चैप्टर 11 खौफनाक इमारत : इब्ने सफ़ी का उपन्यास | Chapter 11 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter 11 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter 11 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

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उसी रात को इमरान बौखलाया हुआ फैयाज़ के घर पहुंचा। फैयाज़ सोने की तैयारी कर रहा था। ऐसे मौके पर अगर इमरान की बजाय कोई और होता, तो वह बड़ी बदतमीजी से पेश आता। मगर इमरान का मामला ही कुछ और था। उसकी बदौलत आज उसके हाथ ऐसे कागजात लग गए थे, जिनकी तलाश में गुप्तचर विभाग एक अरसे से सिर मार रहा था। फैयाज़ ने उसे अपने सोने के कमरे में बुलवा लिया।

“मैं सिर्फ एक बात पूछने के लिए आया हूँ।” इमरान ने कहा।

“क्या बात है? कहो!”

इमरान ठंडी सांस लेकर बोला, “क्या तुम कभी-कभी मेरी कब्र पर आया करोगे?”

फैयाज़ का दिल चाहा कि उसका सिर दीवार से टकराकर सचमुच उसको कब्र जाने का मौका मुहैया करें। कुछ कहने की बजाय इमरान को घूरता रहा।

“आह! तुम खामोश हो।” इमरान किसी नाकाम आशिक की तरह बोला, “मैं समझा! तुम्हें शायद किसी और से प्रेम हो गया है।”

“इमरान के बच्चे!’

“रहमान के बच्चे!” इमरान ने जल्दी से गलती सुधारी।

“तुम क्यों मेरी ज़िन्दगी तल्ख किए हुए हो?”

“ओहो! क्या तुम्हारी मादा दूसरे कमरे में सोई है?” इमरान चारों तरफ देखता हुआ बोला।

“बकवास मत करो! इस वक़्त क्यों आए हो?”

“एक इश्किया एक दिखाने के लिए।” इमरान जेब से लिफ़ाफा निकालता हुआ बोला, “उसके शौहर नहीं, सिर्फ बाप है।”

फैयाज़ ने उसके हाथ से लिफाफा लेकर झल्लाहट में फाड़ना चाहा।

“हाँ हाँ?” इमरान ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, “अरे पहले पढ़ो तो मेरी जान! मजा ना आये, तो डाक खर्च खरीददार के ज़िम्मे।”

फैयाज़ ने बेदिली से खत निकाला और फिर जैसे ही उसकी नज़र उस पर पड़ी, खिन्नता के सारे भाव चेहरे से गायब हो गए और उसकी जगह अचरज ने ले ली। खत टाइप किया हुआ था।

“इमरान! अगर वह चमड़े का हैंडबैग या उसके अंदर की कोई चीज पुलिस तक पहुँची, तो तुम्हारी शामत आ जायेगी। उसे वापस कर दो… बेहतरी इसी में है, वरना कहीं… किसी जगह मौत से मुलाकात ज़रुर होगी। आज रात ग्यारह बजे रेसकोर्स के करीब मिलो। हैंडबैग तुम्हारे साथ होना चाहिए। अकेले ही आना। वरना अगर तुम पाँच हजार आदमी के साथ लाओगे, तब भी पूरी तुम्हारे ही सीने पर पड़ेगी।”

फैयाज़ खत पढ़ चुकने के बाद इमरान की तरफ देखने लगा।

“लाओ, इसे वापस कर आऊं।” इमरान ने कहा।

“पागल हो गए हो?”

“हाँ!”

“तुम डर गये।” फैयाज़ हँसने लगा।

“हार्ट फेल होते होते बचा है।” इमरान नाक से बोला।

“रिवाल्वर है तुम्हारे पास?”

“रिवाल्वर!” इमरान अपने कानों में उंगली ठूंसते हुए बोला, “अरे बाप रे!”

“अगर नहीं है, तो मैं तुम्हारे लिए लाइसेंस हासिल कर लूंगा।”

“बस करम करो!” इमरान बुरा सा मुँह बनाकर बोला, “उसमें आवाज भी होती है और धुआं भी निकलता है मेरा दिल बहुत कमजोर है। लाओ हैंडबैग वापस कर दो।”

“क्या बच्चों की सी बातें कर रहे हो?”

“अच्छा तो तुम नहीं दोगे?” इमरान आँखें निकाल कर बोला।

“फिजूल मत बको मुझे नींद आ रही है।”

“अरे ओ, फैयाज़ साहब! अभी मेरी शादी नहीं हुई और मैं बाप बने बगैर मरना पसंद नहीं करूंगा।”

“हैंडबैग तुम्हारे वालिद के ऑफिस में भेज दिया गया है।”

“तब उन्हें अपने जवान बेटे की लाश पर आँसू बहाने पड़ेंगे। कन्फ्यूशियस ने कहा था।”

“जाओ यार! ख़ुदा के लिए सोने दो।”

“ग्यारह बजने में सिर्फ पाँच मिनट रह गए हैं।” इमरान खड़ी की तरफ देखता हुआ बोला।

“अच्छा! चलो तुम भी यही सो जाओ।” फैयाज़ ने बेबसी से कहा।

कुछ देर खामोशी रही। फिर इमरान ने कहा, “क्या उस इमारत के आसपास भी पहरा है।”

“हाँ! कुछ आदमी बढ़ा दिए गए हैं। लेकिन आखिर तुम यह सब क्यों कर रहे हो? अफसर मुझसे उसका सबब पूछते हैं और मैं टालता रहता हूँ।”

“अच्छा तो उठो! खेल भी इसी वक्त खत्म कर दें। तीस मिनट में हम वहाँ पहुँचेंगे। बाकी बचे बीस मिनट। ग्यारह सवा ग्यारह बजे तक सब कुछ हो जाना चाहिए।”

“क्या होना चाहिए।”

“साढ़े ग्यारह बजे बताऊंगा, उठो, मैं इस वक्त सपने में तुम्हारा ओहदा बढ़ता हुआ देख रहा हूँ।”

“आखिर क्यों! कोई खास बात?” अली इमरान एमएससी, पीएचडी कभी कोई आम बात नहीं करता, समझे! नाउ गेट अप!”

फैयाज़ ने बेमन से कपड़े बदले। थोड़ी देर बाद उसकी मोटर साइकिल बड़ी तेजी से उस देहाती इलाके की तरफ जा रही थी, जहाँ वह इमारत थी। इमारत के करीब पहुँचकर इमरान ने फैयाज़ से कहा, “तुम्हें सिर्फ इतना करना है कि तुम उस वक्त कब्र के मुज़ाविर को बातों में उलझा कर रखो, जब तक मैं वापस ना आऊं, समझे! उसके कमरे में जाओ। एक सेकेंड के लिए भी उसका साथ न छोड़ना।”

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