चैप्टर 2 नीले परिंदे : इब्ने सफ़ी का उपन्यास हिंदी में | Chapter 2 Neele Parindey Novel By Ibne Safi ~ Imran Series Read Online

Chapter 2 Neele Parindey Novel By Ibne Safi

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सरदारगढ़ पहाड़ी इलाका था। अब से पचास साल पहले यहाँ का ख़ाक उड़ती रहती थी, लेकिन मिट्टी के तेल का भंडार मिलने के बाद यहां अच्छा खासा शहर बन गया था।

शुरू में यहाँ सिर्फ गरीब लोगों की आबादी थी। धीरे-धीरे यहाँ आबादी फैलती गई और फिर एक दिन सरदारगढ़ आधुनिक शहर बन गया। पहले सिर्फ मिट्टी के तेल के कुओं की वजह से उसकी अहमियत थी, लेकिन अब इसकी गिनती मशहूर हिल स्टेशनों में भी होने लगी थी और यहाँ की नाइटक्लब दूर-दूर तक मशहूर थे। कैप्टन फैयाज़ ने कार नाइट क्लब के सामने रोक दी। टाउन हॉल के क्लॉक टावर में अभी अभी ग्यारह बजाये थे और यह नाइट क्लबों के जागने का वक्त था। मगर इमरान के खर्राटे शबाब पर थे। फैयाज़ जानता था कि वह सो नहीं रहा है। खर्राटे बिल्कुल बनावटी है, लेकिन वह उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता था। ये और बात है कि वह कार के करीब से गुजरने वालों से आँखें मिलाते हुए शरमा रहा था। बेकार के करीब से गुजरते वक्त पल भर रुककर खर्राटे सुनते और फिर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाते।

“ओ मर्दुद!” फैयाज़ झल्लाकर उसे झिंझोड़ने लगा। पहले तो उस पर कोई असर नहीं हुआ, फिर अचानक वो कल आकर उसने खुले दरवाजे से छलांग लगा दी, मगर इस बार चोट उसी को लगी। मकसद शायद यह था कि सड़क पर गिरने की सूरत में फैयाज़ नीचे होगा और वो खुद ऊपर…मगर फैयाज़ बड़ी फुर्ती से एक तरफ हट गया और इमरान जो झोंक में था, औंधे मुँह सड़क पर चला आया। अलबत्ता उसकी फुर्ती भी काबिले तारीफ थी। शायद ही किसी ने उसे गिरते देखा हो। दूसरे पल में वह इतने सुकून के साथ फैयाज़ के कंधे पर हाथ रखे खड़ा था, जैसे कोई बात ही ना हुई हो।

“हाँ तो अब हम कहाँ हैं?” इमरान ने ऐसे अंदाज से पूछा, जिसमें ना तो शर्मिंदगी थी और ना बेइत्मीनान फैयाज़ पर हँसी का दौरा पड़ गया था। इमरान आराम से खड़ा रहा। आखिर फैयाज़ बोला, “कपड़े तो झाड़ लो।” और इमरान बड़ी होशियारी से फैयाज़ के कपड़े झाड़ने लगा।

“अबे झेंप न मिटाओ।” फैयाज़ फिर हँस पड़ा।

“तुम हमेशा उटपटांग बातें किया करते हो।” इमरान बिगड़ गया।

“चलो चलो!” फैयाज़ से धकेल कर इमारत की तरफ बढ़ा।

वे दोनों हॉल में दाखिल हुए। अभी बहुत सी मेजें खाली थीं। फैयाज़ ने चारों तरफ निगाह दौड़ा कर एक मेज चुन ली और वे दोनों कुर्सियों पर जा बैठे। एक वेटर  ने करीब आकर उन्हें सलाम किया।

“वालेकुम अस्सलाम!” इमरान ने उठकर उससे हाथ मिलाते हुए कहा, “बच्चे खैरियत से तो है?”

