चैप्टर 10 खौफनाक इमारत : इब्ने सफ़ी का उपन्यास | Chapter 10 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

Chapter 10 Khaufnaak Imarat Novel By Ibne Safi

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दूसरी खबर कैप्टन फैयाज़ के लिए एक नया सिर दर्द लेकर आई। हालात ही ऐसे थे कि सीधे-सीधे उसे ही इस मामले में उलझना पड़ा, वरना पहले तो मामला सिविल पुलिस के हाथ में जाता। बात यह है कि इस खौफनाक इमारत से तकरीबन एक या डेढ़ फर्लांग के फासले पर एक नौजवान की लाश पाई गई, जिसके जिस्म पर कत्थई पतलून और चमड़े की जैकेट थी।

कैप्टेन फैयाज़ ने इमरान की हिदायत के मुताबिक पिछली रात को फिर इमारत की निगरानी के लिए कांस्टेबलों का एक दस्ता तैनात करा दिया था। उनकी रिपोर्ट थी कि रात को कोई इमारत के करीब नहीं आया और ना उन्होंने आसपास में किसी किस्म की कोई आवाज ही सुनी। लेकिन फिर इमारत से थोड़े फैसले पर सुबह को एक लाश पाई गई।

जब कैप्टन फैयाज़ को लाश कि खबर मिली, तो उसने सोचना शुरू किया कि इमरान ने इमारत के गिर्द हथियार सहित पहरा बिठाने का प्रस्ताव क्यों पेश किया था? उसने वहाँ पहुँचकर लाश का मुआयना किया। किसी ने मकतूल की दाहिनी कनपटी पर गोली मारी थी। कांस्टेबलों ने बताया कि उन्होंने पिछली रात फायरिंग की आवाज भी नहीं सुनी थी।

कैप्टन फैयाज़ वहाँ से बौखलाया हुआ इमरान की तरफ चल दिया। उसकी तबीयत बुरी तरह झल्लाई हुई थी। वह सोच रहा था कि इमरान ने कोई ढंग की बात बताने की बजाय मीर और गरीब के उटपटांग शेर सुनाने शुरू कर दिये, तो क्या होगा? कभी-कभी उसकी बेतुकी बातों पर उसका दिल चाहता है कि उसे गोली मार दे, मगर फिर शोहरत का क्या होता? उसकी सारी शोहरत इमरान के दम से थी। वह उसके लिए अब तक कई पेंचीदा मसले सुलझा चुका था। बहरहाल काम इमरान करता था और अखबारों में नाम फैयाज़ का छपता था। यही वजह थी कि उसे इमरान का सब कुछ बर्दाश्त करना पड़ता था।

इमरान उसे घर ही पर मिल गया, लेकिन अजीब हालत में। वह अपने नौकर सुलेमान के सर में कंघा कर रहा था और साथ ही साथ किसी दूरदर्शी माँ के अंदाज में उसे नसीहतें भी किए जा रहा था। जैसे ही फैयाज़ कमरे में दाखिल हुआ, इमरान ने सुलेमान की पीठ पर घूंसा जड़कर कहा, “अबे तूने बताया नहीं कि सुबह हो गई।”

सुलेमान हँसता हुआ भाग गया।

“इमरान तुम आदमी कब बनोगे?” फैयाज़ एक सोफे में गिरता हुआ बोला।

“आदमी बनने में मुझे कोई फ़ायदा नजर नहीं आता। अलबत्ता मैं थानेदार बनना जरूर पसंद करूंगा।”

“तुम मेरी तरफ से जहन्नुम में जाना पसंद करो, लेकिन यह बताओ कि तुमने पिछली रात को इमारत पर पहरा क्यों लगाया था?”

“मुझे कुछ याद नहीं!” इमरान फैयाज़ से सिर हिला कर बोला, “क्या वाकई मैंने कोई ऐसी हरकत की थी?”

