Chapter 8 Devangana Novel By Acharya Chatursen Shastri
Table of Contents
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महातामस : देवांगना
यह एक अंधेरा तहखाना था, जो भूगर्भ में बनाया गया था। एक प्रकार से विहार की यह काल कोठरी थी जहाँ दिन को भी कभी सूर्य के प्रकाश की एक किरण नहीं पहुँच पाती थी। वहाँ दिन-रात सूची-भेद्य अन्धकार रहता था। यहाँ अनेक छोटी-छोटी कोठरियाँ थीं। जिनमें अनेक ऐसे अभागे बंद थे, जो इन आचार्यों की स्वेच्छाचारिता में बाधा डालते या उनकी राह में रोड़े अटकाते थे। बहुत-से तो वहाँ से जीवित निकल नहीं पाते थे। जो निकल पाते थे, उनमें अनेक पागल हो जाते या असाध्य रोगों के शिकार बन जाते थे। कोठरियों में अंधकार ही नहीं, सील भी बहुत रहती थी। ये काल-कोठरियाँ भूगर्भ में नदी के साथ सटी हुई थीं। बहुत-से जीवित तथा मृत अभागे बंदी यहीं से जल-प्रवाह में फेंक दिए जाते थे।
भिक्षु धर्मानुज को एक कोठरी में धकेलकर आसमिक ने द्वार पर ताला जड़ दिया। बड़ी देर तक तो उसे कुछ सूझा ही नहीं। फिर धीरे-धीरे उसकी आँखें अंधकार को सहन कर गईं। उसने देखा—कोठरी अत्यंत गन्दी, सील-भरी और दुर्गन्धित है। उनमें अनेक कीड़े रेंग रहे हैं। जो उसके शरीर को छू जाने लगे पर धर्मानुज ने धैर्यपूर्वक अपने को इस विपत्ति के सहने के योग्य बना लिया। वह कोठरी के एक कोने में पड़े काष्ठ फलक पर जाकर बैठ गया और अपने भूत-भविष्य का विचार करने लगा। कभी तो वह अपने राजसी ठाट-बाट युक्त घर के जीवन को याद करता और कभी इन वज्रयानियों के पाखण्डों की कल्पना करता। अब तक उसने बहुत-सी बातें केवल सुनी ही थीं। पर अब तो वह प्रत्यक्ष ही देख रहा था। वह जानता था कि उसे बिना ही अपराध के ऐसा भयानक दण्ड दिया गया है। उसके पिता की सम्पत्ति हरण करने का यह सारा आयोजन है––यह वह जानता था। अब उसे सन्देह होने लगा कि वे लोग उसे जान से मारकर अपनी राह का कंटक दूर करना चाहते हैं, न जाने ऐसे कितने कंटक वे नित्य दूर करते हैं। बौद्ध सिद्धों की यह कुत्सित हिंसक वृत्ति देख वह आतंक से काँप उठा।
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