“जज…जी…साहब…ही ही ही..!” वेटर बौखला कर हँसने लगा और फैयाज़ ने इमरान के पैर में बड़ी बेदर्दी से चुटकी ली। इमरान ने ‘सी’ करके वेटर का हाथ छोड़ दिया।

“खाने में जो कुछ भी हो, लाओ।” फैयाज़ ने वेटर से कहा और वेटर चला गया।

जिन लोगों ने इमरान को वेटर से हाथ मिलाते देखा था वे अब भी उन दोनों को घूर रहे थे। फैयाज़ को फिर से पर ताव आ गया और गुस्से में बोला, “तुम्हारे साथ वही रह सकता है, जिसे अपनी इज्जत का पास ना हो।”

“आजकल फ्री पास और कंसेशन बिल्कुल बंद है।” इमरान ने सिर हिलाकर कहा और होंठ सिकोड़ कर चारों तरफ देखने लगा।

“फैयाज़! परवाह ना करो।” इमरान ने थोड़ी देर बाद संजीदगी से कहा, “मैं जानता हूँ कि तुम मुझे यहाँ क्यों लाये हो। क्या मैं नहीं समझता कि यह पेरिसियन नाइटक्लब है।”

“मैं कब कहता हूँ कि तुम सरदारगढ़ पहली बार आये हो।” फैयाज़ बोला। अचानक उसका मूड बदल गया था। हो सकता है कि ये इमरान की संजीदगी का असर रहा हो।

“मैं रोज बकायदा तौर पर अखबार पढ़ता हूँ।” इमरान ने कुछ सोचते हुए कहा।

“फिर!”

“आज से एक हफ्ता पहले इसी हॉल में एक छोटा सा नीला परिंदा उड़ रहा था।” इमरान धीरे से बोला।

“ओ हो! तो तुम समझ गये।” फैयाज़ की आवाज में दबी हुई खुशी थी।

“मगर तुम इसे यह ना समझना कि मुझे किसी ऐसे परिंदे के वजूद पर यकीन भी है।”

“तो फिर क्या बात हुई?” फैयाज़ ने मायूसी से कहा।

“मतलब यह है कि अपने तौर पर पता लगाए बगैर मैं ऐसे किसी परिंदे के वजूद पर यकीन नहीं कर सकता।”

“और तुम पता लगाए बगैर मानोगे नहीं!” फैयाज़ ने चहक कर कहा।

“मुझे पागल कुत्ते ने नहीं काटा।” इमरान ने टाइट होते हुए कहा।

“मुझे क्या पड़ी है कि बेकार में अपना वक्त बर्बाद करूं।”

“वह तो तुम्हें करना ही पड़ेगा।”

“जबरडीस्ती?”

“तुम्हें करना पड़ेगा।”

‘क्या करना पड़ेगा?” इमरान की खोपड़ी फिर आउट ऑफ़ ऑर्डर हो गई।

“कुछ भी करना पड़ेगा।”

“अच्छा मैं करूंगा। मगर नहीं, बेटर खाना ला रहा है। मैं फिलहाल खाना खाकर एक कप चाय पियूंगा। इसलिए बकवास बंद।” खाने के दौरान सचमुच खामोशी रही। शायद फैयाज़ भी बहुत ज्यादा भूखा था। खाने के बाद चाय के दौरान फिर वही बात शुरू हो गई।

“जमील का बयान यही है। मैंने वही मेज चुनी है, जिस पर उस दिन जमील था।”

“क्या?” इमरान उछल कर खड़ा हो गया।

“यानी यही मेज, जो हम इस्तेमाल कर रहे हैं।”

“हाँ यही! ए ख़ुदा के लिए संजीदगी से सुनो। बैठ जाओ।”

“वाह रे आपकी संजीदगी!” इमरान चरित्र हाथ में चाहता वह बोला, “सांप के फन पर बिठा दो मुझे। लानत भेजता हूँ ऐसी दोस्ती पर।”

फैयाज़ ने उसे खींचकर बिठा दिया और कहा, “तुम्हें यह काम करना ही पड़ेगा, चाहे कुछ हो। मैं उन लोगों से वादा कर चुका हूँ।”

“किन लोगों से?”

“जमील के खानदान वालों से!”

“अच्छा तो शुरू हो जाओ, मैं सुन रहा हूँ।”

“जमील इसी मेज पर था।”

“फिर मूड खराब कर रहे हो मेरा।” इमरान डरी हुई आवाज से बोला, “बार-बार यही जुमला दोहराकर..”