“इमरान!” फैयाज़ ने बिगड़ कर कहा, “अगर मैं आइंदा तुमसे कोई मदद लूं, तो मुझ पर हजार बार लानत।”

“हजार कम है।” इमरान संजीदगी से बोला, “कुछ और बढ़ो, तो मैं गौर करने की कोशिश करूंगा।”

फैयाज़ के बर्दाश्त करने की ताकत जवाब दे गई। वह गरज कर बोला, “जानते हो, आज सुबह वहाँ से एक फर्लांग के फासले पर एक लाश और मिली।”

“अरे तौबा!” इमरान अपना मुँह पीटने लगा।

कैप्टन फैयाज़ कहता रहा, “तुम मुझे अंधेरे में रखकर ना जाने क्या करना चाहते हो? हालात अगर और बिगड़े, तो मुझे ही संभालने पड़ेंगे, लेकिन कितनी परेशानी होगी। किसी ने उसकी दाहिनी कनपटी पर गोली मारी है। मैं नहीं समझ सकता कि यह हरकत किसकी है?”

“इमरान के अलावा और किसकी हो सकती है!” इमरान बड़बड़ाया। फिर संजीदगी से पूछा, “पहरा था वहाँ?”

“था…मैंने रात ही यह काम किया था।”

“पहरे वालों की रिपोर्ट?”

“कुछ भी नहीं। उन्होंने फायर की आवाज भी नहीं सुनी।”

“मैं यह नहीं पूछ रहा। क्या कल भी किसी ने इमारत में दाखिल होने की कोशिश की थी?”

“नहीं! लेकिन मैं उसकी लाश की बात कर रहा था।”

“किए जाओ। मैं तुम्हें नहीं रोकता, लेकिन मेरे सवालों के जवाब भी दिए जाओ। कब्र के मुजाविर की क्या खबर है? वह अब भी वहीं मौजूद है या गायब हो गया?”

“इमरान ख़ुदा के लिए तंग मत करो।”

“अच्छा तो अली इमरान एमएससी, पीएचडी कोई गुफ्तगू नहीं करना चाहता।”

“तुम आखिर उस खब्ती के पीछे क्यों पड़ गये हो?”

“खैर जाने दो! मुझे उसके बारे में कुछ और बताओ।”

“क्या बताऊं? बता तो चुका हूँ। सूरत से बुरा आदमी नहीं मालूम होता। खूबसूरत है। जवान जिस्म पर चमड़े की जैकेट और कत्थई रंग की पतलून।”

“क्या?” इमरान चौंक पड़ा और चंद लम्हे अपने होंठ सीटी बजाने वाले अंदाज में सिकोड़े, फैयाज़ की तरफ देखता रहा। फिर एक ठंडी सांस लेकर कहा, “बेखतर कूद पड़ा आतिशे नमरूद में, इश्क ना कोई बंदा रहा ना कोई बंदा नवाज़।”

“क्या बकवास है?” फैयाज़ झुंझला कर बोला, “अव्वल तो तुम्हें शेर याद नहीं। फिर यहाँ उसका मौका कब था? इमरान मेरा बस चले, तो तुम्हें गोली मार दूं।”

“क्यों शेर में क्या गलती है?’

“मुझे शायरी से दिलचस्पी नहीं, लेकिन मुझे दोनों मिसरे बेरब्त मालूम होते हैं। लाहौल विला कूवत! मैं भी उन्हीं बेकार बातों में उलझ गया। ख़ुदा के लिए काम की बातें करो, तुमने जाने क्या कर रहे हो।”

“मैं रात को काम की बात करूंगा और तुम मेरे साथ होगे, लेकिन एक सेकेंड के लिए भी वहाँ से पहरा न हटाया जाये। तुम्हारे एक आदमी को हर वक्त मुज़ाविर के कमरे में मौजूद रहना चाहिए। बस, अब जाओ…मैं चाय पी चुका हूँ, वरना तुम्हारी काफ़ी खातिर करता। हाँ, एक आँख वाली महबूबा को मेरा पैगाम पहुँचा देना कि काले मुँह वाले दुश्मन का सफाया हो गया। बाकी सब खैरियत है।”

“इमरान मैं आसानी से पीछा नहीं छोडूंगा। तुम्हें अभी और इसी वक्त सब कुछ बताना पड़ेगा।”

“अच्छा तो सुनो! लेडी जहांगीर बेवा होने वाली है। उसके बाद तुम कोशिश करोगे कि मेरी शादी उसके साथ हो जाये। क्या समझे?”

