चैप्टर 9 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 9 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 9 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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जमील की कोठी में सबसे पहले सईदा ही से टक्कर हुई। उसने इमरान को देखकर बुरा सा मुँह बनाया और इसके पहले कि इमरान जमील के बारे में पूछता, सईदा ने कहा, “आखिर आप इतना बनते क्यों है?”

इमरान किसी सोच में पड़ गया। फिर उसने कहा, “हालांकि आपने सवालात उर्दू में ही पूछे है, लेकिन मेरे समझ में नहीं आई।”

“आप यहाँ क्यों आए हैं?” सईदा ने पूछा।

“ओह…आपने कहा था…शायद जमील साहब मुझसे मिलना चाहते हैं।”

“जमील साहब नहीं, बल्कि मैं खुद आपसे मिलना चाहती थी।”

“मिलिये!” इमरान सिर झुकाकर खामोश हो गया।

“जमील भाई किसी से नहीं मिलते।” सईदा ने कहा, “उस दिन आपकी इस तदबीर ने बड़ा काम किया था।“

“जमील साहब ने दूसरों को बेकार में उल्लू बना रखा है।” इमरान गुस्से में बोला।

“क्या मतलब?”

“वे दाग बनाये हुए मालूम होते हैं और यह मुश्किल काम नहीं। मैं आपके चेहरे पर इसी किस्म के काले धब्बे आसानी से डाल सकता हूँ।”

“आप बेतुकी बातें कर रहे हैं।” सईदा को भी गुस्सा आ गया।

“यकीन कीजिये। अगर आप तैयार हों, तो मैं आसानी से आपको बदसूरत बना सकता हूँ।”

“मैं कह रही हूँ कि आप जमील भाई पर इल्जाम लगा रहे हैं।”

“बड़े आए जमील भाई!” इमरान बुरा सा मुँह बनाकर बोला, “बेकार में नाइट क्लब को बदनाम करके धर दिया और आखिर उन्हें इससे मिला क्या? लाहौल विला कूवत…”

“आप शायद अपने होश में नहीं है।” सईद उन्हें खूंखार निगाहों से घूरने लगी।

“सच्ची बातें कहने वाले आमतौर पर दीवाने ही समझे जाते हैं।” इमरान ने लापरवाही से कहा।

सईद कुछ नहीं बोली। शायद गुस्सा ज्यादा होने की वजह से उसे अल्फाज़ ही नहीं मिल रहे थे। इमरान ने लोहा गरम देख कर दूसरी चोट लगाई।

“अब मेरी जुबान खुलवाये।” उसने कहा, “इस हरकत का मकसद खूब समझता हूँ।”

“देखें, आप हद से ज्यादा बढ़ते जा रहे हैं!”

“मैं मजबूर हूँ। इसके अलावा और कोई चारा नहीं!”

“आखिर किस बिना? पर कोई वजह?” सईदा ने पूछा। उसकी आवाज में सख्ती बदस्तूर कायम थी।

“यहाँ!” इमरान चारों तरफ देखता हुआ बोला, “हमारी बात तो दूसरे भी सुन सकते हैं।”

“सुनने दीजिये। आप इसी घर के एक शख्स पर झूठा इल्जाम लगा रहे हैं।”

“ठीक है! लेकिन जबकि मैं इस घरवालों के हक में काम कर रहा हूँ। इसलिए मैं नहीं चाहता कि यह बात बाहर फैले।”

सईदा कुछ पल कुछ सोचती रही। फिर धीरे से बोली, “यकीनन आप किसी गलतफ़हमी में पड़ गए हैं।”

उसका मूड किसी हद तक ठीक हो गया था।

“हो सकता है कि वह गलतफ़हमी ही हो। मगर हालात।”

“कैसे हालात?”

“क्या आपको भरोसा है कि यहाँ हमारी बातचीत को तीसरा आदमी नहीं सुन सकेगा।”

“इधर कोई नहीं आयेगा।”

“अच्छा तो सुनिये! मुझे अभी तक ज्यादातर हालात कैप्टन फैयाज़ ही की ज़ुबानी मालूम हुए हैं। ज़ाहिर है कि उनकी मालूमात भी आप ही लोगों के बयान पर टिकी है।”

“यहाँ गलती पर है।” सईदा बोली, “क्योंकि सारे हालत अखबारों में भी छपे हुए थे।”

“तो क्या अखबार वालों ने यह बेपर की उड़ाई थी।”

“आप फिर बहकने लगे।”

“क्यों? बहकने क्यों लगा?”

“आप इन बातों को झूठ क्यों समझते हैं?”

“तो फिर गलती पर नहीं था। जब आप लोग इन बातों पर अमल नहीं कर सकते, तो फैयाज़ की मालूमात आप ही लोगों के लिए बेकार समझी जायेगी।”

“चलिए ही सही!”

“अच्छा! मगर सिर्फ आप ही लोगों के बयान को सच्चाई का पैमाना नहीं बनाया जा सकता।”

“फिर आप अपनी उसी बात पर आ गये।”

“नाइट क्लब का मैनेजर कहता है कि यह सब कुछ क्लब को बदनाम करने के लिए किया गया है।”

“आखिर उसे बदनाम करने की वजह? यह नहीं पूछा आपने?”