“हुश्त! दर्जनों आदमियों ने उस परिंदे को हॉल में चक्कर लगाते देखा था। वह कुछ पल हवा में चकराता रहा, फिर अचानक जमील पर गिर पड़ा और अपनी बारीक सी चोंच उसकी गर्दन में उतार दी। जमील का बयान है कि उसे उसकी सोच अपनी गर्दन से निकालने के लिए काफी ताकत भी लगानी पड़ी थी। बहरहाल उसने उसे खींचकर खिड़की से बाहर फेंक दिया था। दूर बैठे हुए लोग उसका मजाक उड़ाने के लिए हँसने लगे। उनके साथ वह भी हंसता रहा। लेकिन वह ज्यादा देर तक यहां नहीं बैठ सका क्योंकि उसे ऐसा लग रहा था जैसे गर्दन में बिच्छू ने डंक मार दिया हो। लेकिन फिर यह तकलीफ एक घंटे से ज्यादा न रही। रात भी वह सुकून से सोया और जब दूसरे सुबह जागा, तो अपने सारे जिस्म पर बड़े-बड़े धब्बे पाये, ख़ास तौर पर चेहरा बिल्कुल ही खराब हो गया था। अब अगर तुम उसे देखो, तो पहली नज़र में सफेद दाग का कोई बहुत पुराना मरीज मालूम होगा।”

“कहने का मतलब मकसद यह है कि वह दाग उसी परिंदे के हमले का नतीजा है।” इमरान बोला।

“यकीनन!”

“क्या डॉक्टरों की राय यही है।”

“डॉक्टर उसे सफेद दाग मानने से हिचकिचा रहे हैं। जमील का खून टेस्ट किया गया है और उसी की बिना पर डॉक्टर कोई साफ राय देते हुए भी हिचकिचा रहे हैं।“

“खून के बारे में रिपोर्ट क्या है?”

“खून में बिल्कुल नये किस्म के वायरस पाये गये हैं, जो डॉक्टरों के लिए बिल्कुल नये हैं।”

“ओह! अच्छा! रिपोर्ट की एक कॉपी तो मिल ही जायेगी।”

“ज़रूर मिल जाएगी!” फैयाज़ ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा।

“मगर उसके खानदान वाले डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टिगेशन से क्यों मदद चाहते हैं? इस बीमारी का सुराग तो डॉक्टर ही पा सकेंगे।”

“हालात कुछ इसी किस्म के हैं।” फैयाज़ सिर हिलाकर बोला।

“अगर वाकई यह कोई बीमारी है, तो उस परिंदे ने जमील ही को क्यों चुना था, जबकि पूरा हॉल भरा हुआ था।”

“यह दलील बेतुकी है।”

“पूरी बात भी तो सुनो।”

“अगर अचानक उस दिन वह इस बीमारी में ना फंस गया होता, तो उसकी मंगनी तीसरे ही दिन एक बहुत ऊँचे खानदान से हो जाती।”

“अच्छा हूं!”

“अब तुम खुद सोचो।”

“सोच रहा हूँ।” इमरान ने लापरवाही से जवाब दिया। फिर कुछ देर बाद बोला, “गर्दन के जख्म के बारे में डॉक्टर क्या कहते हैं?”

“कैसा जख्म? दूसरी सुबह उस जगह सिर्फ एक निशान दिख रहा था, जैसे गर्दन में पिछले दिन इंजेक्शन दिया गया हो और अब तो शायद खुद जमील भी यह न बता सके कि परिंदे ने किस जगह चोंच लगाई थी।”

“खूब!” इमरान तिरछी नज़रों से एक तरफ देखता बड़बड़ाया। कुछ देर तक खामोशी रही, फिर इमरान ने पूछा, “अच्छा सुपर फैयाज़! तुम मुझसे क्या चाहते हो?”

“यह कि तुम इस सिलसिले में जमील के खानदान वालों की मदद करो।”

“लेकिन इससे क्या फायदा होगा? जमील की मंगनी तो होने से रही। तुम मुझे उन लोगों का पता बताओ, जिनके यहाँ जमील की मंगनी होने वाली थी।”

“उससे क्या होगा?’

“मेरी मंगनी होगी। क्या तुम यह चाहते हो कि मैं शादी के बगैर ही मर जाऊं।”

“तुम मंगनी और शादी नहीं समझते। उल्लू कहीं के!”

“हाँ!”

“इमरान काम की बात करो।”

“फैयाज़ साहब! पता…”

“अच्छा तो क्या तुम या समझते हो कि यह उन्हीं लोगों की हरकत है?”

