चैप्टर 1 खौफनाक इमारत : इब्ने सफ़ी का उपन्यास | Chapter 1 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter 1 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter 1 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter  1 | 2 | 3 | 45 | | | | | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 

Next | All Chapters

सूट पहन लेने के बाद इमरान आईने के सामने लचक-लचक कर टाई बांधने की कोशिश कर रहा था।

“ओह फिर वही…छोटी बड़ी! मैं कहता हूँ टाइयाँ ही गलत आने लगी हैं।” वह बड़बड़ाता रहा।

“लाहौल विला…कूवत…नहीं बांधता।”

यह कहकर उसने झटका जो मारा न सिर्फ टाई की गांठ फिसलती हुई उसकी गर्दन से जा लगी, बल्कि इतनी तंग हो गई कि उसका चेहरा सुर्ख हो गया और आँखें उबल पड़ी।

“बख…बख़… खीं…” उसके हलक से घुंटी-घुंटी सी आवाजें निकलने लगी और वह फेंफड़ों का पूरा जोर लगा कर चीखा, “अरे मरा बचाओ सुलेमान।”

एक नौकर दौड़ता हुआ कमरे में दाखिल हुआ। पहले तो वह कुछ समझा ही नहीं कि क्यों इमरान सीधा खड़ा हुआ दोनों हाथों से अपनी टांगे पीट रहा था।

“क्या हुआ सरकार?” नौकर भर्रायी हुई आवाज में बोला।

“सरकार के बच्चे, मर रहा हूँ!”

“अरे.. लेकिन… मगर?”

“लेकिन.. अगर…..मगर…” इमरान दांत पीसते हुआ बोला, “अबे, ढीली कर।”

“क्या ढीली करूं?” नौकर ने हैरान होकर कहा।

“अपने बाप की कफ़न की डोरी…जल्दी कर, अरे मरा!”

“तो ठीक से बताते क्यों नहीं?” नौकर भी झुंझला गया।

“अच्छा बे, तो क्या मैं गलत बता रहा हूँ? मैं यानी इमरान एसएससी पीएचडी क्या गलत बता रहा हूँ। अरे कमबखत इसे उर्दू में इसके इस्तेआरा और अंग्रेजी में मेटाफर कहते हैं। अगर मैं गलत कह रहा हूँ, तो बकायदा बहस कर। मरने से पहले यही सही।”

नौकर ने गौर से देखा, तो उसकी नज़र टाई पर पड़ी, जिसकी गांठ गर्दन में बुरी तरह से फंसी हुई थी और नसें उभरी हुई थी। यह उसके लिए कोई नई बात नहीं थी। दिन में कई बार इसे इस किस्म की हिमाकतों का सामना करना पड़ता था।

उसने इमरान के गले से टाई खोली।

“अगर मैं गलत कह रहा था, तो यह बात कई समझ में कैसे आई?” इमरान गरज कर बोला।

“गलती हुई साहब!”

“फिर वही कहता है किससे गलती हुई?”

“मुझसे!”

“साबित करो कि तुमसे गलती हुई।” इमरान एक सोफे में गिरकर उसे घूरता हुआ बोला। नौकर सिर खुजलाने लगा।

“जुएं हैं क्या तुम्हारे सिर पर।“ इमरान ने डांटकर पूछा।

“नहीं तो!”

“तो फिर क्यों खुजा रहे हो?”

“यूं ही!”

“जाहिल…गवार… ख्वाह-म-ख्वाह हरकतें करके एनर्जी बर्बाद करते हो।” नौकर खामोश रहा।

“युंग साइकोलॉजी पढ़ी है तुमने?” इमरान ने पूछा।

नौकर ने नहीं में सिर हिला दिया।

“युंग के हिज्जे जानते हो?”

“नहीं साहब!” नौकर उकताकर बोला।

“अच्छा याद कर लो…जे. यू. एन. जी…युंग। बहुत जाहिल इसे जंग पढ़ते हैं और कुछ जुंग। जिन्हें काबिलियत का हैजा हो जाता है, वो जौंग पढ़ने और लिखने लग जाते हैं। फ्रांसीसी में जे ‘ज़’ की आवाज देता है, मगर युंग फ्रांसीसी नहीं था।”

“शाम को मुर्गा खाइएगा या तीतर?” नौकर ने पूछा।

“आधा तीतर आधा बटेर।” इमरान झल्लाकर बोला, “हाँ तो मैं कह रहा था।” वह खामोश होकर सोचने लगा।

“आप कह रहे थे कि मसाला इतना भूना जाये कि सुर्ख हो जाये।” नौकर ने संजीदगी से कहा।

“आप!” नौकर कुछ सोचता हुआ बोला, “आप मेरे लिए एक सलवार कमीज का कपड़ा खरीदने जा रहे थे। 20000 का लट्ठा और कमीज के लिए बोसकी।”

