चैप्टर 12 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 12 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 12 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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इमरान का एक-एक पल बड़ी मुश्किल से बीत रहा था। उसकी जानकारी में मुज़रिम सामने मौजूद था। बस उसके खिलाफ़ ऐसे सबूत हासिल करना बाकी रह गया था, जिन्हें अदालत में पेश किया जा सके।

उसने शौकत के पास मुर्दा परिंदे देखे थे, जिन्हें वह आग में जला रहा था। लेकिन इस बात का कोई सबूत उसके पास नहीं था और अदालत सबूत मांगती है।

परवीन शौकत की चचेरी बहन थी और नवाब जावेद मिर्ज़ा की एकलौती बेटी। ज़ाहिर है कि नवाब के बाद उनकी जायदाद की मालिक वही होती। शौकत भी कभी जायदाद का मालिक था, लेकिन उसकी जायदाद साइंटिफिक तजुर्बे में घुस गई।

इसलिए वह दोबारा अपनी माली हालत सुधारने के लिए परवीन से शादी के ख्वाब देख सकता था। इमरान ने अपना ख़याल कैप्टन फैयाज़ पर ज़ाहिर किया, जिसे उसने तार देकर खासतौर से सरदारगढ़ बुलाया था।

“मगर इमरान!” फैयाज़ ने कहा, “यह ज़रूरी नहीं कि परवीन की शादी इस वाकये  के बाद शौकत ही से हो जाये। अगर जावेद मिर्ज़ा को परवीन की शादी अपने भतीजों ही में से किसी के साथ करनी होती, तो बात ज़मील तक कैसे पहुँचती?”

“तुम अपनी जगह ठीक कह रहे हो।” इमरान बोला, “लेकिन मेरे पास और भी दलीले हैं, जिनकी बिना पर मेरा नज़रिया वही रहेगा।”

“अच्छा मुझे बताओ, अब तुम्हारी दलीलें क्या है?”

“इंसानी फितरत की रोशनी में इसे देखने की कोशिश करो। इंसानी फितरत होती है कि हम लोग निजी सुखचैन चाहते हैं, हर मामले में। लेकिन हालात के साथ ही उसे हासिल करने का तरीका भी बदलता रहता है। शौकत अगर परवीन से शादी कर लेगा, तो उसे उतना ही सुकून मिलेगा, जितना उसको उसके दूसरे मंगेतरों की शक्ल बिगाड़ने पर मिलता है।”

फैयाज़ कुछ देर सोचता रहा। फिर धीरे से बोला, “तुम ठीक कहते हो।”

“मैं झक मार रहा हूँ और तुम बिल्कुल गधे हो।” तभी इमरान का मूड बिगड़ गया।

“क्या?” फ़ैयाज़ उसे हैरानी से घूरने लगा।

“कुछ नहीं मैं सिर्फ यह कहना चाहता था कि तुम इस विभाग के लिए ठीक नहीं हो। इस्तीफा देकर मेरी फर्म में नौकरी कर लो। तलाक के हिसाब से कमीशन अलग यानी उससे और तनख्वाह से कोई मतलब न होगा।”

“इमरान प्यारे! काम की बात करो।” फैयाज़ बड़ी शर्मिंदगी से बोला, “मैं भी चाहता हूँ कि तुम इस मामले को जल्द से जल्द निपटाकर वापस चलो। वहाँ भी कई मुसीबतें तुम्हारा इंतज़ार कर रही हैं।”

“हाय! कहीं मेरी शादी तो नहीं तय कर दी।”

“खत्म करो।” फैयाज़ हाथ उठाकर बोला, “शौकत वाले नजरिये के अलावा किसी और का भी इमकान है या नहीं?”

“है क्यों नहीं? यह हरकत जमील के चाचा या मामू की भी हो सकती है।”

“हाँ हो सकती है। मगर मैं इस पर यकीन करने के लिए तैयार नहीं।”

“सिर्फ इसलिए कि सज्जाद से तुम्हारे दोस्ताना ताल्लुकात हैं, क्यों?”

