चैप्टर 13 खौफनाक इमारत : इब्ने सफ़ी का उपन्यास | Chapter 13 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter 13 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

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इमरान के कमरे में फोन की घंटी बड़ी देर से बज रही थी। वह करीब ही बैठा हुआ कोई किताब पढ़ रहा था। उसने घंटी की तरफ ध्यान तक न दिया। फिर आकर घंटी जब बजती चली गई, तो वह किताब में मेज पर पटक कर अपने नौकर सुलेमान को पुकारने लगा।

“जी सरकार!” सुलेमान कमरे में दाखिल होकर बोला।

“अबे देख, यह कौन उल्लू का पट्ठा घंटी बजा रहा है।”

“सरकार फोन है!”

“फोन!” इमरान चौंक कर फोन की तरफ देखता हुआ बोला, “उसे उठाकर सड़क पर फेंक दें।”

सुलेमान ने रिसीवर उठाकर उसकी तरफ बढ़ा दिया।

“हेलो!” इमरान माउथपीस ने बोला, “हाँ हाँ, इमरान नहीं तो क्या कुत्ता भौंक रहा है!”

“तुम कल रात रेस कोर्स के करीब क्यों नहीं मिले?” दूसरी तरफ से आवाज आई।

“भाग जाओ गधे।” इमरान ने माउथपीस पर हाथ रखे बगैर सुलेमान से कहा।

“क्या कहा?” दूसरी तरफ से गुर्राहट सुनाई दी।

“ओह! वह तो मैंने सुलेमान से कहा था। मेरा नौकर है…हाँ तो क्या आप बता सकते हैं कि पिछली रात को मैं रेसकोर्स क्यों नहीं गया।”

“मैं तुमसे पूछ रहा हूँ?”

“तो सुनो मेरे दोस्त!” इमरान ने कहा, “मैंने इतनी मेहनत मुफ्त में नहीं की। हैंड बैग की कीमत दस हजार लग चली है। अगर तुम कुछ बढ़ो, तो मैं सौदा करने को तैयार हूँ।”

“शामत आ गई है तुम्हारी।”

“हाँ मिली थी.. मुझे बहुत पसंद आई।” इमरान ने आँख मार कर कहा।

“आज रात और इंतज़ार किया जायेगा। उसके बाद कल किसी वक्त तुम्हारी लाश शहर के किसी गटर में बह रही होगी।”

“अरे बाप! तुमने अच्छा किया कि बता दिया अब मैं कफ़न साथ लिए बगैर घर से बाहर ना निकलूंगा।”

“फिर भी समझाता हूँ।” दूसरी तरफ से आवाज आई।

“समझ गया!” इमरान ने बड़ी विनम्रता से कहा और फोन काट दिया। उसने फिर किताब उठा ली और उसी तरह मशगूल हो गया, जैसे कोई बात ही ना हो। थोड़ी देर बाद घंटी फिर बजी। इमरान ने रिसीवर उठा लिया और झल्लाई हुई आवाज में बोला, “अब मैं यह टेलीफोन किसी यतीनखाने को प्रजेंट कर दूंगा समझे…मैं बहुत ही मकबूल आदमी हूँ…क्या मैंने मकबूल कहा था? मकबूल नहीं मशगूल आदमी हूँ।”

“तुमने अभी किसी रकम की बात की थी।” दूसरी तरफ से आवाज आई।

“कलम नहीं, फाउंटेन पेन।” इमरान ने कहा।

“वक्त बर्बाद मत करो दूसरी तरफ से झल्लाई हुई आवाज आई, “हम भी उसकी कीमत दस हजार लगाते हैं।”

“वेरी गुड!” इमरान बोला, “चलो तो यह तय रहा। बैग तुम्हें मिल जायेगा।”

“आज रात को?”

“क्या तुम मुझे अच्छी तरह जानते हो?” इमरान ने पूछा।

“उसी तरह जैसे पहली उंगली दूसरी उंगली को जानती हो।”

“तो तुम क्या भी जानते होंगे कि मैं बिल्कुल बेवकूफ हूँ।”

“तुम?”

“हाँ मैं! रेस कोर्स बड़ी सुनसान जगह है। अगर बैग लेकर तुमने मुझे ‘ठांय’ कर दिया, तो मैं किस से फ़रियाद करूंगा।”

“ऐसा नहीं होगा।” दूसरी तरफ से आवाज आई।

“मैं बताऊं! तुम अपने किसी आदमी को रुपए देकर टिपटॉप नाइट क्लब में भेज दो। मैं मधुबाला की जवानी की कसम खाकर कहता हूँ कि बैग वापस कर दूंगा।”

“अगर कोई शरारत हुई तो?”

“मुझे मुर्गा बना देना।”

“अच्छा! लेकिन यह याद रहे कि तुम वहाँ भी रिवाल्वर के नाल पर रहोगे।”

“फ़िक्र न करो। मैंने आज तक रिवाल्वर की शक्ल नहीं देखी।” इमरान ने रिसीवर क्रेडल पर रख दिया और जेब से च्यूइंगगम का पैकेट तलाश करने लगा।

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