चैप्टर 17 खौफनाक इमारत : इब्ने सफ़ी का उपन्यास | Chapter 17 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter 17 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

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दूसरे दिन कैप्टन फैयाज़ इमरान के कमरे में बैठा उसे ताज्जुब की नज़रों से घूर रहा था। इमरान बड़ी संजीदगी से कह रहा था, “मुझे खुशी है कि एक बड़ा गद्दार और वतनफ़रोश मेरे हाथों अपने अंज़ाम को पहुँचा। कौन कह सकता था, जहांगीर जैसा इज़्ज़तदार और नेकनाम आदमी भी किसी गैर मुल्क का जासूस हो सकता है।”

“मगर वह कब्र का मुज़ाविर कौन था?” फैयाज़ ने बेसब्री से पूछा।

“मैं बताता हूँ। लेकिन बीच में टोकना मत। वह बेचारा अकेले ही यह सब कुछ कर लेना चाहता था, लेकिन मैंने उसका खेल बिगाड़ दिया। पिछली रात वह मुझसे मिला था। उसने पूरी दास्तान दोहराई। वह शायद हमेशा के लिए छुप गया है। उसकी बड़ी ज़बरदस्त हार हुई है। अब वह किसी को मुँह नहीं दिखाना चाहता।”

“मगर वह है कौन?”

“अयाज़! चौंको नहीं, मैं बताता हूँ। यही अयाज़ आदमी था, जो फॉरेन ऑफिस के सेक्रेटरी के साथ कागजात समेत सफर कर रहा था। आधे कागजात उसके पास थे और आधे सेक्रेटरी के पास। उन पर डाका पड़ा। सेक्रेटरी मारा गया और अयाज़ किसी तरह बच गया। मुज़रिमों के हाथ सिर्फ आधे कागजात लगे। अयाज़ फॉरेन ऑफिस में सीक्रेट सर्विस का आदमी था। वह बच गया, लेकिन उसने ऑफिस को रिपोर्ट नहीं दी। वह दरअसल अपने जमाने का माना हुआ आदमी था। इसलिए इस शिकस्त ने उसे मजबूर कर दिया कि वह मुज़रिमों से आधे कागजात वसूल किए बगैर ऑफिस में न पेश हो। मैं जानता था कि आधे कागजात मुज़रिमों के किसी काम के नहीं। वह बाकी आधे कागजात के लिए उसे ज़रूर तलाश करेंगे। कुछ दिनों के बाद उसने मुज़रिमों का पता लगा लिया, लेकिन उनके सरगना का सुराग न मिल सका। दरअसल सरगना ही को पकड़ना चाहता था। दिन गुज़रते गये, लेकिन अयाज़ को कामयाबी ना हुई। फिर उसने एक नया जाल बिछाया। उसने वह इमारत खरीद ली और उसमें अपने एक वफ़ादार नौकर के साथ ज़िन्दगी बसर करने लगा। उस दौरान उसने अपनी स्कीम को अमलीजामा पहनाने के लिए एक कब्र बनाई और वह सारा मैकेनिज्म तरतीब दिया। अचानक उसी जमाने में उसका नौकर बीमार होकर मर गया। अयाज़ को एक दूसरी तरकीब सूझ गई। उसने नौकर पर मेकअप करके उसे दफ़न कर दिया और उसके भेष में रहने लगा। इस कार्रवाई से पहले उसने वह इमारत कानूनी तौर पर जज साहब के नाम कर दी और सिर्फ एक कमरा रहने दिया। उसके बाद ही उसने उस इमारत की तरह मुज़रिमों का ध्यान खींचना शुरू कर दिया। कुछ ऐसे तरीके अपनाये कि मुज़रिमों को यकीन हो गया कि मरने वाला सीक्रेट सर्विस ही का आदमी था और बाकी कागजात उसी इमारत में कहीं छुपा कर रख गया है। अभी हाल ही में उन लोगों की पहुँच उस कमरे तक हुई, जहाँ हमने लाशें पाई। दीवार वाले खुफिया खाने में सचमुच कागजात थे। उसका इशारा भी उन्हें अयाज़ की तरफ से ही मिला था। जैसे ही कोई आदमी खाने वाली दीवार के नज़दीक पहुँचता था, अयाज़ कब्र के पत्थर के नीचे से डरावनी आवाज निकालने लगता था और दीवार के करीब पहुँचा हुआ आदमी सहम कर दीवार से चिपक जाता। उधर अयाज़ कब्र के अंदर से मैकेनिज्म को हरकत में लाता और दीवार से तीन छुरियाँ निकलकर उसकी कमर में धंस जाती। यह सब उसने सिर्फ सरगना को पकड़ने के लिए किया था। लेकिन सरगना मेरे हाथ लगा। अब अयाज़ शायद ज़िन्दगी भर अपने बारे में किसी को बता न सके। और कैप्टन फैयाज़! मैंने उससे वादा किया है कि उसका नाम केस के दौरान कहीं ना आने पायेगा। समझे! और तुम्हें मेरे वादे का ख़याल करना पड़ेगा। तुम अपनी रिपोर्ट इस तरह बनाओगे कि इसमें कहीं एक आँख वाली महबूबा भी ना आने पाये।”