“इमरान!” फैयाज़ गोली मार बैठने की हद तक संजीदा हो गया।

“यस बॉस!”

“बकवास बंद करो। मैं अब तुम्हारी ज़िन्दगी हराम कर दूंगा।”

“वह किस तरह सुपर फैयाज़?”

“निहायत आसानी से!” फैयाज़ सिगरेट सुलगा कर बोला, “तुम्हारे घर वालों को शक है कि तुम अपना वक्त आवारगी और अय्याशी में गुजारते हो। लेकिन किसी के पास उसका ठोस सबूत नहीं। मैं सबूत मुहैया कर दूंगा। एक ऐसी औरत का इंतज़ाम कर लेना मेरे लिए मुश्किल ना होगा, जो सीधे तुम्हारी अम्मा बी के पास पहुँचकर अपने लुटने की दास्तां बयां कर दे।”

“ओह!”इमरान ने दु:ख के अंदाज में अपने होंठ सिकोड़ लिये, फिर आहिस्ता से बोला, “अम्मा बी की जूतियाँ ऑल प्रूफ हैं। खैर सुपर फैयाज़, यह भी कर के देख लो, तुम मुझे सब्र और शुक्र करने वाला बेटा पाओगे। लो च्यूइंगगम शौक करो।”

“इस घर में ठिकाना नहीं होगा तुम्हारा।” फैयाज़ बोला।

“तुम्हारा घर तो मौजूद ही है।” इमरान ने कहा।

“तो तुम नहीं बताओगे।”

“ज़ाहिर है!”

“अच्छा तो अब तुम इन मामलों में दखल नहीं दोगे। मैं खुद ही देख लूंगा।” फैयाज़ उठता हुआ खुश्क के लहजे में बोला, “और अगर तुम उसके बाद भी अपनी टांग अड़ाते रहे, तो मैं तुम्हें कानूनी गिरफ्त में ले लूंगा।”

“यह गिरफ्त टांगों में होगी या गर्दन में?” इमरान ने संजीदगी से पूछा। चंद लम्हे फैयाज़ को घूरता रहा फिर बोला, ” ठहरो!”

फैयाज़ रुक कर उसे बेबसी से देखने लगा। इमरान ने अलमारी खोलकर चमड़े का वही बैग निकाला, जिसे वह कुछ अजनबी लोगों के बीच से पिछली रात को उड़ा लाया था। उसने हैंडबैग खोलकर चंद कागजात निकालें और फैयाज़ की तरफ बढ़ा दिए। फैयाज़ ने जैसे ही एक कागज की तह खोली, वह एकदम उछल पड़ा। अब तेजी से दूसरे कागजात पर भी नज़रें दौड़ा रहा था।

“यह तुम्हें कहाँ से मिले?” फैयाज़ लगभग हांफता हुआ बोला। उत्साह से उसके हाथ कांप रहे थे।

“एक रद्दी बेचने वाले की दुकान पर…बड़ी मुश्किल से मिले हैं। दो आना सेर के हिसाब से।”

“इमरान! ख़ुदा के लिए!” फैयाज़ थूक निगलकर बोला।

“क्या कर सकता है बेचारा इंसान?” इमरान ने खुश्क लहजे में कहा, “वह अपनी टांगे अड़ाने लगा, तो तुम उसे कानूनी गिरफ्त में ले लोगे।”

“प्यारे इमरान! ख़ुदा के लिए संजीदा हो जाओ।”

“इतना संजीदा हूं कि तुम मुझे बीपी की टॉफियाँ खिला सकते हो।”

“यह कागजात तुम्हें कहाँ से मिले हैं?”