“गुड! बहुत काबिल और नमक-हलाल नौकर हो। अगर तुम मुझे याद ना दिलाते रहो, तो मैं सब कुछ भूल जाऊं।”

“मैं टाई बांध दूं सरकार।” नौकर ने बड़े प्यार से कहा।

“बांध दो।”

नौकर टाई बांधते वक्त बड़बड़ाता जा रहा था, “बीस हजार का लट्ठा और कमीज के लिए बोस्की। कहिए तो लिख दूं।”

“बहुत ज्यादा अच्छा रहेगा।” इमरान ने कहा।

टाई बांध चुकने के बाद नौकर ने एक कागज के एक टुकड़े पर पेंसिल से घसीट कर उसकी तरह बढ़ा दिया।

“यूं नहीं!” इमरान अपने सीने की तरफ इशारा करके संजीदगी से बोला, “इसे यहाँ पिन कर दो।”

नौकर ने एक पिन की मदद से कागज उसके सीने पर लगा दिया।

“अब याद रहेगा।” इमरान ने कहा और कमरे से निकल गया! राहदारी करके वह ड्राइंग रूम में  पहुँचा। वहाँ तीन लड़कियाँ बैठी थी।

“वाह इमरान भाई!” इनमें से एक बोली, “खूब इंतज़ार करवाया। कपड़े पहनने में इतनी देर लगाते हैं।”

“तो क्या आप लोग मेरा इंतज़ार कर रही थीं?”.

“क्यों? क्या आपने एक घंटा पहले पिक्चर चलने का वादा नहीं किया था।”

“पिक्चर चलने का! मुझे तो याद नहीं…मैं तो सुलेमान के लिए…” इमरान अपने सीने की तरफ इशारा करके बोला।

“यह क्या?” एक लड़की करीब आकर आगे की तरफ झुकती हुई बोली, “बीस हजार का लट्ठा? यह क्या? इसका मतलब?”

फिर वह बेतहाशा हँसने लगी…इमरान की बहन सुरैया ने भी उठ कर देखा, लेकिन तीसरी बैठी रही। वह शायद सुरैया कि कोई नई सहेली थी।

“यह क्या है?” सुरैया ने पूछा।

“सुलेमान के लिए सलवार कमीज का कपड़ा लेने जा रहा हूँ।”

“लेकिन हमसे क्यों वादा किया था?”  वह बिगड़कर बोली।

“बड़ी मुसीबत है।” इमरान गर्दन झटक कर बोला, “तुम्हें सच्चा समझूं या सुलेमान को?”

“उसी कमीने को सच्चा समझिए, मैं कौन होती हूँ?” सुरैया ने कहा। अपनी सहेलियों की तरफ मुड़कर बोली, “अकेले ही चलते हैं। आप साथ चलेंगे भी तो शर्मिंदगी ही होगी, कर बैठेंगे कोई हिमाकत।”

“ज़रा देखिए आप लोग!” इमरान ऑन इस्मत बनाकर दर्द भरी आवाज में बोला, “यह मेरी छोटी बहन है, मुझे अहमक समझती है। सुरैया, मैं बहुत जल्द मर जाऊंगा! किसी वक्त! जब भी ट्राई गलत बंध गई! और बेचारे सुलेमान को कुछ ना कहो! वह मेरा मुहसिन है! मुझ पर एहसान करने वाला, उसने अभी-अभी मेरी जान बचाई है!”

“क्या हुआ था?” सुरैया की सहेली जमीला ने घबराई हुई आवाज में पूछा।

“टाई गलत बन गई थी।” इमरान इंतिहाई संजीदगी से बोला।

जमीला हँसने लगी, लेकिन सुरैया जली-भुनी बैठी रही। उसकी नयी सहेली हैरत से उस संजीदा अहमक को घूर रही थी।

“तुम कहती हो, तो मैं पिक्चर चलने को तैयार हूँ।” इमरान ने कहा, “लेकिन वापसी पर मुझे याद दिलाना कि मेरे सीने पर एक कागज पिन किया हुआ है।”

“तो क्या यह इसी तरह लगा रहेगा?” जमीला ने पूछा।

“और क्या!”

“मैं तो हर किसने जाऊंगी।” सुरैया ने कहा।

“नहीं, इमरान भाई के बगैर मजा ना आयेगा।” जमीला  ने कहा ।

“जिओ!” इमरान खुश होकर बोला, “मेरा दिल चाहता है कि तुम्हें सुरैया से बदल लूं। काश, तुम मेरी बहन होती है। यह नकचढ़ी सुरैया मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती।”

“आप खुद नकचड़े। आप मुझे कब अच्छे लगते हैं?” सुरैया बिगड़ कर बोली।

“देख रही हो, यह मेरी छोटी बहन है।”

“मैं बताऊं!” जमीला संजीदगी से बोली, “आप यह कागज निकाल कर जेब में रख लीजिए, मैं याद दिला दूंगी।”

“और अगर भूल गई….तो वैसे तो कोई राहगीर ही उसे देखकर मुझे याद दिला देगा।”

“मैं वादा करती हूँ!”

