बोला, “और मैं यहाँ से उस वक्त तक ना जाऊंगा, जब तक कि यह हकीकत में मालूम कर लूं।”

मैनेजर कुछ नहीं बोला। उसके चेहरे पर यकीन और रक्षक की कशमकश के आसार दिख रहे थे।

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