“सड़क पर पड़े हुए मिले थे और अब मैंने इन्हें कानून के हाथों में पहुँचा दिया। अब कानून का काम है कि वह ऐसे हाथ तलाश करें, जिनमें हथकड़ियाँ लगा सके।” इमरान ने अपनी टांगे हटा ली। फैयाज़ बेबसी से उसकी तरफ देखता रहा।

“लेकिन इसे सुन लो।” इमरान कहकहा लगाकर बोला, “कानून के फरिश्ते भी उन लोगों तक नहीं पहुँच सकते।”

“अच्छा तो यही बता दो कि इन मामलों से इनका साथ का क्या ताल्लुक?” फैयाज़ ने पूछा।

“यह तुम्हें मालूम होना चाहिए।” इमरान अचानक संजीदा हो गया, “इतना मैं जानता हूँकि यह कागजात फॉरेन ऑफिस से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन उनका इन बदमाशों के पास होना क्या मानी रखता है?”

“किन बदमाशों के पास?” फैयाज़ चौंक कर बोला।

“वही! उस इमारत में…!”

“मेरे ख़ुदा!” फैयाज़ बेचैनी वाले अंदाज में बड़बड़ाया, “लेकिन तुम्हारे हाथ किस तरह लगे?”

इमरान ने पिछली रात की घटना सुना दी। फैयाज़ बेचैनी से टहलता रहा। कभी-कभी वह रुक पर इमरान को घूरने लगता। इमरान अपनी बात खत्म कर चुका, तो उसने कहा, “अफ़सोस! तुमने बहुत बुरा किया। तुमने मुझे कल यह इत्तला क्यों नहीं दी?”

“तो अब दे रहा हूँ इत्तला। उस मकान का पता भी बता दिया। जो कुछ बन पड़े, कर लो।” इमरान ने कहा।

“अब क्या वहाँ ख़ाक फांकने जाऊं।”

“हाँ हाँ! क्या हर्ज है?”

“जानते हो यह कागजात कैसे हैं?” फैयाज़ ने कहा।

“अच्छे खासे हैं! रद्दी के भाव बिक सकते हैं।”

“अच्छा तो मैं चला!” फैयाज़ कागज समेटकर चमड़े के बैग में रखता हुआ बोला।

“क्या इन्हें इसी तरह ले जाओगे?” इमरान ने कहा, “नहीं ऐसा ना करो, मुझे तुम्हारे कातिलों का भी सुराग लगाना पड़ेगा।”

“क्यों?”

“फोन करके पुलिस की गाड़ी मंगवाओ।” इमरान हँसकर बोला, “कल रात से वे लोग मेरी तलाश में हैं। मैं रात भर घर से बाहर ही रहा था। मेरा ख़याल है कि इस वक्त मकान की निगरानी ज़रूर हो रही होगी। खैर, अब तुम मुझे बता सकते हो कि कागजात कैसे हैं।”

फैयाज़ फिर बैठ गया। वह अपनी पेशानी से पसीना पोंछ रहा था। थोड़ी देर बाद उसने कहा, “सात साल पहले इन कागजात पर डाका पड़ा था। लेकिन इनमें सब नहीं है। फॉरेन ऑफिस का एक जिम्मेदार ऑफिसर उन्हें लेकर सफ़र कर रहा था। यह नहीं बता सकता कि वह कहाँ और किस मकसद से जा रहा था, क्योंकि यह हुकूमत का राज है। ऑफिसर खत्म कर दिया गया था। उसकी लाश मिल गई थी। लेकिन उसके साथ सीक्रेट सर्विस का एक आदमी भी था। उसके बारे में आज तक ना मालूम हो सका। शायद वो भी मार डाला गया हो, लेकिन उसकी लाश नहीं मिली।”

“आहा… तब तो यह बहुत बड़ा खेल है।”

इमरान कुछ सोचता हुआ बोला, “लेकिन मैं जल्द ही उसे खत्म करने की कोशिश करूंगा।”

“तुम अब क्या करोगे?”

“अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।” इमरान ने कहा, “और सुनो! इन कागजात को अभी अपने पास ही दबाए रखो और हैंडबैग मेरे पास रहने दो। मगर नहीं, उसे भी ले जाओ। मेरे ज़ेहन में कई तदबीरें हैं और हां इस इमारत के गिर्द दिन-रात पहरा रहना चाहिए।”

“आखिर क्यों?”

“वहाँ मैं तुम्हारा मकबरा बनवाऊंगा।” इमरान झुंझलाकर बोला।

फैयाज़ उठकर पुलिस की कार मंगवाने के लिए फोन करने लगा।

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