चैप्टर 15 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 15 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 15 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

Chapter 15 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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उस केस को तीन दिन बीत गये। फैयाज़ सरदारगढ़ ही में ठहरा था। इमरान उससे बराबर काम लेता रहा, लेकिन उसे कुछ बताया नहीं। फैयाज़ उस पर झुंझलाता रहा और उस वक्त तो उसे और ज्यादा ताव आया, जब इमरान ने लेबोरेटरी में पाए जाने वाले रिवाल्वर के दस्ते पर उंगलियों के निशान को स्टडी का काम उसके सुपुर्द किया। इमरान ने वादा किया था कि वह स्टडी के नतीजे मालूम करने के बाद उसे सब कुछ बता देगा। मगर वह अपने वादे पर कायम न रहा। ज़ाहिर है यह गुस्सा दिलाने वाली बात ही थी।

फैयाज़ वापस जाना चाहता था, मगर इमरान ने उसे रोके रखा। मजबूरन फैयाज़ को एक हफ्ते की छुट्टी लेनी पड़ी, क्योंकि वह सरकारी तौर पर इस केस पर नहीं था।

आजकल इमरान सच में पागल दिख रहा था। कभी इधर, कभी उधर और अपने साथ में फैयाज़ को भी घसीटे फिरता था।

एक रात तो फैयाज़ के भी हाथ-पांव फूल गये। एक या डेढ़ बजे होंगे। चारों तरफ सन्नाटा और अंधेरा था और वे दोनों पैदल सड़कें नापते फिर रहे थे। इमरान क्या करना चाहता है, यह फैयाज़ को मालूम नहीं था।

इमरान एक जगह रुककर बोला, “जमील की कोठी में घुसना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है।”

“क्या मतलब?”

“मतलब यह कि चोरों की तरह…”

“इसकी ज़रूरत ही क्या है?”

“कल रात में जावेद मिर्ज़ा की कोठी में मैंने ही नकब लगाई थी। तुमने आज शाम अखबारों में उसके बारे में पढ़ा होगा।”

“तुम्हारा दिमाग तो नहीं चल गया?”

“पहले चला था, बीच में फिर रुक गया था, अब फिर चलने लगा है। हाँ, मैंने नकब लगाई थी। उसके अलावा और कोई चारा नहीं था।”

“क्यों लगाई थी?”

“बहुत जल्द मालूम हो जायेगा। परवाह ना करो। हाँ, तो मैं कह रहा था कि जमील की कोठी…”

“बकवास मत करो।” फैयाज़ ने बुरा सा मुँहह बनाकर कहा, “मैं इस वक्त भी कोठी खुलवा सकता हूँ। तुम वहाँ क्या देखना चाहते हो?”

“वह लड़की…सईदा है ना…मैं बस उसकी शक्ल देख कर वापस आ जाऊंगा। तुम फिक्र मत करो, उसकी आँख भी न खुलने पायेगी और मैं…”

“क्या बक रहे हो?”

“मैं चाहता हूँ कि वह जब सुबह सोकर उठे, तो उसे अपने चेहरे पर उसी किस्म के काले धब्बे दिखे। मैं उससे शर्त लगा चुका हूँ।”

“आखिर तुम करना क्या चाहते हो?” फैयाज़ ने पूछा।

“कुछ भी नहीं! बस मैं उसे यकीन दिलाना चाहता हूँ कि जमील के चेहरे पर वह सफेद दाग सिर्फ बनावटी हैं यानी मेकअप। खैर, तुम इन बातों को छोड़ो और दूसरा लतीफा सुनो।” इमरान सिर हिलाकर बोला, “जिस दिन सलीम की जमानत हुई थी, उसी रात को किसी ने उस पर दो फायर किए थे। एक गोली उसके दायें हाथ पर लगी थी।”

“क्या तुम ने भांग पी रखी है?” फैयाज़ ने हैरान होते हुए पूछा।

“फायर जावेद मिर्ज़ा के बाग में हुए थे। लेकिन सलीम ने पुलिस को उसकी खबर नहीं दी।”

“यह तुम मुझे आज बता रहे हो?”

“मैं! मेरा कसूर नहीं…यह कसूर सरासर उसी गधे का है…वह मरना ही चाहता है, तो मैं क्या करूं?”

“उसका खून तुम्हारी गर्दन पर होगा। तुमने उसे जेल से निकलवाया है।”

“उसके मुकद्दर में यही था, मैं क्या कर सकता हूँ?”

“इमरान ख़ुदा के लिए मुझे वह ना करो।”

“तुम्हारे मुकद्दर में भी यही है। मैं क्या कर सकता हूँ और तीसरा लतीफा सुनो। वह रिवाल्वर मुझे लेबोरेटरी वाली इमारत में मिला था और वे निशान जो उसके हत्थे पर पाए गए हैं, सौ फ़ीसदी शौकत की उंगलियों के निशान है।”

“ओ…इमरान के बच्चे…”

“अब चौथा लतीफा सुनो। सलीम अब भी जावेद मिर्ज़ा की कोठी में ठहरा है।”

“खुदा तुम्हें गारत करें।” फैयाज़ ने झल्लाकर इमरान की गर्दन पकड़ ली।

“आं हां!” इमरान पीछे हटता हुआ बोला, “यह सड़क है प्यारे! इत्तेफाक से कोई ड्यूटी कॉन्स्टेबल इधर आ निकला, तो मुसीबत आ जायेगी।”

“मैं अभी सलीम की खबर लूंगा।”

“ज़रूर लो! अच्छा तो मैं चला।”

“कहाँ?”

“जमील की कोठी के पीछे एक पेड़ है, जिसकी टहनियाँ छत पर झुकी हुई है।”

“बकवास ना करो। मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलो। वहाँ से हम उसी वक्त जावेद मिर्जा के यहाँ जायेंगे।”

“मैं कभी अपना प्रोग्राम नहीं बदलता। तुम जाना चाहो, तो शौक से जा सकते हो। मगर खेल बिगाड़ने की सारी जिम्मेदारी तुम पर ही होगी।”

“कैसा खेल? आखिर तुम मुझे साफ-साफ क्यों नहीं बताते?”

“गुड़ियों के खेल में उम्र गंवाई, जाना है एक दिन सोच न आई।” इमरान ने कहा और ठंडी सांस लेकर खामोश हो गया।

फैयाज़ कुछ ना बोला। उसका बस चलता तो इमरान की बोटियाँ उड़ा देता।

“अब मैं तुम्हारी किसी बेवकूफी में हिस्सा न लूंगा।” उसने थोड़ी देर बाद कहा, “जो दिल चाहे करो। मैं जा रहा हूँ। अब तुम्हारी तुम अपनी हर करतूत के खुद जिम्मेदार होगे।”

“बहुत-बहुत शुक्रिया! तुम जा सकते हो…टाटा और अब अगर अब भी नहीं जाओगे, तो बाटा… हिप।”

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