“नहीं, यह बात नहीं। उनमें से हर एक मेरे लिए खुली किताब है। उनमें कोई भी इतना अकलमंद नहीं है।”

“खैर मुझे इसे बहस नहीं है। मैंने जिस काम के लिए बुलाया उसे सुनो।” इमरान ने कहा और फिर खामोश होकर को सोचने लगा।

थोड़ी देर बाद फिर बोला, “सलीम का किस्सा सुन ही चुके हो। मैं चाहता हूँ कि किसी तरह उसे जेल से बाहर लाया जाये।”

“भला यह कैसे हो सकता है?”

“कोई सूरत निकालो!”

“आखिर उससे क्या होगा?”

“बच्चा होगा और तुम्हें मामू कहेगा।” इमरान झल्लाकर बोला।

“नामुमकिन है। यह किसी तरह नहीं हो सकता।”

“बच्चा!” इमरान ने पूछा।

“बको मत! मैं सलीम की रिहाई के बारे में कह रहा हूँ। वह चोरी के जुर्म में बंद है। उसे कानून के सुपुर्द करने वाला शौकत है। जब तक कि वह खुद अदालत से उसकी रिहाई की अपील ना करें, ऐसा नहीं हो सकता।”

“मैं भी इतना जानता हूँ।”

“इसके बावजूद भी इस किस्म के बेवकूफों जैसे ख़यालात रखते हो।”

“अगर वह रिहा नहीं हो सकता, तो फिर असल मुज़रिम कहा हाथ आना भी मुश्किल है।”

“आखिर शौकत के खिलाफ़ सबूत क्यों नहीं मुहैया करते?”

“मुझे यह सब कुछ बंडल मालूम होता है। खासतौर पर परिंदों की कहानी!”

“फिर शौकत उन मुर्दा परिंदों को आग में क्यों जला रहा था।” फैयाज़ ने कहा।

“वह झक मार रहा था। उसे जहन्नुम में डालो। लेकिन क्या तुम किसी ऐसे परिंदे के वजूद पर यकीन रखते हो, जिसके चोंच मारने से आदमी कोढ़ी हो जाये और उसके जिस्म में ऐसे वायरस पाये जायें, जो सारी दुनिया के लिए बिल्कुल नये हो। ज़ाहिर है सफेद दागों के वही वायरस।”

“हो सकता है कि किसी साइंटिफिक तरीके से उन परिंदों में उस किस्म के असर पैदा किए गए हों।”

“अच्छा अच्छा…यानी तुम भी यही समझते हो। इसका यह मतलब हुआ कि हर आदमी किसी ऐसे साइंटिफिक तरीके के बारे में सोच सकता है। तो समझो शौकत बिल्कुल बुद्धू है, उसने जानबूझकर अपनी गर्दन फंसवाई है। सारा शहर इस बात को जानता है कि शौकत एक अक्लमंद साइंटिस्ट है और वायरस उसका खास टॉपिक है।”

“फिर वह मुर्दा परिंदे?”

“मैं कहता हूँ कि इस बात को खत्म नहीं कर दो, तो अच्छा है। सलीम की रिहाई के बारे में सोचो।”

“यह ऐसा है, जैसे मच्छर के पेट से हाथी पैदा कराना।”

“तो फिर असल मुज़रिम का हाथ आना भी मुश्किल है और मैं अपना बिस्तर गोल करता हूँ।”

“तुम खुद ही कोई तरीका क्यों नहीं सोचते।” फ़ैयाज़ झुंझला कर बोला।

“मैं सोच चुका हूँ।”

“तो फिर क्यों झक मार रहे हो? मुझे बताओ क्या सोचा है?”

“उसके किसी रिश्तेदार को जमानत के लिए तैयार कराओ।”

“मगर वह जमानत पर रिहा होने से इंकार करता है।”

“उसके इंकार से क्या होता है? मैं उसे अदालत में झक्की साबित कर करा दूंगा और फिर उसे इस बात की इत्तला देने की ज़रूरत ही नहीं है कि उसकी जमानत होने वाली है। इतना तो तुम कर ही सकोगे कि जेल से अदालत तक लाने से पहले उस पर यह ज़ाहिर किया जाए कि मुकदमे की पेशी के सिलसिले में उसे ले जाया जा रहा है।“

“हाँ यह हो सकता है।”

“हो नहीं सकता, बल्कि उसे कल तक हो जाना चाहिए।“ इमरान ने एक-एक लफ्ज़ पर जोर देकर कहा।

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