चैप्टर 14 खौफनाक इमारत : इब्ने सफ़ी का उपन्यास | Chapter 14 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter 14 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

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ठीक आठ बजे के करीब इमरान अपने बगल में एक चमड़े का हैंडबैग दबाये टिपटॉप नाइटक्लब पहुँच गया। करीब-करीब सारी मेजें भरी हुई थी। इमरान ने बार के करीब खड़े होकर मज़मे का जायज़ा लिया। आख़िर उसकी नज़रें एक मेज पर रुक गई, जहाँ लेडी जहांगीर एक नौजवान औरत के साथ बैठी ज़र्द रंग की शराब पी रही थी। इमरान आहिस्ता-आहिस्ता चलता हुआ मेज के करीब पहुँच गया।

“आहा! माई लेडी!” वह झुककर बोला।

लेडी जहांगीर ने दाहिनी भौं चढ़ा कर उसे तीखी नज़रों से देखा और फिर मुस्कुराने लगी।

“हलो इमरान!” वह अपना दाहिना हाथ उठाकर बोली, “तुम्हारे साथ वक़्त बड़ा अच्छा गुज़रता है। यह है मिस तस्नीम खान…बहादुर ज़फ़र तस्लीम की शहज़ादी और यह अली इमरान।”

“एमएससी पीएचडी” इमरान ने बेवकूफों की तरह कहा।

“बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर।” तस्नीम बोली। लहज़ा बेवकूफ बनाने का सा था।

“मुझे अफ़सोस हुआ।”

“क्यों?” लेडी जहांगीर ने हैरतज़दा आवाज में कहा।

“मैं समझता था कि शायद उनका नाम गुलफ़ाम होगा।”

“क्या बेहूदगी है?” लेडी जहांगीर झुंझला गई।

“सच कहता हूँ। मुझे कुछ ऐसा ही मालूम हुआ था। तस्नीम इनके लिए बिल्कुल ठीक नहीं…यह तो किसी ऐसी लड़की का नाम हो सकता है, जो तपेदिक की मरीज हो। तस्नीम…बस नाम की तरह कमर झुकी हुई।”

“तुम शायद नशे में हो।” लेडी जहांगीर ने बात बनाई।

“लो और पियो!”

“फालूदा है?” इमरान ने पूछा।

“डियर तस्नीम!” लेडी जहांगीर जल्दी से बोली, “तुम इनकी बातों का बुरा ना मानना। यह बहुत मज़ाक करते हैं! ओह इमरान बैठो ना!”

“बुरा मानने की क्या बात है?” इमरान ने ठंडी सांस लेकर कहा, “मैं इन्हें गुलफ़ाम के नाम से याद रखूंगा।”

तस्लीम बुरी तरह झेंप रही थी और शायद अब उसे अपने रवैये पर अफ़सोस भी था।

“अच्छा मैं चली!” तस्नीम उठती हुई बोली।

“मैं खुद चला…!” इमरान ने उठने का इरादा करते हुए कहा।

“माय डियर्स! तुम दोनों बैठो।” लेडी जहांगीर दोनों के हाथ पकड़ कर झूमती हुई बोली।

“नहीं! मुझे एक ज़रूरी काम याद आ गया है।” तस्नीम में आहिस्ता से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा और वहाँ से चली गई।

“और मैं!” इमरान सीने पर हाथ रखकर बोला, “तुम पर हजार काम कुर्बान कर सकता हूँ।”

“बाको मत! झूठे…तुम मुझे ख़ामखा गुस्सा दिलाते हो।”

“मैं तुम्हें पूछता हूँ स्वीटी! मगर इस बुड्ढे की ज़िन्दगी में…”

“तुम फिर मेरा मज़ाक उड़ाने लगे।”

“नहीं डियरेस्ट! मैं तेरा चांद, तू मेरी चांदनी…नहीं दिल का लगाना…”

“बस बस! कभी-कभी तुम बहुत ज्यादा चीप हो जाते हो।”

“आई एम सॉरी!” इमरान ने कहा और उसकी नज़रें करीब ही की एक मेज की तरफ उठ गई। यहाँ एक जानी पहचानी शक्ल का आदमी उसे घूर रहा था। इमरान ने हैंडबैग मेज पर से उठाकर बगल में दबा लिया, फिर अचानक सामने बैठा हुआ आदमी उसे आँख मारकर मुस्कुराने लगा। जवाब में इमरान ने बारी-बारी उसे दोनों आँखें मार दी। मेरी जहांगीर अपने गिलास की तरफ देख रही थी और शायद उसके ज़ेहन में कोई इंतिहाई रोमांटिक जुमला कुलबुला रहा था।

“मैं अभी आया।” इमरान ने लेडी जहांगीर से कहा और उस आदमी की मेज पर चला गया।

“लाये हो?” उसने आहिस्ता से कहा।

“यह क्या रहा?” इमरान ने हैंडबैग की तरफ इशारा किया। फिर बोला, “तुम लाये हो?”

“हाँ हाँ!” उस आदमी ने हैंडबैग पर हाथ रखते हुए कहा।

“तो ठीक है!” इमरान ने कहा, “इसे संभालो और चुपचाप खिसक जाओ।”

“क्यों?” वह उसे घूरता हुआ बोला।

“कैप्टन फैयाज़ को मुझ पर शक हो गया है। हो सकता है कि उसने कुछ आदमी मेरी निगरानी के लिए लगा दिए हों।”

“कोई चाल?”

“हरगिज़ नहीं! आजकल मुझे रुपयों की सख्त ज़रूरत है।”

“अगर कोई चाल हुई, तो तुम बचोगे नहीं।” आदमी हैंडबैग लेकर खड़ा हो गया।

“यार, रुपए मैंने अपना मकबरा बनवाने के लिए नहीं हासिल किये।” इमरान ने आहिस्ता से कहा। फिर वह उस आदमी को बाहर जाते देखता रहा। उसके होठों पर शरारती मुस्कुराहट थी। वह उस आदमी का दिया हुआ हैंडबैग संभालता हुआ फिर लेडी जहांगीर के पास आ बैठा।

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