इमरान ने कागज निकाल कर जेब में रख लिया।

सुरैया कुछ खिंची-खिंची सी नज़र आने लगी थी।

जैसे ही वे बाहर निकले एक मोटरसाइकिल पोर्टिको में आकर रुकी। जिस पर एक से सलीकेदार भारी-भरकम आदमी बैठा हुआ था।

“हलो फैयाज़!” इमरान दोनों हाथ बढ़ाकर चीखा।

“हलो इमरान माय लैंड तुम कहीं जा रहे हो?” मोटरसाइकिल सवार बोला। लड़कियों की तरफ देख कर कहने लगा, “ओ माफ कीजिएगा, लेकिन यह काम ज़रूरी है। इमरान जल्दी करो।”

इमरान उछलकर कैरियर पर बैठ गया और मोटरसाइकिल फर्राटे भारती हुई फाटक से गुज़र गई।

“देखा तुमने!” सुरैया अपना निचला होंठ चबाकर बोली।

“यह कौन था?”जमीला ने पूछा।

“इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट का सुपरिटेंडेंट फैयाज़। मगर एक बात मेरी समझ में नहीं आ सकी कि उसे भाई जान जैसे ख़ब्ती आदमी में ऐसी क्या दिलचस्पी हो सकती है। अक्सर उन्हें अपने साथ ले जाया करता है।”

“इमरान भाई दिलचस्प आदमी हैं!” जमीला ने कहा, “भाई कम से कम मुझे तो उनकी मौजूदगी में बड़ा मजा आता है।”

“एक पागल दूसरे पागल को अक्लमंद ही समझता है।” सुरैया मुँह बिगाड़कर बोली।

“मगर मुझे तो पागल नहीं मालूम होते।” सुरैया की नयी सहेली ने कहा।

और उसने करीब-करीब ठीक ही बात कही थी। इमरान सूरत से ख़ब्ती नहीं लगता था। खूबसूरत और दिलकश नौजवान था। उम्रसत्ताइस के लगभग रही होगी। सुघड़ और सफाई पसंद था। तंदुरुस्ती अच्छी और जिस्म कसरती था। अपने शहर की यूनिवर्सिटी से एमएससी की डिग्री लेकर इंग्लैंड चला गया था और वहाँ से साइंस में डायरेक्टरेट लेकर वापस आया था। उसका बाप रहमान गुप्तचर विभाग में डायरेक्टर जनरल था। इंग्लैंड से वापसी पर उसके बाप ने कोशिश की थी कि उसे कोई अच्छा सा ओहदा दिला दें, लेकिन इमरान ने परवाह न की।

कभी वह कहता कि मैं साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट की तिजारत करूंगा? कभी कहता कि अपना इंस्टिट्यूट कायम करके साइंस की खिदमत करूंगा….बहरहाल, कभी कुछ और कभी कुछ। पूरा घर उसे परेशान था। इंग्लैंड से वापसी के बाद तो अच्छा खासा अहमक हो गया था। इतना अहमक कि  घर के नौकर तक उसे उल्लू बनाया करते थे। उसे अच्छी तरह लूटते, उसकी जेब से दस-दस के नोट गायब कर देते और उसे पता तक न चलता।

बाप तो उसकी सूरत तक देखना नहीं चाहता था। सिर्फ माँ ऐसी थी, जिसकी बदौलत वह उस कोठी में रहता था, वरना कभी का निकाल दिया गया होता। एकलौता लड़का होने के बावजूद रहमान साहब उससे परेशान आ गए थे।

“पागल वह उसी वक्त नहीं मालूम होते, जब ख़ामोश हो।” सुरैया बोली, ” दो-चार घंटे भी अगर इन हजरत के साथ रहना पड़े, तो पता चले।”

“क्या काटने दौड़ते हैं?” जमीला ने मुस्कुरा कर कहा।

“अगर उन्हें इसी तरह दिलचस्पी लेती रही, तो किसी दिन मालूम हो जायेगा।” सुरैया मुँह सिकोड़कर कर बोली।

Chapter  1 | 2 | 3 | 45 | | | | | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 

Next | All Chapters

Ibne Safi Novels In Hindi

कुएं का राज़ ~ इब्ने सफ़ी का उपन्यास

जंगल में लाश ~ इब्ने सफ़ी का ऊपन्यास

नकली नाक ~ इब्ने सफ़ी का उपन्यास

 

Leave a Comment