“फैयाज़ का बयान है कि उस नीले परिंदे को कई आदमियों ने देखा था। लेकिन मुझे अभी तक एक भी ऐसा आदमी नहीं मिला, जो उसका खुलासा करता। क्या यह जमील साहब का बयान है कि उस परिंदे को कई आदमियों ने देखा था।”

“नहीं उन्होंने कोई ऐसी बात नहीं की।” सईदा कुछ सोचती हुई बोली, “यह अखबारों की खबर है। भला जमील भाई को क्या मालूम कि दूसरों ने भी उसे देखा था या नहीं!”

“तो मैं उनका सही बयान चाहता हूँ।”

“इसके लिए आप ही कोई तरीका निकालिये। हम लोग उन्हें इस बात के लिए मजबूर नहीं कर सकते।”

“उन्होंने कुछ ना कुछ तो बताया ही होगा।”

‘सिर्फ इतना है कि वह उनकी गर्दन में अपनी चोंच उतार कर लटक गया था।”

“लटक गया था?”

“जी हाँ! उसे गर्दन से अलग करने के लिए उन्हें थोड़ी ताकत भी लगानी पड़ी थी और उन्होंने उसे खींचकर खिड़की से बाहर फेंक दिया था।”

“परिंदे का रंग नीला था?” इमरान ने पूछा।

“हाँ उन्होंने यही बताया था।”

“बड़ी अच्छी बात है…अच्छा खैर…अब जावेद मिर्ज़ा का क्या ख़यालहै?”

“मैं उसके बारे में क्या कह सकती हूँ?”

“उस तरफ इस बात का सर क्या हुआ है?”

“कुछ भी नहीं। उनकी तरफ से रस्मी तौर पर सिर्फ अफ़सोस ज़ाहिर किया गया है। बहरहाल मेरा ख़याल है कि शायद रिश्ता न हो सके।”

“ठीक है!” इमरान सिर हिलाकर रह गया। थोड़ी देर तक कुछ सोचता रहा। फिर बोला, “लेकिन इससे फायदा किसे पहुँचेगा?”

“फ़ायदे की बात आप लोग सोच रहे हैं?” सईदा ने इमरान को गौर से देखते हुए कहा।

“अगर आप उस परिंदे को ख़ुदा का कहर समझती है, तो फिर मुझे तकलीफ देने की क्या ज़रूरत थी?”

“यह भी ठीक है। देखिये! फ़ायदे की बात तो रहने ही दीजिये, क्योंकि उससे घर ही के कई आदमियों को फ़ायदा पहुँच सकता है।”

“ओहो…अच्छा!” इमरान ने उल्लू की तरह अपनी आँखों को नचाया, “मैं नहीं समझा।”

“आप नहीं समझे?” सईदा ने एक जहरीली सी मुस्कुराहट के साथ कहा, “मैं यह कहना चाहती थी कि उससे मुझे भी फ़ायदा पहुँच सकता है। जावेद मिर्ज़ा किसी सफेद दाग वाले को अपना दामाद हरगिज़ पसंद न करेगा, क्योंकि वह खुद भी मालदार है। मालदारों को मालदार मिलते ही रहते हैं। एक नहीं, तो दूसरा और मैं इतनी मालदार नहीं हूँ। इसलिए एक मालदार कोढ़ी मुझे पसंद आ सकता है। मेरा बाप खुशी से उसे अपना दामाद बना लेगा। क्या समझे जनाब? मैं आपसे इसलिए मिलना चाहती थी, ताकि आप पर यह हकीकत साफ हो जाये।”

“लेकिन मेरे सवाल का जवाब यह नहीं हो सकता और मैं आपकी इस साफ बात को पसंद नहीं करता। अरे तौबा तौबा!”  इमरान अपना मुँह पीटने लगा।

“क्यों?” सईदा ने उसे तीखी नज़रों से देखा।

“कुछ नहीं!” इमरान ठंडी सांस लेकर बूढ़ी औरतों की तरह बोला, “कयामत करीब है। बड़े बूढ़े कहते हैं कि कयामत के करीब लड़कियाँ बड़ी ढिठाई से शादी ब्याह की बातें करेंगी, अपने मुँह से वर मांगेंगी। तौबा तौबा!”

“इस मामले से हटने की कोशिश न कीजिये। आप मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते।”

“आपकी शादी के बारे में मैं कुछ नहीं सुनना चाहता।”  इमरान ने अपने कानों में उंगलियाँ ठूंस ली।

सईदा कुछ नहीं बोली। वो अपना निचला होंठ दातों में दबाये कुछ सोच रही थी।

“यह सब बेकार की बातें हैं।” इमरान बोला, “कोई ऐसा तरीका सोचिये कि जमील साहब से बातचीत की जा सके।”

“मेरे बस के बाहर की बात है। पता नहीं उन्होंने क्या सोचा है?”

“किसी तरह कोई झगड़ा तो नहीं था।” इमरान ने पूछा।

“मैं इस पर कोई रोशनी न डाल सकूंगी । वैसे परवीन अक्सर हमारे घर आती रहती है।”

“कइस किस्से के बाद भी आई थी?”

“कई बार आ चुकी है।”

“बहुत उदास होगी?”

“मैंने गौर नहीं किया।”

“सज्जाद साहब आपके कौन है?”

“बाप!”

“अच्छा!” इमरान अंगड़ाई लेकर बोला, “अब शायद आप मुझसे मिल चुकी होंगी।”

“जी हाँ! आप जा सकते हैं। इस तकलीफ का बहुत-बहुत शुक्रिया!” सईदा बोली और इमरान यह सोचता वह वहाँ से चल पड़ा कि इस मुलाकात का मकसद क्या था?

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