“अगर उनका ताल्लुक परिंदों की किसी नस्ल से है, तो यकीनन उन्हीं की होगी और मुझे बहुत ही खुशी होगी, अगर मैं किसी बहेलिये का दामाद बन जाऊं।”

“तुम फिर बहकने लगे।”

“फैयाज़ डियर! पता…”

फैयाज़ कुछ पल सोचता रहा। फिर बोला, “वह यहाँ का एक बहुत बड़ा खानदान है। नवाब जावेद मिर्जा का खानदान। परवीन जावेद मिर्जा ही की इकलौती लड़की है और जावेद मिर्जा बेपनाह दौलत का मालिक है।”

“आहा! ” इमरान अपनी राने पीटता हुआ बोला, “तब तो अपनी चांदी है।”

“बकवास बंद नहीं करोगे।”

“अच्छा! खैर हटाओ!” इमरान ने कुछ सोचते हुए कहा, “जमील किस हैसियत का आदमी है?”

“ज़ाहिर है कि वह भी दौलतमंद ही होगा, वरना जावेद मिर्ज़ा के यहाँ रिश्ता कैसे हो सकता और अब तो जमील की दौलत में ज्यादा इजाफा हो जायेगा क्योंकि अभी हाल ही में उसकी एक पुश्तैनी जमीन में तेल का बहुत बड़ा जखीरा मिला है।”

“क्या जमील जमीन का अकेला मालिक है?”

“सौ फ़ीसदी! खानदान के दूसरे लोग हकीकत में उसकी पकड़ में है या दूसरे अल्फाज में उसके नौकर समझ लो। तीन चाचा, दो मामा, चचेरे भाई कई…”

“और चचेरी बहनें!”

“बहुत सारी!”

“उनमें से कोई ऐसी भी है, जिसकी उम्र शादी के काबिल हो?”

“मेरा ख़याल है कि खानदान में ऐसी तीन लड़कियाँ हैं।”

“जमील के कारोबार की तफसील?” तफ़सील के लिए और पूछताछ करनी पड़ेगी। वैसे यहाँ उसके दो बड़े कारखाने हैं – एक ऐसा है, जिसमें मिट्टी के तेल के बैरल डाले जाते हैं। दूसरे में मिट्टी के तेल की सफाई होती है।”

“तो कहिए वह भी काफी मालदार है।” इमरान सिर हिला कर बोला, “लेकिन क्या कुछ जमील ही ने तुम से बातचीत की थी।”

“नहीं! उसने तो लोगों से मिलना जुलना ही बंद कर दिया है। अब वह घर से बाहर ही नहीं निकलता।”

“तो क्या मैं उसे ना देख सकूंगा।”

“कोशिश यही की जाएगी कि तुम उसे देख सको। वैसे वह मेरे सामने भी नहीं आया था।”

“तुमने यह नहीं बताया कि यह किस तुमको किस से मिला?”

“उसके चाचा सज्जाद से….उससे मेरी पुरानी जान पहचान है।”

“अब हम कहाँ चलेंगे?”

“मेरा ख़याल है कि मैं तुम्हें जमील की कोठी में पहुँचा दूं। लेकिन ख़ुदा के लिए बहुत ज्यादा कोई बोरियत न फैलाना। तुम्हें अपनी इज्जत का भी ख़याल नहीं होता।

“मेरी फिक्र तो तुम किया ही ना करो। मेरी इज्जत जरा वॉटर फ्रूफ किस्म की है।”

“मैं नहीं चाहता कि लोग मुझे उल्लू समझे! हालांकि तुम से बड़ा उल्लू आज तक मेरी नज़रों से नहीं गुजरा।”

इमरान ने संजीदगी से कहा, “लव एक्सीडेंट मुझे भी दो मैं भी अब बकायदा तौर पर सिगरेट शुरू कर दूंगा। कल ही एक बुजुर्ग फरमा रहे थे कि जिन पैसों पर घी दूध खाते हो, अगर उन्हीं के सिगरेट पियो, तो क्या हर्ज है?”

“अच्छा बकवास बंद करो।” फैयाज़ उसकी तरफ सिगरेट केस बढ़ाते इए बोला। इमरान ने सिगरेट केस लेकर अपनी जेब में रख लिया। वे दोनों कुर्सियों से उठ गए।

“क्या मतलब?” फैयाज़ ने कहा, “तुम्हारे पास सिगरेट है। अब मैं आज तो सिगरेट खरीदने से रहा।” फैयाज़ होंठों ही होठों में कुछ बड़बड़ाकर खामोश हो गया।

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