“वह तो ठीक है।” फैयाज़ जल्दी से बोला, “वह दस हजार रुपए कहाँ हैं, जो तुमने सर जहांगीर से वसूल किए थे।”

“हाँ ठीक है!” इमरान अपनी आँखें फिराकर बोला, “आधा-आधा बांट लें, क्यों?”

“बकवास है। उसे मैं सरकारी तहवील में दे दूंगा।” फैयाज़ ने कहा।

“हरगिज़ नहीं!” इमरान ने झपट कर चमड़े का वह हैंडबैग मेज से उठा लिया, जो उसे पिछली रात से जहांगीर के एक आदमी से मिला था। फैयाज़ ने उससे हैंडबैग छीन लिया और फिर उसे खोलने लगा।

“खबरदार होशियार…” इमरान ने चौकीदारों की तरह हांक लगाई। लेकिन फैयाज़ हैंडबैग खोल चुका था और फिर जो उसने ‘अरे बाप’ कहकर छलांग लगाई, तो एक सोफे पर जाकर पनाह ली। हैंड बैग से एक सियाह रंग का सांप निकलकर फर्श पर रेंग रहा था।

‘अरे ख़ुदा तुझे गारत करें। इमरान के बच्चे…कमीने।” फैयाज़ सोफे पर खड़ा होकर दहाड़ा। सांप फन काढ़कर सोफे की तरह लपका, फैयाज़ ने चीख मारकर दूसरी कुर्सी पर छलांग लगाई। कुर्सी उलट गई और वह मुँह के बल फर्श पर गिरा। इस बार अगर इमरान में फुर्ती से अपने जूते की ऐडी सांप के सर पर ना रख दी होती, तो उसने फैयाज़ को डस ही लिया होता। सांप का बाकी जिस्म इमरान की पिंडली से लटक गया और उसे महसूस होने लगा, जैसे पिंडली की हड्डी टूट जायेगी। ऊपर से फैयाज़ उस पर जूतों और चप्पलों की बारिश कर रहा था। बड़ी मुश्किल से उसने दोनों से अपना पीछा छुड़ाया।

“तुम बिल्कुल पागल, दीवाने… वहशी!” फैयाज़ हांफता हुआ बोला।

“मैं क्या करूं जानेमन, अब तुम इसे सरकारी तहसील में दे दो। अगर कहीं मैं रात को ज़रा सा भी चूक गया होता, तो उसने मुझे अल्लाह मियां की तहवील में पहुँचा दिया था।”

“क्या सर जहांगीर ने?”

“हाँ! हम दोनों में मेंढकों और सांपों का तबादला हुआ था।” इमरान ने कहा और अपने खास अंदाज़ में च्यूइंगम चबाने लगा। उसके चेहरे पर फिर वही पुरानी हिमाकत दिखाई देने लगी।

**समाप्त**

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